Book Title: Siddhantratnikakhyam Vyakaranam
Author(s): Jayantvijay, Vidyavijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KIRAN सिद्धान्तरत्निका-व्याकरणम् RAKES GANA VES ASTRI Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // जगत्पूज्यश्री विजयधर्मसूरिभ्यो नमः // श्रीजिन श्रीजिनचन्द्रसूरिप्रणीतम्, * सिद्धान्तरनिकाऽख्यं व्याकरणम् / शान्तमूर्तिमुनिराजश्रीजयन्तविजयविरचित-उत्तरार्द्धवृत्तिद्वयोपरि सिद्धान्तमुक्तानामकटिप्पणपहितम् / तञ्च व्याख्यातृचूडामणि-शासनदीपकमुनिराजश्रीविद्याविजयमहाराजेन संशोधितम् / वीरसं० 2456 / धर्मसंवत् 8 द्वितीयावृत्तिः 1000 / वि० सं० 1986 / सन् 1929 मूल्यम् 0-12-0 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतत्पुस्तकं भावनगरस्था-श्रीयशोविजय-जैन-ग्रन्थमालायाः कार्यवाहकेन फूलचन्द बैद इत्यनेन. वटपद्र(बडौदा)स्थ-लुहाणामित्र स्टीम प्रीन्टिम प्रेस इत्याख्यमुद्रणालये मुद्रापयित्वा प्राकाश्यं नीतम् ता. 1-4-1930 // wwwwww ANNhhhhhhhh.." Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - जगत्पूज्य स्वर्गस्थ शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीमद् विजयधर्मसूरीश्वरजी महारानके शिष्य-मुनिराज श्रीजयन्तविजयनीके शिष्य मुनिराज श्रीविशालविजयनीके उपदेशसे और खीवाणदीनिवासी शाह भीमाजी हकमाजीके प्रयत्नसे इस ग्रन्थके प्रकाशनकार्यमें सहायता देनेवाले उदार गृहस्थों की शुभ नामावली. - - - 231-0-0 खीवाणदी (मारवाड) निवासी शाह भीमानी हक मानी के तर्फसे, अपने पूज्य पिताजी हकमानी कूपानी और माताजी रकमादे के स्मरणार्थ. / 187-8-0 खीवाणदी (मारवाड) निवासी शाह शंकरलालजी कस्तुरचन्दनी की तर्फसे, अपने पूज्य पिताजी शाह कस्तूरचन्दनी हकमाजी के स्मरणार्थ, 93-12-0 खीवाणदी (मारवाड) निवासी शाह अनूपचन्दनी गुलाबनी के तर्फसे, अपने पूज्य पिताजी शाह गुलाबनी भगवान्दासनी के स्मरणार्थ. 93-12-0 खीवाणदी (मारवाड) निवासी शाह चीमनलालनी कपूरचन्दनीकी तर्फसे, अपने पूज्य पिताजी शाह कपूरचन्दनी मकनाजी के स्मरणार्थ, 93-12-0 खीवाणदी (मारवाड) निवाप्ती शाह दलीचन्दनी भूतानी के तर्कसे, अपने पून्य पिताजी शाह भूतानी तिलोकनी के स्मरणार्थ. 50-4-0 दोलपरा(मा.)निवासी शाह देवीचन्दनी ढुंबाजीके तर्फसे 750-0-0 - - // - - - - - - Page #5 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगत्पूज्य-स्वर्गस्थ-गुरुदेव-श्रीविजयधर्मसूरिः શાસ્ત્રવિ શા૨દ - જે ના ચાર્ય તિ જય શ્રી વિજયધર્મ સૂરિ મહારાજ.. जन्म सं० 1924. सुरिपदम् सं० 1964. दीक्षा सं० 1943. स्वर्गगमनम् सं० 1978. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगत्पूज्य-शास्त्रविशारद-जैनाचार्यश्रीविजयधर्मसूरीश गुरुदेवानामध्य॑म् / धर्मो विज्ञवरेण्यसेवितपदो धर्म भजे भावतः, धर्मेणावधुतः कुबोधनिचयो धर्माय मे स्यान्नतिः। धर्माचिन्तितकार्यपूर्तिरखिला धमस्य तेजो महत् , धर्मे शासनरागधैर्यसुगुणाः श्रीधर्म ! धर्म दिश // 1 // Page #9 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन. जगत्पूज्य स्वर्गस्थ गुरुदेव पूज्यपाद श्रीविजयधर्मसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न स्वर्गस्थ श्रीमान् मुनिरान श्रीरत्नविजयजी महाराजश्रीना उपदेश अने सहानुभूतिथी आ लघु व्याकरणनी पहेली आवृत्ति, संवत् 1965 मां विशनगर निवासी शेठ गोकलदास उगरचंदनी आर्थिक सहायताथी श्रीविशनगर ज्ञानभंडार व्यवस्थापक समाज तरफथी तैना सेक्रेटरी श्रीयुत शेठ महासुखभाई चुनीलाल द्वारा प्रकाशित थई हती, परंतु ते आवृत्ति थोडां वर्षोमां खलास. थइ गइ. ___आ तरफथी आ व्याकरण कलकत्ता संस्कृत एसोशियेशननी जैन श्वेतांबर व्याकरणनी प्रथमा परीक्षामा दाखल थएल होवाथी, श्रीवीरतत्त्वप्रकाशकमंडल ( जैन पाठशाला ) अने बीनी पण संस्थाओना संस्कृतनुं प्राथमिक ज्ञान लेनारा विद्यार्थीओने खास अडचण पडती होवाथी; तेमन मोटी उम्मरना, व्यापारी ने व्यवसायी मनुष्योने थोडा समयमा संस्कृत भाषानुं मौलिक ज्ञान प्राप्त करवा माटे आ व्याकरण खास उपयोगी होवाथी आनी बीनी आवृत्ति छ गववानी घणी अगत्य जणातां पहेली आवृत्ति छपावनार उक्त संस्था पासे फरी छपाववानी मंजुरी मांगतां, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेना सेक्रेटरीए घणी खुशीनी साथे मंजुरी आपवाथी, अमोए अमारा तरफथी आ व्याकरणने फरी छपाववानो निश्चय करीने आ कार्य सारी रीते संपादन करवा माटे श्रीयुत पंडित लालचंद भगवान्दास गांधीने सोप्युं. तेमणे घणा उत्साहथी पूर्वार्द्ध सुधीनुं संपादन कयु. परंतु तेमने माथे साहित्यसेवाना कामनो बोजो घणो होवाथी आ कार्यमा घणो विलंब थतो जणायाथी, अने भणनारा विद्यार्थीओनी उपरा उपरी मांगणी आवती होवाथी जलदी पुरु कराववाना इरादाधी शिवपुरीमा बिराजता मुनिराजोने ते माटे विनति करी, तेथी तेमणे सहर्ष आ काम उपाडी लीधुं. ___व्याख्यातृचूडामणि शासनदीपकजी श्रीमान् विद्याविजयजी महाराजे उत्तरार्द्धनी बन्ने वृत्तिभोनुं घणा परिश्रमपूर्वक संशोधन कर्यु. शान्तमूर्ति मुनिराज श्रीजयन्तविजयजीए उत्तरार्द्धनी बन्ने वृत्तिओ उपर विद्यार्थीओने उपयोगी थाय तेवु सरल टिप्पण लखी आप्यु, तेमज मुनिराज श्रीहिमांशुविजयजी अनेकान्तीए एक सुंदर प्रस्तावना ( आमुख) लखी आपी. उपर्युक्त सौना सहकारी परिश्रमथी तेमज आ ग्रन्यना प्रकाशन कार्य माटे आर्थिक सहायता आपनारा उदार गृहस्थो (जेनी यादी प्रारंभमां आपवामां आवी छे.)नी मददथी आ ग्रन्थने प्रसिद्धिमा मुकवा अमो भाग्यशाली थया छीए. - आ प्रन्यनु. संशोधन नीचे लखेली हस्तलिखित बे प्रतिओने आधारे करवामां आव्युं छे. तेथी ते बन्ने प्रतिओना मालिको Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने बन्ने ज्ञानमंदिरोना व्यवस्थापकोनो पण आभार मानवो उचित धारीये छीये. 1 (क) वि. संवत् 1965 ना ज्येष्ठ मासमां लखेली, श्री वडोदरा जैन ज्ञानमंदिरनी प्रवर्तकनी महारान श्रीकान्तिविजयनी महाराजना शास्त्र संग्रहनी, श्रीयुत पंडित लालचन्द्र भगवान्दास गांधी द्वारा प्राप्त. 2 (ख) वि.संवत् १८९९ना ज्येष्ठ शुदि 13, मुनि अमृत विजये लखेली, श्रीविजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमंदिर आगरानी, अ० नं० 2749, विषय नं० 186. अन्तमा संशोधन करनार तेमज टिप्पण अने प्रस्तावना लखी आपनार उक्त मुनिरानो तथा पंडितजीनो अने प्रकाशन कार्य माटे आर्थिक सहायता माटे उपदेश आपनार मुनिराज श्रीविशालविजयजीनो तथा आर्थिक सहायता आपनारा सद्गृहस्थोनो उपकार मानवा साथे, जनता आ पुस्तकनो सारी रीते लाभ लइ अमारा परिश्रमने सफल करे एटलं इच्छी विरमीए छीए प्रकाशक. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमुखम् / - - - व्याकरणात् पदसिद्धिः पदसिद्धरर्थनिर्णयो भवति / अर्थात् तत्त्वज्ञानं तत्त्वज्ञानात् परं श्रेयः // 1 // हहो ! विद्याविलासिनो विपश्चिद्दर्यवर्याः ! आर्याः ! नैकशोऽनुभूतचरमिदं व्याकरणवाङ्मयविद्याविनोदवतां श्रीमतां भवतां विपश्चितां, प्रसिद्धप्रायं श्रुतपूर्व च प्रौढपुण्य प्राप्तप्रतिभाप्राग्भारप्रतिपन्नानां पण्डितप्रेष्ठानां यद् व्याकरणज्ञानं समस्तैर्मनुष्यैः प्रथमतः सम्यग्रीत्योपार्जनीयमिति / व्याकरणशब्दस्य व्युत्पत्तिस्तु प्रचण्डवैयाकरणतार्किकमतिमतां मान्यैर्ग्रन्थानां चतुश्चत्वारिंशदधिकचतुर्दशशतकृद्भिः श्रीहरिभद्राचार्यैरावश्यकवृत्तावेवमुक्ता "व्याक्रियन्ते लौकिक-सामयिकाः शब्दा. अनेनेति व्याकरण-शब्दशास्त्रम् " अनया व्युत्पत्त्या काव्यालङ्कार-तक-योग-ज्योतिः-प्रमुखशास्त्राणि नास्माद् व्याकरणज्ञानादृते सम्यक्तया पठितुं शक्यन्त इति स्फुटतरं प्रतीयते / व्याकरणं हि द्वारं सर्वशास्त्राणां संयमः सर्वसिद्धीनामिव; एतदेव मूलमशेषविद्यानां ब्रह्मचर्याश्रमोऽखिलाऽऽश्रमाणामिव; न चैतदस्माकं मनःकल्पितमतिशयोक्तिमिश्रितं वा वयं ब्रूमहे, किन्तु निःशेषयोगीशध्येयैर्निर्मलसकलकलाकलनैकपटुभिरत्रभवद्भिः सर्वज्ञैः सर्वदर्शिभिस्तीर्थङ्करैः " वयणविहत्तिए कुसलो " इत्यादिभिः .. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) . प्रतिपादितपूर्वमेव व्याकरणमहत्त्वमार्षग्रन्थेषु / तन्त्रान्तरीयैरपि समर्थितं चैतद् " * एक शब्दः सम्यकश्रुतः स्वर्गे लोके कामधुम् भवति " इत्यादिवचनैः / न चैवं मन्तव्यं यद्वयमेकान्तेन व्याकरणवाङ्मयस्यैवाऽऽवश्यकतां दर्शयाम / किन्त्वेवं ब्रूमहे यत् पूर्व व्याकरणं पठितव्यं तेन सौष्ठवोपेतं भाषापाटवं प्राप्य पश्चात्तर्क-काव्य-कोषालङ्कार-ज्योतिर्योगमुख्यानि शस्त्राण्यपि पठिंतव्यान्येव, न ह्येकशास्त्रेण कश्चिदपि मनुष्यः सर्वत्र सर्वदा सर्वशास्त्रेषु मान्यतां पटुतां कार्यसिद्धिं वा प्राप्नुयादिति तु प्रतिप्राणि प्रतीतमेव / प्रोक्तं च केनचित्कोविदेन " एकशास्त्रमधीयानो न विद्याच्छास्त्रसञ्चयम् / व्याकरणादीनि च निःशेषशास्त्राण्यर्थतः श्रीमद्भिस्तीर्थकृद्भिः पूर्व संशयादिदोषरहितेन सहितेन विमलेन केवलज्ञानेन विलोक्य जगद्धिताय प्रतिपादितानीति तु विज्ञातपूर्वमेव रहस्यज्ञानां प्रज्ञाशालिनां विज्ञानाम् / ननु कथमिदमुक्तं युक्तं भवेत् ?, व्याकरणकाव्य-न्याय-ज्योतिः-छन्दःप्रभृतीनि शास्त्राणितु पाणिनि-वाल्मीकिगौतम-गर्मा-पिङ्गलाद्याचार्यै रचितानीति प्रसिद्धिः, मैवं वोचः, पाणिन्यादिभ्योऽपि बहुकालपूर्वत एव निखिलकलाकलनैकविज्ञैः सर्वज्ञैः श्रीमतीर्थकरैरेव व्याकरणादिविद्या-कलानां प्रोक्तत्वान्न कोऽपि सर्वज्ञाहते कस्याश्चिदपि अविकलकलाया आदिकर्ता * पातञ्जलमहाभाष्ये। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवितुमर्हतीति मनीषिणां मतम् / भणितं च भव्यमणितिकुशलैः सर्वज्ञकल्पैर्भगवद्भिः श्रीहेमचन्द्राचायः श्रीच्छन्दोऽनुशासनस्य स्वोपज्ञायां विज्ञज्ञेयायां टीकायम् " न हि मुक्तं किश्चिदार्हतमुपदेशमन्तरेण जगत्यस्ति / " प्रमाणमीमांसायामप्येत एवाचार्या अवोचन्." अनादय एवैता विद्याः सङ्क्षपविस्तरविवक्षया नवनवीभवन्ति तत्तत्कर्तृकाचोच्यन्ते " (पृ. 2 ) / ____ ततो निर्गतसन्देहमिदं समस्तप्रशस्तशास्त्रविद्यानामर्थतः श्री. तीर्थकृद्भिः प्रतिपादनम् / तत्प्रतिपादितार्थमवधार्य तत्तद्देश-कालमाविलोकावश्यकतामवेक्ष्य तत्तद्देशीयभाषा-युक्त्यादिद्वारा गुणिगणगणनीया गुणगरिष्ठा गणधरास्ते ते च पाणिनि-गौतम-गर्ग-पिङ्गलसिद्धसेनदिवाकर-हरिभद्र-हेमचन्द्रप्रभृतयः सन्मतय आचार्यास्तानि तानि व्याकरणादीनि शास्त्राणि शब्दतो रचयामासुरिति तु वयमपि मन्यामहे समुद्घोषयामहे च सर्वदा / चतुर्विशतितमेन भगवता श्रीमहावीरतीर्थकृता पुनर्बाल्य एव वयसि व्याकरणविषयाणां गहनानामिन्द्रकृतानां प्रश्नानात्तरदानकाले पाठकसमक्षमेव शब्दशास्त्रं निगदितम् , तदेव चेन्द्राय प्रोक्तत्वाद् x ऐन्द्रव्याकरणनाम्ना प्रसिद्धिमापत् / अस्य च व्याकरणस्य विशेषोपयोगित्वात्समीचीनत्वाद्वा पण्डितबोपदेवेन शब्द x इन्द्रप्रश्नोद्भवत्वादस्यापरं नामैन्द्रमप्यस्ति / Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) शास्त्राणां तत्कर्तृणां च नामोल्लेखे प्रथमतयोल्लेखः कृतः / तथा चायं तत्कृतः श्लोकः इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली-शाकटायनाः / पाणिन्यमर-जैनेन्द्रा' जयन्त्यष्टौ च शाब्दिकाः // (धातुपाठे ). सारस्वतकृताऽपि " इन्द्रादयोऽपि यस्यान्तं न ययुः शब्दवारिधेः" / इति मङ्गलश्लोकेऽस्यैव नाम प्रथम गृहीतं तेन विज्ञायतेतगम्, यदेतद् व्याकरणं पुरा तद्वेदिनां हृदयाम्बुजे महत्तरं स्थानमासादितवदिति, परं साम्प्रतमस्माकं दुर्दैववशान्नैतत्त्वचिदप्युपलभ्यत इति महदुःखावहमस्ति / अनुयोगद्वाराख्यागमे चैकाक्षर-व्यक्षरादिनामविषयस्य सोपेण, प्रथमादिसम्बोधनान्ताष्टविभक्ति-समाससप्तक-तद्धिताख्यातप्रत्ययविषयस्य च विस्तरेणोल्लेखो दृश्यतेतराम् / पाणिनिमुनितुल्यव्याकरणविद्याविशारदैः *श्रीहेमचन्द्राचार्यमिश्रेस्तु सर्वव्याकरणेषु मुकुटायमानं मूलसूत्र-लघुवृत्ति-बृहद्वृत्तिबृहन्न्यास-धातुपाठादिकलितं सपादलक्षश्लोकप्रमाणं साङ्गं नाम्ना + श्रीविनयविजयोपाध्यायप्रभृतीनां मतेन जैनेन्द्र इति भगवद्विहितव्याकरणस्य निर्देशः / * एषामाचार्याणां सत्तासमयो वि. सं. 1145 तः 1229 पर्यन्तम् / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनं स्वयमेकवर्षेण संहब्धम् * / ततोऽस्माकमागमग्रन्थकृद्भिस्तदन्याचार्यैश्च सकलाः किल कला विद्याश्च प्रतिपादिता इति स्पष्टतमं सिद्धम् / अथ प्रस्तुतव्याकरणकर्तुः प्रस्तुतव्याकरणस्य च समीक्षा कुर्महे / व्याकरणग्रन्थस्यास्य सिद्धान्तरत्नापराभिधस्य के किल कोविदाः कर्त्तार; ? ते च किन्नामधेयाः ? किन्देशीयाः ! किमाम्नायाश्च ? इत्यादिका जिज्ञासाः स्वभावत एवोल्लसेयुनिज्ञासुप्रज्ञानां मनोज्ञप्राज्ञानां चेतत्ति / किन्तु प्रथममिदमावेदनीयं नानुचितं भवेद् यदस्य व्याकरणस्य बहूनि मूलसूत्राणि तु प्रायेण सारस्वतचन्द्रिकाव्याकरणस्य प्रतिमतां बिभ्रति, ततोऽस्य मूलसूत्रकारास्तु सारस्वतचन्द्रिकाकारा एवानुमन्तव्या इत्यस्मन्मतम् , वृत्तिकारस्त्वस्य सहृदयहृदयचकोरचयचन्दनचन्द्रः श्रीजिनचन्द्रोअस्तीति प्रान्तलिखितैकश्लोकावयवेन प्रकटं प्रतीयते / परन्तु श्रीनिनचन्द्रनाम्नामनेकाचार्य-मुनिवर्याणां सञ्जातत्वेन कतमः स श्रीजिनचन्द्रो योऽस्य वृत्तिकार इति क्विारणीयम् / ___ * सूत्र-वृत्ति-लिङ्गानुशासन-धातुपाठ-गणपाठ इति पञ्च व्याकरणस्याङ्गानि / श्रीहेमाचार्यैः श्रीसिद्धहेमाभिधानं पञ्चाङ्गमपि व्याकरणं सपादलक्षग्रन्यप्रमाण संवत्सरेण रचयाञ्चक्रे, इति प्रबन्धचिन्तामणिस्यसिद्धराजप्रबन्धे। __* सिद्धान्तरनिका-सिद्धान्तरत्नयोर्नार्थभेदः कश्चिदप्यस्ति। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 14) (14) न चास्य व्याकरणस्यान्ते विशेषेण . दर्शितं तेन विदुषा केवलमेक एव स्वोल्लेखोल्लेखी श्लोक: प्रान्त लिखितः, सं चायम् इति श्रीसागरेन्दुपद्मप्रसादेन जिनेन्दुना सम्यक् / सिद्धान्तरत्निकाख्यं कृतं शब्दानुशासनम् // 1 // अनेन केवलमस्य गुरोर्नाम 'सागरचन्द्र ' इत्यवगम्यते / तत्प्रसादादेतच्छब्दानुशासनकारो जिनेन्दुः कुत्रत्यः कदाभवः ? इत्यादिनिज्ञासया परिवीक्ष्यमाणेषु प्रभूतेषु ग्रन्थेषु नागपुरीयतपागच्छपट्टावली (अहम्मदावादीयजैनयुवकमण्डलप्रकाशिता) पार्श्वचन्द्रगच्छीयपट्टावली( मुंबापुरीस्थाध्यात्मज्ञानप्रसारकमण्डलप्रकाशितगच्छमतप्रबन्धान्तर्गता )प्रभृतेः परिज्ञायते खल्विदम्विक्रमीयैकोनविंशतितमायां शताव्यां नागपुरीयतपागच्छापरनामनि पार्श्वनाद्रगच्छे विवेकचन्द्रसूरिपट्टे लब्धिचन्द्राख्यः सरिः समजनि / विक्र नगरवास्तव्योपके शज्ञातीय-छा महगोत्रीयश्रेष्ठि• गिरधरपत्नीगो मदेतनद्भवस्य यस्य जन्म वि सं. 1835 वर्षे श्रावणे व , दीक्षा स्तम्भतीर्थे वि.सं. 1849 वर्षे वैशाखे शु.३, सुम्पिदमुज्जयिन्यां वि. मं. 1854 वर्षे श्रवणे व. 9, गृर्नरपरु मालव-दक्षिण-बङ्गादिदेशेषु विहृतवतश्च यस्य स्वर्गगमनं विक्रपनगरे वि. सं. 1883 वर्षे कार्तिके व. 10 बभूव / तदन्तेवासिनः स्तवनचतुर्विशिकाकर्तुमहोपाध्यायसागरचन्द्रस्य शिष्यरत्नं महोपाध्याय: श्रीजिन चन्द्रगणिगमीदयमेव प्रस्तुतव्याकरणसिद्धान्तरत्निकाकारः। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतद्ग्रन्थकृजिनचन्द्रगणिपाण्डित्य--शक्तिविषयिकी किंवदन्ती तत्रैव षठ्यो यथा-गुरुदत्ताम्ना याद् दिनत्रयेण प्रसादितशारदः षड्दर्शनिप्रमितोऽयं पुण्यपत्तने पञ्चशतपण्डितवर्षदि संस्कृतवाचि विनौष्ठद्वयमेलनमस्खलितं तयोच चार यया रञ्जितैस्तैः प्राज्ञैः 'जगत्पण्डित ' इति पदप्रदानेन सत्कृत आसीत् / राजनगरे ( अहम्मदावादे) हठीमिहश्रेष्ठिवाटिकायां सम्मतितर्कव्याख्यातर्थस्मिन् पण्डितवीर विनयः पार्षद्योऽभूतं / तत्रैव च नगरप्रेष्ठिहेमचन्द्र ( हेमाभाई स्याग्रहेण * शान्तिस्नात्रमुच्चार्य मार्युपद्रवं निवारयामास / पादलिप्तपुरे चाशातनापरिहाराय वायप्तानामागमनं स्वशक्त्या न्यरौत्सीत् / उपदेशशक्ति-गीतकलादिसमन्वितस्यास्य सदुपदेशात् मेदपाटदेशप्रधाननोदयपुरनिवासिना 'पटवा जोर वरमल्ल' इत्यनेन सङ्घान्वितेन पञ्चविंशतिलक्षरूप्यकव्ययेन शत्रुञ्जययात्रा चक्रे / व्याकरणे सिद्धान्तरनिका तथा ज्योतिषे जातकादि गद्यपद्यमयानि नव रत्नान्यनेन विदुपा निर्मितानि / पृथ्वीचन्द्र-गुणसागरयोगद्यचरित्ररचनायां क्षमाकल्याणाय च प्रभूतं साहाय्य व्यधायि / मुंबापुर्या चाथं दिवं जगमित्येतावदुपलभ्यते पूर्वोक्तगुर्जरभाषामयपट्टावलीतः। 1 पं. वी विजयनिर्वाणरासे नावलोक्यतेऽस्य नामापि। 2 जेमलमेरुनिटवर्जिन्यमरमागर नमन्दिरान्तर्गत एत्यात्रैह्यिशिलालेखे नोपलथ्यते ऽम्प ना / / Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनेकविशिष्टशिष्टगरिष्ठमतिकृतानि किलास्मिन् जगति पाणिनि-शाकटायन -बुद्धिसागर-हेमचन्द्रप्रमुखान्यनेकानि व्याकरणानि सन्ति, परन्तु बृहत्तरव्याकरणपठने कलिकालकलया क्षीयमाणबुद्धिशरीरादिशक्तीन् लोकान् वीक्ष्य स्वल्पप्रयतनकालेन तादृशा अल्पमतयः कार्यसाधकं व्याकरणज्ञानं कृत्वा सकलजनध्येयं चतुर्थपुरुषार्थ साधयन्त्वित्युपकारकरणान्तःकरणेनानेन श्रीजिनचन्द्रेणातिसंक्षेपस्तोकसूत्रवृत्तिकरणेन लघुतमं व्याकरणमकारि / साम्प्रतमुपलभ्यमानेषु प्राचीनव्याकरणेषु प्रस्तुतव्याकरणमेव लघुतममिति मे मतिः / अस्मिन् व्याकरणे सूत्राणि प्रायशः पारस्वतीयान्येव प्रतिभान्ति / सारस्वतसूत्रेभ्यः कुत्र कुत्र क्रमभेदः, क्वचित् क्वचित् सूत्र-शब्द-प्रकरणभेदस्तु विद्यत एव, कुत्रचित् कुत्रचित् स्थले हैमव्याकरणादिमतमंनुसृत्यापि वार्तिकादि निबद्धं यथा• डे' नशेरत एत्वं वा वाच्यम् / -सिद्धान्तरत्निका पृ. 99. परिभाषाप्रकरणं त्वस्मिन्नवीनमेव संयोजितं श्रीजिनचन्द्रगणिना। अस्य व्याकरणस्य वृत्तेरतिसंक्षिप्तत्वान्नास्यां बहवः प्रयोगा लिखिताः; केषांचित्तु मूलप्रयोगाणामपि साधकानि सूत्राणि न सन्स्यत एतत्पिपठिषूणां छात्राणां महान् क्लेश उपजायते / तत 1 नशेर्नेश वाऽडि ' हैमव्याकरणे-४-३-१०२ // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (17) उत्तराध्ययनाचनेकग्रन्थसम्पादकैः, 'आबू'प्रभृतिग्रन्थलेखकैः शान्त्या भावितात्मभावैः पूज्यमुनिरानैरिन्द्रियजयं तन्वानः श्रीजयन्तविजयमहाराजैर्वृत्तिद्वयस्य सिद्धान्तमुक्तानामकं सरलं सुन्दरमुपयुक्तं टिप्पनं व्यधायि / अस्मिन् टिप्पने मूलस्थप्रयोगाणां साधकानि कानिचित् सूत्राणि व्याकरणान्तरादानीय प्रयोगसिद्धिः साधिता, नवीनोदाहरणानि च बहूनि दत्त्वा मूलसूत्रभावो सुस्पष्टितस्तैः / सामुखस्यास्य ग्रन्थस्य संशोधनादौ साहाय्यं वितन्वन् संशोधनादिकलाकुशलः पण्डितलालचन्द्रोऽत्र धन्यवादमर्हति / मार्गोपदेशिकादिनवीनव्याकरणानां पठनादस्य श्रीसिद्धान्तरत्निकाव्याकरणस्य पढनेन समधिकं दृढतरं च ज्ञानं भवितुमहत्यतः संक्षेपरुचयः शुचयः च्छात्रा एतद् व्याकरणमधीयाऽऽप्स्यन्ति कार्यसाधकं ज्ञानम्, सफलयिष्यन्ति च मूलसूत्र-वृत्तिविधायकसम्पादक-प्रकाशकपरिश्रममश्रमेणेत्याशासानो विरमत्ययम् शिवपुर्याम् . वीरसं. 2456. / कार्तिकशुक्ला 5. / धर्मसंवत् 8. विशेषवे दिनां वशंवदःमुनिहिमांशुविजयोऽनेकान्ती. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धान्तरनिकाव्याकरणस्य विषयानुक्रमणिका.. विषयाः पृष्ठाङ्काः संज्ञाप्रकरणम् .... परिभाषा: स्वरसन्धिः .... प्रकृतिभावः .... व्यञ्जनसन्धिः .... अनुस्वारसन्धिः विसर्गसन्धिः .... . ..... षड्लिङ्गप्रकरणम् तत्र स्वरान्ताः पुल्लिङ्गाः स्वरान्ताः स्त्रीलिङ्गाः ..... स्वरान्ता नपुंसकलिङ्गाः .... हसान्ताः पुल्लिङ्गाः हसान्ताः स्त्रीलिङ्गाः . ..... हमान्ता नपुंसकलिङ्गाः युष्मदस्मदी ..... अव्ययानि .... स्लीप्रत्ययाः .... / Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . .. तद्धितप्रकरणम् कारकाणि ... समासप्रकरणम्.... आख्यातवृत्तौभ्वादिषु परस्मैपदिनः .... अनिट्कारिका ..... भ्वादिष्वात्मनेपदिनः भ्वादिषूभयपदिनः अदादिषु परस्मैपदिनः .... अदादिष्वात्मनेपदिनः . ... अदादिषूभयपदिनः ... 'ह्वादिषु परस्मैपदिनः हादिष्वात्मनेपदिनः ...... हादिषूभयपदिनः .... दिवादिषु परस्मैपदिनः . .... दिवादिष्वात्मनेपदिनः / दिवादिषूभयपदिनः स्वादिषूमयपदिनः * स्वादिषु परस्मैपदिनः -स्वादिष्वात्मनेपदिनौ .... Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 105. 07. . . . . . रुधादिषूमयपदिनः .. ... रुधादिषु परस्मैपदिनः . .... रुधादिष्वात्मनेपदी तनादिषूमयपदिनः तुदादिषभयपदिनः तुदादिषु परस्मैपदिनः तुदादिष्वात्मनेपदिनः क्यादिषुभयपदिनः चुरादिषभयपदिनः न्यन्तप्रक्रिया .... सान्तप्रक्रिया .... यजन्तप्रक्रिया .... .... यङ्लुगन्तप्रक्रिया कण्डादयः .... नामधातुप्रक्रिया आत्मनेपदप्रक्रिया परस्मैपदप्रक्रिया लकारार्थप्रक्रिया भावकर्मप्रक्रिया .... कर्मकर्तृप्रक्रिया कृदन्तप्रकरणम .. .... - - xxx or or or rror - 125 . . . . .... 131 135. 140 142 . . . . .... 143 .... . . . . 149 151 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (21) उणादयः / . .... ... . चन्द्रिकास्थानिटकारिकाश्लोकाः . सङ्ग्रहश्लोकाः.... ..... मूलसूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका ...' 185 187 ..... 193 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भारतीस्तवनम् / . 5---- (1) यन्नामस्मृतिमात्रतोऽपि कृतिनां वाचां विलासाः क्षणाद् जायन्ते प्रतिवादिकोविदमदध्वंसक्षमाः सर्वतः / / तां त्रैलोक्यगृहप्ररूढकुमतध्वान्तप्रदीपप्रभां वन्दे शारदचन्द्रसुन्दरमुखीं श्रीशारदां देवताम् // -श्रीवादिदेवमूरिः, स्याद्वादरत्नाकरे. 1) स्तुत्यं तन्नास्ति नूनं जगति न जनता यत्र बाधां विदध्या दन्योऽन्यस्पर्धिनोऽपित्वयि तु नुतिविधौ वादिनो निर्विवादा। / यत्तचित्रं न किञ्चित्स्फुरति मतिमतां मानसे विश्वमातः ! ब्राह्मि ! त्वं येन धत्से सकलजनमयं रूपमहन्मुखस्था / -श्रीमाणिक्यचन्द्रमूरिः, काव्यप्रकाशसङ्केते. | या कृत्स्नासुमतां सदा सुखकरा यां सेवते सद्गुणो A भारत्या लभते मुदं शिशुगणस्तस्यै कुरुध्वं नमः / Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस्याः पूज्यतमा भवन्ति भविनो यस्याः प्रभावो महान् यस्यामस्ति शुभो बृहद्गुणगणः सा गीः प्रदद्यान्मतिम् // -मुनिहिमांशुविजयोऽनेकान्ती. / स्तावं स्तावं सुगुणकलितां भारति ! त्वां सदाऽहं __स्मारं स्मारं हृदि च यतनात्सार्ववक्राब्जपूताम् / धारं धारं कृतिजननुतां भव्यसौख्यप्रदात्रीं . याचे मातः ! सुवचननिधे ! ज्ञानदानाय शीघ्रम् // -अनेकान्ती. (5) या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ___ या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना / या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा || शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे / सर्वदा सर्वदाऽस्माकं सनिधि सन्निधिं क्रियात् // (7) पातु वो निकषयावा मतिहम्न: सरस्वती / प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या // . Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगत्पूग्यश्रीविजयधर्मसूरिभ्यो नमः / श्रीजिनचन्द्रसूरिरचिता सिद्दान्तरनिका। (सारस्वतवृत्तिः) --------- भीमद्गुरुपदाम्भोजं नत्वा शब्दार्थसिद्धये / सरस्वत्युक्तसूत्राणां कुर्व सिद्धान्तरैत्निकाम् // 1 // अथ संज्ञाप्रकरणम् / . 1 अ इ उ ऋ ल समानाः / अ इ उ ऋ ल एते पाच . वर्णाः समानसंज्ञाः स्युः // 2 ए ऐ ओ औ सन्ध्यक्षराणि / ए ऐ ओ औ एते चत्वारो वर्णाः सन्ध्यक्षरसंज्ञाः स्युः // 3 उभये स्वराः / समानाः सन्ध्यक्षराणि चोभये स्वरसंज्ञाः ... .क. रत्नकम् / Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / 4 अवर्जा नामिनः / अवर्णवर्नाः स्वरा नामिसंज्ञाः स्युः। 5 इस्व-दीर्घ-प्लुतभेदाः सवर्णाः / स्वराणां इस्व-दीर्घप्लुतभेदाः सवर्णाः स्युः / अ ह्रस्वः / आ दीर्घः / आ 3 प्लुतः / एवमिकारादीनामपि। लुवर्णस्य दीर्घो न। सन्ध्यक्षराणां इस्वो न। ऋ-लवर्णौ च सवर्णों वक्तव्यौ // 6 हयवरल बणनङम झढवघभ जडदगव खफछठब चटतकप शषस / [हसा व्यअनानि ] 7 आद्यन्ताभ्याम् / आद्यन्तवर्णाभ्यां गृह्यमाणा मध्यर्गवर्णा आद्यन्तसंज्ञाः म्युः / स्वस्यापि तस्य प्रत्याहारसंज्ञा / यथा हि-अकार-त्रकाराभ्यां गृह्यमाणा मध्यगवर्णा अबसंज्ञाः / स अबप्रत्याहारः-अ इ उ ल ए ऐ ओ औ ह यवर ल सण नऊ म झ ढ'ध घम ज ड द ग व इति / एवम् इल जब चप इत्यादयोऽपि // 8 कार्यायेत् / कार्यायोच्चार्यमाणो वर्ण इत्मज्ञः स्यात् / यस्येत्संज्ञा तस्य लोपः / वर्णादशनं लोपः / वर्णविरोधो लोपश् / प्रत्ययादर्शनं लुक् / स्वररहितहंसाः संयोगसंज्ञाः स्युः // 9 कु चु टु तु पु वर्गाः। [उकारः पञ्चवर्णपरिग्रहणार्थः। कु इत्यनेन क ख ग घ ङ इत्येवं प्रत्येकमेते स्वीयपश्चकग्राहकाः // ] 10 अरेदो नामिनो गुणः। अर् ए ओ एते गुणसंज्ञाः, ते च नामिनां स्थाने भवन्ति // 1 क. ०मव० / 2 क. हसौ हसाश्च / Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धिप्रक्रिया। 11 आऽऽर् ऐ औ वृद्धिः / आ आर् ऐ औ एते वृद्धिसंज्ञाः, ते च स्वराणां स्थाने स्युः // . 12 अन्त्यस्वरादिः टिः। अन्त्यस्वरः, तस्मात् पसे वर्णश्च टिसंज्ञः स्यात् // 13 अन्त्यात् पूर्व उपधा। अन्त्यवर्णात् पूर्वो वर्ण उपधासंज्ञः स्यात् // 14 इस्वो लघुः। 15 दीर्घो गुरुः / 16 विसर्गानुस्वारसंयोगपरो इस्वोऽपि गुरुः / 17 विभक्त्यन्तं पदम् / इति संज्ञामक्रिया। अथ परिभाषाः। 1 सामान्य-विशेषयोर्विशेषविधिर्बलीयान् / 2 गौण-मुख्ययोर्मुख्य कार्यसंप्रत्ययः / 3 नित्यानित्ययोनित्यविधिः प्रयोक्तव्यः / 4 प्रत्ययग्रहणे तदन्तस्य ग्रहणम् / 5 एकदेशविकृतमनन्यवत् / 1 पर्जन्यवलक्षणप्रवृत्तिः / * भागमा यदवयवीभूतास्तस्यैवाङ्गत्वेन गृह्यन्ते / Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका। -8 असिद्धं बहिरङ्गमन्तरङ्गे। 9 निमित्ताभावे नैमित्तिकस्याप्यभावः / 10 कृताकृतप्रसङ्गी विधिनित्यः / 11 मित्रवदागमः। 12 टित-कितावाद्यन्तयोर्वक्तव्यौ / 13 मिदन्त्यात स्वरात् परो वक्तव्यः / 14 शत्रुवदादेशः / / 15 यदादेशस्तद्वद् भवति / न तु वर्णमात्र विधौ / 16 अविशिष्टादेशः सादृश्येन / वर्णस्थान-प्रयत्नैः सादृश्यम 17 अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः / 18 इ-चु-य-शानां तालु। 19 ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा / 20 ल-तु-ल–सानां दन्ताः / 21 उ-पूपध्मानीयानामोष्ठौ / 22 एदैतोः कण्ठ-तालू / 23 ओदौतोः कण्ठोष्ठम् / 21 वकारस्य दन्तौष्ठम् / 25 जिह्वामूलीयस्य निहामूलम् / 21 नासिकाऽनुस्वारस्य / 27 अ-म-ड-ग-नानां नासिका / 28 स्थान्यादेशयोः सम्भने यथासमय वाच्यम् / Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धिप्रक्रिया / .. 29 षष्ठ्यादेशोऽन्त्यस्य क्कव्यः / ... : .. 30 अनेकवर्णः शिच्चादेशः सर्वस्य ग्दिन्तस्य / 31 वर्णग्रहणे सर्णग्रहणम् / 32 कार-तपरयोर्ग्रहणे तस्यैव, न सवर्णस्य / 33. परिभाषाः प्रायशः प्रवर्तन्ते / इति परिभाषाप्रक्रिया। अथ स्वरसन्धिः / 1 इयं स्वरे / इवर्णो यं स्यात् , स्वरे परे // .. 2 इसेऽहंहसः / स्वरात परो रहवर्जितो हसो हसेऽवसाने च वा द्विः स्यात् // 3 झमे जबाः / झसानां झभे जबाः स्युः / स्वरहीनं परेण योज्यम् / दद्ध्यानय, दध्यानय // ____4 रहादू यपो द्विः / स्वरपूर्वाभ्यां रहाभ्यां परो यपो वा द्विः स्यात् / गौयंत्र, गौर्यत्र / नय्यस्ति, नास्ति / क्वचित् शपस्यापि द्वित्वम् / पार्श्वम् / वम // .. 5 उ वम् / उ वं स्यात् स्वरे / मद्धवत्र, मध्वत्र / / .. : 6 ऋ रम् / ऋरं स्यात् स्वरे / पित्रर्थः // 7 ल लम् / ललं स्यात् स्वरे / लित् // Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / . 8 ए अय् / ए अय् स्यात् स्वरे / नयनम् // 9 ओ अव / ओ अव् स्यात् स्वरे / भवनम् // 1. ऐ थायू / ऐ आय् स्यात् स्वरे / नायकः / 11 औ आ / औ आव् स्यात् स्वरे / पावकः / 12 य्वोर्लोपश् वा पदान्ते / पदान्ते अयादीनां वोलों पश् वा स्यात् / त आगताः, तयागताः / पट इह, पटविह / तस्मा इदम् , तस्मायिदम् / ता इह, ताविह // 13 एदोतोऽतः। पदान्ते एदोतः परस्यातो लोपश् स्यात्। तेऽत्र / पटोऽत्र // 14 सवर्णे दीर्घः सह / समानस्य सवणे सह दीर्घः स्यात् / दैत्यारिः / श्रद्धात्र / दधीह / श्रीशः / भानूदयः / होतृकारः / 15 शकन्ध्वादिषु टेर्लोपो वाच्यः। शकन्धुः / कुलटा / - मनीषा / हलीषा // . .. 16 अ इ ए। अवर्ण इवणे सह ए स्यात् / तवेदम् // 17 उ ओ / अवर्ण उवणे सह ओ स्यात् / गङ्गोदकम् / / 18 ए ऐ ऐ / अवर्ण एकारे ऐकारे च संह ऐ स्यात् / तवैषा / तवैश्वर्यम् // 19 ओ औ औ / अवर्ण ओकारे औकारे च सह औ स्यात् / तवौदनम् / ममौन्नत्यम् // 20 एदोदादौ धातौ पूर्वस्थोपसर्गस्यावर्णस्य लोपः। प्रेजते / उपोषति // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धिप्रक्रिया / 21 नामधातौ मा। प्रोघीयति, प्रौघीयति // 22 ओत्वोष्ठयोः। पूर्वस्यावर्णस्य वा लोपः समासे / विम्बोष्ठः, बिम्बौष्ठः / स्थूलोतुः, स्थूलौतुः / समासे इति किम् ? तवौष्ठः / तवौतुः / 23 ऋ अर् / अवर्ण ऋवणे सह अर् स्यात् / तवद्धिः / 24 ऋकारादौ धातौ आर् / उपार्च्छति // 25 ऋते तृतीयासमासे / सुखार्तः / तृतीयासमासे किम् ? परमतः // 26 नामधातौ वा / प्रार्षभीयति, प्रर्षभीयति // 27 ल अल् / अवर्ण लवणे सह अल् स्यात्। तवल्लकारः, तवल्कारः॥ 28 लूदादौ नामधातौ वा आल् / प्रालकारीयति, प्रल्कारीयति॥ इति स्वरसन्धिः / . अथ प्रकृतिभावः। 29 नामो। अदसोऽमीशब्दः सन्धि न याति / अमी अश्वाः // 30 वे द्वित्वे / द्विवचने ईदूदेदन्ताः सन्धि न यान्ति / भग्नी भत्र / पटू अत्र / माले आनय // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / 31 औ निपातः। स्वरो निपातः सन्धि न याति / अ अपेहि / इ इन्द्रं पश्य / उ उत्तिष्ठ // 32 ओदन्तो निपातश्च / अहो ईशाः // 33 ओदन्तो धौ घेतो। विष्णो इति, विष्णविति, विष्ण . इति॥ 34 खणामसवर्णे स्वरेऽसमासे पदान्ते वा हस्वः। हस्वे कृते सन्धिर्न / चक्रि अत्र, चक्रचत्र / मधु एतत्, मध्वेतत् / कतृ इदम् , कत्रिदम् / पदान्ते किम् गौयौँ / अममासे किम् हर्य्यर्थम्॥ __35 पदान्ते समानानामृति लुति च वा इस्वः / ब्रह्म ऋषिः, ब्रह्मर्षिः / दण्डि ऋषिः, दण्ड्य॒षिः / मधु ऋकारः, मध्वकारः / होतृ लकारः, होतकारः। पदान्ते इति किम् ? आर्च्छत् / / . 36 दुरादाबाने टेः प्लुतः। दुरात् सम्बुद्धौ यद् वाक्यं तस्य टेः प्लुतो वा स्यात् / 37 प्लुतः / प्लुतः सन्धि न याति / एहि देवदत्त 3 अत्राधीष्व / / 38 सप्तम्यर्थे ईदन्तं सन्धि न याति / वातप्रमी आस्ते // 39 अप्लुतवदितौ / देवदत्तेति // इति प्रकृतिभावः। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धिप्रक्रिया। अथ व्यञ्जनसन्धिः। 40 चपा अबे जबाः / पदान्ते चपा जबाः स्युः, अबे / षडत्र // 41 बमे बमा वा / पदान्ते चपा अमे जमा वा स्युः / षण्मम, षड्मम // 42 प्रत्ययसमे जबस्य नित्यं बमः / तन्मात्रम् / / 43 चपाच्छः शः / चपात् परस्य शस्य छो वा स्वादये। वाक्छूरः, वाक्शूरः / अबे किम् ? वाक्श्चोतति // 44 हो झभाः / चपादुत्तरस्य हस्य झभा वा स्युः / यद्वर्गगश्चपस्तद्वर्गगश्चतुर्यो भवति / तद्धविः, तद्हविः / वाग्धरिः, वाग्हरिः // 45 स्तोः श्चुभिः श्चुः / सकार-तवर्गयोः शकारचवर्गाभ्यां योगे शकार-चवर्गों स्तः / योग उभयथा सम्बन्धः / कश्चरति / कश्शूरः / तच्चित्रम् / तच्छास्त्रम् // 46 न शात / शात् परस्य तोः श्चुत्वं न स्यात् / प्रश्नः॥ 