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हीन होता है, परन्तु उन्होने चौतरफ का यश पाया । वह उनकी लोकप्रियता ही थी, जिस कारण एक उम्मीदवार को उन्होने, अनपेक्षित रूप से मार्केट का प्रेसिडन्ट बनवा दिया था ।
श्री माणक सा. व्यक्तिगत जीवन में बहुत धार्मिक स्वभाव के थे । रोज ध्यान, नव स्मरण, माला, पाठ इत्यादि करना, अष्ठमी, चतुर्दशी का उपवास करना कभी भी नहीं छोड़ते थे । अपने सिद्धांतो से वे कभी भी समझौता नहीं करते थे । वे हॉलाकि शेयर बाजार में व्यापार करते थे जो शुरु होता था उस समय पर १० बजे और वे ऑफिस जाते थे १२.३० बजे तब तक कभी भी ऑफिस फोन नहीं करते थे न ही उतार-चढाव के भाव लेते थे । वे सदा कहते थे कि सेठ वो ही होता है जो अपनी मर्जी से कार्य करे । समय उसी के हिसाब से चलेगा, वह समय के हिसाब से नहीं ।
माणक सा. हमेशा सम्बन्धों में प्रेम का निर्माण करते थें । वे परिवार, व्यापार, रिश्तेदार, बिल्डिंग, सोसायटी के हर व्यक्ति से प्रेम करते थे । हर व्यक्ति उनको अपने दिल की बात कहता था ये उनका प्रेम ही था कि सामने वाला सहज होकर अपने दिल की बात उनसे करता था । उन्हें हमेशा सबसे प्रेम करना, इतने बडे आदमी होकर भी सहज व्यवहार करना व हर एक के साथ प्रेम रे रहना, स्नेह देना उनके स्वभाव का अंतरंग हिस्सा था जो मैने देखा है |
वे परिवार मे संस्कार के पोषक थे । उनका आग्रह रहता था कि हमें सबके साथ कैसे रहना, कैसे बडो को आदर देना, नित्य प्रणाम करना, इत्यादि उन्ही
- सभी को सिखाया । बडो का आदर, छोटो को अपार स्नेह यह उनके इस विशिष्ट स्वभाव के कारण, वे पुरे परिवार, सभी रिश्तेदार के सबसे प्रिय पात्र थे । सबके हृदय में बसे हुए थे । कोई भी तकलीफ हो तो माणक सा. को कह दो उसका समाधान उनके पास था । हमेशा सबको साथ लेकर चलने का आग्रह था कभी भी कोई कार्य अकेले करने का निर्णय नहीं लिया, परिवार के आदर्श, पितृ भक्त थे । स्वास्थ्य के प्रति सजग थे । खान पान मे बहुत ध्यान रखते थे । जीवनभर प्याज लहसन एवं चाय का उपयोग नहीं किया । हमेशा सबसे स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने का बोध कराते थे ।
एक घटना जिससे मुझे जीवन मे एक बड़ी शिक्षा मिली, का उल्लेख करना चाहता हुँ कि वर्ष १९९२ में माणक सा. रतलाम आए मै उनके साथ स्टेशन गया
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