Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
बहूहिं आजाइसहस्सेहिं बहूई आउयसहस्साइं, आणुपुवि गढियाइं जाव-चिटुंति, एगे वि य णं जाव एगेणं समएणं एगं आउयं पडिसंवेदेइ, तं जहा--इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ,जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, इहभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो परभवियाउयं संवेदेइ, परभवियाउयस्त परिसंवेयणाए नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, एवं खलु एगे जीव एगेणं समएणं एगे आउयं पडिसंवेदेइ तं जहा इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा॥सू०१॥
छाया-अन्ययूथिकाः खलु भदन्त ! एवम् आख्यान्ति, एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञा यन्ति एवं प्ररूपयन्ति, सा यथानाम जालप्रन्थि का स्थात् , आनुपूर्वीग्रथिता, अनन्तरग्रथिता, परस्परग्रथिता, अन्योन्यग्रथिता अन्योन्यगुरुकतया, अन्योन्य __'अण्णउत्थियाणं भंते' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(अण्णउत्थियाण भंते ! एवमाइक्खंति, भासंति, पण्णवेंति, एवं परूति) हे भदन्त ! अन्यतीर्थिक जन ऐसा कहते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा बताते हैं, ऐसी प्ररूपणा करते हैं ( से जहा नामए जालगंठिया सिया, आणुपुब्धिगढिया, अणंतरगढिया, परंपरग. ढिया, अण्णमण्णगढिया ) जैसे कोई एक जाल ग्रन्धिका हो, और उसमें क्रमपूर्वक गांठे लगी हों, एक के बाद एक इस तरह अन्तर विना वह
(अण्णउत्थियाणं भंते !) त्या !
सूत्रा--( अण्णउत्थियाणं भंते ! एवमाइक्खंति, भासंति, पण्णवंति, एवं परूवें ति) हे सहन्त ! अन्यतीर्थ । (अन्य मतवाहीसा) मे કહે છે, એવું ભાષણ કરે છે, એવું જણાવે છે અને એવી પ્રરૂપણ કરે છે કે (से जहा नामए जालगढिया सिया, आणुपुठिवगढिया, अणंतरगढिया, पर पर गढिया, अण्णमण्णगढिया ) ३४ से जयन्थि ।य, मां भवार ગાંઠ વાળેલી હોય, જેને એક પછી એક એમ અંતર વિના ગૂંથેલી
श्री. भगवती सूत्र:४