47 ष्टुभिः ष्टुः / सकार-तवर्गयोः षकार-टवर्गाभ्यां योगे षकार-टवर्गों स्तः / कष्षष्ठः / कष्टीकते / तट्टीकते // 48 न पि / षकारे स्तोः ष्टुर्न स्यात् / भवान् षष्ठः // 49. टोरन्त्यात् / पदान्ते टवर्गात् परस्य स्तोः ष्टुर्न स्यात् / षण्नरः, षड्नरः / षट् सीदन्ति // 01 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका। स्यादीनां स्तोः ष्टुत्वं न स्यात् / लिट्सु, लिटत्सु / ... 50 तोलि लः / तवर्गस्य लकारे लत्वं स्यात् / तल्लुनाति / मवॉल्लिखति // 51 नः सक् छते / नान्तस्य पदत्यावे परे छते सक् स्यात् / राजश्चित्रम्। भवांस्तनोति / अबे परे किम् ? सन्त्सरुः // 52 न प्रशानः / प्रशान् तनोति // . 53 शे चग वा / नान्तस्य पदस्य शे परे वा चक् स्यात् / मवाञ्च् शूरः, भवाञ्छूरः, भवाञ् शूरः, भवाञ्च् छूरः / / 54 जू–ण-नो इस्वाद् द्विः स्वरे। इस्वात् पदान्ते डकारणकार-नकारा द्विः स्युः स्वरे परे / प्रत्यङ्गिदम् / सुगण्णिह / राजनिह // 55 छः / हूस्वाच्छकारो द्विः स्यात् // 56 खसे चपा झसानाम् / झसानां खसे चपाः स्युः / तव च्छत्रम् // 57 दीर्घादपि / हीच्छति // 58 पदान्ते दीर्घाद् वा / लक्ष्मी छाया / लक्ष्मीच्छाया॥ 59 टनात् सस्य वा धुट् / षट्त् सन्तः / सन्त् सः, सन् सः // .::... इति व्यञ्जनसन्धिः / Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धिप्रक्रिया / अथानुस्वारसन्धिः। 60 मोऽनुस्वारः / पदान्ते मकारस्यानुस्वारः स्यात् , हसे परे / तं हसति // 61 नश्चापदान्ते झसे / अपदान्ते नकारस्य मकारस्यचानुस्वारः स्यात, झसे हकारे च परे / यशांसि / पुंभ्याम् / स्वनड्वांहि // 62 यमा यपेऽस्य / अनुस्वारस्य यमा भवन्ति, यपे परे / अस्य यपस्य सवर्णाः / शान्तः / अङ्कितः / अञ्चितः / कुण्ठितः / गुम्फितः // 63 वा पदान्तस्य / पदान्तेऽनुस्वारस्य यमा वा स्युः, यपे परे / त्वं करोषि, त्वङ् करोषि / तं तनोति, तन् तनोति / संयता, सँय्यता / संवत्सरः; सव्वत्सरः / यं लोकम् , यल्लोकम् / / 64 क्विबन्ते राजतौ परे समो मस्य म एव स्यात् / सम्राट् // . 65 य-व-ल-म-नपरे हकारे मस्य य-व-ल-मना वा / किं ह्यः, किय् ह्यः / किं हुलयति, किव हुल्यति / कि ह्लादयति, किल् लादयति / किं मलयति, किम् मलयति / किं हनुते, किन् नुते // इत्यनुस्वारसन्धिः। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरलिका / अथ विसर्गसन्धिः। 66 विसर्जनीयस्य सः / विसर्जनीयस्य सः स्यात, खसे। कस्तनोति // 67 शसपरे खसे विसर्गस्य विसर्ग एव / क: त्सरः / रामः प्साता / घनाघनः क्षोभणः // 68 कुप्वोः ४क पौ वा / कवर्ग-पवर्गसम्बन्धिनि खसे विसर्गस्य क पौ वा स्तः। *क पाविति जिह्वामूलीयोपध्मानीययोः संज्ञा / क 4 करोति, कः करोति / क पचति, कः पचति // 69 वाचस्पत्यादयो निपात्याः। वाचस्पतिः / मास्करः / यशस्काम्यति। नमस्करोति / पुरस्करोति / तिरस्करोति ।इत्यादयः॥ 70 रोऽरात्रिषु / अहो विसर्गस्य पदान्ते रः स्यात्, न तु रात्र्यादिषु / अहर्गणः / न तु रात्र्यादिष्विति किम् ! अहो. रात्रम् / अहो रूपम् / अहो रथन्तरम् // 71 अतोऽत्युः / अकाराद् विसर्गस्य उः स्यात् , भति परे / कोऽर्थः // 72 हवे / अकाराद् विसर्गस्य उः स्याद् , हवे / देवो याति।। 73 आदबे लोपश् / अवर्णाद् विसर्गस्य लोपश् स्याद् , अवे / देवा भत्र // 74 स्वरे यत्वं वा / देवा यिह, देवा इह // Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... षड्लिाप्रकरणम / 75 क्वचिनामिनोऽपि / भो हरे / भगो नमस्ते / भयो याहि // 76 नामिनो रः / नामिनः परस्य विसर्गस्य रः स्याद् / अवे / अग्निरत्र / पटुर्वक्ता // ७७रः। रेफाजातस्य विसर्गस्य रः स्याद् , अबे। प्रात्ररत्र / अन्तर्गतः / / 78 खपे वा। गीपतिः, गीपतिः, गी:पतिः // 79 रि लोपो दीर्घश्च / रेफस्य रेफे लोप: स्यात् , पूर्वस्य च दीर्घः / हरी राजते // - 80 सैषाद् हसे / सशब्दादेषशब्दाच्च विसर्गस्य लोप. स्यात् , हसे / स चरति / एष हसति / / ___क्वचित् सशब्दाद् विसर्गस्य स्वरेऽपि लोप एव, न तु लोपश् / सैष दाशरथी राम इत्यादौ // . इति विसर्गसन्धिः / . अथ षड्लिङ्गप्रकरणम् / तत्र स्वरान्ताः पुल्लिमाः / 1 अविभक्ति नाम / विभक्तिरहितं शब्दरूपं नामसंज्ञ स्यात् // Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरलिका / . - 2 तस्मात सि औ जम् 1 // अम् औ असू 2 // टा भ्याम भिस् 3 / हे भ्याम भ्यस् 4 / ङसि भ्याम् भ्यस् 5 / डसू ओम आम् 6 / ङि ओम् सुप् 7 / नाम्नः पराः स्यादयः सप्त विभक्तयः स्युः / तत्राप्येकत्व-द्वित्व-बहुत्वेषु एकवचन-द्विवचन बहुवचनानि स्युः // तत्राकारान्तो देवशब्दः / देव + सि इकारः * सेट धेः' . इत्यादिविशेषणार्थः। .. ... 3 स्रोविसर्गः। नाम्नः सकार-रेफयोर्विसर्गः स्याद् , रसे पदान्ते च / देवः // देवौ / देव + जस् जकारो 'जसि' इति विशेषणार्थः / देवाः / देव + अम् 4 अम्-शसोरस्य। समानांदम्-शसोरकारस्य लोपः स्यात् / देवम् // देवौ / देव + शस् शकारः 'शसि' इति विध्यर्थः / 5 सो नः पुंसः। पुल्लिङ्गात् समानात् परस्य ससः सकारस्य नः स्यात् , न त्वाम्-शसीत्यात्वे। / 6 शसि / शसि परे पूर्वस्य दीर्घः / देवान् // देव + टा टकारः ‘टेन' इति विध्यथः / 7 टेन / अकारात् टा इनः स्यात् / देवेन // 8 अद् मिः / अत आत्वं स्याद्, मादिस्यादिविभक्तो / देवाभ्याम् // Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड्लिङ्गप्रकरणम् / ९भ्यः / अतः परस्य भिसो भस्याकारादेशः स्यात् / 'अ इ ए ' 'ए ऐ ऐ / देवैः // देव + उ / डे-ङसि-ङस्-डीनां डकारो ङित्कार्यार्थः / म्सेरिकारः षष्ठीभेदज्ञापनार्थः / 10 डे अक् / अतः परस्य डे इत्यस्यागागमः स्यात् / देवाय देवाभ्याम् / 11 ए भि बहुत्वे / अत एत्वं स्यात् , सकार-भकारादौ स्यादिबहुवचने। देवेभ्यः // 12 इसिरत् / अतः परो ङसिरत् / देवात् देवाभ्याम् देवेभ्यः // 13 उम् स्य / अतः परो ङस् स्यः स्यात् / देवस्य / 14 ओसि / अत ओसि एत्वं स्यात् / देवयोः // 15 नुडामः / समानादामो नुट् स्यात्, पुंसि तु हस्वात् / 16 नामि / पूर्वस्य दीर्घः स्यात् , नामि / देवानाम् // देवे देवयोः / 17 क्विलात् षः सः कृतस्य / कवर्गादिलाच्च कृतम्य सस्य षः स्यादन्ते स्थितस्य न / देवेषु // 18 सिर्धिसंज्ञः स्यात् / 19 समानाद् धेलोपोऽधातोः / इस्वात् समानादेदोतरच 'परस्य धेर्लोपः स्याद् , अधातोः / सम्बोधने हेशब्दस्य प्राक Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / . प्रयोगो वा / हे देव हे देवौ हे देवाः / एवं घट-पट-रामकृष्णादयः // सर्व विश्व उभ उभय अन्य अन्यतर इतर डतर उतम सम सिम नेम एक पूर्व पर अवर दक्षिण उत्तर अपर अधर स्व अन्तर त्यद् तद् यद् एतद् अदम् इदम् द्वि किम् युष्मद् अस्मद् एते सर्वादयस्त्रिलिङ्गाः / सर्वः सर्वो। 20 जसी / अदन्तात् सर्वादेस ई: स्यात् / सर्वे // सर्वम् सर्वो सर्वान् / 1 ष्-रूनों णो नन्ते / षकार-रेफ-ऋवणेभ्यः परस्यैकपदस्थस्य नस्य णः स्यात्, अन्ते स्थितस्य न / __ 22 अव--कु-प्वन्तरेऽपि / अव-कु-प्वनुस्वार-विसर्गव्यवधानेऽपि नस्य णः स्यात् / सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वैः / 23 सर्वादेः स्मट् / अदन्तात् सर्वा दे. इत्यस्य स्ट स्यात् / सर्वस्मै सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः / / 24 अतः / अदन्तात् सर्वा देरतः स्म: स्यात् / सर्वस्मात्॥ सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः / सर्वस्य सर्वयोः / 25 सुडामः / सर्वादेरवर्णान्तादामः सुट् स्यात् / सर्वेषाम् / / 26 डि स्मिन् / सर्वादेग्दन्तात् डि स्मिन् स्यात् / सर्वस्मिन् // सर्वयोः सर्वेषु / हे सर्व हे सर्वी हे सर्वे। एवं विश्वादयोऽप्यकारान्ताः सिध्यन्ति / 27 पूर्वादीनां नवानां जस्-सि-डीनामी-स्मात् Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षलिङ्गप्रकरणम् / स्मिनौ वा। पूर्वे, पूर्वाः / पूर्वस्मात् , पूर्वात् / पूर्वस्मिन् , पूर्वे। शेषं सर्ववत् // 28 प्रथम-चरम-तयायडल्पा-कतिपय-नेमानां जसी वा / प्रथमे, प्रथमाः / शेषं देववत् / नेमे, नेमाः / शेष सर्ववत् // 29 तीयान्तस्य न्तिसु वा सर्ववत् / द्वितीयस्मै, द्वितीयाय / द्वितीयस्मात् , द्वितीयात् / द्वितीयस्मिन्, द्वितीये / शेपं देववत् // उभशब्दो नित्यं द्विवचनान्तः / उभौ 2 / उमाभ्याम् 3 / उभयोः 2 / निर्नरः / 30 जरायाः स्वरादौ जरस् वा वक्तव्यः / 'एकदेशविकृतमनन्यवद् ' ' निर्दिश्यमानस्यादेशा भवन्ति ' / सोमपाः सोमपौ सोमपाः। सोमपाम् सोमपौ / सोमपा+शस् / 31 आतो धातोर्लोपः / धातोराकारस्य लोपः स्यात् , शसादौ स्वरे / सोमपः // ' क्विबन्तानां धातुत्वं न हीयते / ' सोमपा सोमपाभ्याम सोमपाभिः। इत्यादि / एवं विश्वपाप्रभृतयः॥ - हरिः / 32 औ यू / इदुदन्तात् पर औ यू स्यात् / हरी॥ 33 ए ओ जसि / इदुदन्तस्य जसि ए ओ स्यात् / हरयः // हरिम हरी हरीन् / Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / . 34 टा नास्त्रियाम् / इदुदन्तात् टा ना स्यात् , न स्त्रियाम् / हरिणा हरिभ्याम् हरिभिः / 35 ङिति / इदुदन्तस्य ङिति ए ओ स्यात् / हरये हरिभ्याम् हरिभ्यः // 36 ङस्य / एदोद्भ्यां ङसि-ङसोरस्य लोपः स्यात् / हरेः हरिभ्याम् हरिभ्यः / हरेः होः हरीणाम् // 37 डेरौ डित् / इदुभ्यां डेरौः स्यात्, स च डित् // 38 डिति टेः। डिति टेर्लोप: स्यात् / हरौ होः हरिषु॥ 39 धौ / इदुदन्तस्य धौ ए ओ स्यात् / हे हरे हे हरी हे हरयः / ___ एवं गिरि-कवि-रव्यादयः / उकारान्ता विष्णु-वायु-भान्वादयोऽप्येवं ज्ञेयाः // इकारान्तस्यापि सखिशब्दस्य भेदः४० सेधेिः / सखिशब्दात् तदन्ताच्च सेर्डा स्यादधौ / सखा // 41 ऐ सख्युः / सखिशब्दस्य तदन्तस्य चैकारादेशः स्यात्, अधिषु पञ्चसु / सखायौ सखायः / सखायम् सखायौ सखीन् / 42 सखि-पत्योरीक / सखि-पत्योरी ] स्यात् टाडे-ङिसु परतः / सख्या सखिभ्याम् सखिभिः / सख्ये सखिभ्याम् मखिभ्यः // Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षलिङ्गप्रकरणम् / 43 ऋक् डे: / सखि-पत्योर्ऋक् स्यात्, ङसि-ङसोः // 44 ऋतो ङ उः / ऋदन्तात् ङसि-ङसोरस्य उः स्यात् , स च डित् / सख्युः सखिभ्याम् सखिभ्यः / सख्युः सख्योः सखीनाम् / सख्यौ सख्योः सखिषु / हे सखे हे सखायौ हे सखायः // तदन्तात् तु परमसखा परमसखायौ परमसखायः / पत्या / पत्ये / पत्युः 2 / पत्यौ / शेषं हरिवत् / पतिः समासे हरिवत् / भूपतये। द्विशब्दो नित्यं द्विवचनान्तः४५ त्यदादेष्टेरः स्यादौ / स्पष्टम् / द्वौ 2 / द्वाभ्याम् 3 / द्वयोः 2 // त्रिशब्दो नित्यं बहुवचनान्तः-त्रयः / त्रीन् / त्रिभिः / त्रिभ्यः 2 / 46 स्यङ् / [त्रेरयङ्) स्यात् नामि / त्रयाणाम् / त्रिषु॥ कतिशब्दोऽपि नित्यं बहुवचनान्त:४७ डतेः / डत्यन्तात् जस्-शसोलुक् स्यात् / कति 2 / कतिभिः / कतिभ्यः 2 / कतीनाम् / कतिषु / सुश्रीः। 48 योर्धातोरियुवौ स्वरे। धातोरिवर्णोवर्णयोरियुवौ स्याताम्, स्यादौ स्वरे / सुश्रियौ सुश्रियः / सुश्रियम् सुश्रियो सुश्रियः / सुश्रिया सुश्रीभ्याम् सुश्रीमिः इत्यादि / एवं सुधीयवक्रयादयः॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तर स्निका / सेनानीः / . . 49 य्वौ वा। अनेकस्वरस्यासंयोगस्य [ कारकाव्ययपूर्वस्यैकस्वरस्य च ] धातोरिवर्णोवर्णयोर्यकार-वकारौ स्याताम् , स्वरे। वर्षा-कर-पुन:-पूर्वान्यभूशब्द-सुधीशब्दौ वर्जयित्वा / सेनान्यौ सेनान्यः / सेनान्या / 150 नियः। नीशब्दात् राम् स्यात् / सेनान्याम् / शेषमविशेषः / एवं ग्रामण्यादयः / स्वयम्भूः स्वयम्भुवौ स्वयम्मुवः / एवं परमल्वादयः / वर्षाभूः वर्षाम्वौ वर्षाभ्वः / एवं करभ-पुनर्भूप्रभृतयः / ऋकारान्तः पितृशब्दः११. 51 सेरा / ऋदन्तात् सेरा स्यात् , स च डित्। पिता // 52 अर् पञ्चसु / ऋतोऽर् स्यात् , पञ्चसु / पितरौ पितरः।। 1153 डौ / ऋकारस्यार् स्यात्, डौ / पितरि // 54 धेरर् / ऋदन्ताद् धेरर् स्यात् , स च डित् / हे पितः / शेषमविशेषः / __एवं जामातृ-भ्रात्रादयः / / ना नरौ नरः / 55 नुर्वा नामि दीर्घः / नणाम् , नृणाम् / शेषं पितृबत् / एवमुद्गात्रादयः // . 56 स्तुरार / सकार-तृप्रत्ययसम्बन्धिन ऋकारस्यार भवति, पञ्चसु परेषु / कर्ता कर्तारौ // उकारान्तस्यापि क्रोष्टुशब्दस्य विशेषः / क्रोष्टुशब्दस्य पुंसिः Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड्लिङ्गप्रकरणम् / 21 'पञ्चस्वधिषु, स्त्रियां च तृवद् रूपम् / क्रोष्टा क्रोष्टारौ क्रोष्टारः / क्रोष्टारम् क्रोष्टारौ क्रोष्टुन् / 57 टाऽऽदौ स्वरे वा। क्रोष्टुशब्दस्य तृवद् वा / क्रोष्ट्रा, क्रोष्टुना / क्रोष्टे, क्रोष्टवे / क्रोष्टुः, क्रोष्टोः 2 / क्रोष्ट्रोः, क्रोष्टोः२। क्रोष्ठूनाम् / क्रोष्टरि, क्रोष्टौ क्रोष्टुषु / हे क्रोष्टो हे क्रोष्टारौ हे कोष्टारः // ऐकारान्तः सुरैशब्दः५८ रै स्भि / रैशब्दस्याकारः स्यात्, सकार-भकारादिस्यादौ ! सुराः सुरायौ सुरायः / शेषमविशेषः // ओकारान्तो गोशब्दः५९ ओरौ / ओकारस्यौ स्यात् , पञ्चसु / गौः गावौ गावः / 60 आऽम्-शसि / ओकारस्यात्वं स्थात, अमि शसि च परे / गाम् गावौ गाः / गवा गोभ्याम् गोभिः इत्यादि / एवं सुद्योभादयः // ग्लौः ग्लावौ ग्लावः / इत्यादि / इति स्वरान्ताः पुंलिङ्गाः / / Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 29 सिद्धान्तरनिका / . अथ स्वरान्ताः स्त्रीलिङ्गाः। आकारान्तो गङ्गाशब्द:६१ आपः / आबन्तात् सेर्लोपः स्यात् / गङ्गा // 62 औरी / आबन्तादौ ईर्भवति / गङ्गे गङ्गाः / / 63 दौसोरे / आबन्तस्य टौसोरेत्वं स्यात् / गङ्गयां गङ्गाभ्याम् गङ्गाभिः | 64 डितां यट् / आबन्तात् ङितां यट् स्यात् / गङ्गायै गङ्गाभ्याम् गङ्गाभ्यः / गङ्गायाः गङ्गाभ्याम् गङ्गाभ्यः / गङ्गायाः गङ्गयोः गङ्गानाम् // . 20. / ' 65 आम् डेः / आचन्तात् डेराम् स्यात् / गङ्गायाम् गङ्गयोः गङ्गासु // 66 धिरिः। आबन्ताद् धिरिः स्यात् / हे गङ्गे हे गङ्गे हे गङ्गाः / / ___ एवं मेधा-श्रद्धा-दुर्गाऽऽदयः / 67 यटोऽच। आबन्तात् सर्वाऽऽदेर्यटः सुट् स्यात् ,पूर्वस्य हस्वः / सर्वस्यै / सर्वस्याः 2 / सर्वासाम् / सर्वस्याम् / शेषं गङ्गावत् / एवं विश्वाऽऽदय आवन्ताः / / बुद्धिः बुद्धी बुद्धयः / बुद्धिम् बुद्धी बुद्धीः / बुद्ध्या बुद्धिभ्याम् बुद्धिभिः / Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् लिङ्गप्रकरणम् / 68 इदुद्भ्याम् / स्त्रियामिदुद्भ्यां ङितामट वा स्यात् / बुद्धयै, बुद्धये / बुद्धयाः, बुद्धेः 2 / बुद्धीनाम् / / 69 स्त्रियां ययोः / स्त्रियामिवर्गोवर्णान्तात् डेराम् स्यात् / बुद्ध्याम् , बुद्धौ / शेषं हरिवत् / एवं मति-धृति-कान्ति-कीर्त्यादयः ।उकारान्ता धेनु-रज्मुद(त)न्वादयोऽप्येवम् // 70 त्रि-चतुरोः स्त्रियां तिस-चतसृवत् / स्त्रियां त्रिचतुशब्दयोस्तिस-चतसृ आदेशो स्याताम् , स्यादौ / 'ऋ ऋवच' तेन अर्-आर-उकारा न स्युः। तिस्रः 2 / तिसृभिः / तिसृभ्यः२। 71 तिसृ-चतस्रो मि दीर्घो न इति तिसृणाम्। तिसृषु। ईकारान्तो नदीशब्दः७२ हसेपः सेर्लोपः / हसान्तादीप्रत्ययान्ताच्च सेर्लोपः स्यात् / नदी नद्यौ नद्यः / / . 73 डिन्तामटू / स्त्रियामीदूदन्तात् / कितामट् स्यात् / नद्यै / नद्याः 2 / नदीनाम् / नद्याम् // - 74 धौ इस्वः / अधातोरीदूतोः स्त्रियां धौ हुस्वः स्यात् / हे नदि / शेषमविशेषः / / एवं गौरी-कुमारी-ब्राह्मण्यादयः / लक्ष्मीः ईप्प्रत्ययान्तत्वाभावात् सेर्लोपो न / लक्ष्म्यो लक्ष्म्यः / लक्ष्मीणाम् / शेषं नदीवत् / स्त्री। .. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / ___ 75 स्त्री-भ्रुवोः / स्त्रीशब्दस्य भ्रशब्दस्य च इयुवौ स्याताम् , स्वरादिस्यादौ / स्त्रियौ स्त्रियः / ... 76 वाऽम्-शसि / अमि शसि च स्त्रीशब्दस्य वा इय् स्यात् / स्त्रियम् , स्त्रीम् स्त्रियौ स्त्रियः, स्त्रीः // स्त्रियै / स्त्रियाः / स्त्रीणाम् / स्त्रियाम / हे स्त्रि / इत्यादि / श्रीः श्रियौ श्रियः / 77 वेयुवः / इयुवन्ताद् वा ङितामट् [ स्यात् ] स्त्रियाम् / स्त्रियान्तु नित्यम् / श्रियै, श्रिये / श्रियाः, श्रियः 2 / / 78 धातोरियुवन्तादामो नुइ वा स्त्रियाम् / श्रीणाम्, श्रियाम् / श्रियि, श्रियाम् // . एवं धी-हीप्रभृतयः / ऊकारान्ता भ्रूप्रभृतयोऽप्येवम् / वधूः वध्वौ वध्वः / हे वधु // माता पितृवत् / स्वसा कर्तृवत् / शसि मातः, स्वमः / राः पुंवत् / गौः पुंवत् / नौग्लौवत् // इति स्वरान्ताः स्त्रीलिङ्गाः। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 25 षड्लिङ्गप्रकरणम् / अथ स्वरान्ता नपुंसकलिङ्गाः। अकारान्तः कुलशब्द:७९ अतोऽम् / अदन्तात क्लीवात् स्यमोरम् स्यात् / कुलम् // 80 ईमौ / क्लीबात् पर औ ई: स्यात् / कुले // 81 जस्-शसोः शिः। क्लीवात् जस्-शसोः शिः स्यात्॥ 82 नुमयमः / क्लीवस्य नुम् स्यात् शौ, यमान्तस्य न॥ 83 नोपधायाः / नान्तस्योपधाया दीर्घः स्यात्, शौ, पश्चस्वाधिषु नामि च ईति न / कुलानि / पुनः कुलं कुले कुलानि / शेषं देववत् // मूल-फल-पत्र-पुष्पादयोऽप्येवम् / / 84 श्त्वन्यादेः / अन्यादेः क्लीवात् स्यमोः स्तुभवति / अन्यत् , अन्यद् अन्ये अन्यानि // 85 अन्यादेर्धेलोपो न / हे अन्यत् / शेषं सर्ववत् // 86 नपुंसकस्य [ हस्वः ] / नपुंसकस्य इस्वः स्यात्, स्यादौ / शेषं कुलवत् // इकारान्तोऽस्थिशब्दः८७ नपुंसकात् स्यमोलक् / स्पष्टम् / अस्थि // - 88 नामिनः स्वरे / नाम्यन्तस्य क्लीवस्य नुम् स्थात् , स्यादौ स्वरें / अस्थिनी अस्थीनि / पुनः // Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 . सिद्धान्तरनिका / 89 अच्चास्थ्नां टाऽऽदौ / अस्थ्यादीनां नुम् स्यात् , इकारस्य चाकारः, टादौ स्वरे // ___ 90 अल्लोपः स्वरेऽम्वयुक्ताच्छसादौ। अन्नन्तस्योपधाया लोपः स्यात्, शसादौ [ स्वरे ] मकार-वकारान्तसंयोगान्न / अस्थना / अस्थ्ने / अस्थनः 2 / अस्थ्नाम् // 91 वेड्योः / अन्नन्तस्योपधाया वा लोपः स्यात् , ईङि-. त्येतयोः परयोः / वकार-मकारान्तसंयोगान्न / अस्थिन, अस्थनि / / 92 वृणां नपुंसके धौ गुणो वा। हे अस्थे, हे अस्थि / / एवं दधि-सक्थि-अक्षिशब्दाः / दध्ना दधिभ्यां दधिभिः / सक्थ्ना / अक्ष्णा // इकारान्तो वारिशब्दः- वारि वारिणी वारीणि 2 / वारिणा। वारिषु // ग्रामणि ग्रामणिनी ग्रामणीनि 2 / 93 टाऽऽदावुक्तपुंस्कं पुंवद् वा / नाम्यन्तं नपुंसकलिङ्ग टाऽऽदौ स्वरे पुंवद् वा स्यात् / ग्रामण्या, ग्रामणिना // स्वरादौ सर्वत्राप्येवम् / , उकारान्तो मधुशब्दः-मधु मधुनी मधूनि / पुनरपि / मधुना मधुभ्याम् मधुभिः इत्यादि / सुलु सुलुनी सुलूनि 2 / सुल्वा, सुलुना / सुल्वे, मुलुने इत्यादि। ऋकारान्तो धातृशब्दः-धातृ धातृणी धातणि 2 / धात्रा, धातृणा / धात्रे, धातृणे इत्यादि / एवं ज्ञातृ-कादयः / Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड्लिाप्रकरणम् / ર૭ ऐकारान्तोऽतिरैशब्दः- सन्ध्यक्षराणां ह्रस्वादेशे इदुतौ स्तः / ' अतिरि अतिरिणी अतिरीणि 2 / अतिराया, अतिरिणा अतिराभ्याम् अतिराभिः इत्यादि / ___ प्रद्यु प्रद्युनी प्रचूनि 2 / प्रधुना, प्रद्यवा प्रद्युभ्याम् प्रद्युभिः इत्यादि / अतिनु अतिनुनी अतिनूनि 2 / अतिनुना, अतिनवा अतिनुभ्याम् अतिनुभिः इत्यादि / इति स्वरान्ता नपुंसकलिङ्गाः / / अथ हसान्ताः पुंलिङ्गाः। हकारान्तोऽनडुङ्शब्दः९४ अनडुहश्च / अनडुह आमागमः स्यात् , पुंसि पञ्चसु शौ च ईपि वा। 95 सावनडुहः / अनडुहः सौ परे नुम् स्यात् // 96 संयोगान्तस्य लोपः / [संयोगान्तस्य लोपः] स्यात् स्यादौ रसे पदान्ते च / 'रात् सस्यैव / " रेफादुत्तरस्य सकारस्यैव लोपोऽन्यस्य न स्यात् / ] अनड्वान् अनड्वाही अनड्वाहः। अनड्वाहम् अनड्वाही अनडुहः / अनडुहा / Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -28 सिद्धान्तरनिका / / 97 वसां रसे / वसु-संसु-ध्वंसु-भ्रंसु-अनडुहां दः स्यात्, रसे पदान्ते च / अनडुद्भ्याम् अनडुद्भिः इत्यादि / 98 धावम् / चतुरनडुहो(वम् स्यात् / हे अनड्वन् / ___99 दादेघेः / दादेहस्य घः स्याद् , धातोझसे, नाम्नश्च रसे पदान्ते च // 100 आदिजवानां झमान्तस्य झभाः स्ध्वोः / झमान्तस्य धातोः पूर्वनबानां झभाः स्युः, सकारे ध्वशब्दे च भकारे पदान्ते च // 101 वाऽवसाने / झसानां जबाः स्युः, चपा वा / धुक्, धुग् दुहौ दुहः / दुहा धुग्भ्याम् / धुक्षु // 102 हो ढः / हस्य ढः स्यात् , धातोझसे नाम्नश्च रसे पदान्ते च / लिट्, लिड् लिहौ लिहः / लिट्सु, लिट्त्सु // 103 द्रुहादीनां वा घत्वम् / [ दुहादीनां धातूनां घत्वढत्वे वा स्तः, रसे पदान्ते च धातोझसे ] ध्रुक्, ध्रुग्, ध्रुट्, ध्रुड़ द्रुहौ द्रुहः / द्रुहा ध्रुगृभ्याम् , ध्रुड्भ्याम् / / द्रुहे / द्रुहः ] ध्रुक्ष, विश्ववाट , विश्ववाद् विश्ववाहौ विश्ववाहः / 104 वाहो वौ शसादौ स्वरे / वाहो वाशब्दस्यौ स्यात्, शसादौ स्वरे। / विश्वौहः / विश्वौहा विश्ववाड्भ्याम् विश्ववामिः इत्यादि। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहिलाप्रकरणम् / 105 दिव औ। दिव औः स्यात् , सौ। सुद्यौः सुदिवौ सुदिवः / सुदिवा // .. 106 उ रसे / दिव उः स्यात् , रसे पदान्ते च / सुधुभ्याम् सुद्युभिः इत्यादि / चतुशब्दो नित्यं बहुवचनान्त:१०७ चतुराम शौ च / चतुशब्दस्यामागमः स्यात, पञ्चसु शौ च / चत्वारः / चतुरः / चतुर्मिः / चतुर्व्यः 2 / . 108 रः सख्यायाः / रेफान्तप्सङ्ख्याशब्दादामो नुट् स्यात् / चतुर्णाम् / चतुर्षु // स्वाभाविकरेफस्य विसर्गो न / . 109 मो नो धातोः / मान्तस्य धातोर्मस्य नः स्यात्, प्रामे प्रदान्ते च / वमयोश्चासिद्धत्यान्नलोरे न / प्रशान् प्रशाम प्रशामः / प्रशामा प्रशान्भ्याम् / प्रशान्सु // कः कौ के / सर्ववत् / . 110 इदमोऽयं पुंसि / इदमः पुंसि अयं स्यात् , सौ / अयम् // 111 दस्य मः / त्यदादेर्दस्य मः स्यात्, स्यादौ / इमौ इमे / इमम इमौ इमान् // 112 अनः टोसोः / इदमोऽनः स्यात् , टौसोः। अनेन // 113 स्भ्यः / इदमः सकारे भकारे च कृत्स्नस्य अः स्यात् / आभ्याम् / / 114 भिस् भिस् / इदमदसोर्मिस् भिसेव स्यात्, न Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / त्वकारः / एभिः // अस्मै / अस्मात् / अस्य / अनयोः 2 / एषाम् / अस्मिन् एषु / त्यदादीनां सम्बोधनामावः / 115 इदमेतदोरन्वादेशे द्वितीया-टोस्स्वेनद् वा / उक्तस्य पुनर्भाषणमन्वादेशः / एनम् एनौ एनान् / अनेन, एनेन / अनयोः, एनयोः // 116 नाम्नो नो लोपशधौ / नान्तस्य नाम्नो नस्य लोपश् स्यात्, रसे पदान्ते चाधौ / राजा राजानौ राजानः / राजानं राजानौ / रानन्+शस् [ इति स्थिते ] अल्लोपे 'स्तोः श्चुभिः श्चुः' 'ज-ओजः / ' [जकार-नकारयोर्योगे ज्ञो भवति राज्ञः / ] राज्ञा राजभ्याम् राजभिः / ' नस्य लोपशि न विभक्तिकार्यम् / तेन 'अद् मिः', 'ब्भ्यः' इत्यात्वैस्वे न स्तः। राज्ञे / राज्ञः 2 / 'वेड्योः राज्ञि, राजनि राजसु / हे राजन् / एवं वृषादयः / यज्वनः / यज्वना / आत्मनः / आत्मना / "प्रतिदिवा / शसि अल्लोपे 117 स्वोर्वि हसे / धातोरिदुतोर्दीः स्यात् , रेफ-वकारसंयोगे पदान्ते च / प्रतिदीन्नः। प्रतिदीना प्रतिदिवभ्याम् इत्यादि। 118 वादे व उः / श्वादेर्वस्योत्वं स्यात् ,शसादौ स्वरे ईकारे ईपि च / शुनः / शुना श्वभ्याम् इत्यादि // नकारान्तपथिन्शब्दस्य विशेषः११९ इतोऽत् पचासु / पथिन्-मथिन्-ऋभुक्षिन्शब्दानामिकारस्याकारः स्यात् , पुंसि पञ्चसु शौ च // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ षड् लिगप्रकरणम् / 120 थो नुन् / पथि-मथोस्थस्य नुटू स्यात् , पुंसि “पञ्चसु शौ च / 121 आ सौ। पथि-मथि-ऋभुक्षां टेरात्वं स्यात् , सौ। पन्थाः पन्थानौ पन्थानः // 122 पथां टेः / पथि-मथि-ऋभुक्षां टेर्लोपः स्यात् , शसादौ स्वरे, ईकारे ईपि च / पथः / पथा पथिभ्याम् / पषिषु // एवं मन्थाः / ऋभुक्षाः // 123 इनां शौ सौ। इन् हन् पूषन् अर्यमन् इत्येतेषां शौ सौ चाधौ परे उपधाया दीर्घः स्यात्, नान्यत्र / दण्डी दण्डिनौ दण्डिनः। दण्डिनम् दण्डिनौ दण्डिनः / दण्डिना इत्यादि। एवं यशस्विन्-वाग्मिन्-प्रभृतयः // वृत्रहा वृत्रहणौ वृत्रहणः / शसि अल्लोपे१२४ हनो ध्ने / हन्तेईस्य घः स्यात् , नकारे णिति च / धन्यवधाने णत्वं न / वृत्रध्नः / वृत्रघ्ना वृत्रहभ्याम् इत्यादि / एवं पूषन्-अर्यमन्प्रभृतयः // . सङ्ख्याशब्दाः पञ्चनप्रभृतयो बहुवचनान्तास्त्रिषु सरूपाः / 125 जम्-शसोलुक् / पान्त-नान्तसङ्ख्याया जस्शसोर्टक् स्यात् / पञ्च 2 // पञ्चभिः / पञ्चभ्यः 2 / . 126 ष्णः / पान्त-नान्तसङ्ख्यावाः परस्यामो नुटू स्यात् / पञ्चानाम् / पञ्चसु / एवं सप्तन्–नवन्-दशन्-प्रभृतयः // अष्टनशब्दस्य विशेषः Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका ! . 14. 127 अष्टनो डौ वा / अष्टनः परयोर्नस्-शसोर्वा डौ स्यात् / अष्टौ, अष्ट 2 / / 128 वा सु / अष्टनः सकार-भकारादिस्यादौ वा आत्वं स्यात् / अष्टभिः, अष्टाभिः / अष्टभ्यः 2 / अष्टानाम् / अष्टसु, अष्टासु॥ 129 छ-श-ष-राजादेः षः / छ-श-पान्तस्य राजयजादेश्च षः स्यात्, धातोझसे नाम्नश्च रसे पदान्ते च / 130 षो डः / षस्य डः स्यात् , धातोसे नाम्नश्च रसे पदान्ते च / सम्राट, सम्राड् / सम्राड्भ्याम् / सम्राट्सु // यः यौ ये / 131 स्तः / त्यदादेस्तस्य सः स्यात् , सौ / सः तौ ते / शेषं सर्ववत् / एषः एतौ एते // 132 चोः कुः / चोः कुः स्यात् , धातोझसे, नाम्नश्च रसे पदान्ते च / सुपक्, सुपग् / सुपगम्याम् / सुपचे / सुपचः / सुपचोः 2 / सुपक्षु // चस्य षत्वे निमित्ताभावेन सस्य सत्वे / 133 स्कोराद्योश्च / संयोगादेः सस्य कस्य च लोपः स्यात्, धातोझसे, नाम्नश्च रसे पदान्ते च / वृक्षवृद्ध, वृक्षवृड् वृक्षवृश्चौ वृक्षवृश्च इत्यादि // Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 षड्लिङ्गप्रकरणम् / 134 अञ्चेः पुंसि पश्चसु नुम् / 135 दिशाम् [कुः]। दिश्-स्पृशादीनां कुः स्यात्, स्यादौ रसे पदान्ते च / तिर्यङ् तिर्यश्चौ तिर्यञ्चः // 136 तिरश्चादयो निपात्याः / शप्तादौ स्वरे तद्धितयस्वरयोरीकारे ईपि च / तिरश्चः / तिरश्चा तिर्यग्भ्याम् / तिर्यक्षु / एवं प्रत्यङ् / प्रतीचा प्रत्यग्भ्याम् / प्रत्यक्षु / उदङ् / उदीचः / उदीचा उदग्भ्याम् / उदक्षु / सम्यङ् / समीचः / समीचा सम्यग्भ्याम् / सम्यक्षु // 137 वितो नुम् / उकारानुबन्धस्य ऋकारानुबन्धस्य च नुम् स्यात् , पुंसि पञ्चसु / 138 सम्महतोऽधौ दीर्घः शौ च / सन्तस्यापशब्दस्य महच्छब्दस्य च दीर्घः स्यात् , पुंसि पञ्चस्वधिषु शौ च / महान् महान्तौ महान्नः / महता महद्भ्याम् / महत्सु / हे महन् // पचन् पचन्तौ पंचन्तः / हे पचन् / 139 शत्रन्तानां द्विरुक्तानां जक्षादीनां च न नुम् शौ 'वा। ददत् ददतः / एवं नक्षत् जाग्रत् दरिद्रत् चकासत् शाप्सत् / ___ सुदिक् , सुदिग् सुदिशौ सुदिशः / सुदिशा सुदिग्भ्याम् / सुदिक्षु / हे सुदिक् , सुदिग् // षष्शब्दो नित्यं बहुवचनान्तस्त्रिषु सरूपः / षट् , षड़। षड्भिः / षड़भ्यः / 3 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / 140 डःणः / डस्य णः स्यान्नामि / षण्णाम् // षट्सु / 141 दोषां [2] / दोषादीनां रः स्थान, रसे पदान्ते च / दोः दोषौ दोषः / दोषम् / 142 शसादौ वा दोषन् / दोष्णः, दोषः / दोषा, दोष्णा दोषभ्याम् , दोाम् / दोषसु, दोःसु * विसर्गानुस्वारव्यवधानेऽपि सस्य षत्वं वाच्यम् ' दोष्षु / . विद्वान् विद्वांसौ विद्वांसः / / 143 वसोर्व उः / वसोर्वस्य उः स्यात् , शसादौ स्वरे, तद्धितय- स्वरयोर्मतावीपीकारे च / विदुषः / विदुषा विद्वदभ्याम् / विद्वत्सु / हे विद्वन् // 144 पुंसोऽसुङ् / पुंसोऽसुङ् आदेशः स्यात् , पुंसि पञ्चसु शौ च / पुमान् पुमांसौ पुमांसः / पुंपा पुम्भ्याम् / पुंसु / हे पुमन् // . 145 अत्वसोः सौ / अत्वन्तस्याधात्वतन्तस्य चोपधाया दीर्घः स्यात्, सावधौ / वेधाः वेधसौ वेधसः / वेधता वेधोभ्याम् / वेधस्सु / हे वेधः // 146 उशनसाम् / उशनस्--पुरुदंशस्-अनेहसां सेरधेर्डा स्यात् / उशना उशनसौ उशनसः / उशनोभ्याम् / उशनासु // ' उशनसो धौ नान्तता अदन्तता वा वाच्या ' हे उशनन् , हे उशन, हे उशनः हे उशनसौ हे उशनसः // 16 // Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् लिङ्गप्रकरणम् / 35 147 अदसो दस्य सः सौ / अदसो दस्य सौ परे सत्वं स्यात् // 148 सेरौ / अदमः सेरौ स्यात् / असौ // 149 मादू / अदसोऽमात् परस्य उश्च उश्च स्यात् / इस्वस्य हस्वः, दीर्घस्य दीर्घः / अमू / 150 एरी बहुत्वे / अदम एकारस्य ई: स्यात् , बहुत्वे / अमी / अमुम् अमू अमुन् / अमुना अमूभ्याम् अमीभिः / अमुष्मै / अमुष्मात् / अमुष्य / अमुयोः 2 / अमीषाम् / अमुश्मिन् अपीषु // इति हसान्ताः पुंलिङ्गाः। अथ हसान्ताः स्त्रीलिङ्गाः। तत्र हकारान्त उपानशब्दः-- . - 151 नहो धः / नहो हस्य धः स्यात् , धातोझसे नाम्नश्च रसे पदान्ते च / उपानत्, उपानद् उपानही उपानहः / उपानहा उपानद्भ्याम् / उपानासु // चतस्त्रः 2 / चतसृभिः / चतसृभ्यः 2 / चतसृणाम् / चतसृषु / Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / 152 इयं स्त्रियाम् / इदम् स्त्रियामियं स्यात् , सौ / इयम् इमे इमाः / अनया आभ्याम् आभिः / अस्याः 2. अनयोः आसाम् / अस्याम् अनयोः आसु / ___स्या त्ये त्याः / एवं सा ते ताः / या ये याः। एषा एते एताः // अपशब्दो नित्यं बहुवचनान्त:-आपः / अपः / 153 भि दपाम् / अपशब्दस्य दत्वं स्यात् , भादिविभक्तो / अदभिः / अदभ्यः 2 / अपाम् / अप्सु / आशीः आशिषौ आशिषः / आशिषा आशीर्ष्याम् / आशी:षु। असौ अमू . अमूः / अमुम् अमू / अमुया अमूभ्याम् अमूभिः / अमुष्यै / अमुष्याः 2 / अमुयोः अमूषाम् / अमुष्याम् अमुयोः अमूषु / इति हसान्ताः स्त्रीलिङ्गाः। अथ हसान्ता नपुंसकलिङ्गाः। स्वनडुत् , स्वनडुद् स्वनडुही स्वनवाहि। पुनः / शेषं पुंवत् // वा: वारी वारि 2 / वारा वााम् / वार्षु // इदम् इमे इमानि / पुनः / शेषं पुंवत् // . किं के कानि / शेषं पुंवत् / .. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षडलिङ्गप्रकरणम् / 154 अह्नः / अहनशब्दस्य सः स्यात् , रसे पदान्ते च / अहः अही, अहनी अहानि / पुनः अह्ना अहोभ्याम् / अइस्सु / कर्म कर्मणी कर्माणि 2 / 'धौ नपुंसकानां नस्य लोपो वा' त्यत् , त्यद् त्ये त्यानि / तत् , तद् ते तानि ! यत् , यद् ये यानि / एतत् , एतद् एते एतानि / शेषं पुंवत् // 155 वाऽऽदीपोः शतुः / अवर्णान्तात् शतुर्वा नुम् [स्यात् ], ईकारे ईपि च / तुदती, तुदन्ती / तुदन्ति 2 / शेष पुंवत् // 156 अप्-ययोरान्नित्यम् / अप्प्रत्यय-यप्रत्ययसम्धनिधनोऽवर्णान्ताच्छतुर्नुम् नित्यं स्यादीकारे ईपि च / पचत् पचन्ती यचन्ति / दीव्यत् दीव्यन्ती दीव्यन्ति / जगत् , जगद् जगती जगन्ति / वचः वचप्ती वांसि / अदः अमू अमूनि / पुनरपि / शेषं पुंवत् // इति हसान्ता नपुंसकलिङ्गाः। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तर निका। अथ युष्मदस्मदी। 157 त्वमह सिना / सिसहितयोयुष्मदस्मदोस्त्वमह. मित्यादेशौ स्तः / त्वम् / अहम् // 158 युवावौ द्विवचने / युवावादे शौ स्तः // 159 आमौ / ताभ्यां पर औ आम् स्यात् / युवाम् / आवाम् // . 160 यूयं वयं जसा / नसा सहितयोस्तयोयूयं वयमित्यादेशौ स्तः / यूयम् / वयम् / / 161 त्वन्मदेकत्वे / तयोस्त्वन्मदौ स्त एकत्वे // 162 आऽम्-स्-भौ / तरोष्टेरात्वं स्यात् , अमि सकारे मिति च / त्वाम् / माम् / युवाम् / आवाम् / युष्मान् / अस्मान् // . . 163 ए टा-ङ्योः / तयोष्टरेत्वं स्यात् , टा-ङ्योः / त्वया। मया। युवाभ्याम् / आवाभ्याम् / युष्माभिः / अस्माभिः॥ 