Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श. ५ उ०३ सू.१ अन्यतीर्थिकमिथ्याशाननिरूपणम् १५५ यन्ति, ' एवं भासंति ' एवम् भाषन्ते ' एवं पण्णवंति ' एवम् प्रज्ञापयन्ति ' एवं परूवेति' एवम् प्ररूपयन्ति-निरूपयन्ति 'से जहा नामए' सा यथानाम, 'सा' वक्ष्यमाणस्वरूपा ' यथा' इति दृष्टान्ते, 'नाम' इति वाक्यालङ्कारे 'जाल गंथिया सिया' जालग्रन्थिका स्यात् , मत्स्यबन्धनसाधनं जालं, तस्य ग्रन्थयइव ग्रन्थयो यस्यां सा जालग्रन्थिका एकजातीया ग्रथितजालिका प्रथितलघुजालं भवेत् । तस्या आकारमाह-'आणुपुरि गढिया ' आनुपूर्वीग्रथिता आनुपूर्व्या परिपाटया यथाक्रमेण प्रथिता गुम्फिता आद्यन्तोचितानां ग्रन्थीनां यथाक्रम भासंति' ऐसा भाषण किया है, 'एवं पण्णवेंति' इस प्रकार से जताया है ' एवं परुति' और इस प्रकार से प्ररूपित किया है कि ' से जहा नामए' जैसे कोई एक 'जालगंठिया सिया' जालग्रन्थिका हो यहां 'यथा' शब्द दृष्टान्त प्रदर्शन के निमित्त आया है तथा ' नाम ' पद वाक्यालं. कार में प्रयुक्त हुआ है। मछलियों का-पकड़ने का-साधन भूत जाल होता है । मच्छीमार इसके द्वारा मछलियों को पकड़ा करते हैं। इसमें जाली होती है । और जाली छोटी २ ग्रन्थियों से गूंथी रहती है। अर्थात् जाली के आकार जैसा जो मच्छलियों के पकड़ने का साधन होता है वह जाल ग्रन्थिका है । इसका आकार कैसा होता है इसी बात को सूत्रकार आगे के पदों द्वारा स्पष्ट करते है-'आणुपुचि गढिया ' जो गांठ उसमें पहिले लगानी चाहिये वह उसमें पहिले लगाई गई हो
और जो अन्त में लगानी चाहिये वह उसमें अन्त में लगाई गई हो इस क्रम से उसमें ग्रन्थियों की रचना की गई हो ऐसी वह जालग्रन्थि का हो, इसी बात का स्पष्टीकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि पण्णवेति) मे समान छ, ( एव परूवेति ) मने मेवी ५३५। रे छ है- (जहा नामए जालगठिया) ४ ४ अनिय हाय, (सडी (जहा) ५४ दृष्टान्त प्रशनने माटे भूश्यु छे मने ( नाम ) ५६ पाध्याલંકાર રૂપે વપરાયું છે. માછલાંને પકડવા માટે જાળ નામનું સાધન વપરાય છે. તેના દ્વારા માછીમાર માછલાં પકડે છે. તેમાં અનેક ગાંઠે વડે ગુંથાયેલી જાળી હોય છે. આ રીતે જાળીને જેવું માછલાં પકડવાનું જે સાધન હોય છે તેને જાળઝન્શિકા કહે છે )
(आणुपुब्वि गढिया ) मा अनुभे is qाम माली हाय. (જે ગાંઠ તેમાં પહેલી વાળવી જોઈએ તે પહેલી વાળી હોય અને જે છેલલી વાળવી જોઈએ તે છેવી વાળી હોય, આ કમથી જેમાં ગઠા વાળેલી હોય
श्री. भगवती सूत्र:४