Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे प्रभापृथिवीत भारभ्याधः सप्तमपृथिवीपर्यन्तनैरयिकयोनि योग्यायुःप्रयोजक पाणातिपाताघशुभकर्माणि समुपार्जयति । तथा 'तिरिकावजोणियाउयं पकरे माणे पंचविहं पकरेइ ' तिर्यग्योनिकायुष्क प्रकुर्वन् पश्चविधं प्रकरोति, तदाह ' तंजहा-एगिदिय तिरिक्खजोणियाउयं वा भेदो सयो भाणिययो' तद्यथाएकेन्द्रियतिर्यग्योनिकायुष्क वा, भेदः सर्वो भणितव्यः, तथा च सर्वपदेन द्वीन्द्रिय तिर्यग्योनिकायुष्क; त्रीन्द्रियतिर्यगयोनिकायुष्क, चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकायु एक पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकायुष्क संग्राह्यम् । एवं — मणुस्साउयं दुविहं० ' मनु आदि नरकों में जाने के विषय में भी समझ लेना चाहिये । इसी लिये सूत्रकार सत्तविहं पकरेइ' ऐसा कहा है । 'तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ ' इस सूत्र पाठ द्वारा सूत्रकार ने यह समझाया है कि जिस जीव ने “माया तैर्यग्योनस्य" मायाचारी-माया-गूढमाया, अलीक वचन, कूट तोल, कूटमाप आदि के करने से तिर्यश्चायु का पंध कर लिया है वह जीव उस तिर्यंचायु को पांच प्रकार वाली बना सकता है-अर्थात् पूर्वभव को छोड़कर जब वह तिर्यच गति में जाने के लायक हो जाता है तो वह ' एगेंदिय तिरिक्ख जोणियाउयं वा भेदो सव्वो भाणियव्यो' एगेन्द्रिय तिर्यश्चोंमें भी जा सकता है । अर्थात् वहांके योग्य आयुकर्म के कारण भूत कार्यों को करके वहां पर जाने योग्य आयुकर्म का बंध कर वहां पर जन्म धारण कर सकता है । यहां पर 'सर्वपद से' द्वीन्द्रिय तिर्यग्योनिकायुष्यं, त्रीन्द्रिय तिर्यग्योनिकायुष्क, चतुरिन्द्रिय तिर्यग्योनिकायुष्कं, पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकायुष्कं ' इन पदों का संग्रह નરકમાં જશે–બીજી. ત્રીજી ચેથી, પાંચમી, છઠ્ઠી અને સાતમી નરકમાં જવાને विष ५६५ सभा सभा. मे प्रभारी सूत्ररे घुछ " सत्तविहौंपकरेइ" “तिरिक्खजोणियाउय पकरेमाणे पंचविह पकरेइ” मा सूत्रा। सूत्रअरे से समतव्यु छ २ “माया तैर्यग्योनस्य" मायायारी (४५८) અસત્ય વચન, બેટા તેલ, બેટાં મા૫ આદિ અશુભ કૂ દ્વારા તિર્યંચાયુને બંધ કર્યો છે, તે જીવ મરીને પાંચ પ્રકારના તિર્યોમાંથી કઈ પણ એક પ્રકારના તિય"ચ તરીકે ઉત્પન્ન થાય છે. એટલે કે જીવ જ્યારે પૂર્વ ભવને છેડીને તિર્યંચગતિમાં જવાને એગ્ય આયુનો બંધ કરે છે ત્યારે " एगेंदिय तिरिक्खजोणियाउय वा भेदो सब्यो भाणियव्वो" ते सन्द्रि तिय य યોનિમાં પણ જઈ શકે છે, કીન્દ્રિય તિર્યંચનિમાં પણ જઈ શકે છે, ત્રીન્દ્રિય તિર્યંચયોનિમાં પણ જઈ શકે છે, ચતુરિન્દ્રિય તિર્યચનિમાં પણ જઈ શકે છે અને પંચેન્દ્રિય તિર્યચનિમાં પણ જઈ શકે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે
श्री भगवती सूत्र:४