164 तुभ्यं मह्यं ङया। डेसहितयोस्तयोस्तुभ्यं मह्यमित्यादेशौ स्तः / तुभ्यम् / मह्यम् / युवाभ्याम् / आवाभ्याम् // 165 भ्यस् इभ्यम् / ताभ्यां परो भ्यस् श्भ्यं स्यात् / युष्मभ्यम् / अस्मभ्यम् // 166 ङसि-भ्यसोः स्तुः / स्पष्टम् / त्वत् / मत् / युवाभ्याम् / आवाभ्याम् / युष्मत् / अस्मत् // Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड्लिङ्गप्रकरणम् / 167 तब मम.ङसा / स्पष्टम् / तव / मम / युवयोः / आवयोः // 168 सामाकम् / ताभ्यां पर: सामा स्यात् / युष्माकम् / अस्माकम् / त्वयि ! मयि युवयोः / आवयोः / युष्मासु ! अस्मासु // 162. युष्मदस्मदोः षष्ठी-चतुर्थी-द्वितीयाभिस्ते मे वां नौ वस्-नौ। षष्ठी-चतुर्थी-द्वितीयासहितयोयुष्मदस्मदोरेकत्वे ते मे, द्वित्वे वाम् नौ, बहुत्वे वस्-नसौ इत्यादेशौ स्तः // 170 त्वा-माऽमा / अमा सहितयोस्तयोस्त्वामाऽऽदेशौस्तः // श्रीशस्त्वाऽवतु माऽपीह दत्तात् ते मेऽपि शर्म सः / स्वामी ते मेऽपि स हरिः पातु वामपि नौ विभुः // 1 // सुखं वां नौ ददात्वीशः पतिर्वामपि नौ विभुः / सोऽव्याद् वो नः शिवं वो नो दद्यात् सेव्योऽत्रवः स नः॥२॥ 171 नादौ / वाक्यादौ पादादौ नैते आदेशाः स्युः। त्वां पातु / वैदेरशेषैः स वेद्योऽस्मान् विभुः सर्वदाऽवतु / / 172 निरुपपदात् / सम्बोधनात् परयो युष्मदस्मदो] नैते स्युः / देवास्मान् पाहि सर्वदा // 173 चादिभिश्च / च वा ह अह एव एभिर्योगे नैते / आवयोर्युक्योश्चेशो वेशो हेशस्तथैव च / / अहेश आवयोरेव हरिर्मामेव रक्षतु // 1 // इति युष्मदस्मत्प्रक्रिया / Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / अथाव्ययानि / 1 चादिनिपातः / च वा ह अहं एव नूनं पृथक् शश्वत् युगपत् भूयस् हन्त विना स्वस्ति अस्नि नक्तं मृषा मिथस् अथ अशे ह्यम् श्वस् उच्चैस् नीचैस् शनैस् ऋते आरात् दिवा सायं चिरं मनाक ईषत् जोषम् / तूष्णीम् इव हि ( बहिस् ) तिरस् अन्तरा सह-अलम् वौषट् वषट् पुरा प्र यस् मुहुः सार्धम् सःकम् नमस् हिरुक् धिक् मा प्रातर् पुनर् स्वाहा यावत् तावत् तथाहि खलु किल अङ्ग हे भोः अयि रे द्राक् दिक् इत्यादि // 2 तत्रादयो निपात्या विभक्त्याद्यर्थेषु / तत्र यत्र अत्र कुत्र क्व तथा यथा कथम् इत्थम् ततः यतः इतः कुतः अतः सर्वतः पुरः पुरस्तात् उपरि उपरिष्टात् अधः अधस्तात् सद्यः अद्य अधुना इदानीम् तदा यदा कदा सर्वदा अन्यदा सम्प्रति मादि झटिति तूर्णम् आशु परुत् परारि पूर्वेयुः परेयुः अन्येयुः यहि तर्हि कहि एतर्हि // . 3 प्रादिक उपसर्गा / प्र परा अप सम् अनु अव निस् निर् दुस् दुर् अभि वि अधि सु उत् नि प्रति अति परि अपि उप आङ् श्रत् अन्तर आविर् / / 4 प्राग् धातोः / उपसर्गाः प्राक् स्युः // . 5 तदव्ययम् / निपाता उपसर्गाश्च ‘अव्ययमज्ञाः स्युः // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . अव्ययानि / 6 क्त्वाद्यन्तं च / क्त्वा क्या तुम् णम् धा शस् च्वि वत कृत्वम् सु अम् इत्याद्यन्तमव्ययसंज्ञं स्यात् / 7 अव्ययाद् विभक्तेलुक् / स्पष्टम् // 8 अवाप्योरुपसर्गयोरल्लोपो वा वक्तव्यः / अपिधानम् , पिधानम् / अवगाह्यम् , वगाह्यम् // [9 आहि च दूरे / दक्षिणस्यां दिशि दूरे इति दक्षिणाहि वसन्ति चाण्डालाः // . 10 तदधीन-कात्न्ययोर्वा सात् / राज्ञोऽधीनं राजसात् / सर्व भस्म इति भस्मसात् // 11 ऊर्युररी अङ्गीकरणे / निपात्यौ / ( उरीकृत्य / उररीकृत्य // सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु / वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम् // ] इत्यव्ययानि // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 . सिद्धान्तरनिका / . अथ स्त्रीप्रत्ययाः। ? आवतः स्त्रियाम् / अकारान्तान्नाम्न आप स्यात् , स्त्रियाम् / सर्वा / माया // 2 अजादेश्च / अना / अश्वा // 3 काप्यतः / कापि परे पूर्वस्यात इत् स्यात् / कारिका / पाचिका / क्वचिन्न / क्षिका // 4 इस्वो वा / कापि परे तरादौ च पूर्वस्य हस्वो वा स्यात् , सन्ध्यक्षरं वर्जयित्वा / गङ्गका, गङ्गाका, गङ्गिका / श्रेयप्सितरा, श्रेयसीतरा / सन्ध्यक्षरवर्तनात् गोका / नौका // 5 व्रण ईपू / नकारान्ताद् ऋकारान्तादणन्ताच्च स्त्रियामीप् स्यात् / दण्डिनी / कीं / औपगवी // 6 वितः / षकार-टकारोकार-ऋकारेतः स्त्रियामीप् स्यात् / वराकी / कुरुचरी / गोमतो / पचन्ती // 7 नदादेः / नदादेः स्त्रियामीप् स्यात् / नदी / गौरी // 8 अनन्त्यवयोवाचिनः / अदन्तात् स्त्रियामीप् स्यात् / कुमारी / तरुणो // 9 पुंयोगे च / घुयोगेऽदन्तात् स्त्रियामीप् स्यात् / शूद्री। गणकी / क्वचिन्न गोपालिका // 10 जातेरयोपधात् / जातिवाचिमोऽयकारोपधाददन्तात् Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीप्रत्ययाः / स्त्रियामीप् स्यात् / महिषी / हसी / क्वचिन्न बलाका / क्वचिद् योपधादपि मनुषी॥ 11 स्वाङ्गाद् वा / स्वाङ्गवाचिनोऽसंयोगोपधात् स्त्रियामीप् वा स्यात् / सुमुखी, सुमुखा // 12 वोर्गुणात् / उदन्ताद गुणवाचिनो वा स्त्रियामीप् स्यात् / पट्टी, पटुः // __ 13 कृदिकारादक्तेरीप वा / रात्री, रात्रिः / अक्ते रिति किम् ? मतिः / भूतिः // 14 ए च मन्वादेः / मन्वादीनाम् ऐः स्यात् , ईपू च स्त्रियाम् / मनायी / औरपि मनावी // 15 पन्यादयो निपात्याः / पत्नी ! सपत्नी / सखी / प्राची ! एवमन्येऽपि // 16 इन्द्रादेरानीप् / इन्द्रादेर्गण द् आनीप् स्यात् , स्त्रियां पुंयोगे / इन्द्राणी / भवानी इत्यादि / . 17 उत ऊः। उदन्तादयोपधान्मनुष्यजातिवाचिनः स्त्रियामूप्रत्ययः स्यात् / कुरूः / ऊरुशब्दादपि करभोरूः // इति स्त्रीप्रत्ययाः / Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / अथ तद्धितप्रकरणम् / 1 अपत्येऽण् / नाम्नोऽपत्येऽऽण् स्यात् / / 2 आदिस्वरस्य जिगति वृद्धिः। स्वराणामादिस्वरस्य वृद्धिः, णिति तद्धिते // 3 यस्य लोपः / वर्णावर्णयोर्लोप: स्यात् , तद्धितय-स्वरयोरोपि च / वासिष्ठः // 4 वो य-स्वरे / उवर्णस्य ओकारस्य चा व् स्यात् , यकारे स्वरे च / औपगवः / भार्गवः // 5 ऋ उरणि / सङ्ख्यापूर्वस्य मातृशब्दस्य ऋत उर् स्यादणि / पाण्मातुरः / द्वैमातुरः // ' 6 शिवादिभ्योऽपि / शैवः / गाङ्गः // 7 अत इबऋषेः / अनृषिशब्दादकारान्तादपत्येऽर्थे इञ् स्यात् / दैवदत्तिः। दाशरथिः / क्वचिद् ऋषिशब्दादपि / गार्गिः / औडुलोमिः // 8 ण्यायनणेयण-णीया गर्ग-नडात्रि-स्त्री-पितृष्वस्रादेः / गर्गा देयॆः / नडादेरायनण् / अत्र्यादेः स्त्रीप्रत्ययान्ताच्च एयण / पितृष्वस्रादेीयः / एतेऽपत्यार्थेषु स्युः / गार्ग्यः / वात्स्यः / नाडायनः / वात्स्यायनः / आत्रेयः। गाङ्गेयः / पैतृष्वतीयः // Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तद्धितप्रकरणम् / 9 चटकादैरण.। चाटकरः // 10 लुग् बहुत्वे क्वचित् / बहुत्वमङ्ख्यां स्यात्ये च प्रत्ययस्य लुक् / गर्गाः / वसिष्ठाः / चटकाः // 11 देवतेदमर्थे / देवतार्थे इदमर्थे चोक्ता वक्ष्यमाणाश्च प्रत्ययाः स्युः / ऐन्द्रम् / सौम्यम् / आग्नेयम् / अग्निषोमीयम् // 12 क्वचिद् द्वयोः। पूर्वोत्तरपदाद्योः क्वचिद् वृद्धिः स्यात् . णिति / आग्निमारुतम् / सौहार्दम् // 13 कल्याणादेरिन। | काल्याणिनेयः।] सौभागिनेयः / सौभाग्यम् // 14 णितो वा। उक्ताः प्रत्यया णितो वा स्युः / पित्र्यम् / गव्यम् / त्वदीयम् / यदीयम् // 15 कारकात् क्रियायुक्ते / कारकादप्येते प्रत्ययाः स्युः, क्रियायुक्ते कर्तरि कर्मणि च / को कुमम् / माथुरः // 16 केनेयेकाः। कारकात् क ईन इय इक इत्येने प्रत्ययाः स्युः, कर्तरि कर्मणि चोक्त-वक्ष्यमाणेष्वर्थेषु / ते च णितो वा ! क्रमकः / पदकः / ग्रामीणः / कुलीनः / गार्गीयः / क्षत्रियः / इन्द्रियः / आक्षिकः / हालिकः / धार्मिकः / पौराणिकः // __ 17 आख्याताव्यय-सर्वादेष्टेः प्रागकः / पचतकि / उच्चकैः / अयकम् // .. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / 18 त्य-तनौ / भवाद्यर्थे त्य-तनौ स्तः / दाक्षिणात्यः / अमात्यः / ह्यस्तनः / श्वस्तनः / पुरातनः // . .. 19 स्वार्थेऽपि / उक्ता वक्ष्यमाणाश्च प्रत्ययाः स्वार्थेऽपि स्युः / प्राज्ञः / सामीप्यम् / दैवदत्तकः // 20 अणीनयोयुष्मदस्मदोर्युष्माकास्माको एकार्थयोस्तवक-ममको। यौष्माक: 1 आस्माकः / यौष्माकीणः / आस्माकीनः / तावकः / मामकः / तावकीनः / मामकीनः / 21 वत् तुल्ये / सादृश्येऽथें वत्प्रत्ययः / चन्द्रवत् / ब्राह्मणवत् // 22 भावे त-त्व-यणः / भावः शब्दप्रवृत्तिनिमित्तम् / तान्तं स्त्रियाम् , त्वान्तं क्लीबम् ,, यणन्तं प्रायः क्लीवम् / ब्राह्मणता, ब्राह्मणत्वम् , ब्राह्मण्यम् / कर्मण्यपि ब्राह्मण्यम् , राजन्यम् , स्तैन्यम् // ____ 23 लोहितादिभ्य इमन् भावे / स च डित् / लोहि. तिमा / अणिमा / महिमा / लघिमा // . 24 भावेऽणपि / लाघवम् / गौरवम् / यौवनम् // 25 ऋ र इमनि / हसादेलंघोः ऋकारस्य रः स्यादिमनि, इष्ठेयसोश्च / प्रथिमा / म्रदिमा। 26 समूहेऽर्थेऽप्यणादयः / मायूरम् / जनता / वास्या / वार्धकम् / कावचिकम् // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तद्धितप्रकरणम् / 47 27 हितेऽर्थेऽपि / आत्मनीनः / हविष्यम् // 28 अस्त्यर्थे मतुः / गोमान् / श्रीमान् // 29 अ-इकौ च मत्वर्थे / अर्शसः / वैजयन्तः // 30 इकस्त्वदन्तात् / धनिकः / / 31 मान्तोपधाद् वत्विनौ / मानतान्मोपधादवर्णान्तादवर्णोपधाच्च वत्विनौ प्रत्ययौ स्तः / लक्ष्मीवान् / विद्यावान् / धनवान् / यशस्वान् // 32 इनस्त्वदन्तात् / छत्री / दण्डी / 33 तडिदादिभ्यश्च / तडित्वान् / विद्युत्वान् / / 34 यत- तदेतदामा बतौ। यावान् / तावान् / एतावान् // 35 इयत्-कियदिति निपात्यौ / इयान् / कियान् // 36 श्रद्धाऽऽदेलुः / श्रद्धालुः / दयाळुः // 37 प्रशंसायां रूपः / वैयाकरणरूपः / 38 कुत्सायां पोशः / भिषक्पाशः / / 39 भूतपूर्वे चरट् / दृष्टचरः // 40 प्राचुर्य-विकार-प्राधान्यादिषु मयट् / अन्नमयः / मृन्मयः / स्त्रीमयः / अमृतमयः / 41 न सन्धिय्-वोयुट् च / सन्धिनयोर्य-वयोर्युडागमः Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 सिद्धान्तरनिका / स्यात् / यस्य इट्, वस्य उट् / पश्चाद् वृद्धिः / वैयाकरणः / सौवश्वः // 42 इतो जातार्थे / लजितः / फलितः / / 43 तर-तमेयस्विष्टाः प्रकर्षे / स्पष्टम् / शुक्लतरः / शुक्लतमः // ईयस्विष्ठौ डितौ / लघीयान् / लघिष्ठः // ४४गरिष्ठादयो निपात्याः / गरिष्ठः, गरीयान् , गरिमा / प्रेष्ठः, प्रेयान् , प्रेमा / श्रेयान् , श्रेष्ठः / ज्यायान् , ज्येष्ठः / भूयिष्ठः, भूयान् // 45 किमोऽव्ययादाख्याताच्च तर-तमयोराम् / किंतराम् , किंतमाम् / कुतस्तराम् / उच्चैस्तराम् उच्चैस्तमाम् / पचतितराम् / पठतितमाम् // .. ___46 प्रमाणे दध्न-द्वयस्-मात्राः / जानुदघ्नम् / शिरोद्वयसम् / पुरुषमात्रम् / 47 निर्धारणे किम्-यत्-तद्भ्यो डतर-डतमौ / कतरः, कतमः / यतरः / तरः / / 48 सङ्ख्येयविशेषावधारणे द्वि-त्रिभ्यां तीयः त्रेस्तृ च / द्वितीयः / तृतीयः // 49 षट्-कति–कतिपय-चतुर्यस्थट् / षष्ठः / कतिथः / कतिपयथः / चतुर्थः // . 50 तुर्य-तुरीयौ निपात्यौ / तुर्यः / तुरीयः // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तद्वितप्रकरणम् / 51 पश्चादेर्मट् / पञ्चमः / सप्तमः // 52 एकादशादेडट् / एकादशः / 53 द्वयष्टनोरात्वं सङ्ख्यायामुत्तरपदेऽनशीतौ।द्वादशः। अष्टादशः / त्रयोदशः / चतुर्दशः / पञ्चदशः / षोडशः / सप्तदशः।। 54 विंशत्यादेर्वा तमट् / विंशतितमः / 55 विंशतेस्तिलोपो डिति / विंशः / त्रिंशत्तमः / त्रिंशः। 56 चत्वारिंशदादौ वाऽऽत्वम् / द्विचत्वारिंशत्तमः, द्वाचत्वारिंशत्तमः / अष्टचत्वारिंशत्तमः, अष्टाचत्वारिंशत्तमः / एवं पञ्चाशत्-पष्टि-सप्तति-नवतिषु / अशीतौ तु द्वयशीतितमः / / 57 शतादेर्नित्यं तमद् / शततमः || 58 सङ्ख्यायाः प्रकारे धा। द्विधा / पञ्चधा। षोढा // 59 क्रियाया आवृत्तौ कृत्वस् / सप्तकृत्वः // 60 द्वि-त्रि-चतुभ्यः सुः / द्विः / त्रिः / चतुः // 61 तयडयटौ सख्याया अवयवे / द्वितयम् , द्वयम् / चतुष्टयी, चतुष्टयम् // 62 वीप्सायां पदं द्विः / वृक्षं वृक्षं सिञ्चति // 63 शेषा निपात्याः कत्यादयः। कति / तति // [स्त्री-पुंसोनण्-स्नणी / स्त्रैणम् / पौंस्नम् // व्यासादेः किः / व्यासस्यापत्यं वैयासकिः / * वारुडकिः // Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / प्रज्ञादिभ्योऽण् / प्राज्ञः / आर्चः। श्राद्धः / वार्तः // तुन्दि-बलि-चटिभ्यो भः / तुन्दिभः / बलिमः / वटिभः // कृष्यादिभ्यो वलच् दीर्घश्च / कृषीवलः // शृङ्ग-वृन्दाभ्यामारकच् / शृङ्गारकः / वृन्दारकः॥ ऊर्णाऽहं-शुभंभ्यो युः / अस्त्यर्थे / ऊर्णायुः / अहंयुः / 'शुभंयुः // अर्णः-केशयोः / अर्णवः / केशवः / / लोमादिभ्यः शः / लोमशः / रोमशः // ] इति तद्धितप्रक्रिया // अथ कारकाणि / 1 लिङ्गार्थे प्रथमा / नामार्थमात्रे प्रथमा विभक्तिः स्यात् / कृष्णः / श्रीः / ज्ञानम् // 2 आमन्त्रणे च / सम्बोधने च प्रथमा स्यात् / हरे ! प्रसीद // 3 शेषाः कार्ये कर्व-साधनयोर्दानपात्रे विश्लेषावधौ सम्बन्ध आधार-भावयोः / द्वितीयाद्या एष्वर्थेषु भवन्ति / 4 कर्मणि द्वितीया / कटं कुरुते पटुः // . Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारकाणि / 5 कर्तरि करणे च तृतीया / रामेण शरेण रावणो जम्ने। 6 दानपात्रे चतुर्थी / वेदविदे गां ददौ / 7 विश्लेषावधावपादानकारके पञ्चमी। भूभृतोऽवतरति नदी / ग्रामादायाति // 8 सम्बन्धे षष्ठी / राज्ञः पुरुषः // ____9 आधारे सप्तमी / औपश्लेषिकम् 1, सामीप्यम् 2, अभिव्यापकम् 3, वैषयिकम् 4, नैमित्तिकम् 5, औपचारिकं 6, चेति / कटे आस्ते / वटे गावः शेरते / तिलेषु तैलम् / हृदि ब्रह्मामृतं परम् / धीरो युद्धे संनह्यते / अङ्गुल्यग्रे करिणां शतम्॥ 10 विना-सह-नम-ऋते-निर्धारण-स्वाम्यादिभिश्च / एतैोंगेऽपि द्वितीयाऽऽद्या विभक्तयः स्युः / विना धर्ममफलं जन्म / एवमन्तरेणान्तरा-निकषादियोगेऽपि / [लङ्कां निकषा हनिष्यति / ] 11 सहादियोगे तृतीया। मह शिष्येणागतो गुरुः / एवं साकं-सार्ध-समयोगेऽपि // 12 तुल्यायोगेऽपि / कृष्णेन तुल्यः / रामेण सहशः // 13 नमआदियोगे चतुर्थी / नमः कृष्णाय / एवं स्वस्ति-स्वाहा-स्वधा-ऽलं-वषड्योगेऽपि // 14 क्रुध-दुहेाऽसूया-स्पृहार्थानां योगेऽपि / हरये क्रुध्यति द्रुह्यति ईर्ध्यति असूयति स्पृहयति // Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तर निका। ___ 15 ऋतेआदियोगे पञ्चमी / ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः / एवमारादितरान्य-पृथक्-प्रागादियोगेऽपि // . . 16 स्वाम्यादियोगे षष्ठी-सप्तम्यौ। गवां गोषु वा स्वामी दायादः प्रसूतः प्रतिभूर्वा // 17 कालाध्वनोनॆरन्तर्ये द्वितीया / मासं गच्छति / कोशं पर्वतः // 18 हेतौ तृतीया-पञ्चम्यौ / जाड्येन जाड्याद् वा बद्धः।। 19 किश्चित्मकृति प्राप्तस्य लक्षणे तृतीया / नेत्राभ्यां चारुः / जटाभिस्तापसः // 20 तादयें चतुर्थी / मेधावी मोक्षाय धर्म धत्ते / / 21 तुमोअयोगे कर्मणि चतुर्थी / फळेभ्यो याति // 22 क्यपोप्रयोगे पञ्चमी / हात् प्रेक्षते // 23 निर्धारणे षष्ठी-सप्तम्यौ / छात्राणां छात्रेषु वा पटुः मैत्रः // 24 कर्तृ-कार्ययोरक्तादौ कृति षष्ठी / कर्तरि कर्मणि च षष्ठी स्यात् , क्तादिवर्जिते कृत्प्रत्यये प्रयुज्यमाने / व्यासस्य कृतिः / जगतः कर्ता हरिः॥ 25 गौणकर्मणि वा / नेताऽश्वस्य ग्रामं ग्रामस्य वा // 26 उभयमाप्तौ कर्मणि षष्ठी कर्तरि तु वा / शब्दानामनुशासनमाचार्येणाचार्यस्य वा / क्तादिवनिते इति किम् ? Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारकाणि / विष्णुना हता दैत्याः। दैत्यान् हतवान् हरिः / क्त-क्तवत्-शतृशानच्-क्त्वा-क्यप्-तुम्-खलिष्णुकोणत्यादि क्तादयः / ग्राम गतः // 27 अप्रसिद्धक्रियोपलक्षणके भावे सप्तमी। वर्षति मेघे चौर आयातः // 28 निमित्तकर्मणः सम्बन्धे निमित्तात् सप्तमी / केशेषु चमरी हतवान् // __ 29 अन्योक्ते प्रथमा। आख्यात-कृत्-तद्धित-समासनिपातोक्त कारके सम्बन्धे च प्रथमा स्यात् / घटः क्रियते कुलालेन / हरिः करोति जगत् // यम्मिन्नर्थे विधीयन्ते लकारास्तद्धिताः कृतः / समासो वा भवेद् यत्र स उक्तः प्रथमा ततः // 1 // कर्तरि प्रथमा यत्र द्वितीया तत्र कर्मणि / कृदाख्यातक्रियाऽत्र स्यात् कर्तरि प्रत्ययान्विता // 2 // अकर्मको यदा धातुः कम तत्र न सम्भवेत् / / कतैव प्रथमान्तः स्यात् कतरि प्रत्यया क्रिया // 3 // तृतीयान्तो यदा कर्ता प्रथमात्र च कर्मणि / कृदाख्यातक्रियाऽत्र स्यात् कर्मणि प्रत्ययान्विता // 4 // Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका / अकर्मको यदा धातुः कर्म तत्र न सम्भवेत् / कतैवात्र तृतीयान्तः स्याद् भावे प्रत्यया क्रिया // 5 // कर्ता कर्म च करणं सम्पदानं तथैव च / अपादानाधिकरणे इत्याहुः कारकाणि षट् // 6 // इति कारकप्रक्रिया। अर्थ समासप्रकरणम् / 1 समासश्चान्वये नाम्नाम् / पदयोः पदानां वाऽन्वये समस्यैव समासः स्यात् / चशब्दात् कृत्-तद्धित-धातुसंज्ञाविधायकाः प्रत्ययादयोऽपि // , 2 पूर्वेऽव्ययेऽव्ययीभावः / अव्यये पूर्वपदेऽव्ययीभावसंज्ञः समासः स्यात् / . 3 समास-प्रत्यययोः। समासे प्रत्यये च परे विभक्तेछुक् स्यात् / नामसंज्ञायां स्यादिः // 4 स नपुंसकम् / अव्ययीभावो नपुंसकलिङ्गः स्यात् / ' नपुंसकस्य / इति इस्वः / 5 अव्ययीभावात् / अव्ययीभावान विभक्तेलुक्। अधिस्त्रि। 6 अतोऽमनतः। अदन्तादव्ययीभावाद् विभक्तेर्न लुक्, अतं वर्नयित्वा अमादेशः / उपकुम्मम् // Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासप्रकरणम् / 7 वा टा-योः / अदन्तादव्ययीभावात् टा-ड्योरम् वा / उपकुम्भम् , उपकुम्भेन वा / उपकुम्भात् / उपकुम्भे,उपकुम्भम् // 8 क्वचिद् वा / अपविष्णोः, अपविष्णु / बहिर्वनम् , बहिर्वनात् / आमुक्ति, आमुक्तेः // 9 क्वचिन्न / यथा हरिस्तथा हरः // 10 क्वचिदनव्यये पूर्वपदेऽव्ययीभावः। उन्मत्तगङ्गम् / द्वियमुनम् // 11 क्वचिदव्यये उत्तरपदेऽपि / अक्षपरि / शाकप्रति // 12 आयतीगवादयो निपात्याः / आयतीगवम् / तिष्ठद्गु इत्यादि // 13 टाड-काः / समासे सति ट अ ड क इत्येते प्रत्यया यथाप्रयोगं प्रयोक्तव्याः / उपशरदम् / प्रत्यक्षम् / उपराजम् // इत्यव्ययीभावः // 1 // 14 अमादौ तत्पुरुषः। द्वितीयाद्यन्ते पूर्वपदे तत्पुरुषसंज्ञः समासः स्यात् / ग्रामप्राप्तः / हरित्रातः / यूपदारु / सुखापेतः / राजपुरुषः / अक्षशौण्डः / क्वचित् षष्ठी न समस्यते / नृणां द्विजः / फलानां सुहितः / क्वचिद् द्वितीयाद्यन्तस्य परत्वम् / अतिराः / भूतपूर्वः / अर्धपिप्पली / [ पूर्वकायः // 15 नो वा / नान्तस्य टेर्लोपः स्यात् , य-स्वरयोः / वाग्रहणात् क्वचिदुपधाया लोपः / मध्याह्नः / इत्यादि / क्वचित समासे णत्वं निमित्ते सति / आम्रवणं / शूर्पणखा // Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 सिद्धान्तरत्निका / 16 नबि / नअव्यये पूर्वपदे तत्पुरुषसंज्ञः समासः स्यात् / नसमासे सति नमोऽदादेशः स्यात् / अधर्मः // 17 अन् स्वरे। समासे नञोऽन् स्यात् , स्वरे। अनश्वः / क्वचिन्न नक्षत्रम् / नासत्यौ / नाकः / तदन्य-तद्विरुद्ध-तदभावेषु नञ् वर्तते ] इति तत्पुरुषः // 2 // 18 चार्थे द्वन्द्वः / [समुच्चयान्वाचयेतरेतरयोग-समाहाराश्चार्थाः / कर्मद्वयस्य एकक्रियानिष्ठत्वं समुच्चयः / कर्मद्वयेऽपि प्रत्येक क्रियासम्बन्धोऽन्वाचयः / पदद्वयेन द्वन्द्व इतरेतरयोगः / बहूनां पदानां समवायः समाहारः / / इतरेतरयोगे समाहारे चार्थे द्वन्द्वसमासः स्यात् // 19 द्वन्देऽल्पस्वरप्रधानेकारोकारान्तानां पूर्वनिपातः / धव-खदिरौ / तापस-पर्वतौ / अग्नि-मारुतौ / पटु-गुप्तौ // 20 स्वराद्यदन्तस्य च / ईश-कृष्णौ // . 21 देवताया द्वन्द्वे पूर्वपदस्यात्वम् / इन्द्रा-बृहस्पती // 22 प्राणि-तूर्य-सेनाऽङ्गानां द्वन्द्वे समाहार एव / [प्राण्यङ्गे यथा-पाणी च पादौ च मुखं च पाणि-द-मुखम् / तूर्याङ्गे यथा-म र्दङ्गिकश्च वैणविकरच मार्दङ्गिक-वैणविकम् / / समाहारे एकवद्भावः // Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासप्रकरणम् / 57 23 एकत्वे द्विगु-द्वन्द्वौ / एकत्वे द्विगु-द्वन्द्वौ नपुंसकलिङ्गौ स्तः। द्वन्तोष्ठम् / मार्दङ्गिक-पाणविकम् / रयिकाश्वारोहम् / ____24 बहुसङ्ख्यानां मृग-शकुनि-क्षुद्रजन्तु-वनस्पत्यादीनां समाहारः / रुरु-पृषतम् / शुक-बकम् / यूका-लिक्षम् / बदरामलकम् / व्रीहि-यवम् / कुश-काशम् // ... इति द्वन्द्वः // 3 // 25 समाहारे द्विगुः / सङख्यापूर्वपदे समाहारेऽयं द्विगुः * समासः स्यात्। अत ईप् / ' ततोऽदन्तादीप् / दशग्रामी / पञ्चाग्नि / क्वचिन्नप् त्रिभुवनम् / चतुर्युगम् // इति द्विगुः // 4 // ____26 बहुव्रीहिरन्यार्थे / अन्यपदार्थे प्रधाने बहुव्रीहिसंज्ञकः समासः स्यात् / बहुव्रीहौ विशेषण-सप्तम्यन्ततान्त-सङख्या-सर्वादीनां पूर्वनिपातः / बहुधनः / भाललोचनः / कृतकट: / द्विपुत्रः / सर्वप्रियः / क्वचिन्न-पद्मनाभः / दन्तजातः / 27 नब्-सु-दुर्व्यः प्रजा-मेधयोरसुक् / अप्रजाः / सुप्रजाः / दुःप्रजाः / दुर्मेधाः // 28 धर्मादन् [ केवलात् / ] सुधर्मा / [ कल्याणधर्मा // ] . 29 अन्यार्थे / स्त्रीप्रत्ययान्तस्य ह्रस्वः स्यात् // 30 पुंचद् वा पूर्वस्य / समासे समानाधिकरणे स्त्रीलिङ्गे पूर्वोक्तपुंसस्य स्त्रीलिङ्गस्य पुंवत् स्यात् / रूपवद्भार्यः // उप्रत्ययान्त, न-वामोरूंभार्यः / Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका। 31 गोः / अन्याथै गोशब्दस्य हस्वः स्यात् / पञ्चगुः / - इति बहुव्रीहिः // 5 // 32 कर्मधारयस्तुल्यार्थे / तुल्याथें पदद्वये कर्मधारयसंज्ञः समासः स्यात् / नीलोत्पलम् / रक्तलता // इति कर्मधारयः // 6 // 33 नाम्नश्च कृता समासः / नाम्नः कृदन्तेन सह तत्पुरुषसमासः स्यात् / कुम्भकारः / व्याघ्रः // 34 सहादेः सादिः / समासे सहादीनां सादिरादेशः स्यात् / सपुत्रः / सध्यङ् / सम्यङ / तिर्यङ् / कोष्णम् / कदुष्णम् / दम्पती / कुदेशः / कापुरुषः / महादेवः / सुगन्धिः / सवयाः / क्षीरोदः / बलाहकः। पृषोदरम् इत्याद्याकृतिगणोऽयम् // 35 अलुक क्वचित् / समासे तद्धिते च विभक्तेलुक न स्यात् / सरसिजम् / उरसिलोमा / युधिष्ठिरः / आत्मनेपदम् / परस्मैपदम् / आमुष्यायणः / 36 आदेश्च द्वन्द्वे / क्वचिदादेर्लोपः स्यात् / पितरौ / भ्रातरौ // 37 शाकपार्थिवादीनां मध्यमपदलोपः। शाक-पार्थिवः। देव ब्राह्मणः // सरूपाणामेकशेषविभक्तौ यो यः शिष्यते स टुप्यमानार्थाभिधायी / देवौ देवाः // Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासप्रकरणम् / 38 द्वन्द्व-तत्पुरुषयोः परपदस्यैव लिङ्गम् / कु - मयूर्यो / अर्धशाखा // 39 सेना-सुरा-च्छाया-शाला-निशान्तस्तत्पुरुषोवा क्लीबम् / शूरसेनम् / यवसुरम् / कुड्यच्छायम् / धेनुशालम् / देवनिशम् / पक्षे शूरसेना इत्यादि // 40 पूर्वपदार्थबाहुल्ये छायान्ततत्पुरुषः क्लीबम् / [ इथूणां छाया ] इक्षुच्छायम् // 41 आवन्तो द्विगुर्वा क्लीबम् / पञ्चखटुम् , पञ्चखट्टी // 42 अनो नलोपोऽपि / पञ्चतक्षम्, पञ्चतक्षी // 43 रात्राहाहान्ताः पुंस्येव / अहोरात्रः / पूर्वाह्नः। द्वयहः॥ 44 पुण्य-सुदिनाभ्यामहः सङ्ख्यापूर्व रात्रं च क्लीबम् / पुण्याहम् / सुदिनाहम् / त्रिरात्रम् // 45 क्रियाऽव्यय-विशेषणानां क्लीबत्वम् / एकवचनम् / सानन्दं नमति गुरुम् / प्राप्तः श्रेयस्तरम् // इति समासप्रक्रिया / ਸਵਸਵਵਸਰਵਵਸਕਦਵਵਰਟਵਰਕ इति श्री सिद्धान्तर निकायां शब्दानुशासने / सिबन्तवृत्तिः परिपूर्तिमगात् // Page #89 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहम् / आख्यातत्तिः प्रारभ्यते। अथ भ्वादिषु परस्मैपदिनः / 1 भ्वादिः / क्रियावाची भ्वादिर्धातृसंज्ञकः स्यात् / 2 धातोः / वक्ष्यमाणाः प्रत्यया धातोर्जेयाः / 3 वर्तमाने / तिप् तस् अन्ति / सिप् थस् थ / मिप् वस् मस् / ते आते अन्ते। से आथे ध्वे / ए वहे महे / एषां संज्ञा लट् / 4 नवपं / तिबादीनामाद्यानि नव वचनानि पंसंज्ञानि स्युः। 5 पराण्यात् / पराणि नव वचनानि आत्मनेपदसंज्ञानि स्युः। 6 आदनुदात्तङिन्तः / अनुदात्तेतो ङितश्च धातोरात्स्यात्। 7 नित्स्वरितेत उभे / जितः स्वरितेतश्च धातोरात्पे स्तः। .8 परतोऽन्यत् / उक्तनिमित्तहीनाद्धातोः पं स्यात् / 9 नाम्नि च युष्मदि चास्मदि च भागैः / नामयुष्मदस्मत्सूपपदेष्वेते प्रत्ययास्त्रिभिर्भागैः स्युरात्पयोः / नाम्नि प्रयुज्यमाने चाप्रयुज्यमाने प्रथमः। 1 परस्मैपदम् / .. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 . सिद्धान्तरस्निका व्याकरणम् / 10 कर्तरि पं च / चादात् / भू सत्तायाम् / 11 अप् कर्तरि / कर्तरि चतुर्षु धातोरप् स्यात् / 12 गुणः / नाम्यन्तस्य धातोर्गुणः स्यात् / भवति / 13 अपित्तादिर्डित् / पकारेतं तादिकं च विनान्यः प्रत्ययो ङित् स्यात् / 14 छिङत्यद्वयुसि / किति ङिति च परे वृद्धिगुणौ न स्तः / कृतद्वित्वस्योसि तु स्यादेव इति तसि गुणाप्राप्तौ अग्निमित्तो गुणः / भवतः। ' 15 अदे / अतो लोप: स्यात्, अकारे एकारे च / भवन्ति / भवसि भवथः भवथ। . 16 व्मोरा / वमयोः परयोरत आत्वं स्यात् / भवामि भवावः भवामः / स भवति / त्वं भवसि / अहं भवामि / 17 विधिसंभावनयोः / यात् याताम् युस् / याम् यातम् यात / याम् याव याम / ईत ईयाताम् ईरन् / ईथास् ईयाथाम् ईध्वम् / ईय ईवहि ईमहि / एषां संज्ञा लिङ् / 18 या / अतः परो या इ: स्यात् / भवेत् भवेताम् / 19 युस इंट् / अतः परस्य युस इट् स्यात् / भवेयुः / भवः भवेतम् भवेत / 20 यामियम् / अतः परो यामियं स्यात् / भवेयम् मोव . भवेम / साधुः समताविष्टो भवेत् / Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः। 21 आशो प्रेरणयोः / तुप् ताम् अन्तु / हि तं त / आनिए आवए आमप् / ताम् आताम् अन्ताम् / स्व आथाम् ध्वम् / ऐप आवहैप् आमहैप / एषां संज्ञा लोट् / भवतु / 22 तुह्योस्तातङाशिर्षि वा। भवतात् भवताम् भवन्तु / 23 अतः / अतः परस्य हेलुक् स्यात् / भव भवतात् भवतम् भवत / भवानि भवाव भवाम / धर्मवान् भव, भवतात् / 24 अनद्यतनेऽतोते / दिप ताम् अन् / सिप् तम् त। अमिप व म / तन् आताम् अन्त / थास् आथाम् ध्वम् / ई वहि महि / एषां संज्ञा लङ् / अतीताया रात्रेर्यामद्वयादग्यावदागामिन्याः प्रथमं यामद्वयं दिवसश्च सकलः सोऽद्यतनः, नास्ति अद्यतनोऽस्मिन्नतीते काले तत्र दिबादयः / दिसिमीनामिकार उच्चारणाथः / ___ 25 दिबादावट् / दिबादौ धातोर स्यात् / अभवत् अभवतां अभवन् / अभवः अभवतम् अभवत / अभवम् अभवाव अभवाम / ह्योऽभवजिनबिम्बप्रतिष्ठा / ' 26 परोक्षे / णप अतुस् उस् / थप अथुस् अ / णप् वम / ए आते इरे / से आथे ध्वे / ए वहे महे / एषां संज्ञा लिट। 27 द्विश्च / धातोर्द्विवचनमुक्ताथणबादियोगे / 1 प्रेरणे तु तातङ न स्यात् / Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तर निका व्याकरणम् / 28 सस्वरादिविरद्विः / धातोराद्योऽवयवः सस्वरोऽद्विभतो द्विः स्यात् णादौ / 29 णादिः कित् / अपित् णादिः कित् स्यात् / 3. आभ्वोर्णादौ / पूर्वस्याऽकारस्य भूशब्दस्य चाऽऽत्वम् . स्यात् णादौ / ___31 इस्वः / पूर्वदीघस्य हस्वः स्यात् / 32 झपानां जबचपाः / पूर्वझपानां जबाश्चपाः स्युः / झधधमानां जडदगबाः / छठथखफानां चटतकपाः स्युः / 33 भुवो वुक् / भुवो वुगागमः स्याद् णादौ स्वरे / बभव बभवतुः बभूवुः / 34 क्रादेर्णादेः / कृ सृ भू वृ द्रु स्तु श्रु सु इत्येतेभ्यः परस्य वसादेर्णादेरिण न स्यात्, अन्येभ्यस्तु भवत्येवेति नियमादिट् स्यात् / बभूविथ बभूवथुः बभूव / बभूव बभूविव बभूविम / कुमारपालो धर्मपालको बभव / / __ 35 आशिषि / यात यास्तां यासुस् / यास् यास्तं यास्त / यासं यास्व यास्म / सीष्ट सीयास्तां सीरन् / सीष्ठास् सीयास्थां सीध्वम् / सीय सीवहि सीमहि / एषां संज्ञा लिङ् / 36 आशीर्यादादेः पं कित् / भूयात् भूयास्तां भूयासुः / "भूयाः भूयास्तं भूयास्त। भयासम् भूयास्त्र भूयास्म / त्वं धर्मी भ्याः। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः। 65 37 श्वस्तने / ता तारौ तारस् / तासि तास्थस तास्थ / तास्मि तास्वस् तास्मस् / ता तारौ तारम् / तासे तासाथे तावे / ताहे तास्वहे तास्महे / एषां संज्ञा लुट् / 38 सिसतासीस्यपामिट् / भविता भवितारौ भवितारः / भवितासि भवितास्थः भवितास्थ / भवितास्मि भवितास्वः भवितास्मः / श्वोभाविन्यर्थे तादयः / यथा श्वो विशिष्टा वीतरागभक्तिर्भविता। 39 त्यादौ भविष्यति स्यप् / धातोर्भविष्यति काले स्यप् प्रत्ययः स्यात् तिबादिप्रत्ययेषु / एषां संज्ञा लट् / भविष्यति भविष्यतः भविष्यन्ति / भविष्यसि भविष्यथः - भविष्यथ / भविध्यामि भविष्यावः भविष्यामः / करकी धर्मपालको भविष्यति / 40 स्यए क्रियाऽतिक्रमे / कुतश्चित् कार्यानिष्पत्तौ सत्यां स्यप् प्रत्ययः स्याद् दिबादिषु परतः / एषां संज्ञा लङ् / अभविष्यत अभविष्यताम् अभविष्यन् / अभविष्यः अमविष्यतम् अभविष्यत / अभविष्यम् अभविष्याव अभविष्याम / यदि जैनानां राज्यमभविष्यत् तदा विश्वं वीतमयमभविष्यत् / 41 भूते सिः / धातो तमात्रे काले सिः प्रत्ययः स्याद् दिवादौ / एषां संज्ञा लुङ् / ___ 42 दादेः पे / अपिद्दाधास्थ्णभपित्रतिभ्यः परस्य सेर्लोपः पे। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 मिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / . 43 भुः सिलोपेऽयङ्लुकि गुणो न / अभूत् अभूताम् / 44 भुवः सिलोपे स्वरे बुक् / अभूवन् / अभः अभूतं अभत / अभूवम् अभूत्र अभूम / श्रीहेमचन्द्रसूरि: प्रचण्डप्रतापवानभूत् / चिती संज्ञाने। 45 उपधाया लघोः / धानोरुपधाया लबोर्नामिनो गुणः / चेतति / चेतेत् / चेततु / अचेतत् / 46 पूर्वस्य हसादिः शेषः / पूर्वस्यादिर्हसः शिष्यतेऽन्ये हमा लुप्यन्ते ! चिचेत / चिचे तिथ / चिन्यात् / चेतिता / चेतिष्यति / अचेतिष्यत् / 47 सेः / सेः परयोदिप्-मिपोरीट् / 48 इट ईटि / इटः परस्य सेर्लोपः ईटि / अचेतीत् अचेतिष्टाम् / 49 स्याविदः / सेरादन्ताद् विदश्वान उस स्यात् / अचेतिषुः। अचेतीः / म्लुचु गतौ / म्लोचति / मुम्लोच / अम्लोचीत् / टुणदि समृद्धौ / 50 इदितो नुम् / इदितो धातोर्नुम् स्यात् / नन्दति / ननन्द / 51 इदितो नलोपो न / नन्द्यात् / अनन्दीत् / मन्थ विलोडने / मन्थति / ममन्य / Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः। 67 52 ऋसंयोगाण्णादिरकित् / ममन्यतुः / 'नो लोपः' मथ्यात् / पिधू शास्त्रे माङ्गल्ये च / 53 आदेः ष्णः स्नः / धात्वायोः षणयोः सनौ स्तः / सेधति / सिषेध / ___54 अदितो वा / उदितो धातोः परस्य वसादेरनपीड् वा / 55 स्वरति-मूति-सूयति-धृञ्-रध-नश-तृप-दृप-द्रुह-मुहस्नुह-स्निहां च / स्वरति-मुति-पुयति-धूनां किद्वमादेर्णादेनित्यमिट स्यात् / सिषेधिथ / 56 तथोधः / इभान्ताद् धातोस्तथयोध: स्यात् , दधातेर्न / सिषेद्ध / सेधिता सेद्धा / सेधिष्यति सेत्स्यति / असेधिष्यत् असेत्स्यत् / असेधीत् / __ 57 अनिटोऽनामिवतः / अनिटोऽवतो नामिवतश्च धातोः पे सौ वृद्धिः स्यात् / असत्सीत् / 58 झसात् / झसात् सेर्लोपः स्याद् झसे / असैद्धां असैत्सुः / गद व्यक्तायां वाचि / गदति / 59 कुहोचः / पूर्वस्य कवर्ग-हकारयोश्चुत्वं स्यात् / हस्य चवर्गचतुर्थवर्णः / 60 अत उपधायाः / धातोरुग्धाया अतो वृद्धिः स्यात् ञ्णिति / जगाद। .. