Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ0 ४ सू०५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् २४९ दयितुमाद- तेणं कालेणं' इत्यादि । ' तणं कालेणं तेगं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'महासुकाओ कप्पाओ' महाशुक्रात् कल्पात् सप्तमदेवलोकात् महास. रगाओ महाविमाणाओ' महास्वर्गात् महाविमानाद् 'दो देवा महिड्रिया,जाव महाणुभागा' द्वौ देवौ महधिकौ, यावत्-महाद्युतिको, महाबलौ, महायशस्को, महानुभागौ, 'समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउन्भूया' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिक-समीपं प्रादुर्भूतौ-समागतवन्तौ ' तएणं ते देवा समणं भगवं महावीरं मणसा चेव वंदंति, नमसंति' ततः खलु तदनन्तरम् तौ देवौ श्रमण भग
टीकार्थ-इससे पहिले सूत्र में मृत्रकार ने भगवान् के शिष्य अति मुक्त कुमारश्रमण अन्तिम शरीरी है ऐसा प्रतिपादित किया है । अतः इस अन्तिम शरीरता का अधिकार होने से भगवान के जो और भी शिष्य हैं उनमें भी अन्तिमशरीरता प्रतिपादित करने के लिये सूत्रकार ने यह सूत्र कहा है-इनमें वे कहते हैं कि-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में और उस समय में (महासुकाओ कप्पाओ) महाशुक्र नाम के सप्तम देवलोक से ( महासग्गओ महाविमाणाओ) महाशुक्र नाम के सातवें देवलोक के महाविमान से (दो देवा मविड़िया जाव महाणुभागा ) दो देव जो महाऋदि वाले यावत् महाप्रभावशाली थे (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतयं पाउन्भूया) श्रमण भगवान महावीर के समीप आये, यहाँ यावत् शब्द से " महातिको, महापलो, महायशस्को" इन पदों का ग्रहण हुआ है। (तएणं ते देवा समणं
ટીકાર્ય–આગળના પ્રકરણમાં મહાવીર પ્રભુના શિષ્ય બાલશ્રમણ અતિમુક્તકની અંતિમ શરીરતાનું પ્રતિપાદન કરાયું છેભગવાન મહાવીરના બીજા શિષ્યની અંતિમ શરીરતાનું પ્રતિપાદન આ સૂત્રમાં કરવામાં આવેલ છે. બે દેવોના પ્રશ્નોના જવાબ રૂપે સૂત્રકારે ભગવાનને ૭૦૦ શિષ્ય સિદ્ધપદ પામશે, स मताव्यु छ. “ तेणं कालेणं तेणं समए णं" ते जे मन त समये " महासुक्का ओ कप्पाओ" माशु नामना सातमा alsना “महा सग्गाओ महा विमाणाओ" महा२१ नोभना महाविमानमाथी “दो देवा महिङ्गढिया जाव महाणुभागा" माऋद्धियुत, महाधुतियुत म8000, मडायशी भने महाप्रभावशाली मे वो “समणस भगवओ महावीरस्स ऑतियं पाउन्भूया " श्रम भवान महावीरनी पासे माव्या. ( 'जाव' ५४थी ग्रह
ये। शहीनो समावेश ४रीन अर्थ मता-ये। छे ) " तएणं ते देवा समण भगव महावीरं मणमा चेव वंदति नमसति" तभए त्यो मापी भनथी ।
भ० ३२
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