________________ किसी चोर या डाकू से ही वह ऐसा कराएगा तो इस दशा में जिस चोर या डाकू द्वारा ईश्वर ऐसा फल उस को दिलवाएगा, वह चोर ईश्वर की आज्ञा का पालक होने से निर्दोष होगा, फिर उसे दोषी ठहरा कर जो पुलिस पकड़ती है और दण्ड देती है वह ईश्वर के न्याय से बाहर की बात होगी। यदि उसे भी ईश्वर के न्याय में सम्मिलित कर चोर की चोरी करने की सजा पुलिस द्वारा दिलाना आवश्यक समझा जाए तो यह ईश्वर का अच्छा अन्धेर न्याय है कि इधर तो स्वयं धनिक को दण्ड देने के लिए चोर को उस के घर भेजे और फिर पुलिस द्वारा उस चोर को पकड़वा दे। क्या यह-चोर से चोरी करने की कहे और शाह से जागने की कहे-इस कहावत के अनुसार ईश्वर में दोगलापन नहीं आ जाएगा? इसी प्रकार जो ईश्वर ने प्राणदण्ड देने के लिए कसाई, चाण्डाल तथा सिंह आदि जीव पैदा किए हैं, तदनुसार वे प्रतिदिन हजारों जीवों को मार कर उन के कर्मों का फल उन्हें देते हैं, वे भी निर्दोष समझने चाहिएं, क्योंकि वे तो ईश्वर की प्रेरणा के अनुसार ही कार्य कर रहे हैं। यदि ईश्वर उन्हें निर्दोष माने तब उस के लिए अन्य सभी जीव जो कि दूसरों को किसी न किसी प्रकार की हानि पहुंचाते हैं, निर्दोष ही होने चाहिएं। यदि उन्हें दोषी मानें तो महान् अन्याय होगा, क्योंकि राजा की आज्ञानुसार अपराधियों को अपराध का दण्ड देने वाले जेलर, फाँसी लगाने वाले चाण्डाल आदि जब न्याय से निर्दोष माने जाते हैं तब उन के समान ईश्वर की प्रेरणानुसार अपराधियों को अपराध का दण्ड देने वाले दोषी नहीं होने चाहिएं ? २-ईश्वर सर्वशक्तिसम्पन्न है, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है, अतः उस के द्वारा दी हुई अशुभ कर्मों की सज़ा अलंघनीय, अनिवार्य और अमिट होनी चाहिए, किन्तु संसार में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं होता। देखिए-ईश्वर ने किसी व्यक्ति को उसके किसी अशुभकर्म का दण्ड देकर, उसके नेत्र की नज़र कमज़ोर कर दी, वह अब न तो दूर की वस्तु साफ़ देख सकता है और न छोटे-छोटे अक्षरों की पुस्तक ही पढ़ सकता है। ईश्वर का दिया हुआ यह दण्ड अमिट होना चाहिए था, परन्तु उस व्यक्ति ने नेत्र-परीक्षक डाक्टर से अपने नेत्रस्वास्थ्य के संरक्षण एवं परिवर्धन के लिए एक उपनेत्र (ऐनक) ले लिया, उस उपनेत्र को लगा कर उस ने ईश्वर से दी हुई सज़ा को निष्फल कर दिया। वह एक ऐनक से दूर की चीज़ साफ़ देख लेता है, और बारीक़ से बारीक़ अक्षर भी पढ़ लेता है। ईश्वर जापान में बार-बार भूकम्प भेज कर उस को विनष्ट करना चाहता है परन्तु जापानी लोगों ने हलके मकान बना कर भूकम्पों को बहुत कुछ निष्फल बना दिया है। इसी भाँति ईश्वर की भेजी हुई प्लेग, हैज़ा आदि बीमारियों को डाक्टर लोग, सेवासमितियां अपने प्रबल उपायों से बहुत कम कर देते हैं। इसके अतिरिक्त कर्मों का फल भुगताने के लिए भूकम्प 64] श्री विपाक सूत्रम् [प्राक्कथन