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 61 णबुत्तमो वा णित् / जगाद जगद / 62 पे सिणित् / 63 हसादेलंघोरतो वा वृद्धिः सेटि सौ / अगादीत् अगदीत् / जप जल्प व्यक्तायां वाचि / जपति / जल्पति / 64 लोपः पचां कित्ये चास्य / पचादीनी किति लिट्यनादेशादीनां पूर्वस्य लोपः स्यात् , एकहसमध्यस्थस्याकारस्यैकारश्च किति णादौ सेटि थपि च / जेपतुः / जेपिथ / जनल्पतुः / जनल्पिथ / इदि परमैश्वर्ये / इन्दति / 65 स्वरादेः / स्वरादेर्धातोद्वितीयोऽडागमः स्याद् दिबादौ परे / ऐन्दत् / 66 कासादिप्रत्ययादाम् क्रस्भूपरः / कास्-आस-दयअय-गुरुनाम्याद्यनेकस्वराच्चाम् प्रत्ययः स्याद् णबादौ, स च कृअसू-भू-परः / 67 विददरिद्राजाग्रुषां वा / इन्दांचकार / इन्दामास / इन्दांबभूव / अञ्चु गति-पूजनयोः / 68 नुगशाम् / अश्नोतेः, ऋकारादेः, संयोगान्ताकारादेश्च पूर्वस्य नुक् स्याद् णादौ / आनञ्च / 69 नो लोपः / हसान्तस्य धातोरुपधास्थितनकारस्य लोपः स्यात् किति ङिति च / अच्यात् / 1 क. सेर्णित् / 2 क. पचादीनामनादेशादीनाम् / Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः / 70 पूजार्थाचतेन / जिनदत्तः तीर्थनार्थ अम्च्यात् / निरुपपदात् क्रुश्चधातोः क्विपि लोपो न स्यात्। शसु हिंसायाम् / शसति / 71 शंसददवादिगुणभृताकाराणां नैव-पूर्वलोपौ / शशसतुः। व्रज गतौ / व्रजति / व्रजेत् / वबाज / 72 वैदि-व्रज्योः सौ नित्यं वृद्धिः। अब्राजीत् / जि जये / जयति / 73 संपरोक्षयोगिः। 74 धातोर्नामिनः / नाम्यन्तस्यादन्ताय च धातोवृद्धिः स्याद् णिति / जिगाय / 75 नु-धातोः / निकरणम्य नोर्धातोश्चवर्णोवर्णयोरियुवौ स्याताम् स्वरे / अनेकस्वरस्यासंयोगपूर्वस्य तु य्वौ / 76 उवर्णान्तेषु हुँ-न्वोरेवापि / जिग्यतुः / 77 स्वरान्तादत्वतश्च तादो नित्यानिटस्थयो वेट् / जिगयिथ जिगेथ / 78 ये / पूर्वस्य दीर्घोऽनपि ये परे / जीयात् / - 79 नैकस्वरादनुदात्तात्। आद्योच्चारणेऽनुदात्तादेकस्वराद धातोः परस्य वसादेरिट न स्यात् / जेता / जेष्यति / अजैषीत। 1 इदं सूत्रं लोपः पचामिति सूत्रस्य बाधकम् / 2 हसादेलघोरिति सूत्रस्य बाधकमेतत् / 3 सान्तप्रक्रियायाः सप्रत्यये / 4 हुधातु-नुप्रत्यययोरेवाव्विषये वकारः / Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / अथानिटकारिका। स्वरान्तेष्विमे सेटः / अदन्ताः / इवर्णान्तेषु श्वि-डीङ्शीङ्-श्रियः / उदन्तेषु रु-स्नु क्षु-यु-णु-क्ष्णूर्णवः / ऊदन्ताः / ऋदन्तेषु तृङ्-वृनौ / ऋदन्ताश्च / अन्येऽनिटः / हसान्तेष्विमेऽनिटस्तत्र हान्ता दिहि-दुहि-मिहि-रुहिवहि-नहि-दहि-लिहयः / नान्तौ मनि-हनी / मान्ना नमि-यमि-रमि-गमयः।धान्ता रुधि-युधि-बन्धि-राधि'साधि-क्रुधि-क्षुधि-शुधि-बुधि- व्यधयः / भान्ता यभिरभि-लभयः / जान्तेषु सञ्जि-मजि-भृज्जि-भुजि-णिजित्यजि-यजि-स्वजि-सृजि-विजि-मजि--भंजि-रंजि-युजिरुजयः। दान्तेषु अदि-हदि--स्कन्दि-भिदि-छिदि-शुदिशदि-सदि-स्विदि-पदि-नुदि-तुदि-खिदि-विदयः / छान्तः पृच्छतिः / चान्तेषु पचि-वचि-विचि-रिचि-सिचिमुचयः / कान्तेष्वेकः शाकः / पान्ता आपि तपि तिपिवपि-स्वपि-लिपि-तृपि-दृपि-लुपि-सृपि-क्षिपि-शपि-छुपय / शान्तेषु दिशि-दृशि-दंशि-स्पृशि-मृशि-क्रुशि-रुशिरिशि-लिशि-विशयः / षान्तास्तुषि-शुषि-शिषि-पिषिविषि-विषि-श्लिषि-दुषि-कृषि-द्विषयः / सान्तेषु वसिघसी च / अन्ये सेटः / इत्यनिट्कारिका / ष्टिवु निरसने / Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः / 80 ष्टिवु- क्लम्बाचमां दीर्घोऽपि / 81 नामधातु-वष्क-ष्ठिवां सत्वं न / 'थ्वोर्विहसे' ष्ठीवति / 82 न शसात् खपाः / पूर्वशलात् पराः खपाः शिष्यन्ते, न शसाः / टिष्ठेव / 83 ष्ठिवेः पूर्वस्य ठस्य थो वा / तिष्ठेव / चमु अदने / आचामति / अन्यत्र र शोधरश्चमति, विचमति / गुपू रक्षणे / 84 आयः। गुपू-धूप-विच्छि पणि- पनिभ्यः स्वार्थे आयः प्रत्ययः स्यात् , अनपि तु वा / 85 स धातुः / यङादिप्रत्ययान्तः शब्दो धातुसंज्ञः स्यात् / गोपायति / गोपायींचकारे / जुगोप जुगोरिथ जुगोप्य / 86 गतः / यस्यातश्चानपि लोपः / गुप्यात् गोपाय्यात् / गोपायिता गोपिता गप्ता / मोपायीत् आोषीत् अगोप्सीत् / एवं धूप संतापे / क्रमु पादविक्षेपे / - 87 भ्रास-भलाश-भ्रमु-क्रमु-क्ल मुं-त्रसि-त्रुटि-लषां यो वा कर्थेषु चतुषु / 88 क्रमः पे दीर्घोविषये / क्राम्यति कामति / 89 हम्यन्त-क्षण-श्वस जागृ-श्व्येदितां सेटि सौ न वृद्धिः / अक्रमीत् / 1 आयामौ न ङितौ। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / यम उपरमे / ___90 गमां छः / गम-यमेषूणां छः स्यादग्विषये। यच्छति। 91 यमि-रमि-नमाती सक् , सेरिट पे। अयसीत् / णम प्रहत्वे शब्दे च / नमति / नेमिथ ननन्थ / अनंसीत् / गम्ल गतौ / गच्छति / 92 गमां स्वरे / गम-हन-जन-खन-घसामुपधाया लोपः स्वरे क्ङिति, न तु ङे / जग्मतुः / जगन्थ / 93 हनृतः स्यप. / हन्तेरृदन्ताच्च स्यप इट् स्यात , गमेस्तु पे / गमिष्यति / 94 लित्पुषादे: / लितः पुषादेश्च ङः प्रत्ययः स्यात् , लुङि पे, सेरपवादः / अगमत् / फल निष्पत्तौ / 95 तृ-फल-भज-त्रपाम् / किति णादौ सेटि थपि चैत्वपूर्वलोपौ / फेलतुः फेलिथ / 96 लान्तस्य सौ नित्यं वृद्धिः / अफालीत् / चर गति-भक्षणयोः / चरति / अचारीत् / कृष विलेखने / कर्षति / 97 रः / पूर्वऋवर्णस्य अ: स्यात् / चकर्ष / 98 रारो झसे दृशाम् / दृश-मन-कृष-मृश-स्पृशतृप-तप-मपां झसे अरो रः, आरो राश्च स्यात् / 99 कृषादीनां वा / क्रष्टा कट / 1 आदन्तधातूनाम् / Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः। 73 100 प-ढोः कस्से। धातोः षढयोः कवं स्यात् से परे / प्रक्ष्यति कर्पोति / अक्राक्षीत् अकार्षीत् / 10. कृष-मृश-स्पृश-मृष-तृप-दृपां वा सिः। 102 ह-श-पान्तात् सक् ।हान्तात् शान्तात् षान्तान्नाम्युपधादनिटः सक् स्याल्लुङि, न तु दृशेः, सेरपवादः / अकृक्षत् / ग्लै म्लै हर्षक्षये / ग्लायति / म्लायति / 103 सन्ध्यक्षराणामा / अनपि / 104 आतो ण डौ। आदन्तात धातोर्णब् डौ स्यात् / जग्लौ / मम्लौ / 105 आतोऽनपि / धातोराकारस्य लोपोऽनपि क्ङिति स्वरे, सेटि थपि च / जग्लतुः / जग्लिथ जग्लाथ / 106 संयोगादेरादन्तस्याशीर्यादादौ पे एकारो वा / ग्लासात् ग्लेयात् / कै गै रै शब्दे / 107 दादेरेः / अपिदाधामागैहापिबतिसोस्थामात एत्वं स्यादाशीर्यादादौ पे / गेयात्। धेट पाने / धयति / दधौ / धेयात् / 108 धेटो लुङि ङो वा द्वित्वं च / अदधत् / 109 शा-च्छा-सा-घ्रा-धेटा वा सेलेक् / अधासीत् / अधात् / 110 उस्यालोपः / अधुः / Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / दृशिर प्रेक्षणे / 111 दृशादेः पश्यादिः। दृश-ऋ-सृ-शव--सद-पाघ्रा-ध्मा-ना-दाण-स्थानां पश्य-ऋच्छ-धौ-शीय-सीद-पिबजिघ्र-धम-मन-यच्छ-तिष्ठाः कर्तरि चतुषु / पश्यति / 112 मृजि-दृशोस्थपो वेट् / ददर्शिथ दद्रष्ठ / 113 इरितो वा / इरितो धातोर्वा ङप्रत्ययो भवति लुङि पे, सेरपवादः / 114 ऋवर्ण-दृशो. गुणः / अदर्शत् / अद्राक्षीत् / ऋ गतौ / ऋच्छति। . 115 गुणोऽति-संयोगायोः। अर्तेः, संयोगादेब्रदन्तस्य च गुणः स्याद् यकि यङि किति णादावाशीर्यादादौ च / आर आरतुः आरुः / 116 अत्यति-व्ययतीनां थपो नित्यमिट् / आरिथ / अर्ता। 117 सति-शास्त्यतिभ्यो ङो लुङि। सेरपवाद। आरत् आरतो आरन् / आरः / मु गतौ / धीवति / 118 ऋदन्तात् थपो नेट् / ससर्थ / 119 यादादौ ऋतो रिङ् पे / ङ कारो दोर्घनिवारणाय / स्त्रियात् / असरत् / स्नु गतौ / सुत्रविथ सुस्रोथ / 1 शीघ्रगतावेव धौ आदेशः। . Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' भ्वादिषु परस्मैपदिनः। 75 120 श्रिद्रुभ्यो ङो धातोश्च द्वित्वं लुङि / सेरपवादः। असुनुवत् / दुद्रु गतौ / अदुद्रुवत् / श्रु श्रवणे / ( श्रुवश्चतुषु शृ आदेशो नुप्रत्ययश्च ) 'नूपः' शृणोति शृण्वन्ति ' ओोर्वा लोपः / शृण्वः शृणुवः / शुश्रविथ शुश्रोथ / श्रूयात् / श्रोता / अश्रौषीत्। पा पाने / पिबति / पेयात् / अपात् / घा गन्धोपादाने। जिघ्रति / अघ्रासीत् अघ्रात् / ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः / धमति / अध्मासीत् / ष्ठा गतिनिवृत्तौ / तिष्ठति / स्थयात् / अस्थात् / ना अभ्यासे / मनति / अम्नासीत् / दाण दाने / यच्छति / देयात् / अदात् / स्कन्दिर गति-शोषणयोः / चस्कन्दिथ चस्कन् / चस्कन्ता / सावनिटो वृद्धिः / अस्कान्त्सीत् / अस्कदत् / तृ प्लवन-ताणयोः / तेरतुः / तेरिथ / 121 ऋत इर् / ऋकारस्येर् स्यादगुण-वृद्धिविषये / तीर्यात। 122 इटो ग्रहाम् / प्रादीनामिटो दीर्घः, न तु णादौ / 123 वृङ्-वृञ्-ऋदन्तानां वा। न तु णादौ पे सौ सीष्टादौ च / तरीता तन्तिा / अतारीत् अतारिष्टाम् / दश दशने / 124 अपि रञ्ज-दंश-सञ्ज-स्वनाम् / नस्य लोपोऽपि / 1 इट ईः स्यादिति 'क' पुस्तके पाठः / 2 (हसात् परस्य झसस्य लोपो वा सवणे झसे ). Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / दशति / ददष्ठ / दश्यात् / अदासीत् / पा सङ्गे / सनति / ससक्थ / सन्यात् / असाहीत् / .. कित रोगापनयने संशये च / / 125 गुब्भ्यः / गुप्-तिज्-कित्-बध्-मान्-दान्-शान्भ्यः स्वार्थे स प्रत्ययः स्याद् धातोश्च द्वित्वम् / 126 यः से / पूर्वस्यात इत् स्यात् से / चिकित्सति / चिकित्सांचक्रे / चिकित्स्यात् / अचिकित्सीत् / पल पतने / पतति / पेततुः / पेतिथ / पतिता / 127 पतेर्डे पुम् / अपप्तत् / भ्रमु चरने / 128 शमां दी? ये। भ्राम्यति भ्रमति / 129 फण-राजु-भ्रातृ-भ्रातृ-भलाश-स्यमु-स्वनजृष-भ्रमु-त्रसाम् / एत्वपूर्वलोपोवा। भ्रमतुः बभ्रमतुः / अभ्रमीत् / टुवम् उद्गिरणे / वमति / वम एत्व-पूर्वलोपौ वेति केचित् / वेमतुः ववमतुः / अवमोत् / स्वन शब्दे / स्वनति / स्पेनतुः सस्वनतुः / स्वेनिथ सस्वनिथ / अस्वानीत् अस्वनीत् / / वस निवासे / वसति / 130 णवादौ पूर्वस्य / यजादीनां ग्रहादीनां च पूर्वस्य संप्रसारणं स्याद् णवादो। 131 य-व-राणामिदुदृतः / यथासङ्ख्यम् / सस्वरस्य संप्रसारणम् / दीर्वस्य दीर्घः, हस्वस्य हूस्वः / उवास / Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु परस्मैपदिनः / 132 यजां य-व-राणां कृतः संप्रसारणं किति / यजादीनां संप्रसारणं स्यात् किति / यजिर्वपिर्वहिश्चैव वेश्-व्येनौ हयतिः स्वपिः / वदि-वसी श्वयतिर्वक्तिरेकादश यजादयः॥ 1 // 133 घसादेः षः / घसि-शासि-वसीनां सस्य षः स्यात् निमित्ते सति / ऊषुः उवसिथ उवस्थ / उष्यात् / 134 सस्तोऽनपि / सस्य तोऽनपि से / वत्स्यति / अवात्सीत् / रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च / रोहति / रुरोह होहिथ / 135 ढि हो लोपो दीर्घश्च / ढे परे ढस्य लोपः स्यात् चानृतो दीर्घः स्यात् / रोढा / अरुक्षत् / / . मिह सेचने। मेहति / मिह्यात् / मेढा / अमिक्षत् ।क्षि क्षये / क्षयति / चिक्षाय चिक्षेयं चिक्षयिथ / क्षेता। अक्षर्षत् / दह भस्मीकरणे / देहिथ ददग्ध / धक्ष्यति / अधीक्षीत् अदाग्धाम् / श्युतिर क्षरणे / श्योतति। अश्च्योतित् अश्च्युतत् / ईj ईर्ष्यायाम् / फुल्ल विकसने / कुथि हिंसा-संक्लेशनयोः / पिधु गत्याम् / खादृ भक्षणे / . उख गतौ / 136. असवर्णे स्वरे पूर्वस्येवर्णोवर्णयोरियुवौ / उवोख / औखीत् / Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / __णद अव्यक्ते शब्दे / नेदतुः / वद व्यक्तायां वाचि / उवाद उदतुः उवदिथ / अवादीत् / ध्यै चिन्तायाम्। 'ध्यायति / दध्यौ / अध्यासीत् / वृषु सेचने / णिदि कुत्सायाम् / चदि आह्लादने / क्लिदि परिदेवने / * चिक्लिन्द / तप संतापे / सृप्ल गतौ। टुओश्विइर् गति-वृद्धयोः / श्वयति / 137 श्वयतेर्णादौ संप्रसारणं वा ततो. द्वित्वम् / शुशाव शुशुवतुः / शुशविथ / शिवाय शिश्चियतुः / शिश्वयिथ / शूयात् / श्वयिता / अश्वयीत् / 138 श्वयतेरितो लोपो ङे / अश्वत् अश्वन् अश्वः / 139 श्वयते वा द्वित्वं एरलोपः / अशिश्चियत् अशिश्वियः। जि अदने। निजेम जिजेमिथ। अजेमीत् / घस्ल अदने / घसति / नघास जक्षतुः नक्षुः / जवसिय जघस्थ / घस्ता / वत्स्यति / अघत्स्यत् / अवसत् / . इति परस्मैपदिनः। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु आत्मनेपदिनः / अथारमनेपदिनः। एध वृद्धौ . / एधते। 140 आदाथ ईः / अतः परस्यात आथश्चात ईर्भवति / एधेते / एधेयाताम् / एधताम् / ऐधत / 141 आमो भ्वसो कर्तरि / एधांचक्रे एधाम्बभूव एधामास / एधिषीष्ट एधिषीयास्तां एधिषीरन् / / 142 नामिनोऽचतुर्णा धो ढः / नाम्यन्ताद् धातोः परस्य सीध्वं-लुङ्-लिटां धस्य दः / 143 सेटो हलाद् वा / एधिषीढ़ एधिषीध्वं / एधिता। एधिष्यते / ऐधिष्यत / ऐधीष्ट ऐधिषाताम् ऐधिषत / 44 वे सिलोपः / ऐधिदम् / / अय गती। 145 अयतो प्रादे रेफ़स्य लत्वम् / प्लायते पलायते / अयांचक्र। आयिष्ट। श्लोक संघाते / शुश्लोके / मद तृप्तियोगे / कमु कान्तौ / 146 कमेः स्वार्थे जिङनपि तु वा / कामयते / कामयाञ्चके / चकमे / कामयिषीष्ट कमिषीष्ट / 147 ओरङ द्विश्च / ज्यन्ताद् धातोः कर्तरि अङ् लुङि धातोश्च द्वित्वम् / सेरपवादः / 148 बेः / अनपि ओर्लोपो न तु इडामन्ताल्वाय्येल्विष्णुषु। . 1 आते-आता-आथे-आथां प्रत्ययानाम् / Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / सिद्धान्तरात्नका 149 अङि लघौ हस्व उपधायाः / अङि सत्युपधाया इस्वो भवति पूर्वस्यातो लघुनि धात्वक्षरे इकारः / / ' 150 लघोर्दीर्घः / अङि सति पूर्वस्य लघोर्दी? भवति लघुनि धात्वक्षरे परे / अचीकमत / ओरभावे 151 कमेरङ् द्वित्वं च / अचकमत / द्यत दीप्तौ / द्योतते / : 152 छुतेः. पूर्वस्य संप्रसारणम् / विद्युते / 153 द्युतादिभ्यो लुङि वा पम् / पे ङः / अद्योतिष्ट / अद्युतत् / जिमिदा स्नेहने / रुच शुभ दीप्तौ / अरोचिष्ट अरुचत् / क्षुभ संचलने / स्रंसु ध्वंसु. भ्रंसु अधःपतने / अध्वसत् / अध्वंसिष्ट / , वृतु वर्तने / वर्तते / 154 तृतादिभ्यः स्य-सयोर्वा पं पेनिट्त्वं च / वय॑ति वर्तिष्यते / अवय॑त् अवर्तिष्यत / अवर्तिष्ट अवृतत् / वृधु वृद्धौ / स्यन्दू प्रस्त्रवणे। शधु शब्सकुत्सायाम् / कृपू सामर्थ्ये / 155 कृपो रो लः / रस्य लः, ऋकारस्य च लकारः / कल्पते / 156 सि-स्योः। सि-स्योरनिटोरुपधाया गुणो न स्यात् / क्लप्सीष्ट / Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्वादिषु आत्मनेपदिनः / 157 कृपेस्तादौ पं वा, पेनिट्वं च / कल्प्ता / आति कल्पिता कल्ता / अकल्पस्यत् अकल्मिष्यत अकल्पस्यत / अकल्पिष्ट अक्लप्त / जे अक्लपत् / एते द्युतादयो* वृतादयश्च / व्यथ दुःख-सञ्चलनयोः / 158 व्यथेादौ पूर्वस्य यस्य इः / विव्यथे 1 / रसु क्रीडायाम् / ताय सन्तानपालनयोः / 159 दीप-जन-बुध-पूरि-तायि-प्यायिभ्यो वा इण् तनि कर्तरि / [ सेरपवादः ] 160 लुक् / इणः परस्य तनो लुक् / अतायि अतायिष्ट / षह मर्षणे। 161 इषु-सह-लुभ-रिष-रुषामनपि तस्येड् वा / 162 सहि-वहोरोदवर्णस्य ढलोपे सति / सहिता सोढा२। ईक्ष दर्शनाङ्कनयोः। चेष्ट चेष्टायाम् / त्रपूष् लज्जायाम् 3 / क्षमूषु सहने 4 / टुभ्रातृ टुभ्राश टुभ्ला दीप्तौ५ / घट चेष्टायाम् / ईह चेष्टायाम् 6 / ऊह वितर्के 7 / पेट सेवने / * श्विता-निविदा-निक्ष्विदा-घुट रुट-लुट-लुठ-गभ-तुभ-सम्मोऽपि द्युतादयः / 1 अव्यथिष्ट " आतोऽन्तोऽदनतः " आत्मनेपदस्यानकारादन्तोऽद् भवति अव्यथिषत / 2 सेहे / असहिष्ट / 3 त्रेपे / त्रपिता त्रप्ता ! 4 चक्षमिषे चक्षसे / अक्षमिष्ट अक्षस्त / 5 भेजे बभ्राजे / 6 ऐहिष्ट / 7 ऊहाञ्चके। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / मिङ् ईषद्धसने 1 / डीङ् विहायसां गतौ 2 / मुङ् प्लुङ् च्युङ् गतौ / लोक दर्शने / शकि शङ्कायाम् 3 / अकि लक्षणे 4 / औक गतौ / लघि भोजननिवृत्तौ / बाध विलोडने 5 / वदि अभिवादन-स्तुत्योः / मदि मद-स्वप्न-कान्ति-गतिषु / स्पदि किश्चिञ्चलने। मुद हर्षे 6 / यती प्रयत्ने 7 / बित्वरा संभ्रमे / / * इत्यात्मनेपदिनः / हरणे / हरात अथोभयपदिनः। राजृ दीप्तौ / राजति राजते / अराजीत् अराजिष्टाम् 9 / खनु खनने / 163 जन-सन-खनामात्वमनिटि से कृिति झसे हे च क्छौ, यादौ किति वा / खायात् खन्यात् 10 / हृञ् हरणे / हरति हरते 11 / / 164 उः / ऋवर्णस्य सि-स्योरनिटोन गुणः / हृषीष्ट / 165 लोपो हस्वाज्झसे / हस्वादुत्तरस्य सेर्लोपो झसे / अहृत। / 1 सिष्मिये / अस्मेष्ट। 2 अडयिष्ट / 3 शशङ्के। 1 आनङ्के / आङ्किष्ट / 5 बबाधे / बाधिषीष्ट / 6 मुमुदे। 7 येते / 8 तत्वरे / अत्वरिष्ट / 9 रराजे रेजे। अरानिष्ट / 10 अखानीत् अखनीत् अखनिष्ट। 11 जहर्थ / ह्रियात् / अहार्षीत् / नहे। सि-स्योरनिटापो से / Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भ्वादिषूभयपदिनः / वेञ् तन्तुसंताने। 166 वेस्रो णादौ न संप्रसारणम् / ववौ ववे 1 / 167 वेत्रो वा वय् णादौ / उवाय / 168 ग्रहां कृिति च / ग्रहि-ज्या-वयि-व्यधि-वष्टि-वृश्चतिपृच्छति-विचति-भृज्जतीनां संप्रसारणं किति ङिति च / उयतुः उयुः 2 / 169 वयो यस्य किति लिटि वो वा। ऊवतुः उवुः३। व्येन् संवरणे / [व्येयो लिटि नात्वम् / विव्याय विव्ययिथ ] हेब स्पर्धायां शब्दे च / 170 द्विरुक्तस्य ह्वयतेः संप्रसारणम् / जुहाव 4 / 171 लिपि-सिचि-हयतीनां ङो लुङि, वाऽऽति / अहत् अहत अह्वास्त / . लष कान्तौ५ / रञ्ज रागे / यज देवपूनायाम् 7 / शप आक्रोशे / भृञ् भरणे 9 / धृ धारणे। श्रिब् सेवायाम् 10 // 1 वविथ क्वाथ / वविषे वविढे वविध्वे / 2 उवयिथ ऊये उयाते / 3 वायात्। वासीष्ट / अवासीत् अवास्त / 4 जुहविथ नुहोय जुहुवे / स्यात् / 5 लष्यति लषति / अलाषीत् अलषीत् अलषिष्ट / 6 रजति / ररञ्ज। अराशीत् अरङ्ग / 7 इयाज इजतः ई। 8 शेपे / 9 बमर्थ बभूव / भृषीष्ट / अभृत / 10 शिश्रिये / श्रीयात् / अशिश्रियत् / Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / . णी प्रापणे 1 / भज सेवायाम् 2 / टुयावृ याच्मायाम् / डुवा बीज-तन्तुसंताने / डुपचष् पाके 3 / वह प्रापणे 4 / पचं समवाये। मुधिर् बोधने 5 / इत्युभयपदिनः / इति भ्वादयः। अथादादिषु परस्मैपदिनः। अद भक्षणे / 172 अदादेखें / अदादेः परस्यापो लुक् / अत्ति / अद्यात् / अत्तु / 173 असाद्धिहेः / झसाद्धकाराच्च परस्य हेधिः स्यात् / अद्धि अत्तात् / 174 अदेदिप-सिपोरट् / अदः परयोदिप्-सिपोरट् स्यात् / आदत् / आदः / .. 175 सि-सयोरदेघस्लु, लिटि तु वा / जघास आद 6 / 1 अनैषीत् अनेष्ट 2 भेनुः बभजुः भेनिथ बभक्थ भेजे / अमाक्षीत् अभक्त / 3 पेचे / अपाक्षीत् अपक्त / 4 उवाह उहे / वोढा / 5 अबुधत् अबोधीत् अबोधीः अबोधिष्ट / 6 जक्षतुः जघसिथ जघस्थ आदिथ / अघप्सत् / Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदादिषु परस्मैपदिनः। मा माने। . 176 आदन्ताद् द्विषो लङोऽन उस् वा / अमुः अमान् 1 / ख्या प्रकथने 2 / 177 अस्यति-वक्ति-ख्यातिभ्यो ङो लुङि सेरपवादः। अख्यत् / वश कान्तौ 3 / 178 दिस्योईसात् / हसान्तात्परयोर्दिप्-सिपोर्लोपः / अवट अवड् / हन् हिंसा-गत्योः / हन्ति / 179 लोपस्त्वनुदात्त-तनाम् / अनुदात्तानां जमान्तानां 4 तनादीनां 5 वनतेश्च 6 ञमस्य लोपो भवति किति झसे हकारे च / हतः / नन्ति / हन्यात् / हन्तु हतात् हताम् नन्तु / 180 जोधि-शाधि / हन्ते हिरस्तेरेधिः शास्तेः शाधिनिपात्यते हिविषये / जहि / 181 पूर्वाद्धन्तेर्हस्य घः / जघान जघनिथ जघन्थ / 182 हनो लुङ्-लिङोर्वधः, लुङयाति वा / वध्यात् / 1 ममौ / अमासीत् अमासिषुः / 2 चख्यौ / ख्येयात् ख्यायात्। 3 कान्तिरिच्छा / वष्टि उष्टः उशन्ति / उड्।ि उवाश ऊशतुः उवशिथ / अवाशीत् अवशीत् / 4 यमि-रमि-नमिगमि-हनि-मनीनाम् / 5 तनु-षणु-क्षिण-क्षणु-ऋणु-तृणुघृणु-वनु-मननाम् / 6 वन संभक्तौ इत्यस्य ग्रहणम् / Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 183 जनि-वध्योर्न वृद्धिः / अवधीत् 1 / रु शब्दे / 184 ओरौ / उकारस्याद्विरुक्तस्यौकारः स्याल्लुकि पिति स्मि ! रौति / 185 तु-रु-स्तुभ्योऽद्विरुक्तेभ्यो हसादीनां चतुर्णामी वा / रवीति रुतः रुवीतः रुवन्ति 2 / णु स्तृतौ / नौति 3 / इण् गतौ / एति / 186 इणः कृिति स्वरे यः / यन्ति / इयाय / 187 इणः किति णादौ पूर्वस्य दीर्घः / ईयतुः / इययिथ इयेथ। 188 इणः सिलोपे गाः / अगात् 4 / इक् स्मरणे / (इङिकावध्युपसर्गतो न व्यभिचरतः) अध्येति५। - 189 इण्वदिकः / अध्यगात् / विद ज्ञाने / वेत्ति / 190 विदो नवानां त्यादीनां णबादिर्नवको वा / वेद / विदतुः विदुः / 1 जघ्नतुः / हनिष्यति / 2 रुराव रुरविथ / रविता / अरावीत् / 3 नुतः नुवन्ति / अनावीत् / 4 इतः / अयानि / ऐत् ऐः आयम् ऐव / एता / अगातां अगुः / 5 यन्ति / श्रीहेमचन्द्राचार्या इकः किङति स्वरे चतुर्पु वा यकारमिच्छन्ति, तेन तेषां मते यन्ति इयन्ति इति रूपद्वयम् / अध्येता / 6 वित्तः विदन्ति / वेद इत्यादौ परोक्षार्थत्वाभावान्न द्विः / वेत्थ / Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 87 अदादिषु परस्मैपदिनः / 191 वेत्तेर्लोव्याम्गुणाभावः करोत्यनुप्रयोगश्च वा। विदांकरोतु विदांकुरुतात् विदांकुर्वन्तु 1 / अवेत् अवेद् / 192 दः सः। पदान्ते दस्य सो वा सिपि / अवेः अवेत् / विवेद / 193 आमि विदेने गुणः / विदांचकार 2 / अस् भुवि / अस्ति / 194 नमसोऽस्य / प्रत्ययस्य नमोऽस्तेश्चाकारस्य लोपो भवति ङिति / स्तः सन्ति / 195 सि सः / अस्तेः सस्य लोपः स्यात् सिपि / असि स्थः स्थ। 196 अस्तेरीट् / अस्तेर्दिप्-सिपोरीट् स्यात् / आसीत्। 197 अस्तेरनपि भूः / बभूवेत्यादि / मृजूष शुद्धौ / 198 मृजेटेद्धिः / किङति स्वरे वा / मार्टि मृष्टः मृजन्ति मानन्ति 4 / वच परिभाषणे 5 / ( नहि वचिरन्तिपरः ) / / 199 वचेरुम् / अवोचत् / रुदिर अश्रुविमोचने। - 1 * तनादेरुप् कर्तरि चतुर्पु ' ' ङित्यदुः' 'कुरु-छुरोर्न दीर्घः ' ' ओर्वा हेः ' इति सूत्राणि पश्यत स्वादि-तनादिगणे / 2 वेत्तु / अवेदीत् / 3 स्यात / सन्तु। आसीः। 4 मृढि / अमार्ट अमाई / ममार्निथ ममार्छ / मानिता मार्टा / 5 वक्तः / उवाच उवचिथ उवक्थ / Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / . 200 रुदादेश्वतुर्णा बसादेः / रुदादेः परस्य हकारवसादेः प्रत्ययस्येट् स्यात् चतुषु / रोदिति रुदितः / .. ... 201 रुदादेर्दिस्योरीडटौ। अरोंदीत् अरोदत् 1 / बिष्वप् शये / स्वपिति 2 / श्वस् प्राणने 3 / अन् प्राणने / 202 प्रादे रेफादनितेनस्य णत्वम् / प्राणिति 4 / जक्ष भक्षणे / / 203 जक्षादेरन्तोऽदन उस् / नक्ष-जागृ-दरिद्रा-शास्चकासृभ्यः परस्यान्तोऽत् , अन उस् स्यात् / जक्षति / अजक्षुः 5 ( इति रुदादयः ) / जागृ निद्राक्षये 6 / . 204 जागर्तेर्वीण-णब्-डिद्भिन्नेषु गुणः / जनागरतुः / जागर्यात् / अजागरीत् / दरिद्रा दुर्गतौ / 205 दरिद्रातेरिदालोपश्च ङिति / दरिद्रातेरातो लोपो ङिति स्वरे, इकारश्च ङिति हसे / दरिद्रितः / 1 रुरोद। रोदिता / अरुदत् अरोदीत् / 2 सुष्वाप सुष्वपिय सुष्वप्थ / स्वप्ता / 3 अश्वसीत् / 4 प्राण / प्राणीत् / 5 जक्षिति जक्षितः / अनक्षीत् अनक्षत् / जनक्ष / जक्षिष्यति अनक्षीत् / 6 जागर्ति जाग्रति / " उसि गुणः " नाम्यन्तस्य धातोर्गुणः स्यादन्प्रत्ययादेशे उसि परे। अनागरुः / नागराञ्चक्रतुः। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदादिषु परस्मैपादनः / 206 दरिद्रातेरनप्यालोपः, सौ वा, णचुणनिट्सयुट्सु न / ददरिद्रौ / अदरिद्रीत् / अदरिद्रासीत् 1 / शासु अनुशिष्टौ / शास्ति / 207 शासेरिः / शासेरातो किति हसे डे च इद् भवति / शिष्टः 2 / ___ 208 दिपि सस्य तः, सिपि वा / धातोः / अशात् अशाद् / अशात् अशाद् अशाः / अशिषत् / चकास दीप्तौ / 209 धे सलोपः। चकाधि 3 / ई-ची गतौ / एति / ऐषीत् 4 / या प्रापणे / वा गतिगन्धनयोः 5 / रा दान / ला ग्रहणे 6 / दाप लवने 7 / श्रा पाके। द्रा कुत्सायाम् / ष्णा शौचे / पा रक्षणे 8 / भा दीप्तौ 9 / इति परस्मैपदिनः / 1 दरिद्रति / दरिदिहि / अदरिद्र'त्-द् / ददरिद्रतुः दरिद्रांचकार / दरिद्रिता / 2 शासति / शिष्यात् / शाधि / शशास / शिष्यात् / शासिता / 3 चकास्ति / चकासांचकार / अचकासीत् / 4 इयन्ति / अयाञ्चकार एता / वियन्ति / विवाय / 5 अवान् अवुः / 6 ललौ / अलासीत् अलासिष्टाम् / 7 ददौ / दायात् / अदासीत् / 8 पाति / पपौ। पायात् / अपासीत् / 9 अमान् अभुः / बभौ / Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / अथादादिष्वात्मनेपदिनः। चक्षिा व्यक्तायां वाचि / चष्टे / चक्षीत। चष्टाम् / अंचष्ट / 210 चक्षिोऽनपि ख्या-कशानो, णादौ तु वा / चख्यौ चख्ये 2 / चक्शौ चक्शे। चचक्षे / अख्यत् अक्शासीत् अक्शास्त / ईड् स्तुतौ / 211 ईडीशिभ्यां स-ध्वयोरिद, न तु लङि / ईडिपे ईडिध्वे 3 / ईश ऐश्वयें।, ईशिषे ईशिध्वे 4 / धूङ् प्राणिप्रसवे / 212 सुवो न गुणश्चतुषु / सुवै सुवावहै सुवामहै 5 / शीङ स्वप्ने / 213 शोडो गुणश्चतुषु / शेते / शयाते / 214 शीङोऽतो रुट् / शेरते 6 / इङ अध्ययने अधिपूर्वः 7 / 1 चक्षाते चक्षते चक्षे / चक्षाताम् चक्ष्व चडढ्वम् / 2 मित्त्वादुभयपदम् / ख्येयात् ख्यायात् / अख्यत / 3 ईट्टे ईडते / ऐट्ट ऐड्डम् / ईडांचक्रे / ईडिता / ऐडिष्ट / 4 ऐष्ट / ईशिषीष्ट / ईशिष्यते / 5 "नानप्योर्वः” उनपि विषये उवर्णस्य वत्वं न सुषुवे सुषुविषे / सविषीष्ट सोषीष्ट / सदिष्यते सोष्यते / असविष्ट असोष्ट / 6 शये। शयीत / शिष्ये / शयिता / अशयिष्ट / 7 अधीते अधीयाते अधीयते / अधीयीत / अध्ययै / अध्यैत / प्रथम इयादेशः ततो अटौ अध्ययाताम् / ". आतोsन्तोऽदनतः” अध्यैयत / Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदादिषु आत्मनेपदिनः। 215 इको णादौ गाङ् / अधिनगे / अध्येषीष्ट / 216 इडो वा गीर्लुङ्लङोर्गुणाभावश्च / अध्यगीष्यत अध्यैष्यत / अध्यगीष्ट अध्यैष्ट / ईर गतौ कम्पने च 1 / आस उपवेशने 2 / इत्यात्मनेपदिनः। अथादादिषूभयपदिनः। द्विष अप्रीतौ / द्वेष्टि द्विष्टे 3 / ब्रून व्यक्तायां वाचि / 217 अबादावी पिति स्मि। ब्रुव ईप्रत्ययः स्यात् पिति स्मि अबादौ / ब्रवीति / 218 ब्रुव आहश्च पश्चानाम् ।ब्रुवः परेषां तिबादीनां पञ्चानां गवादयः पञ्चादेशा वा स्युः, ब्रुव आहश्च / आह आहतुः आहुः / ____ 219 तस्थे / आहो हस्य तः स्यात् थे परे। आत्थ आहथुः। 1 ईत्तै / ऐ िऐमहि / ईराञ्चके / ईरिषीष्ट ईरिष्यते / ऐरिषत / 2 आस्ते आस्से 'धे सलोपः'. आध्वे / आस्ताम् आस्स्व / आस्त आसि / आसांचक्रे / आसिषीष्ट / आसिष्ट आसिषि / वम आच्छादने / वस्ते वध्वे / वसताम्। अवस्थाः / ववसे। वसितासे / अवसिष्ट / 3 द्विषन्ति द्वेक्षि। द्विढि द्वेषाणि / अद्वेट्-ड अद्विषुः अद्विषन् / दिद्वेष / द्वेक्ष्यति / अद्विक्षत् / द्विषाते द्विक्षे / द्वि, द्वेषै / दिद्विषे / द्विक्षीष्ट / द्वेष्टा / अद्विक्षत अद्विक्षन्त / Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 220 ब्रुबोऽनपि वच् / उवाच ऊचे / अवोचत 1 / ष्टुञ् स्तुतौ। 221 स्तु-सु-धृबां पे सेरिट् / अस्तावीत् अस्तोष्ट२ / दिह उपचये। 222 दुह-दिह-लिह-गुहूभ्यः सको लुग्वा वकारतवर्गयोराति / अधिक्षत अदिग्ध 3 / दुह प्रपूरणे 4 / लिह आस्वादने 5 / . . ऊर्णञ् आच्छादने / 223 जोतेर्वा वृद्धिहसादौ पिति चतुर्पा / ऊौति ऊर्णतः उणुवन्ति / ऊर्गुते / ऊर्गुयात् / उdवीत / ऊर्णोतु ऊोतु / अणुहि / __1 ब्रूतः ब्रुवन्ति / ब्रवाणि / अब्रवीत् / ब्रूते / ब्रवै। अब्रूत / ऊचतुः उवचिथ उवक्थ / उच्यात् / अवक्ष्यत् / 'वचेरुम्' अवोचत् / वक्षीष्ट / 2 स्तौति स्तवीति स्तुवन्ति स्तुथ: स्तुवीथः / स्तोतु स्तवीतु स्तुहि स्तुवीहि स्तवानि / अस्तीत् अस्तवीद् अस्तवम् / तुष्टाव तुष्टविथ तुष्टोथ / स्तुयात् / स्तोता। स्तुते स्तुवीते स्तुवते / स्तुवीत / तुष्टुवे / स्तोषीष्ट / 3 देग्धि दिग्धः धेसि / दिग्धि देहाव / दिदेहिय / धेक्ष्यति / अधिक्षत् / दिग्धे धिक्षे / धिक्ष्व देहै / अदिहत / दिदिहे / धिक्षीष्ट / 4 अधुक्षत् / अधुक्षत अदुग्ध / 5 लेढि लीढः लेक्षि / अलिक्षत् / लीढे लीढ़े / लिक्षीष्ट / लेढा / लेक्ष्यते / अलिक्षत अलीढ। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदादिषूभयपदिनः / 224 ऊर्णोतेर्गुणो दिस्योः। वृद्धेरपवादः / और्णोत् / और्णोः / 225 ऊोतेराम् न। 226 स्वरादेः परः / स्वरादेर्धातोद्वितीयोऽवयवोऽद्विरुक्तः सस्वरो द्विर्भवति / 227 स्वरात्पराः संयोगादयो वनदरा द्विन। ऊर्गुनाव / उर्जुनुवतुः / 228 ऊोतेरिडादिप्रत्ययो वा ङित् / ऊर्जुनु विथ नविथ / ऊर्णविता ऊर्णविता। औMवीत् औMविष्टाम् / / ___ 229 ऊर्णोतेर्वा वृद्धिः सौ पे / पक्षे वा गुणः। और्णावीत् और्णाविष्टाम् और्णवीत् औणु विष्ट 1 / इत्युभयपदिनः / इत्यदादयः। अथ ह्वादिषु परस्मैपदिनः। हु दानादनयोः। 230 हादेविश्च / हुरित्यादेरुत्पन्नस्यापो लुक् , धातोश्च द्वित्वम् / जुहोति जुहुतः / - 231 द्वेः। द्विरुक्तात्परस्यान्तोऽत् स्यात् / जुहुति / 1 ऊर्णोति / ऊर्जुनुवे ऊर्जुनुविरे / और्णविष्ट / Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 232 होधिः / जुहुधि / 233 अन उस् / द्विरुक्तादन उस् स्यात् / (उसि गुणः) अजुहवुः / 234 भी-ही-भृ-हुवामाम् वा स च लुग्वत् / जुहवाञ्चकार जुहाव / ' ये ' हूयात् / होता / होष्यति / अहौषीत् / . बिभी भये / बिभेति / 235 भी-हाकोंरिद् वा डिति हसे / बिभितः बिभीतः बिभ्यति। विभयांचकार बिभाय अभैषीत् 1 / पृ पालन-पूरणयोः / 236 ऋमोरिः पूर्वस्य। ऋप्रोः पूर्वस्यात इत्स्याल्लुकि 2 / पिपति। 237 पोरुर् / पवर्गात् वकाराच्च ऋत उर् स्यात्।। पिपूर्तः पिपुरति। पिपूर्यात् / पिपर्तु पिपूर्तात् पिपूर्ताम् पिपुरतु / 'दिस्योर्हसात् ' अपिपः / पपार पपरतुः पपरिथ। पूर्यात् / परिता परीता। परिष्यति परीष्यति / अपारीत् / इस्वान्तोऽप्ययम्। अपार्षीत् 4 / ओहाक् त्यागे / जहाति / 238 देस्तौ / द्विरुक्तस्य धातोरातो लोपो डिति स्वरे, ईकारश्च ङिति हसे / जहितः जहीतः। 1 विभीहि बिभिहि / अबिभेत्-द् अचिभयुः / विभयिय बिभेष बिभीव / भीयात् / भेता / अभैषीः / 2 पृट इत्युभयोरपि ग्रहणम् / 3 अगुणवृद्धिविषये / 4 पिपतः पिप्रति / अपिपरुः / पपर्थ / प्रियात् / परिष्यति / अपार्टाम् / Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हादिषु परस्मैपदिनः। 95 239 जहातेदादावालोपः / जह्यात् / 240 ईर्वा हो। जहातेही परे ईर्वा स्यात् / जहाहि नहीहि जहिहि१ / ऋ गतौ / - 241 असवर्णे स्वरे पूर्वस्येव!वर्णयोरियुवौ / इयति / इय॒तः / इयूति 2 / ही लज्जायाम् / निरुति 3 / इति परस्मैपदिनः। अथात्मनेपदिनः। ओहाङ् गतौ। 242 भृयां लुकि / डुभृञ्-हाङ्-माडां पूर्वस्यात् इत् लुकि / निहीते 4 / माङ् माने। मिमीते५। इति आत्मनेपदिनः। - 1 जहति / हेयात्। अहासीत् / 2 इयहि / इयराणि। ऐयः ऐयताम् ऐयरुः ऐयरम् / आर 'गुणोऽतिसयोगाद्योः' आरतुः -- आरिथ आरिव / अर्यात् / अर्ता / अरिष्यति / आरत् / 3 निहियति / जिहीयात् / जियाणि / अजिहेत्-द् अजिहृयुः अजिहूयम् / निहूयाञ्चकार निहाय निहियतुः जिहूयिय जिहेथ निहियिव / हीयात् / हेता। अह्रषीत् / 4 जिहते / निहीत / जिहीस्व जिहै। अजिहाताम् अनिहि। जहे / अहास्त। 5 अमिमीत अमिमत / ममे / माता / अमास्त अमासाताम् / Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / अथोभयपदिनः। डुभृञ् धारण-पोषणयोः। बिभर्ति 1 / डुदाञ् दाने। ददाति / 243 दादेः। द्विरुक्तानामपिदा-धामातो लोपः स्यात् ङिति / दत्तः / ___ 244 दां हौ 2 / अपिद्दा-धामेत्वं पूर्वस्य च लोपो हौ / देहि। .. 245 अपिद्दा-धा-स्थामात इत् सौ सेङित्वमाति [न तु दिङ)। अदित 3 / डुधाब् धारण-पोषणयोः / दधाति / 246 पूर्वस्य डिति झसे धः। झमान्तस्य पूर्वस्य दस्य धः स्यात् ङिति झसे / धत्तः 4 / णिजिर शौच-पोषणयोः / 247 निजां गुणः। निज-विन--विषां पूर्वस्य गुणः स्याल्लुकि / नेनेक्ति / ___ 1 विभ्रति। बिभूयात्। बिभराणि / अबिभः। बिभराञ्चकार / बमार बमर्थ बभूव / भ्रियात् / मरिष्यति अभार्षीत्। विभृते बिभ्रते / बिभ्रीत। बिमरै / अबिभ्रि / बिभराञ्चक्रे बभ्रे / भृषीष्ट / अभृत / 2 बहुवचनं दाण-देङ्-दो-धेटां ग्रहणार्थमुपन्यस्तम् / 3 ददति / अददाः / ददिथ ददाथ / देयात् / अदात् / दत्ते दद्धे / ददावहै / अददाताम् / ददे / 4 धेयात् / धास्यन्ति / अधात / धत्ते दधते / दधे अधित / Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवादिषु परस्मैपदिनः / 248 द्वेः स्वरेऽपि लोपधाया गुणः / नेनिजानि / नेनिजै 1 / विजिर पृथग्भावे / वेवेक्ति / वेविजै 2 / विष्ल व्याप्तौ / वेवेष्टि / विवेष / अविषत् 3 / इत्युभयपदिनः। इति द्वादयः / अथ दिवादिषु परस्मैपदिनः / दिवु क्रीडादौ 4 / 249 दिवादेर्यः / कर्तरि चतुषु / दीव्यति 5 / षि सन्तुसन्ताने / सीव्यति 6 / नृती गात्र विक्षेपे / 250 नृत-तृद-चूत-द-कृद्भयोऽसेः सादेरिड् वा। 