Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१२२
भगवतीसूत्रे निश्वासे मुश्चन्ति वा किम् । भगवानाह-'जहाखंदए तहा ' यथा स्कन्दके तथा, यथा येन प्रकारेण स्कन्दके स्कन्दकोद्देशके वायु प्रकरणे अत्रैव भगवतीसगे द्वितीयशतकस्य प्रथमोद्देशके चत्वार आलापकाः सन्ति तथा तथैवात्रापि ' चत्तारि आलावगा नेयव्या' चत्वार आलापका ज्ञातव्याः । तत्र चतुर्वालापकेषु प्रथम आलापकः पूर्वपक्षे प्रतिपादित एव । उत्तरमाह-'हंता गोयमा ! वाउकाएणं जाव नीससंतिवा' हन्त गौतम ! वायुकायः खलु यावत् निःश्वसन्तिवा । अथ द्वितीयालापकं सूचयितुमाह-'अयोगसयसहस्स० ' अनेकशत सहस्रकृत्वः=अनेकलक्षवारमित्यर्थः, द्वितीयालापकस्याकारस्त्वेवम्-" वाउकाएचे अणेग सय सहस्स खुत्तो, उदाइत्ता उदाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पवायाइ ! हंता गोयमा! जाव पव्यायाइ," । निःश्वास के रूप में छोडते हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (जहा खंदए तहा चत्तारि आलावगा नेयव्या ) हे गौतम! जिस प्रकार से स्कन्दकोद्देशक में वायु प्रकरण में इसी भगवती सूत्र के द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक में चार आलापक हैं, उसी प्रकार से यहां पर भी चार आलापक जानना चाहिये, इन चार आलापकों में से प्रथम आलापक तो पूर्वपक्ष में प्रतिपादित ही हो चुका है अर्थात् वायुकाय वायुकाय को ही श्वास के रूप में ग्रहण करता है और निः श्वास के रूप में उसे बाहिर निकालता है यह प्रथम आलापक है सो यह प्रथम
आलापक तो पूर्वपक्ष के सूत्र में दिखला हो दिया गया है । अब रहे द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ आलापक सो उनमें से द्वितीय आलापक इस प्रकार से है जो ( अणेगसयसहस्त ० ) इस पाठ द्वारा सूचित किया गया है अनेक लाख बार मर करके वायुकाय वायुकाय में ही उत्पन्न होता है इस आलापक का आकार इस प्रकार से है (वाउकाए णं भंते ! वाउकाए चेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता
उत्तर-(जहा खदए तहा चनारि आलावगा नेयव्वा) 3 गीतम!" રીતે સ્કન્દકેશકને વાયુપ્રકરણમાં આ વિષે ચાર આલાપકે કહ્યા છે, એજ પ્રમાણે અહીં પણ ચાર આલાપક સમજવા ભગવતીસૂત્રના બીજા શતકમાં પહેલા ઉદ્દેશકના વાયુપ્રકરણમાં એ ચાર આલાપ ( પ્રશ્રનોત્તર) આપ્યા છે.
તે ચાર અલાપકેમાંના પહેલા અલાપકનું પ્રસૂત્ર તો ઉપર આપી દેવામાં આવ્યું છે. હવે બીજા, ત્રીજા અને ચોથા આલાપકો બાકી રહે છે. તેમાંને બીજે माला५४ मा प्रभारी छ-(वाकाए ण भंते ! वाउकाएचेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उदाइत्ता उदाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पवायाइ १) (इता,गोरमा जाव पवायाइ) 3
श्रीभगवती.सत्र:४