Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ५ उ० ४ सू. २ केवलीहासादिनिरूपणम २१३
अथ छद्मस्थ-केवलिविषये किश्चिद् विशेषमाह-" छउमस्थे भंते ! मगुस्से निहाएज्ज वा, पयलाएज्ज या ? इति' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! छद्मस्थः खलु मनुष्यो निद्रायेत वा, निद्रां सुखप्रतिबोधफलां वा कुर्याद् वा प्रचलायेत वा ? प्रचलाम् ऊोत्थित निद्राकरणलक्षणां कुर्याद् वा ? भगवान् तत्स्वीकुर्वनाह-हंता, निदाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा' हे गौतम ! हन्त, त्वदुक्तं सत्यस्-छद्मस्थो मनुष्यः अवश्यं निद्रायेत वा, प्रचलायेत वा, किन्तु छद्मस्था प्रकार के कर्मों का बन्धक भी होता है। तृतीय भङ्ग की अपेक्षा बहुत नारक आदि जीव सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले और बहुत नारक आदि जीव आठ प्रकार के कर्मों के बांधने वाले होते हैं।
छद्मस्थ और केवली के विषय में अब सूत्रकार कुछ विशेष वात को प्रकट करने के लिये (छउमत्थेणं भंते मणुस्से) इत्यादि सूत्र पाठ कहते हैं इसमें गौतम प्रभुसे पूछते हैं कि हे भदन्त ! छद्मस्थ मनुष्य सुन से जिससे जग सके ऐसी फल वालो (निदाएज्ज वा) निद्रा लेता है क्या ? (पयलाएज्ज वा) अथवा-प्रचला- खड़े २ जो निद्रा ली जाती है वह-यह निद्रा का एक प्रकार है । शास्त्र में निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, और स्त्यानद्धि के भेदसे निद्रा ५ प्रकार की प्रकट की गई है। सो यहां पर निद्रा और प्रचला नामकी निद्राओं को लेकर गौतम ने प्रभु से इस प्रकार से पूछा है। इस के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! (हंता निदाएज्ज वा पयलाएज्ज पा) हां, छद्मस्थ निद्रा लेता है और प्रचला लेता है। परन्तु केवली બાંધે છે અને કેટલાક આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધે છે ત્રીજા ભંગની અપેક્ષાએ ઘણું નારક આદિ છ સાત પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધતા હોય છે અને ઘણું નારકાદિ જી આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધતા હોય છે. છદ્મસ્થ અને કેવલીના વિષયમાં વિશેષ વાત પ્રકટ કરવાના હેતુથી સૂત્રકાર (उमस्थेणं भंते मणुस्से) त्याहि सूत्री ४ छ.
प्रश्न- महन्त ! ७५२५ मनुष्य (निदाएज्ज वा) निद्रा से छे परे ? (पयलाएज्ज वा) शुते प्रयता (SAL SAL निद्रा) से छे मरे।
मा निद्राना पांय प्रा२ ४. -(१) निद्रा (२) निद्रानिद्रा (3) प्रयला (૪) પ્રચલાપ્રચલા અને (૫) ત્યાદ્ધિ. આ સૂત્રમાં નિદ્રા અને પ્રચલાની અપેક્ષાએ ગોતમ સ્વામીએ પ્રશ્ન પૂછે છે.
उत्तर-( मोयमा ! ) 3 गौतम ! “हता निशएज्ज वा पयलाएन वा ',
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