1 नेनेति / अनेनिजम् / नेक्ष्यति / अनैक्षीत् अनिजत् / नेनिक्ते नैनि नाते / नेनिजीत / निनिजे / निक्षीष्ट / अनिक्त / 2 ववेक्षि / वेविग्धि / अवेवेक-ग् / अवेक्ष्यत् / अवैक्षीत् अविनत् / 3 वेवेति / वेविड्ढि वेविषाव / विवेषिथ / वेष्टा / वेक्ष्यति / वेविष्टे / विविषे / विक्षीष्ट / आति तु सक् अविक्षत / . आदिशब्दग्रहणाद् विजिगीषा-व्यवहार-द्युति-स्तुति-मोदमद-इच्छा-स्वप्न-गत्यर्थेष्वपि दिवुधातुः / 5 ' य्वोर्वि हसे' अदीव्यत्-द् / दिदेव / अदेवीत् / 6 ( सिवु-स्वञ्जादेरड्व्यवधाने वा षः ) न्यषेवीत् न्यसेवीत् / 7 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम्। नतिष्यति नय॑ति 1 / त्रसी उद्वेगे / त्रस्यति त्रसति 2 / लिए प्रेरणे 3 / जषिर् वयोहानौ / जीर्यति 4 / शो तनूकरणे / 251 य्योः / यप्रत्यये धातोरोतो लोपः स्यात् 5 / छो छेदने / छ्यति / षो अन्तकर्मणि / स्यति 6 / दो अवखंडने / यति 7 / साध संसिद्धौ 8 / व्यध ताडने / विध्यति 9 / पुष पृष्टौ 10 / तुष तुष्टौ / शुष शोषणे / दुष वैकृत्ये / श्लिष आलिङ्गने 11 / / 252 श्लिषेरालिङ्गने सक् लुङि / ङोऽपवादः / अश्लिक्षत्कन्यां चैत्रः / अनालिङ्गने तु समश्लिषज्जतु काष्ठम्। बिष्विदा 1 अनर्तीत् / 2 तत्रास '' फण-राज०, सतुः तत्रसतुः / 3 अप्सीत् / 4 'ऋ-संयोगाण्णादिरकित् / जेरतुः जजरतुः / 'ऋत इर् ' जीर्यात् / 'वृङ्-वृञ् , जरीता जरिता / ' इरितो वा डः / अजरत् अमारीत् / 5 श्यति / श्येत् श्येयुः / श्यानि / शशौ शशिथ शशाथ / 'शा-छा-सा० ' अशात् अशासीत् / 6 सेयात् / 7 देयात् / अदात् / 8 साद्धा। असात्सीत् / 9 ग्रहां क्ङिति' विध्येत् / विव्याध विविधतुः / विध्यात् / व्यद्धा / अव्यात्सीत् अव्याद्धाम् / 10 पुपोष / पोष्टा / अपोक्ष्यत् / 'लित्पुषादेर्ड: ' 'अपुषत् / 11 शिश्लेष। श्लेष्टा / लेक्ष्यति / Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवादिषु परस्मैपदिनः / गावप्रक्षरणे 1 / क्रुध क्रोधे 2 / क्षुध बुमुक्षायाम् / शुष शुद्धौ / पिधु संसिद्धौ 3 / णश अदर्शने 4 / 253 मस्जि-नशोझसे नुम् / ननंष्ठ / नंष्टा / अनशत् (डे नशेरत एत्वं वा वाच्यं 5 ) / तृप प्रीणने 6 / हप गर्वे / द्रुह निघांसायाम् 7 / मुह वैचित्ये। स्निह प्रीतौ / शमु उपशमे / 254 शमां दीर्घः ये / शाम्यति 8 / तमु कासायाम् / दमु शमने। श्रम तपसि खेदे च / भ्रमु चलने 9 / क्षम् सहने 10 / क्लमु ग्लानौ 11 / मदी हर्षे ( शमादयोऽष्टौ ) / .. 1 स्विद्यति / सिष्वेद / स्वेत्ता / 2 चुक्रोध / क्रोत्स्यति / 3 सिध्यति / सिषेध / सेद्धा / अमिधत् / 1 ननाश नेशिथ नेशिव नेश्व / नशिता / नशिष्यति - 'स्वरति-सूति०' 'छशषराजादेः षः नक्ष्यति / 5 अनेशत् / इदं वार्तिकं केचिन्न मन्यन्ते / 6 ततर्प ततर्पिथ : कृषादीनां वा, तत्रप्य ततर्थ ततृपिव ततृप्व / तर्पिता त्रप्ता तर्ता / अतीत् अत्राप्सीत् अतार्सीत् अतृपत् / 7 द्रुह्यति / दुद्रोहिथ ' तथोधः / 'ढि ढो लोपो दीर्घश्च / 'द्रुहादेर्वा घः' दुद्रोढ दुद्रोग्ध दु[हिव दुद्रुव / द्रोहिष्यति. ध्रोक्ष्यति / अद्रुहत् / 8 शेमतुः / 9 ' भ्राश-म्लाश-भ्रमु० ' भ्राम्यति भ्रमति / बभ्रमतुः भ्रमतुः / 10 चक्षमिथ चक्षन्थ चक्षमिव चक्षण्व / क्षमिता क्षन्ता / अक्षमत्। 11 क्लाम्यति ‘ष्ठिवु-क्लम्वाचमा दीर्घः / क्लामति / क्लमिष्यति / Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम्। असु क्षेपणे। 255 अस्यतेस्थुक डे / आस्थत् 1 / तसु क्षये 2 / लूठ विलोडने / भ्रंशु अधःपतने 3 / कृश तनूकरणे 4 / बितृष पिपासायाम् 5 / हष तुष्टौ 6 / कुप कोपे / लुभ गायें / क्षुम संचलने / क्लिदू आर्दीभावे 7 / विमिदा स्नेहने / 256 मिदेर्गुणो ये / मेद्यति 8 / ऋधु वृद्धौ 9 / इति पुषादयः 10 / इति परस्मैपदिनः / अथ दिवादिष्वात्मनेपदिनः / पूङ प्राणिप्रसवे / सूयते 11 / दुङ् परितापे 12 / दीङ् क्षये। 1 आस आसिथ / आमिष्यत् / अस्यति-वक्ति०' आस्थताम् / 2 तेसतुः। अतसीत् अतासीत् / 3 बभ्रंशिथ / भ्रश्यात् / अभ्रंशत् / 4 कर्शिता / 5 ततर्षिय / 6 हर्षिता / 7 क्लेदिता क्लेत्ता / ( अमिदत् / 9 आय॑त् / आनर्ध / आर्धत् / 10 केचित् शमादीनां कतिपयधातूनां पुषादित्वं नेच्छन्ति, तेन तन्मते अशमीत् आर्धीत् इत्यादिरूपाणि भवन्ति। 11 सुषुवे सुषुविवहे / 'स्वरति-सूत--सूयति , सविषीष्ट सोषीष्ट / सविष्यते सोष्यते / असविष्ट असोष्ट / 12 दविषीष्ट / दविता / अदविष्ट / Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 101 दिवादिष्वात्मनेपदिनः / 257 दीडो युट क्ङितः स्वरस्य / दिदीये। 258 दीङो गुणवृद्धिविषये क्यपि चात्व / अदास्त 1 / डीङ् विहायमां गतौ 2 / बीङ् वरणे 3 / (स्वादय आदितः) / पीक पाने 3 / पीङ् प्रीतौ 5 / जनी प्रादुर्भावे / ___ 259 ज्ञा-जनोर्जा / चतुषु / जायते / ' दीप-जन-बुधपूरि-तायि-प्यायिभ्यो वा इण्' / 'तनो लुक्' / अननि 6 / दीपी दीप्तौ 7 / पूरी आप्यायने 8 / तूरी गतित्वरण-हिंसनयोः। तप ऐश्वर्ये 9 / पद गतौ 10 / 260 पदेरिण तनि / अपादि / खिद दैन्ये 11 / विद . 1 दासीष्ट / दाता / दास्यते / 2 डिड्ये / डयिषीष्ट / अडयिष्ट / शकुनिरुड्डीयते / 3 वित्रिये / श्रेषीष्ट / अवेष्ट / 4 पिप्ये / पेता / अपेष्ट / 5 पिप्रिये.। अप्रेष्ट / 6 ‘गमां स्वरे , ' नोर्जः ' जज्ञे / जनिषीष्ट / जनिष्यते / अननिष्ट / श्रीवर्द्धमानस्य सर्वज्ञत्वमननि, अजनिष्ट वा। 7 दीप्यते / दीपिता / अदीपि अदीपिष्ट / 8 पूर्यामहै। पुपूरे / अपूरि अपरिष्ट / 9 तेपे / तप्सीष्ट / अतप्त / चन्द्रगुप्तोऽतप्त / 10 पद्यते / पेदे / पत्तीष्ट / 11 खिद्यते / चिखिदे / खेत्ता / अखित्त / Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 सिद्धान्तर रिनका व्याकरणम् / सत्तायाम् 1 / बुध अवगमने 2 / युध प्रहारे / मन ज्ञाने 3 // युज समाधौ 4 / सृज विसर्गे 5 / लिश अल्पीभावे 6 / इति आत्मनेपदिनः। अथ दिवादिषूभयपदिनः। - मृष तितिक्षायामू / मृष्यति मृष्यते 7 / रञ्ज रागे 8 / शप आक्रोशे 9 / शक मर्षणे 10 / णह बन्धने 11 / इत्युभयपदिनः / इति दिवादयः। 1 विद्यन्ते / विविदे। वित्सीष्ट / वेत्ता / अविस्थाः / 2 बुबुधिषे / भुत्सीष्ट / भोत्स्यते / अभुत्साताम् / 3 मन्येते / मेनिरे / मंसीष्ट / मन्ता / अमंस्त अमसत अमंस्त्रहि / मन्येऽहं यदद्य वृष्टिर्भविष्यति / 4 युक्षीष्ट / अयोक्ष्यत / अयुक्त अयुक्षाताम् / 5 सृज्येत / ससृजे / 'रारो झसे दृशाम् / स्रष्टा / स्रक्ष्यते / असष्ट / 6 लिक्षीष्ट / लेष्टा / 'हशषान्तात् सक् ' अलिक्षत / 7 ममृषे / अमर्षिष्ट / ( रज्यति / ररञ्ज / रज्यते / ररञ्जे / रक्षीष्ट / अरत। 9 शेपे / अशप्त / 10 शेके / शक्षीष्ट / पुषादित्वाद ङः अशकत् / 11 नाति / नेहतुः / अनात्सीत् / नेहे / नत्सीष्ट / नद्धा / अनद्ध / Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2.1 स्वादिषूभयपदिनः / अथ स्वादिषूभयपदिनः 1 / षुब् अभिषवे 2 / 261 स्वादेर्नुः / स्वादर्नुः प्रत्ययः स्यात् कर्तरि चतुषु / 262 नूपः। नुप्रत्ययस्य 3 च गुणः स्यात् पिति / सुनोति / 263 ओोर्वा लोपः। असंयोगपूर्वस्य प्रत्ययस्योकारस्य लोपो वा स्याद् वमयोः / सुन्वः सुनुवः / __ 264 ओर्वा हैः। असंयोगपूर्वात्प्रत्ययोकाराद्धेलुक् स्यात् / सुनु 4 / चिञ् चयने / - 265 चिनोतेः स-णादौ किर्वा / चिकाय चिचाय 5 // स्तृब् आच्छादने 6 / 1 स्वादिगणे षुधातोरादित्वान्नित्यमुभयपदित्वाच्चात्र प्रथममुभयपदिनो धातवः, एवं रुधादिष्वपि ज्ञेयम् / 2 स्नान-पीडनमन्थनार्थकोऽभिषवः / म्नानार्थकोऽयमकर्मक इति चन्द्रप्रभाकारः / 3 उपप्रत्ययस्य / 4 सुनवानि / सुषाव / सोष्यति / 'स्तु-सु--धूनां पे सेरिट ' असावीत् / सुनुते सुन्वते / सुनवामहै / सुषुवे / सोषीष्ट / असोष्ट / 5 चिनोति चिनुते / चिचयिथ चिचेथ / अचैषीत् / चिक्ये चिच्ये / अचेष्ट / 6 स्तृणोति / तस्तार 'गुणोऽत्तिसंयोगाद्योः ' तस्तरतुः तस्तर्थ / स्तर्यात् / अस्तार्षीत / स्तृण्वीत / Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 266 ऋदन्तात्संयोगादेः सि-स्योरिड् वाऽऽति / स्तरिषीष्ट स्तृषीष्ट / अस्तष्टि अस्तृत / वृञ् वरणे / 267 अस्थप इट् / ववस्थि / 268 वृङ-वृञ्-ऋदन्तात् सि-स्योरिड् वाऽऽति / वरिषीष्ट वृषीष्ट 1 / धुब् कम्पने 2 / इत्युभयपदिनः। . अथ स्वादिषु परस्मैपदिनः। टुटु उपतापे / आप्ल व्याप्तौ 3 / शक्ल शक्तौ 4 / ' भिषा प्रागल्भ्ये 5 / क्षि हिंसायाम् / दम्भु दम्भे 6 / 1 वृणोति / ववार . वव्रतुः ववृव / ' वृङ्-वृञ्ऋदन्तानां वा 'वरीता वरिता / अवारीत् अवारिष्टाम् / अवरीष्ट अवरिष्ट अवृत / 2 दुधाव / धोष्यति / अधौषीत् / धोषीष्ट / दीर्घाकारान्तोऽप्येषस्तदा (स्वरतिसूति० ' दुधविथ दुधोथ दुधुविव / धविता धोता / अधावीत् / धविषीष्ट धोषीष्ट / अधविष्ट अधोष्ट / 3 आप्नोति / आप्नोत् आप्नुवन् / आप / आप्ता / आपत् / 4 शेकिथ शशक्थ / शक्ष्यति / अशकत् / 5 धृष्णोति / दधृषतुः / धर्षिता / अधर्षीत् / 6 दभ्नोति / Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुधादिषूभयपदिनः। ___101 269 श्रन्थि अन्थि-दम्भिभ्यो लिटः कित्त्वं वा, दम्भेलिट्येत्व-पूर्वलोपौ च 1 / ददम्भ देमतुः ददम्भतुः / इति परस्मैपदिनः / अथ स्वादिष्वात्मनेपदिनौ / अशु व्याप्तौ / अश्नुते 2 / ष्टिघ आस्कन्दने / स्तिनुते 3 / इत्यात्मनेपदिनो। ' इति स्वादयः। अथ रुधादिषूभयपदिनः। रुधिर् आवरणे / 270 रुधादेनम् / रुधादेर्नम् स्यात् कर्तरि चतुषु / 1 ये कित्प्रत्ययास्तेषामेव विकल्पेन कित्त्वमिति केचित् / पितामपि कित्त्वमिति सुधाकरः / दम्भधातोलिट: कित्प्रत्ययानां नित्यं कित्त्वं थपश्च वा, किति लिटि एत्वपूर्वलोपौ च; तथा श्रन्थ-ग्रन्थाभ्यां लिटः कित्प्रत्ययानां सेटः यपश्च वा कित्त्व, किति एत्व-पूर्वलोपौ चेति श्रीहेमचन्द्राचार्यस्याशयः / 2 अश्नुवते / अग्नवै। आनशे / अशिषीष्ट अक्षीष्ट / आशिष्यत आक्ष्यत / आशिष्ट आष्ट / 3 तिष्टिधे / अस्तेविष्ट / अयं धातुः कपुस्तके नास्ति / Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / रुणद्धि 1 / भिदिर विदारणे / अभिदत् अभैत्सीत् 2 / छिदिर द्वैधीकरणे / अच्छिदत् अच्छत्सीत् 3 / रिचिर विरेचने / रिणक्ति / अरिचत् अरैक्षीत् / अरिक्त 4 / विचिर पृथग्भावे / विङ्क्ते अविचत् अवैक्षीत् / अविक्त / क्षुदिर संचूर्णे / अक्षुदत् अक्षौत्सीत् / अक्षुत्त / युजिर् योगे / अयुजत् अयोक्षीत् / अयुक्त / उकृदिर् दीप्ति-देवनयोः / उतृदिर हिंसाऽनादरयोः / अतृदत् 6 / इत्युभयपदिनः / *_ अथ रुधादिषु परस्मैपदिनः / शिष्ल विशेषणे 6 / पिष्ल संचूर्णे 7 / भञ्जो आमर्दने / / 1 ' नमसोऽस्य ' रुन्द्धः / रुन्धन्ति / रुन्ध्यात् / रुणद्ध मन्द्धात् रुणधानि / अरुणत्-द् / रुरोध / रोद्धा / अरौत्सीत् ' इरितो वा ङः ' अरुधत् / रुन्धे रुन्धत / रुणधै / रुत्सीष्ट / रोत्स्यते / अरुद्ध अरुत्सत ! 2 भिनत्तु / अभेत्स्यत् / भिन्त्स्व / अभिन्न / बिभिदे / 3 छर्दिषोष्ट कृत्सीष्ट / 4 रिणक्षि / अरिणक्-ग् / अरिणचम् / रेक्ता / रिक्षीष्ट / रेक्ष्यते / 5 तृणत्ति। ततृदतुः / तर्दिष्यति तस्य॑ति / अतर्दीत् / तृन्ते तृन्ते। ततृदिरे / अतर्दिष्ट / 6 शिनष्टि शिष्टः / अशिनट-ड / शिशेष / शेक्ष्यति / अशिषत् / 7 पिण्डि / अपिषत् / ( भनक्षि / भवः / मङ्ग्धि / भनजानि / अभननम् / बभञ्ज बभञ्जतुः / भज्यात् / भक्ता / अभाङ्क्षीत् अमाङ्क्ताम् / Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 107. तनादिषूभयपदिनः / भुज पालनाभ्यवहारयोः 1 / हिसि हिंसायाम् / 271 नमः। नमः परस्य नस्य लोपः स्यात् / हिनस्ति 2 / अञ्जू व्यक्तौ 3 / 272 अजेः सेनित्यमिट् / आञ्जीत् / इति परस्मैपदिनः। अथ रुधादिष्वात्मनेपदी। विद विचारणे / विन्ते 4 / इत्यात् / इति रुधादयः / अथ तनादिषूभयपदिनः / तनु विस्तारे। ___ 1 भुनक्ति भुञ्जन्ति / भुनजानि / अमुनक्-ग् अभुञ्जन् / बुभोज / मोक्ता / अभौक्षीत् अभौक्ताम्। अभ्यवहारो नाम भोजनम् , अस्मिन्नर्थे भुनधातोरात्मनेपदत्वम् ; पालनार्थे तु परस्मैपदत्वम् / भरतः षट्वण्डवसुन्धरां बुभोन / बालों मोदकं भुङ्क्ते / 2 हिंस्तः हिंसन्ति / 'झसाद्धिः / 'धे सलोपः ' हिन्धि / अहिनः / हिसिष्यति / अहिंसिष्टाम् / आहतो न कदाऽपि निरागस शरीरिणं हिंस्यात् / 3 अनक्ति / आनक्-ग् / आनञ्ज / ‘उदितो वा ' अञ्जिता अङ्क्ता / 4 विविदिरे / विसीरन् / वेत्स्यते / अवित्त अवित्सत / . Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 273 तनादेरुप् / कर्तरि चतुषु / तनोति तनुते 1 / 274 तनादेस्त-थासोर्वा सेलृक् / अतत अतनिष्ट / अतथाः अतनिष्ठाः / क्षिणु हिंसायाम् / 275 तनादेरुपधाया गुणो वापि। क्षिणोति क्षेणोति 2 / डुकृञ् करणे / करोति / 276 ङित्यदुः / कृमोऽत उत् ङिति / कुरुतः कुर्वन्ति / 277 कुलो नित्यं वमोरुलोपः। 278 कुरु-छुरोन दीर्घः / कुर्वः कुर्मः / 279 कृतो ये / कृञ उपो लोपः स्यात् ये ।कुर्यात् / / 280 सं-पर्युपेभ्यः करोतेर्भूषणे सुट् / संस्करोति / - 281 अड्-द्वित्वव्यवधानेऽपि कात्पूर्वः सुट् / समस्करोत् / संचस्कार। 1 तन्वन्ति / अतानीत् अतनीत् / तेने / 2 क्षिणुतः क्षेणुतः / क्षिणुहि क्षेणुहि / क्षेणिष्यति / अक्षेणीत् / क्षिणुते क्षेणुते / चिक्षिणे / क्षेणिषीष्ट / 'लोपस्त्वनुदात्त-तनाम्। अक्षित अक्षेणिष्ट / 3 करोतु कुरुतात् / 'ओर्वा हेः' कुरु / करवाणि / अकरवम् / चकार चकर्थ चकृव / 'यादादौ ऋतो रिङ पे' क्रियात् / करिष्यति / अकार्षीत् / कुरुते कुर्वाते / करवामहै / चक्रे / 'उ' कृषीष्ट / अकृत अकृथाः। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. तुदादिषूभयपदिनः। 282 ससुटः कुञो लिट इट् / संचस्करिथ / इत्यात्पे / वनु याचने / वनुते 1 / परस्मैपदीत्येके / [ वनोति 2 ] / मनु अवबोधने / मनुते / इत्यात्मनेपदं परस्मैपदं च / इति तनादयः। .. अथ तुदादिषूभयपदिनः / तुद व्यथने / 283 तुदादेरः / तुदादेरः स्थात् कर्तरि चतर्षु / तुदति तुदेत् 3 / णुद प्रेरणे / दिश अतिसर्जने 4 / भ्रस्ज पाक 5 / 284 भ्रस्जो रसो रमनपि वा 6 / बभर्न बभ्रज्ज 1 'शस-दद-वादि० ' वने / अवनिष्ट / 2 वनुतः / वनवानि / ववनतुः / . अवनीत् अवानीत् / 3 तुदतु / 'अतः: तुद / तुतोदिय / अतौत्सीत् / तुदंते तुदन्ते / तुदेत / तुदिरे / तुत्सीष्ट / तोत्ता। अतुत्त / 4 अतिसर्जनं दानम् / दिशेत् / दिदेश / देष्टा / 'हशषान्तात्स। अदिक्षत / दिक्षीष्ट.। अदिक्षत / श्रीवर्द्धमानः प्रभुरपापायामन्तिमं व्याख्यान दिदश / 5 'प्रहां क्ङिति' 'स्तोश्चभिश्चः' 'झबे जवाः' भृजति / भृज्जानि / अभृजत्। भृजते भृजेते भृजन्ते। भृजत। भृजताम् / अभृज्जत / / भ्रस्नो रेफस्योपधायाश्च स्थाने रमागमो वा स्यादनपि / Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / बर्जतुः बभ्रज्जतुः / बर्जिथ बभ्रजिय बमष्ठे बभ्रष्ठ 1 / क्षिए प्रेरणे 2 / मिल संगमे / मुच्ल मोक्षणे / 285 मुचादेर्मुम् अप्रत्यये। मुञ्चति 3 / लुप्लु छेदने। लुम्पति। विदल लाभे। विन्दति 4 / लिप उपदेहे / लिम्पति 5 / पिच क्षरणे। सिञ्चति / असिचत्। असिचत असिक्त / / इत्यात्पे। अथ तुदादिषु परस्मैपदिनः। ऋषि गतौ 7 / ओवश्च छेदने / वृश्चति 8 / लिख - 1 भृज्यात् / भी भ्रष्टा / अभाक्षीत् अभ्राक्षीत् अभ्राष्टाम्। भीष्ट भ्रक्षीष्ट / अभष्ट अभ्रष्ट / 2 अझैप्सीत् अक्षिप्त / 3 मुमोच / मोक्ष्यति / अमुचत् / मुक्षीष्ट / अमुक्त / 4 अवेदिध्यत् / अविदत् / विन्दते / अवेदिष्ट / अनिडयमिति केचित् वेत्ता। अवैत्सीत् / 5 लेता। लिपि-सिचि०, इति : अलिपत् / लिप्सीष्ट / आति वा अलिपत अलिप्त / 6 सेक्ता / 'सिस्योः सिक्षीष्ट / 7 ऋषति / आपत् / आनर्ष / आर्षीत् / 8 संप्रसारणं वृश्चतु / ववश्च वश्चतुः / वेटत्वाद्. वव्रश्चिय 'छशषराजादेः षः' 'स्कोराद्योश्चर ववष्ठ / वृश्च्यात् / वश्चिता व्रष्टा। अश्चिष्यति वक्ष्यति / अत्रश्चीत् अवाक्षीत् अब्राष्टाम् अवाक्षुः / Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुदादिषुपरस्मैपदिन / 'अक्षरविन्यासे 1 / [ कुट कौटिल्ये 2] / स्फुट विकसने 3 / त्रुट छेदने 4 / घुट प्रतिघाते / स्फुर स्फुरणे : 6 गतिस्थैर्ययोः 5 / इति कुटादयः / कृती छेदने / कृन्तति 6 / गृ निगरणे / __ 286 गिरतेः स्वरे रस्य लो वा / 'ऋत इर्' गिलति गिरति 7 / स्पृश स्पर्शने 8 / प्रच्छ जीप्सायाम् / पृच्छति 9 / 1 लिखानि / लिलेख / अलेखीत् / 2 कुटति / चुकोट / "कुटादेर्णिद्वर्जः प्रत्ययो ङित्” इति सूत्रं योज्यम् / चुकुटिथ / कुटिष्यति / अकुटीत् / " लक्षणप्रतिपदोक्तयोः प्रतिपदोक्तम्यैव ग्रहणम्" इत्यनया परिभाषया कुटादिषु लुङि 'पे सिणिद्' इत्यनेन गुणो न भवति / पदं पदं प्रति उक्तः प्रतिपदोक्तः, यथा णप्, अत्र वृद्धिहेतुर्णकार उक्तस्तस्मात् प्रतिपदोक्तः, यत्सामान्येन निर्दिश्य विहितं तल्लक्षणम् , यथा 'पे निर्णित् / इति सूत्रेण सिप्रत्ययस्य सामान्येन णित्त्वं कृतम् , न चात्र सिप्रत्यये माक्षाद् णित् अस्ति तस्मात् तल्लाक्षणिकम् / 3 पृस्फुाटेथ / स्फुटिष्यति / अस्फुटीत् / 4 त्रुट्यति त्रुटति / 5 ध्रुवति / दुध्राव . / ध्रुष्यति / अध्रुपीत् / 6 चकत / 'नृत-तृद०' कतिष्यति कृत्स्यति / अकर्तीत् / 7 जगार जगाल / गरीता गरिता गलीता गलिता। अगारीत् अगालीत् / 8 पस्पर्श / 'कृषादीनां वा' स्प्रष्टा स्पर्टी / अस्पाक्षीत् अस्पाक्षीत् ' कृष-मृश-स्पृश० ' ' हशषान्तात्सक् / अस्पृक्षत / 9 संप्रसारणं पृच्छतु / पप्रच्छ पप्रच्छतुः पप्रच्छिथ पप्रष्ठ / अप्राक्षीत अप्राष्टाम् / Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम / सृज विसर्गे 1 / टुमस्जो शुद्धौ / मज्जति 2 / इषु इच्छायाम् / इच्छति 3 / विश प्रवेशने 4 / पृश आमर्शमे 5 / कृ विक्षेपे 6 / 287 प्रत्युपाभ्यां किरतेः सुट् / प्रतिस्किरति / उपस्किरति / भुजो कौटिल्ये 7 / इति परस्मैपदिनः / ___ अर्थ तुदादिष्वात्मनेपदिनः / जुषी प्रीतौ 8 / ओविजी भय-चलनयोः 9 / उद्विजते / 288 विजेरिडादिप्रत्ययों डित् / उद्विजिता 10 / ओलस्जी ब्रीडे / लज्जते 11 / पृङ् व्यायामे / 1 ससने ' सृजि-दृशोस्थपो नेट' समनिथ सस्रष्ठ / स्रष्टा अस्राक्षीत् / 2 'स्तोश्चुभिश्चुः ' ' झबे जवाः' ममजिथ 'मस्जि-नशोझसे नुम्' 'स्कोराद्योश्चा 'चो कुः' ममङ्कथा मला। अमक्ष्यत् / अमाङ्क्षीत्। 3 'गमा छ। इच्छतु। इयेष। एषिता एष्टा / ऐषिषुः / 4 वेश्यति / अविक्षत् / 5 अमृशत् / म्रष्टा मर्ड्स / अम्राक्षीत् अमाक्षीत् अमृक्षत् / 6 'ऋ-संयोगाण्णादिरकित्' चकरतुः चकरिथ / ' ऋत इर् ! -- वोनि हसे' कीर्यात् / 'वृङ्-वृञ्-ऋदन्तानां वा' करीता करिता / अकारीत् अकारिष्टाम् / 7 मुजति / अनपि पालनार्थ भुज-वद्रूपाणि / 8 जुजुषे / अनोषिष्ट / 9 प्रायेणोत्पूर्वकोऽयं व्यवहियते / 10 उद्विनिषीष्ट / उद्विजिष्यते / उदविजिष्ट / 11 ललज्जे / अलज्जिष्ट। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रयादिषुभयपदिनः। 289 अयकि] ऋतो रिङ् स्याद् अप्रत्यये यकि च / व्याप्रियते / व्याघृत 1 / मृङ् प्राणपरित्यागे / __290 म्रियतेलङ्-लिङोश्चतुर्वेवात् / म्रियते / ममार / ममर्थ / अमृत 2 / दृङ् आदरे / आद्रियते 3 / धृङ अवस्थाने / ध्रियते / अधृत 4 / इत्यात्मनेपदिनः / . इति तुदादयः / अथ कथादिषूभयपदिनः / डुक्रीन द्रव्यविनिमये / 291 ना ज़्यादेः / कर्तरि चतुषु / क्रीणाति / 292 ई हसे / ना इत्यस्यात ई: स्यात् ङिति हसे / क्रीणीतः। 293 नातः / ना इतम्यातो लोपो ङिति स्वरे ।क्रोणन्ति। क्रीणीते 8 / पीय तर्पणे कान्तौ च / प्रीणाति 6 / पूज् पवने / .. 1 व्यापप्रे / व्यापृषीष्ट / व्यापरिष्यते / 2 मृषीष्ट / मर्तासि / अमरिष्यत् / 3 आदद्रे / आहत / 4 धृषीष्ट / 5 क्रीणीयात् / क्रीणीहि क्रीणानि / अक्रीणन् / चिक्राय चिक्रियतुः चिक्रयिथ चिक्रेथ / क्रीयात् / क्रेता / अझैपीत् अष्टाम् / क्रीणाते क्रीणते / क्रीणीत / क्रीणै। अक्रीगीत। चिक्रिये चिक्रियिषे / केषीष्ट / अक्रेष्ट / 6 क्रीवद्रूपाणि / 8 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 294 प्वादेहस्वः / कर्तरि चतुषु / पुनाति 1 / लूञ् छेदने / लुनाति 2 / धृञ् कम्पने / धुनाति 3 / ग्रह उपादाने ! गृह्णाति / 295 हसादान हो। हसान्ताद्धातो स्थाने आनः म्याद हौ परे / गृहाण 4 / इत्युभयपदिनः / ज्ञा अवबोधने / जानाति 5 / बन्ध बन्धने / बध्नाति 6 / 1 पुनीयात् / पुनीहि पुनानि / अपुनाम् / पुपाव पुपविथ / पविष्यति / अपावीत् / पुनीते / पुनावहै / पुपुवे / अपविष्ट / 2 अलावीत् / लविषीष्ट / अलविषाताम् / 3 वेटत्वाद् दुधविथ दुधोथ दुधुविव / अधविष्यत् अधोष्यत् / 'स्तु-सु-धूनां पे सेरिट' अधावीत् / धुनीते धुनते / दुधुविषे / धविषीष्ट धोषीष्ट / अधविष्ट अधोष्ट / 4 संप्रसारणं गृह्णीतः गृह्णन्ति / गृह्णीयात् / गृह्णीताम् / जग्राह जगृहतुः जगृहिव / गृह्यात् / ' इटो ग्रहाम् / ग्रहीता / अग्रहीत् / नगृहाते जगृहिरे / ग्रहीषीष्ट। अग्रहीष्ट / श्रीहेमचन्द्रो देवचन्द्रसूरिभ्यो दीक्षां जग्राह / 5 'ज्ञा-जनोर्जा' जानीहि / जज्ञौ / ज्ञेयात् ज्ञायात् / अज्ञासीत्। श्रीवादिदेवसूरिः सकलं न्यायशास्त्रं जज्ञौ / 6 बधान / बबन्ध बबन्धिथ बबन्द्ध बबन्ध / भन्त्स्यति / अमान्त्सीत् अबान्द्धाम "हसात्परस्य झसम्य०" अबान्धाम् अमानस्सुः / Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुरादिषूभय पदिनः / अन्य ग्रन्थने / गुथ्नाति- 1 / अश भोजने 2 / पुषु पृष्टौ 3 / मुष स्तेये 4. / क्लिशू बाधने 5 / इति परस्मैपदिनः / .. तृङ संभक्तौ / वृणीते 6 / इति आत्मनेपदम् / इति क्रयादयः। अथ चुरादिषूभयपदिनः। चुर स्तेये / 296 चुरादेः स्वार्थे निः / चोरयति चोरयते / चोरयाञ्चकार चोरयाञ्चक्रतुः / 'H / चोर्यात् / 'अरङ् 1. ' श्रन्थि-ग्रन्थि-दम्भिभ्यो लिट: कित्त्वं वा ' जग्रन्थ जग्रन्थतुः जग्रथतः जग्रन्थिय / अग्रन्थीत् श्रीरामचन्द्रसूरिनलविलासनाटकम् / 2 अनीतः। अश्नीयात् / अशान / आश / आशीत् / उत्तमः सात्त्विकं भोजनमश्नीयात् / 3 पुषाण / अपोषीत् / नायं पौषादिकः / 4 अमोषीत् / 5 क्लिशान / चिक्लेश / क्लेशिष्यति क्लेक्ष्यति / अक्लेशीत् अक्लिक्षत् / 6 वृणते / वृणीत / वृणताम् वृणीष्व वृणावहै / वने 'कादेर्णादेः ' ववृषे ववृध्वे / 'वृङ्-वृञ्-ऋदन्तात् सिस्योरिड् वाऽऽति' बरिषीष्ट वृषीष्ट / ' वृङ्-वृञ्-ऋदन्तानां वा ' वरिता वरीता / अवरिष्ट अवरीष्ट अवृत। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 . सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / द्विश्च / 'अङि लघौ ह्रस्व उपधायाः '. 'लघोर्दीर्घः , अचू चुरत् 1 / चिति स्मृत्याम् 2 / श्रण दाने। विश्राणयति 3 / तह आपाते 4 / ( ज्ञप ज्ञापने मित् ) / 297 मितां इस्वः औ / उपधायाः / ज्ञपयति 5 / कृत संशब्दे / 298 ऋत. इरं / धातोरुपधाया ऋत इर् / कीर्तयति / झा नियोगे। 299 रातो औ पुक् / ऋधातोरादन्तस्य च पुक् स्याद् 1 चोरयेत / चोरयाञ्चकार चोरयाचक्रे चोरयामास चोरयाम्बभूव / चोरयिता / अचोरयिष्यत्-त / अचूचुरन् अचूचुरः अचूचुरम् / अचूचुरत अचूचुरन्त / 2 'इदितो नुम् चिन्तयति / अचिन्तयत् / चिन्तयाञ्चकर्थ / चिन्त्यात् / चिन्तयिष्यति / अचिचिन्तत् / चिन्तयते / चिन्तयिषीष्ट / अचिचिन्तत / 3 श्राणयाञ्चकार / " कण-रण-भण-श्रण-लुप-हेठिहेल्-बाणि-लोटि-लोठि-लोपीनां वा हस्वोऽङि " अनेन सूत्रेण अशिश्रणत् अशश्राणत् / 4 ताडयति / अतीतडत् / 5 ज्ञपयाञ्चकार / ज्ञप्यात् / अजिज्ञपत् / 6 कीर्तय / कीर्तयाञ्चकृव / "उपधाया ऋवर्णस्य ऋद् वाऽपरे औ" इर्-अर-आरामपवादः / अचीकृतत् अचिकीर्तत् श्रीजिनेन्द्रं सम्प्रतिभूपतिः / Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुरादिषुभयपदिनः / 117 नौ / ज्ञापयति 1 / भू चिन्तन-मिश्रीकरणयोः / भावयति 2 / लोक लोच दर्शने 3 / 300 न रितः / ऋदितः शासश्चाङ्युपधाया इस्वो न / अलुलोकत् / अलुलोचत् / 301 नवगण्यामुक्तेभ्यो हिंसाऽर्थेभ्यः स्वार्थे बिः / हिंसयति / कथ वाक्यप्रबन्धने / अल्लोपस्य स्थानिवत्त्वाद् वृद्धिर्न कथयति / 302 अवलोपिनो नाङ्कार्यम् / अचकथत् / गण संख्याने / 303 गणेः पूर्वस्य ईद्वाऽपरे बौ। अजीगणत् अनगणत्। स्तन देवशब्दे 4 / रच प्रयत्ने 5 / कल गतौ संख्याने च / . 1 ज्ञापयाञ्चकृम / ज्ञाप्यात् / अनिज्ञपत् / " पुकि गुणः " अनेन सूत्रेण पुकि ऋधातोर्गुणः / अर्पयति आर्पिपत् / 2 भाव्यात् / अबीभवत् / भावयिष्यते / अबीभवन्त / 3 अव विआङपसर्गेभ्यः पर एव चौरादिको लोकृधातुर्दर्शनार्थकः / श्रीपालो जिनबिम्बमालोकयति ! अवलोकयति / विलोकयति / आलोचयति / 4 स्तनवति / अतस्तनत् / 5 रचयामाप्त / अररचत् / श्रीहेमचन्द्रसूरिः पञ्चानुशासनानि रचयामास। 6 कलयाञ्चक्रे / अचकलत / संख्यानं विशिष्टं ज्ञानम् / Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / स्पृह ईप्सायाम् 1 / मूच पैशुन्ये 2 / इति कथादयोऽदन्ताः / इति चुरादयः / इति दशगणी समाप्ता / / अथ ज्यन्तप्रक्रिया। 304 धातोः मेरणे / प्रेरणेऽर्थे धातोनिः प्रत्ययः स्यात् 3 / भवन्तं प्रेरयति भावयति / भावयते / 305 अङ्-सयोः / पवर्ग-य-ल-जेष्ववर्णपोषु पूर्वस्योकारस्येत्वमङ् सयोः / अबीभवत् 4 / 306 शृणोत्यादीनां पूर्वस्येत्वं वाऽवर्णपरे धात्वक्षरे 5 // अशिश्रवत् / अशुश्रवत् / 307 हनो घत् / इण्णवर्जित णिति / वातयति 6 / 308 तिष्ठतेरुपधाया इः स्यादङि। अतिष्ठिपत् 7 / 1 स्पृहयति / अपगृहत् / 2 सूचयाञ्चक्रे / असुसूचत / 3 ञ्यन्ताः सर्वे धातव उभयपदिनो भवन्ति / 4 उवर्णान्तधातूनां पूर्व द्वित्वं, पश्चाच्च वृद्धिः, तदनन्तरमुकारस्येत्वं कर्तव्यम् , ततश्च 'अङि लबौ ह्रस्व उपधाया.' आदीनि सूत्राणि पूर्ववत् कर्तव्यानि / अचीभवाम् / 5 आदिशब्दात् स्वाति-द्रवति-प्रवति-प्लवंति-व्यवतीनां ग्रहणम् / 6 घातयामास / अनीवतत् अजी घतन् / 7 स्थापयति। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्यन्तप्रक्रिया / 309 पादेयुक् औ 1 / पाययति / 310 पिबतेरुपधाया लोपश्चाङि 2 / अपीप्यत् / 311 रुहेऔं पो वा / रोपयति रोहयति 3 / 312 इङ्-क्री-जीनामात्वं बौ। अध्यापयति / 'स्वरादेः परः' अध्यापिपत् / 313 अङ्-सपरे जो इङो गाङ् वा / अध्यनीगपत् / कापयति 4 / जापयति / अनीजपत् 5 / 314 दुषेाँ दीर्घः / दूषयति 6 / 315 स्वापेः संप्रसारणमङि / असूषुपत् 7 / 316 घटादयो मितः 8 / वटयति 9 / 1 पा-शो-छो-सो- हुम्-व्येञः पादयः / 2 चकारात् पूर्वस्यकारः / 3 अरूरुपत् अरूरुहत् / 4 क्रापयन्ति / अचिक्रपताम्। क्रापयाञ्चके / अचिक्रपन्त / 5 नापयतु / जापयाम्बभूव / अजीज. पत्। 6 दूषयाञ्चकार चक्र अदूदुषत्-त / 7 स्वाश्यति / त्रिशलादेवी वर्द्धमानकुमारं अमषुपत्-त / ( घट-क्षण-व्यथ-प्रथ-म्रद-स्खदकद-क्रद-क्लद-क्रप-त्वर-प्रप्त दक्ष-श्रा-स्मृ-दृ-न-टक-स्तक-चक-अक-- कख-अग-रग-लग-हूग-लग-पग-सग-ष्टग-स्थग-वट भट-णट-गड-हेडलड-फण-कण-रण-चण-शण-श्रण-स्नथाक्नथ क्रय-लिथ--छद-मदटन-स्तन-ध्वन-स्वन-चन-ज्वर-चल-ह्वल-ह्मल-ज्वला एते घटादयो धातवो भौवादिका एव / 9 मितां हस्वो औ' घटयतु / 'अः / . घट्यात् अजीवटत्-त.। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 317 अमन्ताश्च 1 / शमयति 2 / 318 न कम्यमिचमः 3 / कामयति 4 / 319 कचिदुपसर्गे न / निशामयति / आयापयति 5 / ईष्य ईर्ष्यायाम् / ईग्रयति / ऐयॆयत् / 320 ईय॑तेस्तृतीयो हस एकस्वरो वा द्विः / ऐयियत् ऐर्षिष्यत् / 1 चकारादमन्ता अपि धातवो मित इत्यर्थः। मारणाद्यर्थकज्ञाकम्पनार्थकचलि-हर्षाद्यर्थकमदी-व्यक्तशब्दार्थकध्वन-जनी-जष-क्नसुरञ्जप्रभृतयोऽपि मितः सन्ति / अनुपसर्गा ज्वल-बल-मल-नमा ग्ला-स्ना-वनु-वमाश्च विकल्पेन मित्त्वं यान्ति / तेन ज्वलयति ज्वालयतीति रूपाणि स्युः / 2 अशीशमत्-त / 3 मित इत्यस्य मण्डूकप्लुतिन्यायेनानुवृत्तिरेवमग्रऽपि यथाप्रयोजनं बोध्या / 4 कामयानि। अचीकमत्-त। आमयति। लघुधात्वक्षरस्य परत्वाभावात् पूर्वस्य न दीर्घः, आमिमत-त / अचीचिमत्-त / 5 न्यशीशमत्-त / आयामयाञ्चके / आयीयमत्-त / एवमवस्खादयति परिवादयतीत्यनयोरपि न मित्त्वम् , तेन ह्रस्वोऽपि न स्यात् / 6 हसापेक्षया तृतीयहसस्य स्वरसहितस्य, तृतीयस्वरस्य हससहितस्य वा द्वित्वं भवति / प्रथमपक्षे यकारस्य द्वित्वे ऐग्रियत् , द्वितीयपक्षेऽत्र तृतीयस्वरस्याभावात् 'स्वरादेः परः ' रेफस्य निषेधात् षकारस्य द्वित्वे ऐषिष्यत् / तृतीयैकस्वरपक्षः सान्ते प्रवर्तते, तेन सान्तेऽपि ईयिषिषति ईयियिषति इति रूपद्वयम् / Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 121 सान्तप्रक्रिया / . 321 ञ्यन्तात् स्वार्थिकात् मिः / चोरयति 1 / इति ज्यन्तप्रक्रिया। अथ सान्तप्रक्रिया। 322 इच्छायामात्मनः सः / धातोरात्मन इच्छायामर्थे सः प्रत्ययः / 323 द्विश्च / सप्रत्ययान्तस्य धातोद्वित्वं भवति / 324 वुः से। उवर्णान्ताहवर्णान्ताद् ग्रहश्च परस्य सस्य नेट् / 325 नानिटि से / अनिटि से धातोर्गुणो न भवति / भवितुमिच्छति बुभूषति / अबुभूषीत् 3 / ___ 326 तृङ्-वृन-ऋदन्तात् सस्येड् वा / तितरीषति तितरिषति तितीर्षति 4 / / ___ 1 अच्चुरत्-त / 2 गुहू धातुरपि गृहीतव्यो जुत्रुक्षतीति नित्यप्रयोगोपलव्धेः / 3 'हस्वः 'अप् कर्तरि प्रभृतीनि सूत्राणि योज्यानि / अबुभूषत् / 'कासादिप्रत्ययादाम्०' बुभूषाञ्चकार / 'यतः' बुभूष्यात् / 'सि-स-ता-सी-स्यपामिट बुभूषिता। 'सेः' 'इट ईटि ' अबुभूषीः / 4 विवरीषते विवरिषते "से दीर्घः' ' पोरुर् ' बुवूर्षते / वृञ्धातोरुभयपदित्वाद् विवरिषति विवरिषते इत्यादीनि रूपाणि भवन्ति। . Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 199 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 327 कचिनित्यम् / निगरिषति निगलिषति 1 / 328 रुद-विद-मुष-ग्रहि-स्वपि-प्रच्छिभ्यः सकिन / रुरुदिषति / विविदिषति / मुमुषिषति / जिघृक्षति / सुषुप्सति / 329 हनिङोः से दीर्घः / जिघांसति 3 / 330 इङः 4 से गम् / 331 सान्तात्पूर्ववदात् 5 / अधिनिंगांसते / 332 गमे सस्येड् , नाति 6 / निगमिषति / 333 इस्से 7 / अपिद्दा-धा-रभ-लभ-शक-पत-पद-मिमी-मा-मेडां स्वरस्येस् अनिटि से, पूर्वस्य च लोपः 8 / दित्सति / धित्सति / रिप्सते / लिप्सते / शिक्षति / मित्सति / मित्सते / 1 गृ निगरणे। एवं कृ--ध-प्रच्छिभ्योऽपि सस्य नित्यमिडिति चन्द्रिकाकारः / 2 कित्त्वाद् रुंद-विद-मुषां गुणो न भवेत् , तथा ग्रहादीनां संप्रसारणं स्यात् / प्रच्छेः सस्ये डिति ख-पुस्तके पाठः / पिच्छिषति श्रेणिको महावीरम् / 3 'पूर्वाद्धन्तेहस्य घः' / 4 इङ् इति क-पुस्तके पाठः / 5 ये धातवः पुरा यस्मिन् पदे निर्दिष्टास्ते सप्रत्यये तस्मिन्नेव पदे भवेयुः / 6 आति तु न इति रु-पुस्तके पाठः / 7 अपिद्दाधादीनां स्वरस्येस् अनिटि से परे पूर्वस्य लोप इति क-पुस्तके पाठः / 8 रभ रामस्ये; डुलभष् प्राप्तौ; शक्ल शक्ती, शक मर्पणे; पत्ल प्तने; पद गतौ पित्सते; डुमिञ् प्रक्षेपणे, मिङ् प्राणवियोगे; मीन हिंायाम् ; मा माने, माङ् माने; मेङ् प्रणिदाने / Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 121 सान्तप्रक्रिया / 334 पत-तन-दरिद्राभ्यः सस्येड् वा / पिपतिषति / पित्सति / . 