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लेश्याओं का वर्गीकरण इस प्रकार है
१ -- कृष्णलेश्या
२– नीललेश्या
३- कापोतलेश्या
१ - कृष्णाभिजाति
२- नीलाभिजाति ३- लोहिताभिजाति
१ - कृष्ण
२-धूम्र ३—नील
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बौद्ध साहित्य में भी रंगों के आधार पर छः अभिजातियां निर्धारित हैं । वे इस प्रकार है ।'
- तेजोलेश्या
- पद्मलेश्या
६- शुक्ललेश्या
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लेश्याओं का वर्गीकरण छः अभिजातियों की अपेक्षा महाभारत के वर्गीकरण के अधिक निकट है । सनत्कुमार के शब्दों में प्राणियों के छः वर्ग हैं
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१. दीर्घनिकाय १, २ | पृ० १६, २० २. महाभारत, शांतिपर्व २८, ३३ ३. आयारो अ० ५
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४- हरिद्राभिजाति
५ - शुक्लाभिजाति ६- परमशुक्लाभिजाति
इनमें कृष्ण-नील और धूम्र वर्ण का सुख मध्यम है, रक्त वर्ण अधिक सहनीय है । हारिद्र वर्ण सुख का है और शुक्ल वर्ण सुखप्रद है | २
४- रक्त ५- हारिद्र
६— शुक्ल
लेश्या के रंगों तथा महाभारत के वर्ण निरूपण में बहुत साम्य है । रंगों के प्रभाव की व्याख्या सब दर्शन साहित्य में प्राप्त है । पर वस्तु स्थिति यह है कि लेश्या का जितना सूक्ष्म व तलस्पर्शी निरूपण जैन वाङ् मय में मिलता है, उतना विशद व गम्भीर विवेचन अन्यत्र कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होता ।
यह भाव
'अहिलेश्या' जिसकी लेश्या मनोवृत्ति संयम से बाहर नहीं है । लेश्या तेजो-पद्म- शुक्ल के अर्थ में है । आयारी में श्रद्धा का प्रकर्व भाव बतलाते हुए मनोयोग के लिए लेश्या का प्रयोग किया गया है । शिष्य गुरु की दृष्टि का अनुगमन करें, उनकी लेश्या में विचरें अर्थात् उनके भावों का अनुगमन
करें 13
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