Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० १ वायुस्वरूपनिरूपणम् १०९ 'मंदावाया' मन्दा वाताः शनैः शनैः स्पन्दमानाः प्रवहणशीलाः वाताः, 'महावाया ' महावाताः उद्दण्डपचण्डपवनाः 'वायंति ? ' वान्ति किम् ? भगवान् तत्स्वीकुर्वन् आह-' इंता अत्थि' हन्त, सत्यम्, अस्ति सम्भवत्येतत् त्वत्पश्न विषयीभूता उपर्युक्ताः वाताः संभवन्ति इत्यर्थः । पुनर्गौतमः पृच्छति-' अत्थिणं भंते ! ' इत्यादि । हे भदन्त ! अस्ति सम्भवति खलु एतत्-यदुत 'पुरथिमेणं' पौरस्त्ये सुमेरोः पूर्वदिग्भागे खलु 'ईसि पुरेवाया' ईषत्पुरोवाताः किश्चित्स्निग्धपवनाः 'पत्था वाया' पथ्याः वनस्पत्यादिहितपदाः वाताः 'मंदा वाया' मन्दाः शनैः स्पन्दमानाः वाताः 'महावाया' महावाताः प्रचण्डोद्धताः पवनाः 'वायंति' ? वान्ति किम् ? भगवानाह-हंता' इत्यादि । 'हंता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् त्वयोक्तं सर्वम् अस्ति सम्भवति, एवम्-उक्तरीत्या 'पञ्चहितकारक वायु, ( मंदावाया) धीरे २ चलने वाला वायु, ( महावाया ) बडे भारीवेग से चलनेवाला वायु, ये चार प्रकार के वायु (वायंति ) घहते हैं चलते हैं क्या ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अस्थि ) हां गौतम ! ये सब वायु चलते हैं । अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं कि ( अस्थि णं भंते ! ) हे भदन्त ! यह संभवित है कि ( पुरथिमे णं) सुमेरू के पूर्व दिग्भाग में ( ईसिंपुरे घाया ) कुछ स्निग्ध (चिक्कण ) वायु, ( पत्था वाया ) वनस्पति आदि की हितकारक पथ्यवायु, (मंदा वाया) धोरे२ चलने वाला वायु, ( महावाया ) प्रचण्डवेग से वहनेवाला वायु ( वायंति ) वहते चलते हैं क्या ? इसके समाधान निमित्त प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अत्थि) हां, गौतम ! तुम्हारा कहना सब सत्य है। इसी तरह से सुमेरु के पश्चिमदिग्भाग में भी ये पूर्वोक्त सब वायु चलते हैं । अर्थात् सुमेरु के पूर्व दिग्भाग में जिस प्रकार से ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं माहिन भाट (St२४ वायु, " मंदावाया " भवायु (धीरे धीरे पात वायु " महावाया " भने महापात (घ! वेगथी प.तो वायु), से या२ मारना वायु " वायति" पाय छ ? महावीर प्रभु त प्रश्न उत्तर भारताछ "हता, गोयमा!" डा, गौतम ! से न्यारे प्रा२ना वायु पाय छे.
प्रश्न-(अस्थिण भते!) महन्त ! शु वात समवित छ (पुरथिमेण) सुभेस पतन पू हमाराम ( ईसिंपुवाया, पत्थावाया, महावाया वायति ! ) परात (स्नायु) ५थ्यात, मात मन मडावात पाय छ?
उत्तर-( हता, अस्थि ) डा गौतम! सुभेरुना पूर्व भागत से प्यारे પ્રકારના વાયુ વાય છે. જેવી રીતે સુમેરુના પૂર્વદિવભાગમાં ઈષત્પરોવાત આદિ
श्री. भगवती सूत्र:४