335 आप्नोतेरीः। आप्नोतरात ई: स्यात्से, पूर्वस्य लोपः / ईप्सति 1 / 336 तनेरनिटि से वा दीर्घः ! तितनिषति तितांसति तितंसति 2 / . 337 दम्भि-ज्ञपिभ्यां सस्य वेट् / दिदम्भिषति / 338 ज्ञपेः स्वरस्यानिटि से ईत् , पूर्वलोपश्च / निज्ञ:-- यिषति ज्ञीप्सति / 339 दम्भेरिदीच्च / धिप्सति धीप्तति / 340 इवन्तानां श्रिवादीनां च सस्येड् वा 3 / दिदेविषति / 1 इदं सूत्रं ख-पुस्तके नास्ति / ईप्साञ्चकार / ऐप्सीत् / 2 अत्र दिदरिद्रिषति दिदरिद्रासति इति रूपंद्वयं क-पुस्तकेऽस्ति / 3 आदिग्रहणाद् ऋध-भ्रस्ज-स्व-यु-ऊणु-भृ-सनीनां ग्रहणम् / "ऋधेरनिटि से म्वरस्य इर्द्वित्वलोपश्च" 'थ्वोर्वि हसे' ईसति / बिभ्रजिषति विभर्जिषति बिभ्रक्षति विभःति / सिस्वरिषति अनिट्पक्षे 'नानिटि से? “से दीर्घः, 'पोरुर' सुस्वर्षति / यियविपति युयूषति / ऊर्णनु विषति ऊर्जुनविषति उर्णनूषति / सिप्तनिषति, अनिटपक्षे 'जन-सन-खनामात्वं., सिषासति / Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 341 वस्यानिटि से उः / 1 दुयूषति / शिश्रयिषति शिश्रीषति / बिभरिषति बुभूषति। 342 इव!वर्णोपधाद्धसादेरसान्ताद्धान्ताच क्त्वा-सौ सेटौ वा कितौ। दिद्युतिषते दिद्योतिषते / लिलिखिषति / लिलेखिषति / 343 स्तौति-ज्यन्तयोरेव षे पूर्वात्सस्य षः / तुष्टुषति / सुष्वापयिषति / / 344 सान्तात्सो न / चिकीर्षितुमिच्छति / 345 स्वार्थसान्तात्तु स्यादेव / जुगुप्पिषते 2 / 346 स्मिङ्-पूङ्-ऋ-अजू-अशूभ्यः सस्येट् 3 / सिस्मयिषते / इति सान्तप्रक्रिया। / “से दीर्घः” से परे सति पूर्वस्य दीर्घः स्यादिति ख-पुस्तके विशेषः / अनेनैव दुषत्यादीनां दीर्घत्वं सिध्येत् / 2 चिकित्सिपति / 3 अनेन सूत्रेणानिटां वेटाञ्चैषां धातूगां नित्यमिड्विधानम्। पूङ पवने भौवादिः , रिपविषते / अरिरिषति / अञ्जिनिषति / अञ्जिनिषाञ्चकार / अशिशिषते। प्रेरणार्थात् स्वार्थिकाद्वा न्यन्तादपि सप्रत्ययो भवति, तेन बिभावयिषत्यादीनि रूपाणि स्युः / Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यमन्तप्रक्रिया। 125 अथ यङन्तप्रक्रिया। 347 अतिशये हसादेयं द्विश्च 1 / हसादेरेकस्वराद्धातो शार्थे 2 पौनःपुन्ये च यङ् प्रत्ययः स्याद् , द्वित्वं च 3 / ___348 यसि / यङि यलुकि च पूर्वस्य नामिनो गुणः / 'स धातुः' इत्यनेन धातुसंज्ञा। भृशं पुनः पुनर्वा भवति बोभूयते 4 / बोमुज्यते / 349 अनपि च इसाद् यस्य लोपः 5 / बोभुजाञ्चक्रे / 350 आतः। यङि यङ्लुकि च पूर्वस्यात आकारः / पापच्यते 6 / 351 गत्यर्थात्कौटिल्ये एव यङ् / वाव्रज्यते / 352 सूचि-त्रि-मूत्रि-अटि-अति-अशू-ऊर्णोतिभ्यो 1 यो ङित्त्वादस्यां प्रक्रियायां सर्वे धातव आत्मनेपदिन एव . स्युः। 2 अतिशयेऽर्थे, इति क-ख-पुस्तकयोः पाठः। 3 यङि सति / धातोद्विवचनं चेति पुस्तकद्वये पाठः / 4 बोभूयेत बोभूयताम् / अबोभ्यत / चोभूयाञ्चक्रे बोभूयामास बोभूयाम्बभूव / बोभूयिषीष्ट / बोभूयिष्यते / अबोभूयिष्ट अोभूयिषत / 5 हसाद्यस्य लोपः स्यादनपि, इति पुस्तकद्वये / अल्लोपस्य स्थानिवद्भावान गुणः / 'यतः' बोमुजिता / अबोमुनिष्ट / 6 पापचाम्बभूव / Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / यङ्वाच्यः 1 / अटाट्यते / 353 कचित्स्वरादेरपि रस्य न द्वित्वनिषेधो यकारे / अरार्यते 2 / 354 लुपादीनां गर्हायामेव या 3 / लोलुप्यते / 355 अम-जपां नुक् / अमान्तानां जपादीनां 4 च पूर्वस्य नुक् 5 यङ्-यङलुकोः / ययम्यते / तंतन्यते / जंजप्यते / दंदश्यते। बंभज्यते / 1 सूच्यादीनां बहुस्वरत्वादट्यादीनां स्वरादित्वादनेन सूत्रेण यविधानम् / सोसूच्यते / सोसूत्र्यते / मोमूत्र्यते / अट गतौ / कुटिलमटतीति अटाट्यते / अशूङ व्याप्तौ / अशाश्यते / ऊर्गुञ् आच्छादने / 'यङि 'ये' उर्णोनूयते / 2 ऋ गतौ / कुटिलमृच्छतीति पूर्वगुणं कृत्वा अर्य इति करणीयम् ,ततः सस्वरस्य यस्य द्विर्भावः, ततश्च 'आतः' इति सूत्रेण पूर्वरकारस्थाकारस्य दीर्घः अरार्यते / अराराञ्चक्रे / अरारिष्ट / 3 लुप-सद-चर-जप-जम-दह-दंश-गृ इत्येते लुपादयः / गर्हितं लुम्पतीति / षद्ल विशरणादौ सासद्यते / " गिरते रेफस्य लत्वं यङि" जेगिल्यते / 4 मप-जभदह-दंश-भञ्ज-पत-चर-फला नपादयः / 5 नुगनुस्वारत्वेन बोद्धयः, स च पदान्तवज्ज्ञेयः, तेन ‘वा पदान्तस्य ' इति सूत्रेण परसवर्णो विकल्पेन भवति / यँय्यम्यते / तन्तन्यते / जञ्जप्यते / दन्दश्यते। बम्मन्यते / जंजन्यते जञ्जन्यते 'जन-सन-खनामात्वं० जाजायते। "चर-फलयोः पूर्वात्परस्याकारस्य यड्यङ्लुकोरुकारः स्यात् " 'वोनि हसे चंचूर्यते चञ्चूर्यते / पंफुल्यते पम्फुल्यते / पस सौत्रो धातुर्गत्यादौ पंपस्यते पम्पस्यते / .. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यङन्तप्रक्रिया। 127 356 शेयडिन संप्रसारणम् 1 / वावश्यते / 357 रीगृपधस्य / ऋत्वतो धातोर्यङि पूर्वम्य रीक् / नरीनृत्यते / वरीवृत्यते : परीच्छ्य ते / 358 वच्चादीनां यङि यङ्लुकि च पूर्वस्य नीक 2 / वनीवच्यते / पनीपद्यते / ___ 359 दादेरिः। अपिद्दा-धा-पा-गै-हाक्-पिबति-सो-स्थामिकारोऽनपि किङति हसे / देदीयते 3 / 360 घ्रा-मोरीयङि / जेनीयते / देध्मीयते / 361 हन्तेहिसायां नीभावः / जेनीयते जङ्घन्यते / 362 स्वपेयङि संप्रसारणम् / सोषुप्यते 4 / 363 शीडोऽयङ ये किङति / शाशय्यते / इति यङन्तप्रक्रिया। 1 'ग्रहां किङति च' इत्यस्य बाधकमिदं सूत्रम् / 2 कञ्चुस्रंसु-ध्वंसु-भं-कम-पत-पद-स्कन्दाम् / वञ्चु वञ्चने / सनीस्रस्यते / दनीध्वस्यते / बनीभ्रस्यते / कस गतौ, चनीकस्यते / पनीपत्यते 'नो लोप:''चनीस्कद्यते / 3 'यङि' 'ये देधीयते / मेमीयते / जेगीयते / जेहीयते / पीयते / षो अन्तकर्मणि, सेषीयते / तेष्ठीयते / 4 सोषुपाञ्चके / सोषुपिता / असोषुपिष्ट / Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / अथ यङ्लुगन्तप्रक्रिया। 364 वान्यत्र / ऊकपत्ययसंयोगं 1 विना यङो वा लुक् / यङ्लुगन्तात्पम् / अदादिवत् / अदादित्वादपो लुक् यछुकि सति। 365 पिति स्मि वेट् 2 / बोभवीति बोभोति / बोभवाञ्चकार / अबोभूवीत् 3 / 1 : यङ ऊकः.' इति कृदन्तसूत्रेणोके आगते सति धातोर्यो नित्यं लुक् स्याद् , यथा दन्दशूकः जञ्जपूकः / ऊकवनिते स्थाने तु यो वा लुगिति मावः / बहुलं लुगित्यन्ये तेन यङः कचिल्लुक् क्वचिदलुक् / लुगभावपक्षे धातुर्यङन्तो भवति, यथा बोभूयते बोभुज्यते / 2 यलुकि हसादीनां पितां तकारसकार-मकाराणामीड् वा स्यात् / ' 3 अन्तरङ्गत्वादादौ यडो लुग् भवति, ततः प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणमिति न्यायेन द्वित्वादि / 'यङि। ‘स धातुः' इत्यनेन धातुत्वात् तिबादयः 'परतोऽन्यद' इति परस्मैपदम् ‘गुणः / बोभवीषि बोभोषि बोभृतः / द्वेः ' 'नुधातोः' बोमुवति / बोभूयात् / अबोभवीत् अबोभोत् 'अन उस्' अबोभवुः / बोभूयात् / 'सि-स-ता-सी-स्यपामिट्' बोभविता / बोभविष्यति / अबोभविष्यत् / अबोभोत् अबोभुवुः / ' भुवः सिलोपेऽयङ्लुकि गुणो न / इति गुणप्राप्तिः 'पिति स्मि वेट ' ' भुवः सिलोपे स्वरे वुक् ' इत्यनेन सूत्रेण गुणं बाधित्वा नित्यत्वाद बुक् , अबोभुवीः अबोभोः / Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यङ्लुगन्तप्रक्रिया / . 129 पापचीति पापक्ति 1 / 366 ऋदन्तानां ऋदुपधानांच यङ्लुकि पूर्वस्य रुक्रिक-रीकः / चरीति चरिकरीति चरीकरोति / चर्कति चरिकर्ति चरीकर्ति 2 / ववृतीति वरिवृतीति वरीवृतीति / वर्वतिं वरिवर्ति वरीवर्ति 3 / अररीति अरियरीति अरियरीति / अरर्ति अरियति श्तिपा शपाऽनुबन्धेन निर्दिष्टं यद्गणेन च / यत्रैकाग्रहणं चैव पञ्चैतानि न यलुकि // 1 // तिप्प्रत्ययेन, अपूप्रत्ययेन, अनुबन्धेन च कथितं यत् कार्यम् ; यत्र च गणेन, एकस्वरेण च निर्देशं कृत्वोक्तम् ; तत् पञ्चप्रकार कार्य यलुकि न स्यात् / तिप्प्रत्ययेन यथा ' अत्यति-व्ययतीनां यपो नित्यमिट ' / अप्प्रत्ययेन यथा 'अपि रञ्ज-दंश-सञ्ज-स्वञ्जाम् / / अनुबन्धेन यथा ' आदनुदात्त-ङितः' इत्यनेन शीङादीनामात्मनेपदम् / गणेन यथा ' दिवादेर्यः / 'लित्पुषादेर्ड: ' / एकस्वरग्रहणेन यथा 'नकस्वरादनुदात्तात् / / 1 ' आतः / भपापचीत् अपापक-ग् / पापचाञ्चकार / ' हसादे घोर अपापाचीत् अपापचीत् / 2 चर्कतः चरिकृतः चरीकृतः 'द्वेः / धक्रति चरिक्रति चरीकति / चर्कगञ्चकार चर्कराम्बभूवेत्यादि / 3 रतु वर्तने / " हसादुत्तरस्य झसस्य." वर्वति वर्वतिं / ' द्वेः स्वरेऽपि नोपधाया गुणः / ववृतीषि / Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13. सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / अस्यिति / अर्ऋतः अग्यितः अस्यितः / आरति अन्यूिति अरियूति 1 / पापच्छी ति पाप्रष्टि 2 / इति यङ्लुगन्तप्रक्रिया। अथ कण्ड्वादयः३। 367 कण्ड्वादिभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे यक् / कण्डू गात्रविधर्षणे / कण्डूयति कण्डूयत 4 / मन्तु अपराधे रोषे च / __1 ऋ गतौ। पूर्व द्वित्वं ततः 'रः' इत्यनेन पूर्वस्याकारः ततो रुगादयः, गुणस्तिबादयश्च ततः 'पिति स्मि वेट! अररीषि। रिकरीकोः ' असवर्णे स्वरे पूर्वस्येवर्णोवर्णयोरियुवौ ' इतीय अरियरीषि अरियरीषि / अर्जयात् / अगरीतु अस्तु / आररीत् ईडभावे * दिस्योर्हसात् / ‘स्रोविसर्गः ' आरः आररम् / अरराञ्चकार अरराम्बभूव अररामास / आरियात् / अररिता / आरारीत् आरारिष्टाम् / 2 ' ग्रहां कृिति च ' इति सूत्रे पृच्छतीति तिबा निर्देशात् तसादौ न सम्प्रसारणम् / 'किति झसे, कौ जमे च छस्य शो वस्य ऊः 'छशषराजादेः षः पाप्रष्टः 'द्वेः 1 पापच्छति पाप्रश्मि पाप्रच्छ्वः पाप्रश्मः / पाप्रड्ढि। अपाप्रट-डू / 3 आकृतिगणोऽयम् / कण्ड्वादिः कैश्चिदेकादशगणत्वेन मन्यतेऽपरैस्तनामप्रक्रियात्वेन। 4 अित्त्वादुभयपदम् / कण्डूयाश्चकार-चक्रे / Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामधातुप्रक्रिया। 131 मन्तूयति / वल्गु पूजा-माधुर्ययोः / वगूयति / अस् असु असून् उपतापे / .अस्यति 1 / असूयति / असूयति असूयते 2 / लेला दीप्तौ / लेलायति / मेधा आशुग्रहणे / मेधायति 3 / मुख दुःख तत्क्रियायाम् 4 / सुख्यति / दुःख्यति / भिषज् चिकित्सायाम् / भिषज्यति / इषु शरधारणे / इषुध्यति / गद्गद् वाकस्खलने / गद्गद्यति / एला खेला विलासे / एलायति / खेलायति / महीङ् पूजायाम् / महीयते 5 / अगद् नीरोगत्वे / अगद्यति / आगदीत् / इति कण्डादयः। . अथ नामधातुप्रक्रिया। 368 नाम्नो य ई.चास्य / नाम्न आत्मन इच्छायामर्थे यः 6 स्यादवर्णस्य चेकारः / आत्मनः पुत्रमिच्छति पुत्रीयति / 1 'अपि च हसाद् यस्य लोपः' असाञ्चकार / आसिष्यत् / 2 असूयाञ्चकार-चक्रे। 3 अभयकुमारो राज्यनीति मेध ञ्चकार / 4 सुख दुःख सुख-दुःखयोरिति ख-पुस्तके पाठः / 5 महीयामास महीयाम्बभूव / महीयिषीष्ट / कुमारपालभूपालो वीतरागवर्द्धमानदेवमूर्तिममहीयिष्ट / 6 यप्रत्ययान्तस्य नामधातोः परस्मैपदित्वं जिद्-डिभिन्नत्वात् / Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 369 कचिद्यः स्वरवत् / गव्यति / नाव्यति 1 / 370 हसायस्य लोपो वाऽनपि नामधातौ / त्वद्यति 2 // स्वदाञ्चकार / मद्यति / मदाञ्चकार / सुष्मद्यति 3 / अस्मद्यति / वाच्यति / समिध्यति / समिधिता / 371 काम्यश्च 4 / पुत्रकाम्यति 5 / 372 हसाचद्धितयस्य लोपो ये च्चौ च / गार्गीयति 6 / 373 मान्ताव्ययाभ्यां यो न / ( काम्यस्तु स्यादेव ) किंकाम्यति / स्वःकाम्यति / 374 करणे च / नाम्नः करणेऽर्थेऽपि यः / नमस्यति / 1 प्रवहणार्थकनौशब्दः, नावमिच्छतीति नाव्यति, अयं धातुः ख पुस्तके नास्ति। 2 त्वां मामिच्छतीति स्वद्यति मद्यति / 3 युवां युष्मान् वैच्छतीति युष्मद्यति / अयुष्मदीत् अयुष्मद्यीत् / 4 चकारान्नाम्न इच्छाऽर्थे काम्यप्रत्ययोऽपि भवतीति भावः / 5 अर्थवद्ग्रहणे नानर्थकस्य ग्रहणमिति परिभाषया 'हसाद्यस्य लोपो वा. अनेनात्र यलोपो न स्यात् पुत्रकाम्याञ्चकार / अपुत्रकाम्यीत् / 6 गर्गस्यापत्यं पुमानिति तद्धितेन ण्यप्रत्यये कृते सति गार्ग्यः सिद्धांत, ततो गार्ग्यमिच्छतीति गार्गीयति / अगार्गीयिष्टाम् / 7 नमः करोतीति नमस्यति श्रणिको महावीरप्रमुं, पूजयतीत्यर्थः / नमसाश्चकार नमस्याञ्चकार / Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... नामधातुप्रक्रिया / तपस्यति / वरिवस्यति / 375 शब्दादिभ्यो यङ् 2 / शब्दायते / वैरायते / 376 बिडित् करणे 3 / नाम्नो ञिः स्यात्करणेऽर्थे स च डित् / घटयति 4 / महयति / 377 आविष्ठवत् कार्यम् 5 / स्थव गति / दवयति / 1 वरिवमिता वरिवस्यिता / अवरिवमीद वग्विस्यीद् गौतमो महावीर प्रमुं, असेविष्टेत्यर्थः / 2 करोतीत्यर्थे / शब्दं करोतीति शब्दायते / शब्दायाञ्चक्रे मिद्धार्थराजा कौटुम्बिकान् / शब्द-बैर-कलह-ओब-वेग युद्ध-अभ्र-कण्व मम-मेघ-अटअट्टा-अटाट्या-सीका-सोटा-कोटा-पोटा-प्लुष्वा-सुदिन-दुर्दिन नीहारा एते शब्दादयः / युद्धायते भीमः / मेवायते ग्रीष्मौ वायुः / सुदिनायते शरत् / 3 आचष्टे इत्यर्थेऽप्पयं प्रत्यय इति सुबोधिनीकारसदानन्दगणिः / 4 घट-याकारान्तत्वाद् 'अत उपधायाः ' सूत्रेण न वृद्धिः, अित्वादुभयपद्धं घटयते कुम्भकारः / : अवलोपिनो नाङ्कार्यम् / इति सूत्रेण अजघटत् / मान्तं करोति महयति वीतरागसेवा / पटुपाचष्ट करोति वा पटयति / 5 इष्ठप्रत्यये परे गुरु स्थूल-दरादीनां गर-स्थव-दवाद्यादेशा इत्यादि यद्यत् कार्य भवति तत्तदत्रापि स्यादिति भावः / दूरं करोति दवयति-ते / उढं कगेतीति उढयति / एवं द्राघयतीत्यादीनामपि वेद्यम् / / Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / गरयति / ऊढयति / 378 अङि पूर्वढस्य जो वा / औजढत् औडढत् / / 379 कर्तुर्यङ् / उपमानात्कर्तुरा चारेऽर्थे यङ 2 / श्येनायते / पण्डितायते / 380 यङि वा सलोपः 3 / पयायते / पयस्यते / 381 अप्सरस्-ओजस्-सुमनसां नित्यम् 4 / अप्सरायते / ओजायते / सुमनायते / उपप्तर्गसमानाकारं पूर्वपदं धातुसंज्ञाहेतौ प्रत्यये चिकीर्षित पृथक् क्रियते / स्वमनायत / उदमनायत 5 / 382 नाम्न आचारे किव्वा / कृष्णति / कवयति 6 / 383 नामधातो:द्धिर्वा सो / अकवायीत् अकवयीत् / 1 स्वरादेः परः' अनेन ढकारस्य द्वित्वमडागमौ च / औजढः औडढः औजढम् औडढम् / 2 ङित्त्वादात् / पण्डितायाम्बभूव / अपण्डितायिष्ट मूर्खः / 3 उपरितनसूत्रणागते यङि परे / पय इवाचरतीति विग्रहः / पयायाञ्चके पयमाञ्चके पयस्याश्च / पय यिष्यते ५यसिष्यते पयस्यिष्यते / 4 याङ परे सलोप इत्यस्यानुवृत्तिः / 5 स्वमनायिष्ट / उदमनायिष्यत / अत्र सु-उदौ उपपर्ग-ममानाकारौ / 6 कविरिवाचरतीति कवयति मन्दपतिः / कवयिता। विप्प्रत्ययः सकृदागत्य स्वस्यार्थ दत्त्वा लोपं याति / Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मनेपदप्रक्रिया। 135 384 अमान्तस्योपधाया दीर्घः को किङति झसादौ हे च प्रत्यये / इदामति / राजानति 1 / पथीनति / 385 आचार उपमानात् / कांधारयोरुपमानादाचारेऽर्थे यः स्यादस्य चेकारः / पुत्रीयति 2 शिष्यमुपाध्यायः / प्रासादीयति 3 कुट्यां भिक्षुकः। इति नामधातुप्रक्रिया / अथात्मनेपदप्रक्रिया। 386 निविशादेः / न्यादिपूर्वकविशादेर्धातोरात्स्यात् 4 / निविशते / 387 परिव्यवेभ्यः क्रियः / परिक्रीणीते 5 / 388 विपराभ्यां जेः / विजयते / पराजयते 6 / 1 राजेवाचरेदिति राजानेत् ' स धातुः / इति धातुसंज्ञा, 'अप् कर्तरि' इत्यप्प्रत्ययः 'या' इतीत्। 2 पुत्रमिवाचचारेति पुत्रीयाञ्चकार श्रीरामचन्द्रसूरि श्रीहेमचन्द्रसूरिः, इति कर्मणो निदर्शनम् / 3 प्रापादे इवाचरति प्रासादीयति, इति चाध रस्योदाहाणम्। . 4 निपूर्वकाद विशधातोर्यथायोग्यं तत्सदृशानामप्यात्मनेपदं स्यादिति भावः / निविक्षीष्ट / 'हशषान्तात् सक् / न्यविक्षत / + विक्रीणीते धान्यम् / अवचिक्रिये / 6 विजिग्ये कुमारपालो मालवेशम् / परानयेत वीरः शत्रुन् / Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 389 आङो दाना स्वीकारे / विद्यामादत्ते 1 / 39.0 आङि पृच्छेः / आपृच्छते 2 / 391 शप उपालम्भे / विप्राय शपते 3 // 392 समवप्रविभ्यः स्थः / संतिष्ठते 4 / 393 आङः प्रतिज्ञायाम् / शब्द नित्यमातिष्ठते / 394 उपान्मन्त्रकरणादिषु 6 / उपसर्गहरणस्तोत्रेण / पार्श्वनाथमुपतिष्ठते मान्त्रिकः / 395 वा लिप्सायाम् / प्रमुमुपतिष्ठते / उपतिष्ठति वा / . 396 उद्विभ्यां तपोऽकर्मकात्स्वाङ्गकर्मकाच / उत्तपते सूर्यः / वितपते पाणिम् 7 / 1 'अपिद्दा-धा-स्थामात इत्' आदित / 2 ‘णबादौ पूर्वस्य' ', 'ऋ-संयोगाण्णादिरकित् / तेन परस्य न संप्रसारणम् / आपप्रच्छे / लुङि आप्रष्ट आप्रक्षाताम् / 3 शेपे / अशप्त / 4 अवतम्थे / वाग्भटः प्रास्थित शत्रुञ्जयतीर्थम् / 5 मीमांसकः / 6 आदिग्रहणाद् देवपूजा-सङ्गतिकरण-मित्रकरण-पथिषु, क्रमेणोदाहरणावलीयम्-जिनेन्द्रमुपतिष्ठते जिनदत्तः, साधुमपतिष्ठते धर्मपालः, मित्रमुपतिष्ठते श्रीपारः / कश्मीरमुपतिष्ठतेऽयं पन्याः / अकर्मकाच्च स्थाधातोरात्मनेपदमिति परे, तेन जिनपाल उपतिष्ठते, स्वयमेवागच्छतीत्यर्थः / 7 सकर्मकात् तु स्वाङ्गकर्मकादेवात्मनेपदम् , तेन मिनर क्षितः उत्तपति जिनपालस्य पाणिं, घृतं वेत्यादिषु नात्मनेपदम् / उत्तपे उदतप्त। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मनेपदप्रक्रिया / 397 आडो यम-हनिभ्यां चाकर्मकाभ्यां स्वाङ्गकर्मकाभ्यां च / आयच्छते 1 / आहते / 398 हनः सिः कित् / आहत 2 / 399 समोऽकर्मकेभ्यो गमि-ऋच्छि-प्रच्छि-स्वरत्यर्तिश्रु-विदि-दृशिभ्यः / संगच्छते / 400 गमः परौ सि-स्यौ वा कितौ / संगसीष्ट / संगसीष्ट 3 / 1 गमां छ: 1. आयच्छावहै / आयेमे / ' मो नो धातोः। आयन्ता / आयस्त आयंसाताम् / 2 'गमां स्वरे' आध्नाते आनते / ‘नो लोपः / आहध्वे / आनध्ने / 'हनो लुलिङोर्वधः, लुङ्याति वा ' आवधिषीष्ट / 'हनृतः स्यपः' आहनिष्यते / ' लोपस्त्वनुदात्ततनाम् / 'लोपो हस्वान्झसे' आहथाः आहसाथाम् / आवधिष्ट / 3 ‘गमां स्वरे' संजग्मे / कित्पक्षे 'लोपस्त्वनुदात्त-तनाम् ' इत्यनेन सूत्रेण मलोचे संगसीष्ठाः, अकित्पक्षे संगसीष्ठाः / संगन्तासे / 'हनृतः स्यपः' इति सुत्रेण नेड्, 'गमेस्तु पे इति विधानात् सङ्गस्यते / कित्पक्षे ' लोपो ह्रस्वाद् झसे' समगत समगसत / किदभावे समस्त समगंसत / तौदादिकस्य ऋच्छधातोरिह ग्रहणम् , न तु भौवादिकस्य ऋच्छादेशस्य / “ऋच्छेर्नाम् " इत्यामोऽभावः / 'नुगशाम् / 'र:, "ऋच्छेलिटिं गुणः समानछिरे / समृच्छितासे / समार्च्छिषाताम् / 'ऋ-संयोगाण्णादिरकित् ' Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , . पारडत 138 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 401 क्रीड आउनुसंपरिभ्यश्च / आक्रीडते / अनुक्रीडते। संक्रीडते / परिक्रीडते / 402 शब्दे तु न / संक्रोडति चक्रम् / 403 निसमुपविभ्यो ह्वयतेः। निहुयते 1 / 404 स्पर्धयामाङः / वस्तुपाठः शत्रुमाहुयते / 405 उपपराभ्यां क्रमः / उपक्रमते / पराक्रमते 2 / 406 आङो ज्योतिरुद्मने / आक्रमते सूर्यः / 407 वेः पादविहरणे / साधु विक्रमते वानी / 408 प्रोपाभ्यां प्रारम्भेऽर्थे / प्रक्रपते / उपक्रमते / 409 अपह्नवे ज्ञः / शतमपनानीते 3 / संपप्रच्छे / सम्प्रक्ष्यते / समप्रष्ट। 'स्वरति-सूति-सूयति०' संस्वरिपीयास्ताम् 'उः' संस्वृषीयास्ताम् / उभयत्र संस्वरिष्यते / भ्वादिवादिकस्थ-ऋधातोर्ग्रहणं तेन चतुर्षु समृच्छन समियते इत्यादिरूपाणि स्युः / 'गुणोऽति-संयोगाद्यो: तमारे समारिधे / '' समृषीष्ट / ममर्ता / समरिष्यने / 'सति-शास्त्यति। 'ऋवर्णदृशोर्डे गुणः' समारत समारेताम् / संशुश्रुवे / समश्रोष्ट ममश्रोषाताम् / विद् ज्ञान इत्यस्यैवात्र ग्रहणम् / “वत्तेरन्तो वा रुडाति" संविद्रते संविदने / संपश्यते / संघक्षीष्ट / मपदृसत / अकर्मकेभ्य इति किम् ? निनदेशनां संशृणोति शालिभद्रः / 1 संजुहुवे / 'लिपि-सिचि० समह्वत समह्वास्त / 2 “स्नु-क्रमोराति नेट" उपक्रीष्ट / पराक्रस्त / 3 अपजज्ञे। . Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आरमनेपदप्रक्रिया। 410 संप्रतिभ्यां च / शतं संजानीते / प्रतिनानीते / 411 वे शब्दकर्मणः कुत्रः / शब्दं विकुरुते 1 / 412 अवाद्विरतेः। अवगिरते 2 / 413 समः प्रतिज्ञाने / शब्दं नित्यं संगिरते / 414 मनुष्यादीनां संभूयोचारणे 3 / संप्रवदन्ते द्विजाः। 415 अपाच / न्यायमपवदते / 416 उदश्चरस्त्यागे / धर्ममुच्चरते त्य नतीत्यर्थः / / 417 उपाद्यमः स्वीकारे / भार्यामुपयच्छते 5 / 418 भुजोऽपालने / ओदनं भुङ्क्ते / / 419 कर्मव्यतिहारे धातोरात् 6 / व्यतिराते / 1 व्यकृत। शब्दकर्मण इति किम् ! मानपं विकरोति मनोजः। 2 अवगिलते / अवनगरे अवजगले / अवगरीतासे अवगरितासे / 3 वदः इति ख-पुस्तके विशेषः / यना दित्वात् ' णबादौ पूर्वस्य / 'यनां यवराणां 0' इति सूत्राभ्यां संप्रसारणम् / संघोंद / संप्रवदिताध्वे / संप्रावदिष्ट / 4 त्यागे इति किम ? भक्तामरस्तोत्रमुच्चरति चैत्रः / 5 “यमः सिः किद्वा विवाहे” इत्यनेन सूत्रेण विकल्पे किति 'नो लोपः' इति नलोपः, उपायत पक्षे उपायंस्त उपायंस्थाः उपायसि / गान्धर्वेण विवाहेन स्वयमेव ह्युपायत, इति त्रिषष्टौः। 6 अन्यस्य योग्य कार्यपपरः करोति, अपरस्य चान्यः, स व्यतिहारः, तस्मिन्न सर्वधातुभ्य आत्मनेपदं स्यात् / अन्यो व्यतिस्ते तु ममापि धर्मः, इति भट्टिः / व्यतिररे व्यत्यरास्त / Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240 सिद्धान्तर स्निका व्याकरणम् / 420 गति-हिंसाथ-पठ-जल्प-हसेभ्यो नात् / व्यतिगच्छन्ति / व्यतिघ्नन्ति / व्यतिपठन्ति / व्यतिनल्सन्ति / व्यतिहसन्ति / 421 ज्ञा-श्रु-स्मृ-दृशां सान्तानामात् / जिज्ञामते 1 / शुश्रूषते / सुस्मूर्षते / दिदृक्षते / 422 अनुपूर्वाजानातेन / अनुजिज्ञासति 2 / . 423 प्रत्याभ्यां श्रुवो न / प्रतिशुश्रूषति आशुश्रूषति / इत्यात्मनेपदप्रक्रिया। अथ परस्मैपदप्रक्रिया। 424 अनुपराभ्यां कुत्रः पम् 3 / अनुकरोति / पराकरोति / 425 अभिप्रत्यतिभ्यः क्षिपः पम् / अभिक्षिपति / प्रतिक्षिपति / अतिक्षिपति / 1 जिज्ञासाञ्चक्रे-आस-बभूव / अनिज्ञासिष्ट / नादिदृक्षन्त दोःशक्तिमसुस्मूर्पन्त निम्बनामिति द्वयाश्रये। निम्बनानाम्नी देवी। 2 अनुजिज्ञासाञ्चकार / अन्वजिज्ञासन्न केऽपि तमिति द्वयाश्रयमहाकाव्ये / 3 अतः परमात्मनेपदिनामुभयपदिनां च धातूनां नित्यं परस्मैपदित्वेन विधानम् / Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्मैपदप्रक्रिया। 141 426 प्रादहश्च / प्रवहति / 427 परेमषश्च / परिमृष्यति / परिवहति / पर्यवहत् / पर्युवाह। 428 व्यापर्युपेभ्यो रमः पम् / विरमति 1 / 429 बुध-युध-नश-जन-इङ्-मु-द्रु-स्रुभ्यो ज्यन्तेभ्यः पम् 2 / बोधयति / योधयति / नाशयति / जनयति 3 / अध्यापयति / इति परस्मैपदप्रक्रिया। 1 आरेमतुः। 'यमि-रमि-नमातां सक् सेरिट पे' आरंसीत् आरंसिषुः / परिरम्यास्ताम् ' मो नो धातोः' परिरन्तासि / उपारंसीः उपारंसिषम् / 2 ञ्यन्तत्वेनैतेषां धातूनामुभयपदित्वं प्राप्तं तन्निरोधोऽनेन कृतः / 3 जनधातोर्मित्त्वाद् अत उपधायाः ' अनेन वृद्धिशङ्का न कार्या / जनयाञ्चकर्थ जनयाश्चकृव / 4 -- इङ्-क्री-जीनामात्वं औ, 'रातो औ पुक् ' अध्यापयेत् शास्त्रम् / अध्यापिपन् महर्षिसुधर्माणो निर्ग्रन्थान् / प्रावयति सन्यम् / 'शृणोत्यादीनां०' अपिप्रवत् अपुप्रवत्। द्रावयति लोहम् / अदिद्रवताम् अदुद्रवताम् / स्रावयति तैलम् / असिस्रवः असुस्त्रवः / Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / अथ लकारार्थप्रक्रिया / .. 430 स्मृत्यर्थयोगेऽपि 1 भूनार्थानद्यतने धातोर्लेट् / लङोऽपवादः / स्मरसि कृष्ण ! गोकुले वत्स्यामः / 431 यद्योगे उक्तं न 2 / स्मरसि यद्वनेऽमुज्वहि / 432 अत्यन्तापह्नवे लिट् | त्वं कलिङ्गष्ववात्मी: ? नाहं कलिङ्गाञ्जगाम / / 433 उत्तमपुरुषे चित्तविक्षेपादिना 3 पारोक्ष्यम् / सुप्तोऽहं किल विललाप। 434 स्मे लट् / प्रव्रजति स्म स्थूलभद्रः / 435 वर्तमानसमीपे भूते ,भविष्यति च वा लट् / कदाऽऽगतोऽसि ? अयमागच्छामि अयमागमं वा। कदा गमिष्यसि ! एष गच्छामि गमिष्यामि वा। 436 अनेकक्रियासमुच्चये वा लोट् / तस्य हि-स्वौ, 1 अपिशब्दाद् बुध-नितिर-ज्ञाऽऽदिधातूनामपि ग्रहणम् / बुध्यते चेतति चेतयति जानाति वा भवान् ? रैवतगिरौ नेमिनाथं नस्यामः / 2 स्मृत्यर्थयोगे लङः स्थाने लट् न स्यात् / यदित्यनेन यच्छब्दरूपाणि ग्राह्याणि / स्मरसीह शश्वन न्यवसाम यस्यामिति द्वयाश्रयप्रयोगात् / 3 आदिशब्दाद् मद-रोग-स्वप्नभयादिकारणानां ग्रहणम् / Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 143 भावकर्मप्रक्रिया / त-ध्वमोविषये वा 1 / सामान्यार्थस्य धातोरनुप्रयोगः, अनुप्रयोगात्तिवादयः / सक्तून् पिब धानाः खादेत्यभ्यवहरति / अन्नं भुक्ष्व दाधिकमास्वादस्वेत्यभ्यवहरति / इति लकारार्थप्रक्रिया। अथ भावकर्मप्रक्रिया। 437 यक् चतुषु / धातोभीवे कर्मणि च यक् प्रत्ययः 2 तिवादिषु चतुर्पु परतः / 438 आद् भुवि कर्मणि / अकर्मकाद् भावे सकर्मकाच्च कर्मण्याद् भवति 3 / भावस्यैकत्वादेकवचन, युष्मदस्मदोरविषय . 1 धात्वर्थानां समुच्चये गम्ये मामान्यार्थस्य धातोः सम्बन्धे सति धातोः परौ हि-म्वौ, त-ध्वमौ च तद्युष्म दि वा स्यातामिति सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासने / 2 धातोरेवार्थः-स्वार्थो भावस्तस्मिन्नर्थे, उक्ते च कर्मणि यक्प्रत्ययः स्यात् / 3 / कर्तरि पंच' इति सूत्रेण कर्तरि प्रयोगे आत्मनेपदपरस्मैपदे भवतः, कर्मणि प्रयोगे भावे प्रयोगे च ' आद् मुवि कर्मणि / अनेन परस्मैपदपरिहारेणात्मनेपदस्यैव विधानं कृतम् / कर्मणि प्रयोगे कर्मण उक्तत्वादुक्ते कर्मणि प्रथमा स्यात् , कर्तुश्चानुक्तत्वादनुक्ते कर्तरि तृतीया विभक्तिः स्यात् , भावे प्रयोगेऽपि कर्तरि Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / त्वाद न मध्यमोत्तमौ, प्रथमातिक्रमे कारणाभावात् प्रथमपुरुषः / भूयते 1 भूयेत / भूयताम् / अभ्यत / बभूवे / 439 स्वरान्तानां हन्-ग्रह-दृशां च भाव-कर्मणोः सि-स-ता-सी-स्यपामिड् वा, स इण्वच्च 2 / भाविषीष्ट भविषीष्ट / माविता भविता / माविष्यते भविष्यते / अभाविष्यत 3 / . 440 इण तन्यकर्तरि / धातोस्तनि परे भावे कर्मणि च इण् प्रत्ययः, सेरपवादः / 'लुक् ' अमावि / अकर्मकोऽप्युपसर्गवशात्मकर्मकतामनुभवति / सुखमनुभूयते स्वामिना / फल-व्यापारयोरेकनिष्ठतायामकर्मकः धातुस्तयोधर्मिभेदे सकर्मक उदाहतः 4 / 1 / तृतीया स्यात् / भावे प्रथमपुरुषत्वमेकवचनञ्च स्यात् , कर्मणि तु कर्तुरिव प्रथम-मध्यमोत्तमपुरुषाणां कर्मण एक-द्वि-बहुत्वस्य च संभवात् सर्वत्र पुरुषत्रयमेक-द्वि-बहुवचनानि च भवितुमर्हन्ति / 1 भधातोरकर्मकत्वेन भावे एवास्य प्रयोगो घटते, अत एवात्र प्रथमपुरुष एकवचनं च स्यात् / यक्वत्ययस्य कित्त्वेन गुणाभावः, 'स धातुः' इत्यनेन धातुसंज्ञाऽनन्तरं त्यादयः। 2 विकल्पेन वृद्धयादिकार्याय इण्वत्करणमिडः / 3 अभविष्यत / 4 चैत्रः शेते, अत्र फल-व्यापारयोरेकनिष्ठता / चैत्र ओदनं पचति, अत्र तु फल-व्यापारयोभिन्नाधिकरणत्वम् / Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावकर्मप्रक्रिया। लज्जा-सत्ता-स्थिति-जागरणं वृद्धि-क्षय-भय-जीवित-मरणम् / अयन-क्रोडा-रुचि-दीप्त्यर्थ धातुगणं तमकर्मकमाहुः / 2 // धातोरान्तरे हत्तेर्धात्वर्थेनोपसंग्रहात / प्रसिद्धरविवक्षातः कर्मणोऽकम्मिका क्रिया 1 / 3 / 441 शोङोऽयङ् ये क्ङिति / शय्यते 2 / शिश्ये / शायिषीष्ट शायषीष्ट / अशायि / 'अयकि ' घटः क्रियते / त्वं दुःखी क्रियसे रागैः। विरागैः सुख्य क्रिये / चक्रे / कारिषीष्ट कृषीष्ट / कारिष्यते / हनृतः स्यपः करिष्यते / अकारि 3 / भाव्यते 4 / भावयाञ्चक्रे भावयाम्बभत्रे 5 / / 442 इण्वदिटि बेर्लोपः 3 / भाविता भावयितः / 1 नदी वहति, स्यन्दते इत्यर्थः / जीवति, प्राणान् विभर्ति इत्यर्थः / मेघा वर्षन्ति, जलं वर्षन्ति इत्यर्थः / हितान्न यः संशृणुते स किंप्रभुः, ( कुत्सितप्रभुरित्यर्थः ) इति किराते, वचनमिति कर्मणोऽत्राविवक्षः / 2 शयनार्थत्वादकर्मकः / 3 क्रियेत क्रियेताम् क्रियेन् / अक्रियन्त तपांसि मेघकुमारेण / अकारिषाताम् अकृषाताम् / अकारिषत अकृषत / 4 अयं स्यन्तश्चुरादिः प्रेरणार्थो वा धातुः / भ्यन्ते सकर्मकत्वात् पुरुषत्रयं वचनत्रयं च सर्वत्र स्याताम् / 'H' इति ओर्लोपः, भाव्येते भाव्यन्ते / 5 'आमो भ्वमो त् कर्तरि / इति सूत्र मात्र प्रभवति, कर्तरि इत्युक्तत्वात्तत्र / भाषयामासे भावयामासाते / 6 स्वार्थिको न्यन्तप्रक्रियिको वा नियः / . 10 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / माविष्यते भावयिष्यते / बुभ्रष्यते 1 / अबुभषि / बोभूय्यते 2 / यङ्लुगन्तात्तु बोभूयते / स्तूयते गुणवान् / अस्तावि अस्ताविषाताम् अस्तोषाताम् 3 / अर्यते 4 / आरिता अर्ता / स्मर्यत / स्मारिता स्मर्त्ता / इज्यते 5 / 443 तनोतेर्वाऽऽकारो यकि / तायते तन्यते / अतानि / जायते जन्यते / 444 तपो नेण कर्मकतरि, अनुतापे च 7 / अन्वतप्त पापेन / 'दादेरिः' दीयते / ददे / 445 आतो युक् / इणि णिति कृति च। दायिषीष्ट दासीष्ट / अदायि अदायिषाताम् अदिषाताम् / धीयते / स्थीयते / ग्लायते। अग्लायि अग्लायिषाताम् अग्लासाताम् / हन्यते / वधिषीष्ट घानिषीष्ट / घानिता हन्ता / अवधि अवधिषाताम , अधानि अघानिषाताम् अहसाताम् / 1 . सान्तात् / 2 यङन्तात् / 3 तुष्टुरे / अस्ताविषत, इस भावपक्षे अस्तोपत / 4 ऋगतो / " रहाद यपो द्विः। अर्य्यताम् / आरे / 5 'यजा यवराणां य्वृतः संप्रसारणं किति / ईजे। 6 'जन-सनखनाम् // इति वाऽऽत्वम् / जायेत जन्येत / जनि-तन्योर्वाऽऽत्वं यकि, इति ख-पुस्तके पाठः / 7 अनयोविषये 'इण् तन्यकर्तरि ' इत्यनेन तप इण न स्यात् / / 'पूर्वाद्धन्तेर्हस्य घः' जघ्ने रावणो लक्ष्मणेन / 'हनो लुङ्- लिङोर्वधः, लुङयाति वा' वधिषीरन् , इण्वद्भावपक्षे वधादेशाभावस्तेन Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावकर्मप्रक्रिया। 157 446 इण्वदिटो न दीर्घः 1 / ग्राहिता ग्रहीता / अदर्शि अदर्शिषाताम अदृक्षाताम 2 / शम्यते 3 मुनिना / 447 मान्तस्य सेटो 4 न वृद्धिरिणि णिति कृति च, न त्वाचमि-कमि-बमीनाम् / अशमि / अदमि / आचामि / अकामि / अवामि / ज्यन्तस्य तु शम्यते मोहो मुनिना / शामयाञ्चके। 