Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ ० १ वायुस्वरूपनिरूपणम् ११३ पान्तीत्यर्थः।
पुनीतमः पृच्छति- अस्थिणं भंते ! ' हे भदन्त ! अस्ति सम्भवति खलु यदुत ' सामुद्दगा' सामुद्रिकाः समुद्रसम्बन्धिनः । ईसिंपुरे वाया० ' ईष. पुरोवातादयो वान्तीति ? भगवानाह-'हंता अस्थि' हन्त, सत्यम् , अस्ति सम्भवत्येतत् । समुद्रसम्बन्धिनोऽपि ईषत्पुरोवातादयो वान्त्येवेति भगवदाशयः। __गौतमः पुनः प्रकारान्तरेण पृच्छति-'जयाणं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु 'दीविच्चया' द्वैप्याः 'ईसिं पुरेवाया०' ईषत्पुरोवातादयो वान्ति 'तयाणं ' तदा खलु — सामुद्दया वि' सामुद्रिका अपि 'ईसिंपुरे वाया०' ईष. स्पुरोवातादयो वान्ति ? एवं 'जया णं' यदा खलु 'सामुद्दया' सामुद्रिका 'ईसिंपुरे वाया० । ईपत्पुरोवातादयो वान्ति, ' तयाणं' तदा खलु 'दीविच्चया वि' द्वैप्याः अपि 'ईसिंपुरेवाया' ईषत्पुरो वातादयो वान्ति किम् ! इति प्रश्नाशयः गौतम से कहते हैं कि (हंता ) हां, गौतम ! द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ चलती हैं। ___ अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं (अस्थि ण भंते ! सामुद्दगा ईसिंपुरे वाया०) हे भदन्त ! समुद्रसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, यह बात संभवित होती है क्या ? प्रभु इसके उत्तरमें कहते हैं (हंता अस्थि ) हां यह बात संभवित होती है कि समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वाय चलते ही हैं । अब गौतम इसी विषयको प्रकारान्तरसे प्रभुसे पूछते हैं कि (जया णं भंते !) जिस समय (दीविच्चया ईसिंपुरे वाया०) द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं (तया गं) तब क्या (सामु.
या वि) समुद्रसंबंधी भी ( ईसिंपुरे वाया०) ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं ? और (जया ण) जब (सामुद्दया ईसिंपुरेवाया०) समुद्रसंबंधी
प्रश्न-( अत्थिण भते ) 3 महन्त ! शुसे बात सलवित छ , “ समु. हगा ईसिंपुरेवाया" समुद्र समधी पपुशवात माल वायुसी पाय छ ?
उत्तर-ता, अस्थि" हा गौतम ! . वात समावित छ , समुद्र સંબંધી ઈષપુરે વાત આદિ વાયુ વાતા હોય છે.
प्रश्न-"जयाण' भते !" महन्त ! समये “ दीविच्चयो ईसिं पुरे वाया." द्वीप समंधी परेशात माहि वायुसो पाता डाय छ, ( तयाण) ते सभये “सामुद्दया वि ईसिंपरेवाया, "शु समुद्र सभी पत्पुरोवात मात पायुसे। पा॥ राय छ २i ? भने " जयाण" न्यारे “ सामुद्दयाईसि पुरेवाया" समुद्र सपा धप.सुरोपात वायुमो पाता य छ , ( तयाण) त्यारे "दीविच्चया वि ईसि पुरेवाया, " द्वीपमधी ५१ पत्पुरवात Pule વાયુઓ શું વાતા હોય છે ખરાં?
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श्री भगवती सूत्र : ४