448 मितां ध्यन्तानामिणि णमि च वा दीर्घः / अशामि अशमि अशामिषाताम् अशमिषाताम् अशयिषाताम् 5 / वध हिंसायाम् / अवधि 6 / 449 भरिणि नलोपो वा / अभाजि / अभजि / घानिषीरन् स्यात् , 'हनो घत् / सूत्रे इण्वर्जितविधानान्नात्र घदादेशः कल्पनीयः / 1 'इटो ग्रहाम् / सूत्रस्य बाधकमिदम् / इण्वदभावपक्षे तु तत्सूत्रं लगत्येव ग्रहीतास त्वया दीक्षा / 2 दृश्यते मतिसागरेण जिनपतिप्रतिमा। अत्र 'दृशादेः पश्यादिः / इत्यस्य न प्राप्तिः, कर्तरीत्युक्तत्वात्तत्र / दर्शिषीष्ट 'सि-न्योः / दृक्षीष्ट / 3 दिवादिकोऽयमकर्मकत्वाद्भावे प्रयुज्यते / 4 मकारान्तसेड्धातोः / 5 इण्वदभावपक्षे ओर्लोपो न स्यात् / 'ध्वे सिलोपः' अशमयिम् अशमयिध्वम् / 6 वध्येते / ववधे / इणि 'जनि-वध्योर्न वृद्धिः अवधि अधिषत अवधिष्ठाः / / Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 450 लभेरिण-गमोर्नुम्बा / अाम्भ / अलाभि / गौणे 1 कर्मणि दुद्यादेः प्रधाने नी-ह-कृष-वहाम् / बुद्धि-भक्षार्थयोः शब्दकर्मकाणां निजेच्छया / 1 / प्रयोज्यकर्मण्यन्येषां ज्यन्तानां लादयो मताः / गौर्दुह्यते पयः२। अजा ग्राम नीयते ह्रियते कृष्यते उद्यते / बोध्यते 1 यत्र प्रयोगे कर्मद्वयं स्यात्, तत्र कुत्र लडादयः कर्तव्याः ! गौणे, मुख्य वा कर्मणि, आहोस्विदुभयत्र ? इत्याशङ्कानिरासायाह-दुह्यादिद्वादशधातूनां गौणे कर्मण लादयः प्रत्ययाः स्युः, न्यादिचतुर्वातनां मुख्ये कर्मणि स्युः, ञ्यन्तानां बुद्धि-भक्षणार्थक-शब्दकर्मकाणां निनरुच्यनुसारं लादयः प्रत्यया विधेयाः, अवशिष्टन्यन्त घातूनां तु प्रयोज्ये-गौणे कर्मणि लादयः प्रत्ययाः स्युः / लादय इति लट्-लिङ लोडादयो वेदितव्याः / प्रधान-गौणलक्षणं चेदं वाक्यप्रकाशे आरभ्यते क्रिया यस्मै तद् दुग्धाद्यं प्रधानकम् / तसिद्धयै क्रियया यत्तु व्याप्यते यद् गवादिकम् / तदप्रधानं गौणाख्यं गोपालो दोग्धि गां पयः // 2 गौरिति गौणं कर्म, अत्र लट्प्रत्ययेन कर्मण उक्तत्वात् 'अन्योक्ते प्रथमा' इत्यनेन प्रथमा विभक्तिः, पयसि तु मुख्यकर्मत्वाद् द्वितीया विभक्ति र्विद्यते / एवं अना-धर्म-ओदन-कोष-ग्राम इति मुख्यं कर्म, अवशिष्टं तु गौणम् / अभधानम् , गौणम् , प्रयोज्यमिति Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मकर्तृप्रक्रिया / 149 पाणवकं धर्मः, माणवको धर्ममिति वा / भोज्यते माणवकं ओदनः, माणवकः ओदनमिति वा / पाठ्यते माणवक कोषः, माणवक: कोषमिति वा / देवदत्तो ग्राम गम्यते / 451 अकर्मकाणां कालादिकर्मकाणां भावे कर्मणि च छकाराः / मासो मासं वा आस्यते देवदत्तेन / भ्यन्तात्तु प्रयोन्ये प्रत्ययः / मासमास्यते माणवकः / इति भावकर्मप्रक्रिया। अथ कर्मकर्तृप्रक्रिया / यदा सौकर्यातिशयं 1 द्योतयितुं कर्तृव्यापारो न विवक्ष्यते तदा कारकान्तराण्यपि 2 कर्तृसंज्ञां लभन्ते / साध्वसिः छिनत्ति 3 / काष्ठानि पचन्ति / स्थाली पचति 4 / पच्यते ओदनेन / भिद्यते समानार्थकम् / दुह-याच-पच-दण्ड-रुधि-प्रच्छि-चि-ब-शासु-जिमथ-मुषाः, इत्येते दुह्यादयो द्वादश धातवः / / 1 शोभनं करोतीति सुकास्तस्य भावः सौकर्य कारकागामिति विज्ञेयम् / 2 कर्म-करणसंप्रदानादीनि / 3 अत्रासिना करणेन साधु ( सम्यक् ) च्छिनत्ति वीरः, इति पूर्वप्रयोगः, तत्र गरः किं च्छिनत्ति ? असिरेव स्वयं च्छित्ति, इति विवक्षायासेः करणस्य कर्तृसंज्ञा। 4 अत्र स्थाल्यां पचतीति पूर्वप्रयोगः, आधारस्यात्र सौकर्यातिशयो द्योतितः / Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / काष्ठेन / लेनोक्ते (लकारणोक्ते) कर्मकर्तरि यक्-आत्-इण्-इण्वदिटः स्युः। पच्यते ओदनः 1 / अपाचि / भिद्यते काष्ठम् / अमेदि। इति कर्मकप्रक्रिया। 1 कर्मकर्तृप्रयोगे द्विकर्मकभिन्नस्य सकर्मणोऽपि धातोरकर्मकत्वं स्यात् / ओदनमिति पूर्वावस्थं कर्म, तच्चात्रातिशयद्योतनार्थ कर्तृत्वेन विवक्षितम् / इति श्रीजिनचन्द्रसूरिणा प्रणीते सिद्धान्तरत्ने / शब्दानुशासने आख्यातवृत्तिः परिपूर्तिमगात् // Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ कृदन्तप्रकरणम् / 1 कृत्कर्तरि 1 / वक्ष्यमाणाः प्रत्ययाः कृत्संज्ञकास्ते च कर्तरि ज्ञेयाः / 2 तृ-वुणौ / धातोस्तृ-वुणौ प्रत्ययौ स्तः 2 / 3 कृतः / वसादेः कृत इट् स्यात् 3 / भविता / पक्ता / जगद्धितवचनाय शान्तिकर्ने महीयसे / श्रीवीराय नतिं कृत्वा टिप्पणं क्रियते कृतः // 1 // 1 यस्मिन् सूत्रे कर्मणि भावे इति नोक्तं स्यात् ते प्रत्ययाः कर्तरि वेदितव्याः / 2 एतौ प्रत्ययौ सर्वेभ्यो धातुभ्यो भवितुमर्हतः, तेन अत्ता, होता, देविता, इत्यादि स्यात् / कृत्प्रत्ययान्ता धातवो नामसंज्ञां लमन्त कृत्-तद्धित-समासान्तानां प्रातिपदिक( नाम )संज्ञा भवतीति नियमात् / नामसंज्ञाऽनन्तरं 'तस्मात् सि-औ-जस्० अनेन स्यादयः सप्त विभक्तयो भवन्ति / ततश्च पदसंज्ञा स्यात् / 3 ये धातवः सेटस्तेभ्य एव कृत इट् स्यान्नानिड्भ्यः / ये वेटस्तेभ्यो विकल्पेनेड् स्यादेव / भवतीति भविता भवितारौ / भवितारम् भवितृन इत्यादीनि कर्तृवद् रूपाणि ज्ञेयानि / Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 4 यु-चोरनाको / 1 वाचकः / पाचकः / दायकः / 5 नाम्युपधात्कः 2 / क्षिपः / बुधः / वृतः / 6 प्री-कृ-ज्ञाभ्यश्च 3 / प्रियः / किरः / ज्ञः / 7 उपसर्ग आदन्तात् 4 / प्रदः / सुग्लः / 8 पचि-नन्दि-ग्रहादेर-यु-णिनिः / पचादेरः / नन्द्यादेर्युः / . ग्रहादेणिनिः / पत्रः / वदः / चरादीनां वा द्वित्वं पूर्वस्य आक् अप्रत्यये 5 / चराचरः / चलाचलः / हन्तेहस्य घत्वं च वा 6 1 स्पष्टमिति क-ख-पुस्तकयोर्विशेषः / युकारस्यानः, वुणः अक आदेश: स्यात् / तयोरकारान्तत्वाद् देव-जिनवद्रूपाणि / 'आतो युक्' दायकः / गायतीति गायकः / 2 कस्य कित्त्वाद् गुणो न स्यात् / 3 प्रीञ् तर्पणे / कृ विक्षेपे / जानातीति ज्ञः, कित्त्वाद् ' आतोऽनपि' इत्यनेन सूत्रेणाऽऽकारस्य लोपः / 4 उपसर्गपूर्वादादन्तधातोः कः प्रत्ययः स्यात् / 5 अत्र स्थाने ' चराचरादयो निपात्याः / इत्येव पुस्तकद्वये पाठः / चरिचलि-पति-वदयश्चरादयः / पतापतः। वदावदः / आगागमसामर्थ्यादत्र ' हूस्वः / ' पूर्वस्य हसादिः शेषः' इत्यादिसूत्राणि न लगन्ति / 6 हन्ते द्वित्वं पूर्वस्य हस्य घत्वं वाऽप्रत्यये परे, चंकारात् पूर्वस्य आक्, उत्तरहस्य तु 'पूर्वाद्धन्तेर्हस्य घः' इति घः / घनाघनो घनो मेघः, इति धनञ्जयनाममाला / पक्षे हन्तीति हनः / ततो वेगानलोत्पातपतापतघनाघनः, इति त्रिषष्टिचरिने / Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / घनाघनः / पाटूपट: 1 // नन्दनः 2 वर्धनः / क्रमणः / शोभनः / , साधनः // ग्राही / उत्साही / अवाची 3 / अपराधी 4 / 9 दृशादेः शः / दृश्-पा-घ्रा-धमा धेटा शः। 10 शिति चतुर्वत् कार्यम् 5 / पश्यः / पिनः / निनः / धमः / धयः / 11 घ्रः संज्ञायां न शः 7 | व्याघ्रः / 12 ज्वलादेर्णः 8 / ज्वालः / तापः / 13 आदन्ताच्च / दायः / पायः / 1 " पाटेजिलुक् चोक् दीर्घश्च पूर्वस्य " पूर्व जिलुक् ततो द्वित्वं तत ऊगागमपूर्वदी? स्तः, पाटयतीति पाटूपटः, पक्षे पाटः। 2 नन्द्यादिः 'युवोरनाको' नन्दनः (आह्लादकः) / 3 न वक्तीति अवाची 'ननि' इति तत्पुरुषसमासः इनां शौ सौ' इति दीर्घः / 4 अपराध्यतीति अपराधी / 5 चतुषु तिवादिप्रत्ययेषु यत्कार्य भवेत् तत् शित्प्रत्ययेऽपि भवेदिति भावः / 6 धयतीति धयः / स्तनं धयतीति स्तनंधयो बालः / 7 इदं सूत्रं पुस्तकद्वयेऽपि नास्ति / विशेषेण आजिघ्रतीति व्याघ्रः ' उपसर्गे आदन्तात् ' इति कः. 'आतोऽनपि इति आलोपः। 8 ज्वल ज्वलने / तप संतापे / णित्त्वात् 'अत उपधायाः' इति वृद्धिः / Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 14 कार्येऽण् / कर्मण्युपपदे धातोरण स्यात् / कुम्भकारः 1 / 15 आतो डः / कर्मण्युपपदे आदन्तात् डः स्यात् गोदः / धनदः / - 16 नाम्नि च। नाम्न्युपपदे धातोर्डः स्यात् / द्विपः 2 / द्विजः / 17 उरगादयो निपांत्याः / उरगः उरङ्गः 3 / मुजगः मुनङ्गः / तुरगः तुरङ्गः / विहगः विहङ्गः। 18 अटो / नाम्नि कार्ये चोपपदे धातोरटौ स्तः / कर्णेजपः 4 / कुरुचरः / पूनाऽर्हः / यशस्करः / 1 शास्त्रं करोतीति शास्त्रकारः / सम्मतितर्क ( तर्कग्रन्यं ) करोतीति सम्मतितर्ककारः सिद्धसेनदिवाकरः / 2 द्वाभ्यां मुख-शुण्डाभ्यां पिबतीति द्विपो हस्ती / द्वाभ्यां जन्मसंस्काराभ्यां जायते इति द्विनो विप्रः / गृहेर्दारैः सह गृहे वा तिष्ठतीति गृहस्थः / नाममात्रोपपदे सति डः स्यात् / डित्त्वात् टिलोपः / 3 उरसा गच्छतीति उरगः सर्पादिः, भुजाभ्यां गच्छतीति मुनगो नकुलादिः, तुरेण रंहसा गच्छतीति तुरगः अश्वः, विहायसा व्योम्ना गच्छतीति विहगः शुकादिखेचरः / 4 कर्णेजपस्तु दुर्जनः, इति हैमः / कर्णे जपतीति सप्तम्यलुक्समासः। पूजामर्हतीति पूजा: वीतरागः / यत्र टप्रत्ययस्तत्र स्त्रियां Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - कृदन्तप्रकरणम् / 19 इ-ख-खि / नाम्नि कार्ये चोपपदे धातोरि-ख-खि इत्येते स्युः 1 / शकृत्करिः / फलेग्रहिः 2 / 'त्रितः' सूत्रेण ईप् स्यात् , तेन यशस्करी विद्या इत्यादि सि यति / एवं कर्म करोतीति कर्मकरः, पार्श्वशयः, धर्मकरः, स्तम्बेरमः इत्यादिप्रयोगा अनेनैव सूत्रेण सिध्येयुः। 1 एभ्य इप्रत्ययः स्यात्शकृत्-स्तम्बात् कृमः, फले-रजो-मलाद् ग्रहः, हनः / दृति-नाथाद् , देव-वातादापः कर्तरि वाच्य इः // 1 // एभ्यः खप्रत्ययः स्यात्करीष-कूल-सर्वाभ्रात् कषः, प्रिय-वशाद वदः / ऋति-मेघ-भयात् कृनः क्षेम-भद्र-प्रियात्तु वा / / 1 / / आशिताच्च मुंवो भावे करणे च, तुराद मुजात् / विहायसः सुतोरोभ्यां हृदयाच्च जनात् प्लवात् // 2 // गच्छतेः प्रत्ययः खः स्याद्, ज्ञेयं गत्रैर्यथायथम् / एभ्यः खिः स्यातवर्या वदन्ति विद्वांसो भृनो धातोस्तु खिर्भवेत् / आत्मन्-कुक्ष्युदरेभ्यश्च सम्यम् बोध्यं मनीषिभिः // 1 // 2 फलानि गृह्णातीति फलेपहिः, एदन्तत्वं निपात्यते / एवं स्तम्बकरि-तिहरि-नाथहरि-देवापि-वातापयोऽपि. बोध्याः / इ-खि... प्रत्ययान्तानां हरिवद्रूपाणि / Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 20 खिति पदस्य / खिति परेऽनव्ययस्य पूर्वपदस्य मुम् / / सर्वकषः / 21 वाचंयमादयो निपात्याः 2 / वाचंयमः / द्विपंतपः / परंतपः / उदरंभरिः / आत्ममरिः / - 22 एजां खश् / जनमेजयः 3 / पण्डितमन्यः / अरुंतुदः / 1 खिदन्ते उत्तरपदे पूर्वपदस्य मुम् . इति क-पुस्तके पाठः, मुम्स्थाने नुम् इति ख-पुस्तके पाठः / कूलं कषतीति कूलंकषा सरित् / करीषंकषः पवनः / अभ्रंकषो वातः / 2 य प्रयोगा: सूत्रैर्न सिध्यन्ति ते निपात्याः / वाचं यच्छतीति वाचंयमो मुनिः ( मौनव्रतधारी ) / परं शत्रु तापयतीति परतपः / आत्मानं विभतीति मुमनन्तरं 'नाम्नो नो.' इति नस्य लोपः, आत्मभरिः स्वार्थंकलम्पट इत्यर्थः / 3 एज़ कम्पने। जनं एजयतीति जनमेजयः / आत्मानं पण्डितं मन्यते इति विग्रहः / एभ्यः खश् स्यात्न्यन्तैजे:, मन्यतेः, मुञ्ज-कूलास्य-पुष्पतो धयेः / नाडी-मुष्टी-शुनी-पाणि-कर-स्तनात् सनासिकात् // 1 // मुज॑धयः / पुष्पंधयः / स्तनधयो बालः / " खशन्ते पूर्वपदस्यानव्ययस्य हूस्वः" धेड्-माधात्वोरक्यं तेन मुष्टी धयतीति मुष्टिंधयः मुष्टिंधमः / नासिकंधयः नासिकंधमः। नाडिधयः नाडिं'धमः / करंधयः करंधमः इत्यपि स्यात् / Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / 1927.. 23 भजां विण 1 / 24 वेर्लोपः। 25 सहेः षः साढि 2 / साढिरूपे सति सहेः सत्य षः स्यात् / तुरापाट् / मारवाट / 26 अभूततद्भावे कुम्वस्तियोगे नाम्नश्विः 3 / (च्चौ दीर्घ ई चास्य) च्वौ अवर्णस्य ईः, इदुतोर्दीवः / शुक्लीकरणम् / हेतूकृतम् / . 27 च्चो सलोपः 4 / सुमनीभावः / 1 भन-सह-वहाम् / विणो वेर्लोपः,. णकारो वृद्ध्यर्थः / सुखं भजतीति सुखभाक ग, एवं दुःखभाक् , धर्मभाक् / 2 सहेस्माढि इति क-ख-पुस्तकयोः पाठः / तुरां वैरिवेगं सहते इति तुरापाट्-ड् इन्द्रः / भारं वहतीति भारवाट्-ड् ‘वावप्ताने / / शसादौ स्वरे तु 'वाहो वौ शसादौ स्वरे सूत्रेण मारोहः / मारोहा / भारौहे इत्यादि / एवं विश्ववाडादिः / 3 पूर्व न भवेत् पश्चाद्भवति सोऽभूततद्भावस्तस्मिन् / अशुक्र शुक्ल करणमिति शुक्लीकरणम् / मालीभवनम् / अग्नीस्याद् / अहेतुर्हेतुः कृतमिति हेतूकृतम् / 4 अरुष्-चक्षुष्-मनस्-चेतस्-महम्-रहसू-रजम्-सर्पिषादीनां च्वौ परे सलोपो भवेत् / यथा च द्याश्रयमहाकाव्ये-- अरूकुर्वन् रजीकुर्वन् संमुखीभवनो रणे / अस्मानप्युन्मनीकुर्वन् न्यूनीस्यादान्नकः कुतः ? // 19-26 // उच्चक्षूभवतोऽचेतीभवतो मूर्च्छया भटान् / रहीभूते रणे नाहन् यः श्लाघाऽर्हः कथं न सः? // 19-27 // Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम / 28 कचिड्डा / दुःखाकरोति 1 / द्विगुणाकरोति / 29 अव्ययस्य च्चावीत्वं न / दोषाभतं दिनम् / दिवाभूता रात्रिः / 3. आतो मनि-कनिप्-चनिपः / नाम्न्युपपदे 2 आदन्ताद्धातोरेते प्रत्ययाः स्युः / सुदामा / 31 स्थामि / तादौ किति दो-मो-मा-स्थामि: स्यात् 3 / 32 शा-छोर्वा / / 33 अपिद्दा-धा-मा-ग-हाक्-पिबतीनामी: किति हसे, क्विपि वा, न तु क्यपि / सुपीवा 4 / . 1 अदुःखं दुःखं करोतीति दुःखाकरोति विषयः / विविषये नाम्नः मात् प्रत्ययोऽपि वा भवति, मातः सस्य षत्वं न स्यात् , यथा-अनग्निरग्निर्भवतीत्यग्निसाद्भवति / 2 प्राद्युपसर्गानामपि नामसंज्ञा, तेन तेषामपि ग्रहणमत्र / पित्त्वात् तुक्, कित्त्वान्न गुणः, इकारस्येत्संज्ञा / सुष्ठु ददातीति सुदामा, नान्तत्वात् 'नोपधायाः , ' नाम्नो नो लोपशधौ, इत्यादिसूत्र राजन्वद्रूपाणि स्युः / अश्वे तिष्ठतीति अश्वत्थामा, निपातादत्र सकारस्य तकारः / 3 दो अवखण्डनं दितम् , पो अन्नकर्मणि अवसितम्, मा माने मितम् , अवस्थितम् , सर्वत्र तेनेति तृतीयान्तः कर्ताऽध्याहार्यः / 4 सुष्ठु पिबतीति सुपीवा, अत्र क्वनिप् / Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / 159 34 अनादन्तादपि / सुकर्मा 1 / 35 इस्वस्य पिति कृति तुक् 2 / प्रातरित्वा / 36 क्किए / धातोः क्विम् स्यात् 3 / कर्मकृत् / अग्निचित्। सोमसुत् / सोमपाः / __? सुष्ठु करोतीति सुकर्मा / सुष्ठु शृणातीति सुशर्मा / अपिशब्दान्निरुपपदेभ्योऽपि, तेन सुत्वा, धीवा, पीवा,इत्यादि / 2 तुक् आगमो न तु प्रत्ययः, कित्त्वादन्ते, उक् इत्यस्येत्संज्ञा / इण गतो, प्रातरेतीति प्रातरित्वा, अत्र क्वनिप, कनिपः कित्त्वाद् धातोरगुणः, पित्त्वाद् धातोस्तुगागमः, नकारान्तत्वाद् यज्वन्वद्रूपाणि / " वनिपि ञमस्याऽऽत्वम् " विजायते इति विनावा विजावानौ / ओण अपनयने, ओणतोते अवावा, अत्र णकारम्याऽऽत्वे, ओकारस्यावादेशः, राजन्वद्रूपाणि / " ईपि वनो नस्य रो वाच्यः " इत्वरी अवावरी इत्यादि / 3 सोपपदेभ्यः केवलेभ्यो, वा सर्वधातुभ्यः क्विम् स्यात् / क्विपि कपावित्संज्ञको 'वेर्लोपः' इति विलोपः / विप्प्रत्ययो धातोनौमत्वं विधाय सर्वथा लुप्यतीति भावः / कर्म करोतीति कर्मकृत्-द्, इस्वत्वात् तुक ' वावसाने ' शेष भूभृद्वद् : सोमनाम्नी लतां पिबतीति सोमपाः / शसादौ स्वरे तु 'आतो धातोर्लोपः ' सोमपः / सोमपा इत्यादि / तीर्थ करोतीति तीर्थकृत् / धर्मदीपिकां करोतीति धर्मदीपिकाकृत् श्रीमङ्गलविजयोपाध्यायवर्यः / केवलाद् यथादिशतीति दिक् / पश्यतीति हक् / भिनत्तीति भिद् इत्यादि। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / __ 37 वचि-प्रच्छि-आयतस्तु कटा-जु-श्रीणां दीर्घोsसंप्रसारणं च किपि 1 / वाक् / तत्त्वप्राट् / सुश्रीः। 38 ध्यायतेः किपि संप्रसारणम् / सुधीः / 39 गमादीनां अमस्य लोपः किपि, क्यपि वा, द्वित्वं च 2 / गच्छतीति जगत् / 40 आशासः कावुपधाया इत्वम् / आशीः 3 / 41 किति झसे कौ अमे च छस्य शो वस्य / अक्षयः 4 / 42 रेफाच्छोलोपः / मृ: 5 / धः / 1 वचि-प्रच्छ्योरसंप्रसारणम् / आयतं स्तौतीति आयतस्तूः / कटं प्रवते इति कटपूः / जु गतो, जवतीति जुः / सुष्ठु श्रयतीति सुश्रीः / एवं क्विवन्तेषु नहि-वृति-व्यधि-वृषि-रुचि-पहितनिषु परेषु पूर्वपदस्थोपसर्गकारकस्यान्तस्य दीर्घो विधेयः / 'नहो धः' उपानत् / नीवृत् / मर्माणि विध्यतीति मर्मावित् / वृष वृष्टौ / प्रावृड् / नीरुक / 2 गम्-यम्-नम्-हन्-तनादीनाम् / अङ्गं गच्छतीति अङ्गगत् / सुष्टु यच्छतीति सुयद् इत्यादि / “द्युतिगमि-जुहोतीनां क्विपि क्वचिद् द्वित्वम् " दिद्युत् / जगत् / "जुहोतेर्दीर्घः " जुहुः / 3 आशास्ते इति * वोर्वि हसे / आशीः / 4 अर्दीव्यतीति अक्षयूः / 5 मुर्छा मोहसमुच्छ्राययोः, मूछतीति मः। धुर्वि हिंसायाम् , धुर्वतीति धूः। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / ....... 161 ___43 दृशेष्टक्-सको चोपमाने कार्ये / उपमाने कर्मण्युपपदे दृशेष्टकू-सको स्तः, चात् किम् 1 / / 44 आ सर्वादेः / सर्वादेष्टेरात्वं स्याद् , एषु परेषु 2 // तादृशः / तादृक्षः / तादृक् / / 45 किमिदमः कीम् / किमः कीः, इदम ईश् स्याद् / रक्-दृश-हक्षेषु / कीदृक् / कीदृशः / कीदृक्षः / ईदृशः / 46 अदसोऽभूः 3 / अमूदृशः / 47 णिनिरतीते / धातोरतीते काले शीले च णिनिः 1 सूत्रस्थचकारात् किबपि भवति / 2 हक-दृश-हक्षेषु / स इव दृश्यतेऽपाविति टक्प्रत्यये तादृशः / स्त्रियां तु 'व्रितः ' सूत्रादीप तादृशी / सप्रत्यये 'छशषरानादेः षः' 'पढोः कः से' इति तादृक्षः। स्त्रियां तादृक्षा / कस्यचिन्मते सक् टित् , तेन ‘ष्ट्रव्रितः / तादृक्षी। विपि त्रिषु लिङ्गेषु ताहक् / एवमन्य इव दृश्यतेऽसाविति अन्यादृशः इत्यादि। प्रयोगश्च-युष्माहशामकरुणैकशिरोमणीनां सर्वमहाऽपि विरमत्यनुषङ्गपापात्, इति सत्यहरिश्चन्द्रनाटके / दृशादिषु परेषु युष्मदस्मदोरेकवचने 'त्वन्मदेकत्वे / इत्यनेन त्वत्-मदादेशौ भवतः / त्वमिव दृश्यतेऽसाविति वादृशः त्वादृक्षः त्वादृक् / एवं मादृशः मादृक्षः मादृक् / समान व दृश्यते इति सदृशः इत्यादि / 3 दृशादिषु परेषु / 11 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 सिद्धान्तर स्निका व्याकरणम् / स्यात् / अग्निष्टोमयानी। उष्णमोजी 1 / 48 किब्-वनिब्-डाः / धातोरतीते काले शीले चैते म्युः। अग्निचित् / यन्वा / प्रजा / अनः / परिखा / 49 शत-शानौ तिप्-तेवत् क्रियायाम्। धातोः शतृ. शानौ स्तः क्रियायां गम्यमानायाम्, तौ च तिप्-तेवत् 2 / पचन्नास्ते / 1 उष्णममुक्त, उष्णं भोक्तुं शीलं वा यस्य स उष्णभोजी। स्त्री तु उष्णभोजिनी / शीलं सदा सहभावी स्वभावः, तेन यः कदाचिदुष्णं मुझे न तत्र शीलार्यकप्रत्ययाः / 2 तिवादिषु विकरणप्रत्यय-गुणादि यद्यत् कार्यमुक्तं तत्सर्व शतृशानयोः परयोभवति / प्रयोगश्च जैनकुमारसंभवे-नदद्भिरर्हद्भवनेषु नाट्यक्षणे गभीरध्वनिमिर्मृदङ्गैः / अत्र णद अव्यक्ते शब्दे, भौवादिकत्वादप् , 'ब्रितो नुम्' 'हसेपः सेर्लोपः' 'संयोगान्तस्य लोपः' नदन् नदन्तौ / आदादिकस्य माधातोः, मान् मान्तौ मान्तः, प्रयोगस्त्वयम्-माता न माता हृदि संमदेन, इति जैनकुमारसंभवे / परस्मैपदितः शतृप्रत्ययः, आत्मनेपदितः शानप्रत्ययो भवति / वयः-शक्तिशीलार्थे तु सकलधातुभ्योऽपि शान एवेति सिद्धहेमचन्द्रमतं, निदर्शनं तु क्रमतः-चुलुकेषु चला वहमान ऐमं दलमान आत्मानमशंसमानः, इति संस्कृतव्याश्रयमहाकाव्ये / णकारविधायके उपसर्गस्थनिमित्ते सति धातोर्नस्य णः स्यात् , प्रणमन्तो जिनं देवं प्रापुर्योदपरंपराम्, इति हिमांशुविजयोऽनेकान्ती। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / 163 50 मुगानेशः / अतः शाने मुक् स्यात् / पचमानः / 51. आसेरान ईः / आसीनम् / 52 विदेर्वा वचः / विद्वान् 1 / विदन् / 53 भविष्यति स्यपः शत-बानौ। करिष्यन् / करिप्यमाणः / 54 आरतः किदिश्व भूते / आदन्तादृदन्ताजनि-गमिनमिभ्यः किः प्रत्ययः स्याद्भते शीले, घातोश्च द्वित्वम् / पपिः२। चक्रिः / जनिः / नेमिः / जग्मिः। 55 कसु-कानौ णदेवत् 3 / धातोरतीते काले एतौ स्तः। तौ च णवेवत् / ततो द्वित्वम् / चकृवान् / चक्राणः / 1. वेत्तीति विद्वान्, 'वितो नुम्' 'सम्महतो.' विद्वांसौ / शसि तु ' वसोर्व उः' विदुषः / शतृपक्षे विदन् विदन्तौ / शसि विदतः / 2 आदन्ताः-पा पाने 'आतोऽनपि' पपिर्नाम पीतवान् पानशीलः / एवं दधिः, ददिः / ऋदन्ताः-'ऋरम्' वनिः / आजहिः / दध्रिः / यथा चोक्तं मुनिहिमांशुविजयेन पपिनीरं महात्मा स चक्रियानं ततो महत् / स्वस्थो जज्ञिः पुरं जग्मिर्नेमिच्दा जिनेश्वरम् // 1 // नमधातोः पचादितुल्यत्वेन पूर्वलोप एकारश्च / 3 णवेवदिति वचनाद् द्वित्वं पचसदृशानां पूर्वलोपादिकार्य च स्यान्न तु वृद्धिः, Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 सिद्धान्तरलिका व्याकरणम् / , 56. द्वित्वे. सत्येकस्वरादादन्ताद् घसेच वसोरिद नान्यस्मात् 1 / जक्षिवान् / 57 गम-इन-विद-विव-दृशां वा / जग्मिवान्, 2 / जगन्वान्। "58 कक्तवत् / धातोरतीते काले एतौ स्तः / तो भावयतस्तत्र ककारौ वृद्धि-गुणप्रतिषेधको, उकारो 'त्रितो, नुम् ' 'व्रितः / इत्यादिसूत्रसाफल्यार्थकः / भूतकालमात्रे एतौ प्रत्ययौ परस्मैपद्यात्मनेपदिभ्यो धातुभ्यो यथाक्रमं भवेताम् / प्रयोगन धर्मदीपिकाप्रशस्तौ' ततो बभूवत्सु महामहस्सु सूरिष्वनेकेषु तदीयपट्टे / .. क्रमाद् बभूवान् प्रभुहीरसूरिः सूरीन्द्रमौलिमुकुटायमानः // 1 // स्त्रियां तु वितः 'वसोर्व उः' 'ऋरम्' चक्रुषी, बभूवुषी इत्यादि / काने भेजानः, पेचानः। 1 द्वित्वे सत्येकस्वरा यथा-अद् भक्षणे,आद इति आदिवान् आदिवांसौ / शसादौ तु 'वसोर्व उः' इति क्स्य उः, 'निमित्ताभावे नैमित्तकस्याप्यमावः / अनया परिभाषया इडमावः आदुषः / आदुषा / ऋ गतौ, आर इति आरिवान् / आरुषः / स्त्रियां आरुषी। आदन्ता यथा-ददरिद्रिवान् ‘आतोऽनपि / / नान्यस्मादिति किम् ? बभूवान् / निजिवान् / 2 ‘गमा स्वरे' जग्मिवान् , इडमावे ' मो नो धातोः / जगन्वान् / 'हनो ने। अनिवान् जघन्वान् / एवं विदादीनामपि रूपाणि स्युः / Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् | 195 कार्ययोः। क्तवतुस्तु कर्तवैव / कृतः कटः 1 / घटं कृतवान् कुलालः। 59. गत्यर्थादकर्मकाच कतरिक्तः। गङ्गां गतः। स्थितः। 60 अमान्तस्य किति झसे दीर्घः कौ च / शान्तः / दान्तः / 61 श्लिष्-शी-स्था-आस्-वस्-जन्-रुह-जीर्यतिभ्यश्च 2 / रामः सीतामाश्लिष्टः / शय्यामधिशयित: / स्वर्गमधिष्ठितः। देवमुपासितः / व्रतदिनमुपोषितः / तमनुनातः / वृषमारुढः / जग-- दनुजीर्णः। 62 क्तो वा सेट् / उदुपधात् सेट् क्तो वा कित् 3 / युतितं द्योतितम् / 1 डुकृञ्धातोः सकर्मकत्वादन कार्ये क्तोऽस्ति, ततः कारुणा इति कर्तुरध्याहारः / अनयोः प्रत्यययोः पदनियमो नास्ति, तेन सर्वधातुभ्यो भाव-कर्मणोः क्तः, कर्तरि तु क्तवतुः स्यात् / दृष्टः दृष्टवान् / पुरा पराऽऽरोहपराभवस्यावश्याः कशाकष्टमदृष्टवन्तः, इति कविशेखर श्रीजयशेख विरचिते जैनकुमारसम्भवे। 2 कर्तरि भावकार्ययोश्च क्तः / यद्यप्येते धातवो निष्कर्मकास्तथाऽप्यकर्मकोऽप्युपतर्गवशात् सकर्मकतामनुभवतीति वचनात् सोपसर्गतयैतेषां सकर्भकत्वे करिप्रयोगेऽपि क्तः प्रत्ययो भवेदिति तात्पर्यम् / 3 क्षान्त्यर्थकमृष्धातोश्चेत्यपि योन्यम् , संमृषितं समर्षितमिति प्रयोगद्वितयोपलब्धेः। .. Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 163 सिद्धान्तरलिका व्याकरणम् / .. 63 शीडादिभ्यः सेटौ क्त-क्तवतू न कितौ 1 / शयितः। शयितवान् / 64 कितः / उवर्णान्ताहवर्णान्तात् श्वि-श्रिभ्यां च परस्य कित इण्न / भूतः। वृतः / श्रितः / / - 65 वेबो ह्रस्वः / उतम् 3 / . 66 आदीदितः / आदित ईदितश्च क्त-क्तवत्वोर्नेट / 67 बीतां तो वर्तमानेऽपि / जीतां धातूनां मति-बुद्धिपूनार्थानां च वर्तमानेऽपि क्तः 4 / , 1 आदिग्रहणात् स्विदि-मिदि-क्ष्विदि-धृष-पूड़ां ग्रहणम् / प्रसिध्विदे इति प्रस्वेदितः प्रस्वेदितवान् / एवं वदितः इत्यादि / पूङ शोधनार्थकः, पूङ पवने इति सदानन्दगणयः। " पूङः वा कितस्तस्येट " पवितः पूतः। पवितवान् पूतवान् / 2 वीरं बुधाः संश्रिताः / सुषावेति सुतवान् / अस्तावीदिति स्तुतवान् / नुतः / अकारीति कृतः / दधे इति धृतः / अतारीदिति तृतवान् / टुओश्विइर गति-वृद्ध्योः , " श्वयतेः संप्रप्तारणस्य दीर्घत्वं क्ते" शूनः शूनवान् , 'स्वाद्योदितश्च' इति भाविसूत्रेण तस्य नत्वं भवति / 3 किति ते। वेञः संप्रसारणानन्तरमूकारस्य हस्वत्वं उतम् इति रूपं भवति क्लीबे। 4 जिरियेषां ते जीतस्तेषां / जिमिदा स्नेहने, उत्तरसूत्रेण तकारस्य दकारस्य च नत्वे कृतं मिद्यते इति मिन्नं स्यात् , मिद आकारेत्त्वात् " भावे कर्तरि, चाऽऽदितः Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 दस्तस्य नो दश्च / दात्परस्य कितस्तस्य नत्वं स्याद् दस्य च / मिन्नम 1 69 अदो जघुः 2 / किति ते / जग्धम् / / 70 रः / रेफात् कितस्तस्य नत्वं स्यात् / कीर्णम् 3 / जीर्णम्। तस्येड् वा" 'शीडादिभ्यः सेटौ०' इति सूत्राभ्यां सेट्पक्षे मेदितं भवति / एवं निविदा-मिश्विदाप्रभृतीनामपि-विज्ञेयम् / प्रस्तुतसूत्रे 'वर्तमानेऽपि' इत्यत्रापिशब्दनिबन्धनाद् ज्ञा-पूजा-इच्छामत्यर्थानां शीलादीनाञ्च धातूनां वर्तमानकालेऽपि कर्तरि कर्मणि भावे च क्तप्रत्यय स्यात् / जानातीति ज्ञातः, बुध्यतीति बुद्धः, पूजयति महीयते वेति पूनितो महितो वा श्रीहेमचन्द्राचार्यः सिद्धराजनृपतेः / राज्ञामिष्टो मतो वा सूरिमतल्लिका श्रीविनयधर्मसूरीश्वरः / शीलयतीति शीलितः / एवं कर्म-भावप्रयोगेष्वपि वेद्यम् / अत्र षष्ठीविभक्तिस्तु “क्तस्य च वर्तमाने " इति सूत्रेण समागता मन्तव्या / 1 भिद्यते स्मेति भिन्नमिति भावे कर्मणि च, कर्तरि तु अभैत्सीदिति भिन्नवान् / 2 अद्धातोः स्थाने जघुरादेशः स्यात् , उ इत्संज्ञकः, 'तयोधः, 'झबे जबाः' इति सूत्राभ्यां जग्धं स्यात् / 3 क विक्षेपे, कीर्णम् / ज्या वयोहानौ, जीर्यतेस्मेति जीर्णम् / Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158 सिद्धान्तरलिका व्याकरणम् / .. 71 ल्वाधोदितश्च / त्वादेरोदितश्च धातोः कितस्तस्य नः स्यात् / लूनः 1 / मुग्नः। 72 क्षियो दीर्घ कर्तरि क्सक्तवत्वोनत्वं च / क्षीणः 2 / क्षीणवान् / . 73 यलसंयोगादेरादन्तात् कितस्तस्य नत्वम् 3 / द्राणः / ग्लानः / 74 क्वचिद्वा 4 बातः त्राणः / प्रातः घ्राणः / हीतः हीणः / वित्तः विनः / निर्वातः निर्वाणः / ... 75 दो दत्ति / दा इत्यस्य दथ् , किति ते, न पितः 5 / दत्तः दत्तवान् / 1 लूयते स्मेति लूनः, क्तवतौ तु लुलावेति लूनवान् , एवं धूयते स्मेति धूनः, जीर्यते स्मेति मीनः इति यादिस्यल्वादेनिदर्शनानि; भुजो कौटिल्ये, मुन्यते स्मेति मुग्नः, ओहाक त्यागे, हीनः, इत्योदिद्धात्वोनिदर्शने / 2 क्षि निवास-गत्योः, क्षि क्षये, अक्षैषीदिति क्षीणः क्षीणवान् / क्षीणाशेषनिनप्रतापविसरः संत्रुट्यदाशास्थितिः, इति श्रीहेमचन्द्रसूरिशिष्यतल्लजः श्रीरामचन्द्रसूरिः सत्यहरिश्चन्द्रनाटके। भावे क्षीतम् / 3 यलप्रत्याहारसंयोगाद्याकारान्तधातोरिति भावः / द्रा कुत्सायां स्वप्ने वा, द्राणः / स्त्यानः / 4 नुद्-विद्-उन्द्-त्रा-घा-ही-निर्वाधातुषु वा नः स्यादिति दिक् / नुद्यते स्मासाविति नुत्तः नुन्नः, उन्दी क्लेदने, उत्तः उन्नः / 5 दाप लवने इत्यादिपकारेद्धातूनां दथ् न स्यादिति Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / 79 धालो हिः किति ते / हितम् / 77 पचो का / पक्वः पक्ववान् / 78 शुषेः कः / शुष्कः / ". 79 दान्तादयो वा निपात्यन्ते / दान्तः दमितः / पूर्णः पूरितः / तूर्णः त्वरितः / प्यानः पीनः 1 / / 8. फुल्लादयश्च निपात्यन्ते 2 / फुल्लः / क्षीवः / 81 क्त-क्तवत्वोरिटि विलोपः। पाचितः पाचितवान् 3 / 82 स्थैर्य-गति-भक्षणार्थेभ्योऽधिकरणेऽपि क्तः / हरेरासितं यातं मुक्तं वा 4 / 83 पूर्वकाले क्त्वा / . भावः / डुदाञ् दाने 'खसे चपा झसानाम् ' दत्तः / पित्वातोस्तु दातः / स्वरान्तादुपसर्गात्तु "स्वरात्तो वा इति सूत्रेण दा इत्यस्य तकारो वा भवति, तेन प्रत्तः प्रत्तवान्, पक्षे प्रदत्तः प्रदत्तवान् / 1 एवं दस्तः दासितः, ज्ञप्तः ज्ञपितः, ' रुष्टः रुषितः, अम गत्यादौ, आन्तः अमितः, शान्तः शमितः, हृष्टः हृषितः इत्यादीनामपि ग्रहणं कर्तव्यम् / 2 'फुल्लादयश्च' इयन्मात्रमेव कख-पुस्तकयोः सूत्रमस्ति / क्षीवः मत्तः इत्यपि पुस्तकद्वये / 3 एवं भावितः भावितवान्, चोरितः चोरितवान् / 4 हरेरितीह " वर्तमानाधारार्थक्तस्य योगे षष्ठी” इति षष्ठीविभक्तिः / Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. सिद्धान्तरनिका व्याकरणम्। 84 क्त्वा सेट् किम / वर्तित्वा / शयित्वा / ... 85 मुषादिभ्यः क्त्वा कित् 1 / मुषित्वा। विदित्वा / गृहीत्वा। 86 नोपधात् य-फान्ताद्वा कित् / प्रथित्वा प्रन्थित्वा / गुफित्वा गुम्फित्वा / 87 उदितः क्त्वो बेट् / भ्रमित्वा भ्रान्त्वा / 88 समासे क्यप् / समासे . सति धातोः पूर्वकाले क्यप् 2 / प्रणम्य ददाति दानम् / 89 लघुपर्वात् अरय क्यपि / परिगणय्य / 90 आप्नोतेर्वा / प्रापय्य प्राप्य / 91 क्यपीत्वं न 3 / प्रदाय / प्रस्थाय / 92 तुम् तदर्थायां भविष्यति / धातोर्मविष्यति काले 1 आदिशब्देन मृड-मृद-गुध-कुष-क्लिश-बद-वस-रुद-विद-ग्रहाणां ग्रहणम् / 2 समासश्चेत्तर्हि धातुमात्रात् क्त्वाविषय एव क्यप् प्रत्ययः स्यात् / क्यपि ककारो गुणप्रतिषेधाय, पकारस्तु 'हस्वस्य पिति कृति तुक् , इत्यर्थः / क्ता-क्यपौ 'क्त्वाद्यन्तं च ' सूत्रेणाव्ययसंज्ञको / सम्यग् भूत्वेति संभूय / आ हुत्वेति आहृय / 3 * दादेरिः / इत्यस्य बाधकमिदम् / निधाय / प्रमायेत्यादि / Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * कृदन्तप्रकरणम् / तुम् प्रत्ययः स्यात्तदायां क्रियायां प्रयुज्यमानायाम् 1 / भोक्तुं बनति / पठितुं तिष्ठति / 93 कचिनाम्न्युपपदेऽपि / अध्येतुं वेला / भोक्तुं पर्याप्तः / श्रोतुं कुशलः / 94 काम-मनसोस्तुमो मलोपः। कर्तुकामः। पठितुमनाः। ___95 पौनःपौन्ये णम् पदं द्विश्च / पूर्वकाले धातोः पौनःपौन्ये णम् स्यात् 2 / णमन्तं च पदं द्विः / स्मारं स्मारं हसति / 96 कयमादिषु 3 स्वार्थे कृषो णम् द्वित्वाभावश्च / कथंकारम् / एवंकारम् / 97 घञ् भावे 4 / 1 तुमन्तमप्यव्ययसंज्ञकं भवति / 2 धातुमात्राट् णम् भवति, तदन्तं चाव्ययम् / प्रयोगस्तु वेदं वेदं सकलसमयं प्राप्तशान्तस्वभावः / . स्वर्गस्थोऽसौ विलसति सुखं मद्गुर्वृद्धिचन्द्रः // इति महनीयनामानो गुरुदेवश्रीविजयधर्मसूरीन्द्राः / 3 आदिशब्दन्यासाद् अन्यथाकारं इत्थंकारं च वैद्यम् / 4 भवनं भावः / करणं कारः / वदनं वादः / धातुमात्रादेष प्रत्ययः स्यात् / स च नान्यपदाधीनो भवेत्तदा पुँल्लिङ्गे एव स्यात्, उक्तं च / स्वकीयलिङ्गानुशासने श्रीहेमचन्द्राचार्यैःपुल्लिङ्गं क-ट-ग-थ-प-भ-म-य-र-ष-स-स्न्वन्तमिमनलौ किश्तिव / न-नौ व घनौ दः कि वे खोऽकर्तरि च कः स्याद् // 1 // Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 272 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 3. 98 च-जोः क-गौ घिति / पाकः / त्यागः / 99 कारकेऽपि 1 / प्रत्याहारः / उपाध्यायः / 100 स्वरादः / स्वरान्तादः स्याद् मावादौ / चयः / ‘नयः 2 / 101 द्वितोऽथुः / मावादौ / वेपथुः 3 / श्वयथुः / 102 ड्डितस्बिमक् तत्कृते / डितो धातोखिमक् स्याद धात्वर्थेन कृतेऽर्थे / कृत्रिमः 4 / पवित्रमः / 103 नङ्-की। धातोर्नङ्-की भावादौ / याच्या। यत्नः। 104 प्रच्छ-विच्छोः शो नेऽसंप्रसारणम् / प्रश्नः 5 / विश्नः / आधिः / पाथोधिः / . 1 कर्तृवर्जिते कारकेऽपि घन् / प्रत्याहियते यः स प्रत्याहारः। प्रत्याहारस्त्विन्द्रियाणां विषयेभ्यः समाहृतिः, इति हैमकोषः / उप-समीपं गत्वाऽधीयतेऽस्मादित्युपाध्यायः पाठक इत्यर्थः / 2 एवं प्रभवः, विजयः, विषयः, स्तवः, करः, सवः इत्यादि / मदः, पणः, श्रमः इत्यादयस्तु " मदामः " सूत्रात् सिध्येयुः / 3 टुवेपृ कम्पने, टुओश्विइर् गति-वृद्धयोः, वेपनं वेपथुः, प्रयोगश्च शाकुन्तले-अद्यापि स्तनवेपथु जनयति श्वासः प्रमाणाधिकः / नन्दथुः, याचथुः / 4 करणेन निवृत्तं कृत्रिमं अस्वाभाविकमित्यर्थः। डुवप् बीन-तन्तुसन्ताने, यजादित्वात् संप्रसारणम् , उत्रिमं धान्यम् / 5 पृच्छयते तत्त्वमनेनेति प्रश्नः। एवं यज्ञः, Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृरन्तप्रकरणम् / 105 युट् भावे / ज्ञानम् 1 / करणम् / 106 करणाधारयोश्च / पचनोऽग्निः / पचनी 2 स्थाली। 107 सियां यजा भावे 3 / यजादेर्धातोः स्त्रियां मावे क्यप् / इन्या / शय्या / हत्या। स्वप्नः, रक्ष्णः, व्याधिः, अन्तद्धिः, समाधिः इत्यादयः / आधिः मनःपीडा / वामाः कुलस्वाधयः, इति कालिदासः, वामा इति कुलटाः स्त्रियः / पाथः जलं धीयते स्थाप्यतेऽस्मिन्निति पाथोधिः समुद्रः, एवं जलधिः, नीरधिः, पयोधिः,अम्भोधिः, अब्धिः इत्यादि। 1 “युवोरनाको / इति अनः / ज्ञायन्ते जीवाजीवादयो हेयादयो वा पदार्था येन तद् ज्ञानं ज्ञप्तिः / एवं भवनं, अदनं, हवनं, देवनं, सवनं, रोधनं, नोदनं, पवन, कीर्तनमित्यादि / सर्वधातुभ्योऽयं प्रत्ययः स्यात्, एतत्प्रत्ययान्तं च पदं मपुंसकलिङ्गे स्यात् , न च पराधीनभूतं भवेत् / 2 पच्यन्ते ओदनादीनि यस्यामिति पचनी, टित्त्वात् 'ट्वितः' इतीप् / 3 यज-व्रज-समर-निषद निपत-मन-नम-विद-षुञ्-शी-भृञ्इण-कृ-इषु-परिसृप-परिचर-अटाट्य-आस-चर-जागृ-हन इत्येते यजादयः / यजादिष्वकार उच्चारणार्थत्वादित्संज्ञक एवं यथासम्भवमन्यत्रापि ज्ञेयम् / इज्यते यजनं वेति इज्या। शी स्वप्ने, 'शीङोऽयङ् ये क्ङिति' शय्यते शेरतेऽस्यामिति वा शय्या / हन्यते या सा " हन्तेस्तः " इति हनो नस्य तकारे हत्या गङ्गा Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 108 क्तिः / धातोः क्तिः स्यात् 1 / मतिः / बुद्धिः / कान्तिः / शान्तिः / 109 हवक्त्योर्नेट 2 / संशीतिः / 110 ग्लादेनिः / ग्लानिः / म्लानिः। 111 ऋ-वादिभ्यश्च / कीर्णिः। गीणिः। लूनिः। धूनिः। वद्रूपाणि / एवं व्रज्या, समज्या, विद्या, भृत्या, जागयेंत्यादि। अत्र भावार्थकप्रत्ययत्वात् किमपि कर्म नास्ति / प्रोचुश्च श्रीउदयधर्ममुनीन्द्रा वाक्यप्रकाशे-तृतीयान्तो भवेत् कर्ता भावोक्तौ कर्म न मवेदिति / ? धातोः स्त्रियां भावे क्तिः स्यात्, इति क-खपुस्तकयोः पाठः / मन्यते मननं वेति मतिः / कमु कान्तौ, क्षमष सहने, 'यमान्तस्योपधाया दीर्घः०, कान्तिरिच्छा दीप्तिर्वा, शान्तिः क्षमा / प्रयोगमाला पुनरियम् - धर्मप्रमो ! तुष्यतु सेवकेऽस्मिन्, वृत्तस्य पुष्टिं च बुधस्य जुष्टिम् / पापस्य रुष्टिं विकृतेश्च शुष्टिम् , मतश्च तुष्टिं विदधातु धीर ! // 1 // इति हिमांशुविजयोऽनेकान्ती / धातुमात्राद् भावी क्तिप्रत्ययः / 2 क-ख-पुस्तकयोरस्य सूत्रस्यैतादृशा वृत्तिः-हबप्रत्याहारान्तस्य क्तिप्रत्ययस्य च नेट् / शीङ् स्वप्ने, संशीतिः संशयः / ग्रहादिधातूनामिट स्यादेव निगृहीतिः। 3 दीर्घऋकारान्त-स्वादिधातुभ्योऽपि तेनिः स्यादिति भावः / कृ विक्षेपे 'ऋत इर् ' 'वो. वि हसे / 'प! णोऽजन्ते ' इति कीर्णिः। . Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रकरणम् / 112 पिद्भिदामह। पितो धातोमिदादेश्च स्त्रियामङ् मावे। पचा 1 / मृना। भिदा / छिदा / क्षिपा / गुहा / 113 गुरोईसात् 2 / स्त्रियामङ् / ईहा। उहा / [कुण्डा)। 114 प्रत्ययान्ताच 3 / चिकीर्षा / लोलूया / कण्डूया। पुत्रकाम्या। 115 ज्यन्तेभ्यो घटादिभ्यश्च 4 / स्त्रियां युः / कारणा। घटना / वन्दना / अर्थना / __ 1 डुपचष् पाके, पच्यते इति पचा / भिद्यते सा भिदा मेदः / एवं मेधा-कृपा-बाधा-क्षादीनामूद्यम् / जरा-इच्छा-एषणादयस्तु निपातनीयाः / 2 हसान्तात्, इति क-पुस्तके / ख-पुस्तकेऽस्य वृत्तौ-गुरुमतो हसान्तात् , इति विशेषः / ईह चेष्टायाम्, ईह्यते इति ईहा / श्रीचन्द्रकीर्तिसूरयस्तु ईह वाञ्छायामिति प्रोचुः। कुडि दाहे, एवं ईक्षा-श्रद्धा-लेखादयः / 3 इच्छाऽतिशयाद्यर्थेषु ये स-यादिप्रत्ययास्तदन्ताद्धातोरपि स्त्रियामङ्ग स्यादिति तात्पर्यम् / डुकृञ् करणे, सान्तादडि चिकीर्षा / लुञ् छेदने, यङन्ताद् लोलूयते इति लोलूया, अङि परे ‘यतः' इत्यलोपः / कण्डू गात्रविघर्षणे / पुत्रकाम्यते इति पुत्रकाम्या / 4 आदिशब्दाद आस-अर्थश्रन्थ-वन्द-विद-इष-ग्रन्थानां ग्रहणम् / घट इति स्थाने बट्ट इति लिखितं पण्डितरामाश्रमेण, तदपि नानुचितम् , मट्टचट्टघट्टना इति रत्नप्रभसूरिकृतायां रत्नाकरावतारिकायां प्रयोगसत्त्वात् / कार्यत इति कारणा 'युवोरनाको' / Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 सिद्धान्तरलिका व्याकरणम् / . 116. तव्यानीयौ 1 / धातोरेतौ स्तो भाव-कार्ययोः / आसितव्यम् / करणीयम् / ..... 117 वसेस्तव्यः कर्तरि णिच / वसतीति वास्तव्यः / 118 स्वरायः / चेयम् / जेयम् / तव्यानीयावपि / चेतन्यः। चयनीयः / - 119 ई चातः / आत ईः स्याये / देयम् / [धेयम् ] / गेयम् / पेयम् / हेयम् / [ स्थेवम् ] / .. 120 पु-शकात् 2 / पवर्गान्ताच्छकादेश्च यः स्यात् / शप्यम् / शक्यम् / सह्यम् / . . . . 121 ऋ-हसान्ताद् ध्यण् / ऋ-हसान्ताद् 3 घ्यण भाव-कार्ययोः / कार्यम् / हार्यम् / वाक्यम् / घात्यम् / 1 एतत्प्रत्ययद्वयान्ताः शब्दा वाच्यलिङ्गा भवन्ति, यथाश्रीविजयधर्मसूरोयप्रमाणपरिभाषाऽऽख्यो ग्रन्थः पठितव्यः पठनीयो वा, प्रबुद्धरौहिणेयनाटकं पठितव्यं पठनीयं वा, तिलकमञ्जरी परिशीलितव्या परिशीलनीया वा / 2 शक-सह-गद-मद-चर-यमतक-शस-चत-यत-पत-जन-हन-शल-रुच इत्येते शकादयः / शप्यमिति पवर्गान्तनिर्देशः / 3 ऋवर्णान्ताद् हसान्ताच्च, इति प्रतिद्वये पाठः / हसान्तेन व्यञ्जनान्तमात्रगृहीतिः। उच्यते इति वाक्यं 'च-जोः क-गौ विति' इति चस्य कत्वम् / हन् हिंसा-गत्योः, 'हनो घत्' घात्यम्। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रक्रिया। 122. ध्यणि कचित्कुत्वाभावः / पाच्यम् / वाच्यम् / 123 ऋदुपधात् क्यप् / कृत्यम् / वृत्यम् / 124 कृपि-नृत्योर्न 1 / कल्प्यम / चय॑म् / 125 मृजो वा / मृज्यं मायेम 2 / 126 इणादिभ्यश्च 3 / इत्यः / स्तुत्यः / 127 [ खन इत्वं क्यपि / खेयम् ] / 128 शासेरिः / शिष्यः। 129 कृवृषोर्वा क्यप् / कृत्यं कार्यम् / वृष्यं वर्ण्यम् / 130 पुष्य-सिध्यौ संज्ञायाम् / पुष्यः 4 / सिध्यः / 131 तव्यादयोऽहेऽर्थे विधौ शक्तौ च 5 / इष्टव्यः, दर्शनीयः / अध्येतव्यः, अध्ययनीयः, अध्येयः / वोढव्यः / 1 कृपेन / कल्प्यम्, इति पुस्तकान्तरे पाठः / 2 क्यपोऽभावे 'ऋ-हसान्ताद् ध्यण 'मृनेवृद्धिः. 'च-जोः क-गौ घिति' इति जस्य गत्वे मार्यम् / 3 इण्-स्तु-वृ-ह-भृ-शास-जुष-खनेभ्यः क्यप् / स्तूयते इति स्तुत्यः / डुभृञ् धारण-पोषणयोः, भ्रियते इति भृत्यो दासः। 4 पुष्य-सिध्याभिधानं नक्षत्रद्वयम् / 5 तव्य-अनीय-य-क्यप्ध्यणस्तव्यादयः पञ्च, ते सर्वेऽर्हादिषु यथाप्रयोगं भवन्ति / अहं योग्यम् / द्रष्टुं योग्यः समर्थो वेति द्रष्टव्यः ‘रारो झसे० ' इति स्त्वम् / एवं दर्शनीयः / क्यपि दृश्य इत्यादि / यप्रत्ययस्तु स्वरा Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 सिद्धान्तर त्निका व्याकरणम् / 132 तव्यादीनां कृत्यसंज्ञा 1 / 133 [ इञ् अजादिभ्यः। आनिः / आतिः ] / इति कृत्लक्रिया। अथोणादयः 2 / 134 क्रादेरुण 3 / कारुः / दारु / चारु। चाटु / वायुः। स्वादु / सानोति स्व-परकार्याणीति साधुः / न्ताद्धातोः स्याद्, अध्येतुं योग्यः समर्थो वेति अध्येतव्यः, अध्येयः / स्तुत्यः / नुत्यः / यथा चोक्तमनेकान्तिना• कार्यो यत्नः सता नित्यं ज्ञानशक्तेः प्रवर्द्धने / स्तव्यो भावाजिनेन्द्रश्च गुरुः सेव्यो महाव्रती // 1 // 1 कृत्याः क्त-खलाश्च प्रत्यया भाव-कर्मणोर्मवन्ति, मणितवन्तश्च श्रीउदयधर्ममुनयो वाक्यप्रकाशे कर्मणि साप्याद्धातोरकर्मकादात्मनेपदं भावे / कृत्य क्त-खलर्थयुतम् , क्ता-तुममाद्याः पुनर्भावे // 28 // साप्याद्धातो म सकर्मकधातोः। " कृत्यानां कर्तरि वा षष्ठी , इति षष्ठी, पक्षे तृतीया, तव त्वया वा पठितव्यः पठनीयः पाठयो वा स्याद्वादरत्नाकरः / 2 आदिशब्देन उ-तु-कनादयो ग्राह्याः / 3 णित्त्वाद् वृद्धिः। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रक्रिया / 179 135 तनादेरुः / तनोतीति ] तनुः 1 / तरुः / सरुः / .. कटुः / वसतीति वसुः / मनुः / [ हन्तीति ] हनुः / 136 मध्वादयो निपात्याः। मधु 2 / सिन्धुः / [ इन्दतीति ] इन्दुः / शिशुः / [ बिन्दतीति ] बिन्दुः / इच्छुः / उणादयः सर्वेषु भूत-भविष्यद्वर्तमानेषु कालेषु भवन्ति, यथाचकार करिष्यति करोति वेति कारु: शिल्पी / दृ विदारणे, दारु काष्ठम् / चर गतो, 'अत उपधायाः ' चरतीति चारु मनोहरम् , विशेषणत्वाद् विशेष्यलिङ्गानुसारेण त्रिषु लिङ्गेषु प्रयुज्यते, एवमन्यत्रापि / चट भेदने, चाटु प्रियभाषणम् / वा गत्यादौ, वातीति वायुः / पातीति पायुर्गुदा / स्वद आस्वादने, स्वदते इति स्वादु मधुरमिष्टश्च / 1 तनु विस्तारे, तनुः काया। तरन्त्यनेनापदमिति तरुर्वृतः। त्सर छद्मगतो, त्सहरसेर्मुष्टिः। कटे वृष्ट्यादौ, कटति निहामिति कटुः रसविशेषः / वसुरग्न्यादिः / हन हिंसागत्योः, हनुः / मन ज्ञाने, मनुमन्त्रः / एवमाशु-जरायुप्रभृतीनामपि स्वयमूह्यम् / 2 मन ज्ञाने, मन्यते इति मधु मद्यं पुष्परसश्च / स्यन्दू प्रस्रवणे, स्यन्दते इति सिन्धुः, निपातनात् संप्रसारणधकारी, देशे नदविशेषेऽब्धौ सिन्धुरित्यमरः / शो तनूकरणे, श्यतीति शिशुलिः / बिदि अवयवे, ' इदितो नुम् ' बिन्दतीति बिन्दुः। बिन्दुः स्यादन्तदशने शुक्रे वेदितृ-विग्रुपोरिति विश्वलोचने। इषु इच्छायाम् , इच्छुः / Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. सिद्धान्तरत्निका व्याकरणम् / 137 इष्णुः स्नुः क्नुः शीले 1 / [अलङ्करोति तच्छील:] अलङ्करिष्णुः। 138 जि-भुवोर्नेड्-गुणौ स्नौ / जिष्णुः 2 / भूष्णुः / क्षिप्नुः 3 / 139 षाकोकणः / शीलेऽर्थे षाक-उ-उकण्प्रत्ययाः स्युः 4 / वराकः / आशंसुः 5 / स्थायुकः 6 / भावुकः / - 1 अतः प्रभृति ग्रन्थसमाप्तिपर्यन्तं यानि सूत्राणि, तदर्थानि सर्वाणि कृदन्ते निहितानि पाणिनि-हेमचन्द्रादिवैयाकरणैः, चन्द्रिकाकृताऽपि तथैव कृतम्, न केनाप्येषामुणादिषु पाठः कृतः / अलंकृञ्-निराकृञ् प्रजन्-उत्पच्-उत्पत्उत्पद्-अस्-उन्मद्-रुच्--अपत्रप्-वृत्-वृध्--सह-चर्-भू-भ्राजधातुभ्यो न्यन्तधातुभ्यश्च पर इष्णुप्रत्ययः / निराकरिष्णुः शत्रु तेजःपालः / ग्ला-जि-स्था-भू-म्ला-क्षि-पच्-यज्-परिमृज् इत्येतेभ्यः स्नुः स्यात् / ग्लास्नुः। 2 क्विलात् / 'प! णोऽनन्ते' निष्णुः, भूष्णुः / 3 विष्-त्रस्-गृध्-क्षिप्-धृष् इत्येतेभ्यः क्नुः प्रत्ययः, कित्त्वाद् गुणाभावः। विषु व्याप्ती, वेवेष्टुं शीलमस्य स विष्णुः / क्षेप्तुं शीलमस्येति क्षिप्नुः इत्यादि / 4 जल्प-भिक्ष-कुट्ट-लुण्ट्-वृ इत्यादिभ्यः पाकः प्रत्ययः स्यात् / दृङ् संभक्तौ, वृञ् संवरणे, इत्येतयोर्वराकः, पित्त्वात् स्त्रियां 'व्रितः' सूत्रादीप् स्यात्, वराकी / एव नल्पाकः, जल्पाकी इत्यादि। 5 आशंसते इति आशंसुरिच्छुः / एवं भिक्षुः / 6 लष्-पत्-भिक्ष-पद्-स्था-भू-वृष्-हन्-कम्-गम्-शृ इत्यादिभ्य उकण Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रक्रिया। 181 . 140 सान्तेभ्य उ: 1 / चिकीर्षुः / तितीर्घः / 141. शमादिभ्यो घिनुण 2 / शमी / संपर्की / रागी। विवेकी। .142 यङ ऊकः। यज-जप-दंश-वदेभ्यो यङन्तेभ्य ऊकः स्याच्छीले / 143 लुक् / ऊके सति यङो लुक् स्यात् / यायजूकः 3 / दंदशकः / वावदूकः / 144 इण्-नश-जि-सर्तिभ्यः करटप् / इत्वरः 4 / नश्वरः। जित्वरः / मृत्वरः। भवेत् / स्थातुं शीलमस्य स स्थायुकः ‘आतो युक्'। एवं लाषुकः, भिक्षुकः, गामुकः, घातुकः इत्यादि। 1 इच्छायें, न तु शीले / कर्तुमिच्छतीति चिकीर्षुर्ग्रन्थम् , तरीतुमिच्छतीति तितीर्घः समुद्रम् , कारकसूत्रे क्तादिवनितत्वान्न षष्ठी। 2 शीलेऽर्थे / शाम्यतीत्येवंशीलः शमी, णित्त्वेन वृद्धेः प्राप्तापि 'मान्तस्य सेटो न वृद्धिः 0 सूत्राद् वृद्धेरभावः / पृच संपर्के, घित्त्वात् 'च-जोः क-गौ बिति' इति चस्य कत्वे संपर्की / रा रागे, विचिर् पृथग्भावे / 3 यज पूनादौ, यङि कृते सति यलुकि यायन्यते इति यायजूकः / यङ्लुकि 'वाऽन्यत्र ' अनेन विकल्पेन लुम् भवति, ऊके सति तु यो नित्यं लुग् भवतीत्यर्थः। दंश्यते इति दंदशूकः सर्पः। 4 एतीति इत्वरः पित्त्यात्तुक, स्त्रियां टित्त्वादीप, इत्वरी। नश्यती Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182 सिद्धान्तरनिका व्याकरणम् / 145 इक्-श्तिपौ धातुनिर्देशे 1 / पचिः। वचिः। पचतिः। वक्तिः / 146 वर्णात् कारः 2 / अकारः / हकारः / 147 रादिफो वा / रेफः, रकारः / इत्युणादयोऽपरिमिताः प्रयोगमनुसृत्य प्रयोक्तव्या निपात्याश्च / 148 लोकाच्छेषस्य सिद्धिः 3 / इत्युणादयः / ___ इति कृत्प्रक्रिया। इति 4 श्रोसागरेन्दुपद्मप्रसादेन जिनेन्दुना 5 सम्यक् / सिद्धान्तरनिकाऽऽख्यं कृतं शब्दानुशासनम् // 1 // त्येवंशीलो नश्वरो नशनशीलः / जि जये, स गतौ / गम्लु गतो, निपातनाद् गत्वरः / 1 शित्त्वात् चतुर्वत् कार्य प्रायेण भवति / धातोः कथनं धातुनिर्देशः, यथा-दिहि-दुहि-मिहि इत्यत्र दिहादीनां निर्देशार्थमिक् , ' गुणोऽति-संयोगाद्योः / इत्यत्र शिप्प्रत्ययः / 2 स्वर-व्यञ्जनरूपवर्णमात्रात् कारप्रत्ययो भवति, यथा-ओकारः, ककारः, यकारः इत्यादि / 3 " स्पृहि-गृहि-पत्यादेशलुः " " निन्दादेवु " " चनार्थादेर्युः " " सृ-चस्यद्भ्यः क्मरः " " भञ्ज-मास-मिद्भ्यो धुरः " " नमादेरः” इत्यादिकानां लोकाद् व्याकरणान्तरात् पिद्धिर्ज्ञातव्या / 4 अत्र 'इति' शब्दः क-पुस्तके न दृश्यते / 5 जिनचन्द्रेण का। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तप्रक्रिया। 183 प्रयुक्ताः प्रायशः प्राज्ञैर्ये च योगार्थबोधकाः 1 / / शब्दाश्च संग्रहस्तेषामनन्तः शब्दवारिधिः // 2 // Naatataanan2-1-2018 * इति श्रीजिनचन्द्रसूरिणा प्रणीते सिद्धा मतरत्ने शब्दानुशासने कृदन्तवृत्तिः परिपूर्तिमगात् / कल्याणमस्तु सततम् / 1 योगोऽन्वयः स तु गुण-क्रियासम्बन्धप्तम्भव इति हैमः। प्राप्य श्रेष्ठगुणैर्गरिष्ठयशसः प्रौढां प्रसत्तिं गुरोः, छात्राणां हितकाम्यया परमया सन्ज्ञानलब्धेर्धिया / संक्षेपेण च भाषया सरलया सिद्धान्तरत्ने मया, दृब्धं टिप्पणकं सदा विनयतां सिद्धान्तमुक्ताभिधम् // 1 // श्रीधर्मसूरेः पदपङ्कनाभ्यां शिवादिपुर्या सुपवित्रितायाम् / संपूरितं टिप्पणकं सुमासे नमोऽभिधे पञ्चमके तिथौ च // 2 // इति श्रीसिद्धान्तरत्ने आख्यातादिवृत्तिद्वये सिद्धान्तमुक्तानामकमिदं सरलार्थकं जगत्पूज्य-शस्त्रविशारद-जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वरघुविनेयेन मुनिजयन्तविजयेन रचितमिदं टिप्पणकम् , इन्द्रिय-दिग्गज-निधि-भूमि-(१९८५)प्रमिते वैक्रमे संवत्सरे, सप्तमे धर्मसंवत्सरे श्रावणशुक्लपञ्चम्यां तिथ्यां शिवपुरीनगर्या संपूर्णता प्राप्तमिति शम्॥ . .. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरत्निका समाप्ता., Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धान्तचन्द्रिकास्थानिटकारिकायाः श्लोकाः। अनिट् स्वरान्तो भवतीति दृश्यतामिमांस्तु सेटःप्रवदन्ति तद्विदः। अदन्तमृदन्तमृतां च वृनौ विडीडिवणेष्वथ शीङ्-श्रिबावपि // 1 // गणस्थमूदन्तमुतां च रु-स्नुवो क्षुवं तथोर्णोतिमथो यु-णु-क्ष्णवः / इति स्वरान्ता निपुणः समुच्चितास्ततो हसान्तानपि सन्निबोधत // 2 // शकिस्तु कान्तेष्वनिडेक इष्यते घसिश्च सान्तेषु वसिः प्रसारणी। रभिश्च भान्तेष्वथ मैथुने यभिस्ततस्तृतीयो लभिरेव नेतरे // 3 // यमिर्षमान्तेष्वनिडेक इष्यते रमिर्दिवादावपि पठ्यते मनिः / नमिश्चतुर्थो हनिरेव पञ्चमो गमिस्तु षष्ठः प्रतिषेधवाचिनाम् // 4 // दिहिर्दुहिर्मेहतिरोहती वहिनहिस्तु षष्ठो दहतिस्तथा लिहिः / इमेनिटोऽष्टाविह मुक्तसंशया गणेषु हान्ताःप्रविभज्य कीर्तिताः॥५॥ दिशिं दृशिं दंशिमयो मृशि स्पृशि रिशि रुशिं क्रोशतिमष्टमं विशिम्। लिशिं च शान्ताननिटः पुराणगाः पठन्ति पाठेषु दशैव नेतरान् // 6 // रुधिः सराधियुधि-बन्धि-साधयः क्रुधि-क्षुधी शुध्यति-बुध्यती व्यधिः। इमे तु धान्ता दश चाऽनिटो मतास्ततः परं सिध्यतिरेव नेतरे // 7 // Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 186 ) शिषि पिर्षि शुष्यति-पुष्यती लिर्षि विषि श्लिषि तुष्यति-दुष्यती विषिम् / इमान् दशैवोपदिशन्त्यनिदिधौ गणेषु षान्तान् कृषिकर्षती तथा // 8 // तपिं तिपिं चापिमथो वर्षि स्वपिं लिपि लुपितृप्यति-दृप्यती सृपिम् / स्वरेण नीचेन शपिं छुपि शिपिंप्रतीहि पान्तान् गणितांस्त्रयोदश।।९॥ अदि हदि स्कन्दि-भिदि-च्छिदि-क्षुदीन् शदि सदि विद्यति-पद्यती , खिदिम् नुदि तुर्दि विद्यति विन्त इत्यपि प्रतीहि दान्तान् दश पञ्च चानिटः // 10 // पचिं वचिं विचि-रिचिरञ्जि-पृच्छतीनिजि सिचिं मुचि-भजि-भजि भृञ्जतीन् / त्यजि यजि युजि-रुजि-सनि-मज्जतीन् भुजि स्वजि सृजि-विजी विद्धयनिट्स्वरान् // 11 // इत्यनिट्कारिका। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सङ्ग्रहश्लोकाः। . तृतीयान्तो भवेत्कर्ता, भावोक्तो कर्म नो भवेत् / अन्यार्थस्याद्यवचनं, क्रियायामात्मनेपदम् // 1 // यत्र कर्मैव कर्तृत्वं, याति कर्ता तु नोच्यते / बिक्यात्मनेपदं धातोरुक्तिः सा कर्मकर्तरि // 2 // सर्वस्मिन् कारकेऽनुक्ते, यथाई सूत्रभाषिताः / विभक्तयो द्वितीयाद्याः, उक्ते तु प्रथमा भवेत् // 3 // उक्तं कृत्तद्धित-त्यादि-समासैः कारकादिकम् / तद्विभक्त्यप्रयोगत्वात् , प्रथमा नाममात्रतः // 4 // शत्रानश्-शानाऽतृश-कसु-कान-क्तवतु-णक-तृचस्तृन् च / कर्तर्येते क्तोऽपि च, गत्यर्थाकर्मकादिभ्यः // 5 // शत्रानशौ वर्तमाने, स-स्यौ चैतौ भविष्यति / कसु-कानौ परोक्षावत् , साध्यौ काले परोक्षके // 6 // शोभते विनयं कुर्वन् , ददानो दानमास्तिकः / दिवं यास्यन् शिवं गास्यमानो वा संयमं श्रयेत् // 7 // तद्वयाप्ये यद्विभक्त्याचं, तदाऽऽनश्यपि तद्यथा। विनयः क्रियमाणोऽस्ति, दीयमाने धने बुधैः // 8 // Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (188) शानातृशौ वर्तमाने, शृण्वानोऽर्थमघं द्विषन् / तीते क्त-क्तवतू तीर्थं गतः पूजितवान् जिनम् // 9 // शुद्धाशुद्धा क्रिया द्वेधा, शुद्धा त्याद्यन्तधातुजा / अशुद्धा कृत्प्रत्ययान्ता, ते तु शत्रानशादयः // 10 // त्रिधा धातुरकर्मा च, द्विकर्मा चैककर्मकः। तत्राऽकर्मा द्विधा नित्याऽकर्माऽविवक्षिताप्यकः // 11 // स नित्याकर्मको यस्य, कर्म नैवास्ति मूलतः / लज्जते विद्यते तिष्ठत्येष जागर्ति वर्धते // 12 // विवक्षितं न यत्कर्म, सोऽविवक्षितकर्मकः / यथा करोत्यधीतेऽसौ, क्रियतेऽधीयतेऽमुना // 13 // उपसर्गाद् विपर्यस्येत, सकर्माऽकर्मता क्वचित / यथोद्गच्छति मार्तण्डः, पराभवति तामसान् // 14 // सोपसर्गोऽन्यार्थे वृत्ति-रन्तर्भूतः क्रियान्तरः / णिगन्तोऽन्तर्णिगों वा, पञ्चोपायैः सकर्मकः // 15 // धातोरर्थपरावर्तोऽप्युपसर्गात् कचिद्भवेत् / विहाराहार-नीहार-प्रतीहार-प्रहारवत् // 16 // उभयोः कर्मणोादेः, प्रधानेतरता यथा / आरभ्यते क्रिया यस्मै तद् दुग्धाचं प्रधानकम् // 17 // तत्सिद्धयै क्रियया यत्तु, व्याप्यते यद् गवादिकम् / तदप्रधानं गौणाख्यं, गोपालो दोग्धि गां पयः // 18 // Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 189 ) यदा पयोऽर्था कर्नादेः प्रवृत्तिरविवक्षिता / तदा मुख्याऽसंनिधानाद् गवादेरेव मुख्यता // 19 // गत्यर्थाऽकर्मकाण्यन्ताः, कर्तृकर्मोक्तिताजुषः / चैत्रेण गम्यते मैत्रो ग्रामं मासमथास्यते // 20 // . बोधाऽऽहारार्थ-शब्दाऽऽप्यधातौ ण्यन्ते द्वयोक्तता। यथार्थ बोध्यते शिष्यो गुरुणाऽर्थोऽथ शिष्यकम् // 21 // दैकर्यहेतुरहिते, णिगन्तधातौ द्विकर्तृता तत्र / उक्तः प्रयोजक: स्यात् , कर्ताऽनुक्तः प्रयोज्यस्तु // 22 // गणजा नामजाः सौत्रा धातपस्विविधाः स्मृताः / भ्वाधादिनवकोक्ता ये, गणजास्ते प्रकीर्तिताः // 23 // काम्य-क्यन्-णिज्-युतान्तानि, विप्-क्यङ्ङन्तानि यानि च / तानि नामानि धातुत्वं यान्ति ते नामधातवः // 24 // सौत्राः कण्ड्वादयोऽन्दोलण-प्रेढोलण्ममुखा अपि / आत्मोभय-परपदादथवा धातवस्त्रिधा // 25 // दशानामपि पूर्वाणि, वचनानि नवैव हि / / परस्मैपदसंज्ञानि, प्रत्ययौ च शत-क्वम् // 26 // वचनानि नवान्त्यानि, कानाकशौ च प्रत्ययौ / आत्मनेपदमेते च, योज्यते धात्वपेक्षया // 27 // तदस्यास्तीति मत्वर्थस्तत्र स्यात् सर्वतो मतुः / धनवान बुद्धिमान् धीमानदन्तादिन् धनी गुणी // 28 / / Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वि-त्रेस्तीयः, चतुःषड्भ्यां थट, नान्तान्मट् दशावधि / एकादशादेडः,चैकोनविंशत्यादितस्तमट् // 29 // सर्वेभ्यस्त्व-तलौ व्यण च, कापीमन् भाववाचकाः / शुक्लत्वं शुक्लता शौक्ल्यं, शुक्लिमा शुक्लभाववत् / / 30 // प्रमाणे द्वयसट् दध्नट् , मात्रट् च प्रकृते मयट् / कल्पप् देश्यप च देशीयर किञ्चिदूने विशेषणात् // 31 // संहितैकपदे नित्या नित्या धातूपसर्गयोः / नित्या समासे, वाक्ये तु सा विवक्षामपेक्षते // 32 // अविकारोऽद्रवं मूत प्राणिस्थं स्वांगमुच्यते / च्युतं च प्राणिनस्तत्तन्निभं च प्रतिमादिषु // 33 // आकृतिग्रहणाजातिर्लिंगानां न च सर्वभाक् / सकृदाख्यातनिर्माह्या गोत्रं च चरणैः सह // 34 // इदमस्तु सनिकृष्टं समीपतरवर्ति चैतदो रूपम् / अदसस्तु विप्रकृष्टं तदिति परोक्षे विजानीयात् // 35 // उपसर्गेण धावर्थो बलादन्यत्र नीयते / विहाराऽऽहार-संहार-प्रहार-प्रतिहारवत् / / 36 // धावर्थ बाधते कश्चित् कश्चित्तमनुवर्तते / तमेव विशिनष्टयऽन्योऽनर्थकोऽन्यः प्रयुज्यते // 37 // निपाताश्वोपसर्गाश्च धातवश्चेत्यमी त्रयः / अनेकार्थाः स्मृताः सर्वे पाठस्तेषां निदर्शनम् // 38 // Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 191 ) भ्वादिौदिरदादिश्च दिव-स्वादि-रुधादिकाः / तनादिश्च तुदादिश्च त्यादि-चौरादिको गणाः // 39 // समासाः षविधाः सन्ति संक्षेपाय हि हेतवे / प्रथमोऽव्ययीभावोऽथ द्वन्द्वो द्वितीय उच्यते // 40 // तत्पुरुषस्तृतीयः स्यात्तुर्यः समाहृतो द्विगुः / पञ्चमस्तु बहुव्रीहिः षष्ठश्च कर्मधारयः // 41 // ( युग्मम् ) पूर्वाव्ययोऽव्ययीभावो द्वन्द्वश्चकारकैर्युतः / द्वितीयादिविभक्त्यन्तपदपूर्वी तृतीयकः // 42 // संख्या पूर्वे हि यस्यास्ति स एकत्वे द्विगुर्मतः / समस्तान्यपदमुख्याxपञ्चमो,ऽन्त्या * समार्थके॥४३॥(युग्मम्) वाणीप्रयोगरूपो हि व्यवहारोऽत्र दृश्यते / तस्माद् वाणीप्रयोगस्य साधि व्याकरणं पठेत् // 44 // * x बहुव्रीहिः / * कर्मधारयस्तुल्यार्थे / * आदित एकत्रिंशत्सङ्ख्यापर्यन्तश्लोका जैनाचार्यश्रीउदयधर्ममुनिविरचितवाक्यप्रकाशग्रन्थत उद्धृताः सन्ति / अन्त्याश्च षट् श्लोका मुनिहिमांशुविजयविरचिताः सन्ति / Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतद्व्याकरणस्थानां कतिपयप्रयोगाणां सिद्धावुपयोगीनि कानिचित् सूत्राण्यत्र न दृश्यन्ते यथा व्यञ्जनसन्धौ 1 हसात् परस्य झसस्य लोपो वा सवर्णे झसे / भवाञ् छूरः भवाञ्च् छूरः। ___ स्वरान्तस्त्रीलिङ्गे२ ( अडागमाभावे आमोऽप्यमावः) बुद्धौ, बुद्ध्याम् / ___ हसान्तपुंलिङ्गे३ शसे वा। विसर्जनीयस्य शषसे परे वा सकारो भवति / दोष्षु, दोःषु / कश्शेते, कः शेते / युष्मदस्मत्प्रक्रियायाम्४ युष्मदस्मदोः शसो नो वक्तव्यः / युष्मान् , अस्मान् / . स्त्रीप्रत्यये५ हसात् तद्धितयस्येपि लोपः / मनुषी, मत्सी। तद्धिते६ मातृ-पितृभ्यां स्वमुः सस्य षः / पैतृष्वस्त्रीयः, मातृष्वस्त्रीयः। 7 ईदग्नेः सोम-चरुणयोः / 8 अग्न्यादेः सोमादीनां सस्य षः / अग्नीषोमीयम् / 9 अमरिद् वृद्धौ / आग्निमारुतम् / आग्निवारुणम् / 10 एतत्-किम्-इदम्-यत्-तद्भ्यः परिमाणे वतुः / यावान् / तावान् / एतावान् / इयान् / कियान् / 11 त्रे त्रयस् / त्रयोदशः / 12 षष उत्वं दत-दश-धामुत्तरपदादेश्च टुत्वम् / षोडश | पोढा / Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तरनिकास्थसूत्राणामकाराद्यनु क्रमणिका / or सूत्राणि. पृष्ठे. सूत्राणि. पृष्ठे, अणीनयोर्युष्म० अ इ उ ऋल समानाः अत इअनृषे अइए अत उपधायाः अ-इकौ च मत्वर्थे . 47 | अतः भकर्मकाणां कालादि०. 149 अतः अकि पूर्वढस्य जो वा 134 अतिशये हसादे० 125 अकि लघौ इस्व उप० . 80 अतोऽत्युः अङ्-सपरे औ० 119 अतोऽम् अङ्-पयोः 118 अतोऽमनतः अचास्थ्नां टाऽऽदौ अत्यतिव्ययतीनां यो०७ अनादेश्व . . | अत्यन्तापह्नवे लिट् अञ्चेः पुंसि० . 33 अत्वसोः सौ अञ्जः सेनित्यमिट् . 107 | अदसो दस्य सः सौ अटौ अड्-द्वित्वव्यवधाने 108 | अदादेर्छन् 42 / र 1 154 / अदमोऽमूः rur V Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. सूत्राणि. अदे अदेदिप्० भदो जघुः 158 अद्भिः अन उस् अनः टोसोः अनडुहश्च अनद्यतनेऽतीते अनन्त्यवयोवाचिनः अनपि च हसान अनादन्तादपि अनिटोऽनामिवतः अनुपराभ्यां० अनुपूर्वाजानातेर्न भनेकक्रियासमुच्चये अनो नलोपोऽपि अन्त्यस्वरादिः टिः अन्त्यात्पूर्व उपधा अन्यादेधैर्लोपोन अन्यार्थे पृष्ठे / सूत्राणि. अन्योक्ते प्रथमा अन् स्वरे अपत्येऽण् अपह्नवे ज्ञः अपाच अपित्तादित्ि . 27 अपिद्रा-धा-प्रा. अपिदा-धा-स्था. अपि रञ्ज-दंश० 125 अप् कर्तरि . 159 अप् ययोरान्नित्यम् अप्रसिद्ध० 14. अप्लुतवदितौ अप्सरस्-ओजस्० 142 अबादावी पिति० अभिप्रत्यतिभ्यः अभूततद्भावे. अमन्ताश्च 25 अमादौ तत्पुरुषः 57 / अम्-शसोरस्य 13 140 134 91 157 120 55 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. 113 (7 17 सूत्राणि. भयकि . अयतो प्रादेरेफ० अवलोपिनो० अरेदो नामिनो गुणः अर्णः-केशयावः . अर पंचसु अलुक् क्वचित् अल्लोप: स्वरेऽम्बयुका० अव-कु-प्वन्तरेऽपि अवर्ना नामिनः अवाद गिरतेः अवाप्योरुपसर्ग अविभक्ति नाम अव्ययस्य च्वा० अव्ययाद् विभक्तेः अव्ययीभावात् . अष्टनो डौ वा. असवणे स्वरे० सूत्राणि. अस्तेरीट् अस्त्यर्थे मतुः अस्यति-वक्ति. अस्यतेस्थुक् के अहः " आ " आख्याताव्यय. आडि पृच्छेः आङो ज्योतिः० आडो दायः. आडो यम-हनिभ्यां० आङः प्रतिज्ञायाम् आचार उपमानात् 26 16 138 137 139 41 135 आतः . 125 154 आतो डः 54 आतो ण डो आतो धातोर्लोपः . आतोऽनपि आतो मनिप्-क्वनिप्. 87 | आतो युक् 77 158 अस्तेरनपि भूः 141 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. 79 - o * 28 .44 n a o सूत्राणि. आदनुदात्तङितः आदन्ताच्च मादन्ताद् द्विषो. आदबे लोपश् आदाय ई: आदिजवानां. आदि स्वरस्य आदीदितः आहतः किश्चि भूते आदेः ष्णः स्नः भादेश्च द्वन्द्वे . आद् मुवि कर्मणि आधन्ताभ्याम् आधारे सप्तमी आपः आप्नोतेरीः माप्नोते; आवतः स्त्रियाम् भारन्तो द्विगुर्वा, आभ्वोर्णादौ पृष्ठे. .. सूत्राणि... 61 / आमन्त्रणे च आमि विदेर्न गुणः आमो भ्वतोः० 12 आमौ आम् : . आम् शसि आऽम्-स-मौ आयः 163 | आयतीगवादयो. 67 आऽऽ ऐ औ वृद्धिः 58 आशासः क्वावु. 143 आशिषि / आशीः प्रेरणयोः आशीर्यादादेः० आ सर्वादेः / आसेरान ई: आ सौ 42 माहि च दरे 3 wo wo wo wo wo 123 wo a 20 59 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 197 ) सूत्राणि. ___पृष्ठे. सूत्राणि. इण्वदिटो न दीर्घः इकस्त्वदन्तात् 47 | इतो नातार्थे इक्-श्तिपौ० इतोऽत् पंचम् इ-ख-खि इदमेतदोरन्वादेशे० इङो णादौ गाङ् . इदमोऽयं पुसि इडो वा गी:० इदितो नलोपो न इङः से गम् 122 इदितो नुम् . इङ-क्री-जीनामात्वं औ 119 / इद्भ्याम् इच्छायामात्मनः सः 121 इनस्त्वदन्तात् इञ् अनादिभ्यः इनां शौ सौ इट ईटि . इन्द्रादेरानी इटो प्रहाम् 75 इयं स्त्रियाम इणः किति णादौ० इयं स्वरे इणः क्ङिति स्वरे यः इयत्-कियंदिति० इणः सिलोपे गाः . इरितो वा इणादिभ्यश्च 177 इवन्तानां श्रिञ दीनां च० 123 इण् तन्यकर्तरि 144 इवर्णोवर्णोपधा० . 124 इण्-नश्-नि० इषु-सह-लुभ० इण्वदिकः इष्णुः स्नुः क्नुः शीले 180 इण्वदिटि बेर्लोपः 145 / इसे 178 - 2 / शाता 74. 122 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ई हो ( 198 ) सूत्राणि. पृष्ठे. .. सूत्राणि.. पृष्ठे. "" उभयप्राप्तौ कर्मणि षष्ठी 52 ई चातः 176 उभये स्वराः ईडीशिभ्यां स-ध्वयोरिट्र न० 90 उरादगयो निपात्याः ईमौ उ रसे 25 उवम् ईयतेस्तृतीयो हस एक० 120 उवर्णान्तेषु हुन्वारेवापि ई हसे उशनसाम् उस्यालोपः उ ओ६ . 82 ऊदितो वा उत ऊः ऊर्णाऽहं-शुभंभ्यो युः उत्तमपुरुषे चित्तविक्षेपा० उर्णोतेराम् न उदश्वरस्त्यागे ऊर्णोतेरिडादिप्रत्ययो वा० 93 उदिनः क्त्वो वेट उर्णोतेर्गुणो दिस्योः 93 उद्विभ्यां तपोऽकर्मकात्० ऊर्णोतेर्वा वृद्धिः सौपे 93 उपधाया लघोः ऊोतेर्वा वृद्धिर्हसादौ पिति० 92 उपपराभ्यां क्रमः ऊर्युररी अङ्गीकरणे उपसर्गे आदन्तात् उपाद्य': स्वीकारे 139 उपान्मन्त्रकरण दिषु 136 / ऋ अर् था युः 139 138 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 199) सूत्राणि. .. पृष्ठे / सूत्राणि. ऋ उरणि . 14 ऋसंयोगाण्णादिरक्ति पृष्ठे. ऋक् के 9 19 ऋकारादौ घातौ आर् ऋते भादियोगे० 52 / ल अल ऋने तृतीयासमासे .. लदादौ न मधातौ० ऋतो ङ उः | ल लम् ऋदन्तात् थपो नेद् 74 ऋदन्तात्संयोगादेः 104 ऋदन्तानां ऋदुपधानां० 129 / ए अय् . ऋपोरिः पूर्वस्य 94 ए ऐ ऐ ऋ र इनि | ए ऐ ओ औ सन्ध्र क्षराणि ऋ रम् / .5 ए ओ जसि . . ऋवर्ण-शोङ गुणः . 74 / एकत्वे द्विगु द्वन्द्वी ऋहसान्ताद् ध्यण 176 / एकादशादेईट | एजां खश् ए टाङ्योः 1 इर्... 75 / एदोतोऽतः ऋन इर् . 116 / एदोदादौ धातो. ऋदुषधात् क्यप् . 177 | एरी बढ़त्वे अल्वादिभ्यश्च .. 174 ' ए स्-मि बहुत्वे dr bur M22 .. com Y ur - Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (200) पृष्ठे. औ यू 1 | औरी 6 / आरा सूत्राणि. 17 2 सूत्राणि. “ऐ" ऐ आय ऐ च मन्वादेः ऐ सख्युः "ओ" 0 . ur aur ओ अव् ओ औ औ ओत्वोष्ठयोः ओदन्तो धौ वेतौ ओदन्तो निपातश्च ओरौ ओरौ ओर्वाहे: ओ:ोर्वा लोगः ओसि कण्ड्वादिभ्यो धातुभ्यः० 130 कथमादिषु स्वार्थे कृञोणम् 0 171 कमेः स्वार्थे भिडनपि तु वा 79 | कमेरङ् द्वित्वं च करणाधारयोश्च करणे च ... 132 कर्तरि करणे च तृतीया 51 कर्तरि पंच कर्तुयङ्ग 134 103 / कर्तृ-कार्ययोरक्तादौ कृति० 52 कर्मधारयस्तुल्यार्थे कर्मणि द्वितीया कर्मव्यतिहारे धातोरात् 139 कल्याणादेरिनङ् | काञ्चित्प्रकृति प्राप्तस्य लक्षणे० 52 103 50 " औ" औ आव औ निपातः | काप्यतः . Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 172 ( 201) सूत्राणि. .. पृष्ठे. सूत्राणि. काम-मनमोस्तुमो मलोपः 171 . कृदिकारादक्तेरीप वा काम्यश्च 132 कृषि-चत्योर्न 177 कारकात् क्रियायुक्ते कृपेस्तादौ पंवा० कारकेऽपि कृपो रो लः कार्यायेत् 2 कृ-वृषोर्वा क्यप् 177 कार्येऽण 154 कृष-मृश-स्पृश-मृष-तृप० 73 कालाध्वनोनॆरन्तयें . 52 कृषादीनां वा कासादिप्रत्ययादाम् क्रम-भूपरः 68 कृष्यादिभ्यो वलच दीर्घश्च 0 50 कितः . 166 केनेयेकाः किमिदमः कीर . 161 / किति झसे क्वौ अमे च० 160 किमोऽव्ययादाख्याताच्च० 48 क्डित्यद्वयुसि 62 कु-चु-टु-तु-पु वर्गाः .. 2 क्त-क्तवतू०. 164 कुत्सायां पाशः | क्त-क्तवत्योरिटि जिलोपः 169 कुम्वोः क पौवा क्तिः 174 कुरु-छोर्न दीर्घः .. 108 क्तो वा सेट 165 कुहोश्वः / क्त्वाद्यन्तं च कृनो नित्यं मोरुलोपः 108 क्ता सेट किन्न कृञो ये 108 क्यपीत्वं न कृतः 151 | क्यपोऽप्रयोगे पञ्चमी 52 कृत्कर्तरि ... 151 / नमः पे दीर्घोऽम् विषये 71 170 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 ( 202 ) सूत्राणि. पृष्ठे. सूत्राणि पृष्ठे. क्रादेरुण | किम् / 159 कादेर्णादेः क्विबन्ते राजतौ परे समो० 11 क्रियाया आवृत्तौ कृत्वम् 49 / क्विन्-वनिब्-डाः 162 क्रियाऽध्ययविशेषणानां० 59 किलात् षः सः कृतस्य 15 क्रीड आउनुसं-परिभ्यश्च 138 क्षियो दीर्घः कर्तरि० 168 क्रुध-द्रुहेाऽसूया० 51 क्वचिड्डा 158 क्वचित्स्वरादेरपि रस्य 126 / खन इत्वं क्यपि क्वचिदनव्यये पूर्वपदे० 55 खपे वा क्वचिदव्यये उत्तरपदेऽपि 55 | खसे चपा झसानाम् क्वचिदुपसर्गे न .120 खिति पदस्य कचिद् द्वयोः "ग" क्वचिद्यः स्वरवत् 132 क्वचिद् वा 55 गणेः पूर्वस्य ईद्वा० 117 कचिद्वा क्वचिन्न 55 गत्यर्थात् कौटिल्ये. 125 क्वचिन्नामिनोऽपि 13 गत्यादकर्मका० 165 क्वचिन्नाम्न्युपपदेऽपि 171 गमः परौ सि-स्यौ० 137 क्वचिन्नित्यम् / 122 गम-हन-विद० कसुकानौ णवत् 163 / गमादीनां अमस्य० 160 168 गति-हिंसार्थ 0 . Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. 127 74 ( 203) सूत्राणि. .. पृष्ठे. सूत्राणि. गमां छः 72 घा-ध्मोरीङि गमा स्वरे गमेः सस्येड् नाऽऽति 122 गरिष्ठादयो निपात्याः 48 ङसिरत् गिरते: स्वरे रस्य ङसिभ्यसोः स्तुः गुणः ङस्य गुणोऽर्ति उस् स्य . गुब्भ्यः डितांमट गुरोर्हसात् 175 ङितांम यट् डिति गौणकर्मणि वा डित्यदुः ग्रहां किति च डिस्मिन् ग्लादेनिः डे अक . डे डित् : " " डी . घञ् भावे 171 / ङ्-ण-नो ह्रस्वाद घट दयो मितः च, घसाः षः ध्यणि क्वचित्० . 177 | चलिडोऽनपि० घ्रः संज्ञायाम् .. .. 153 | चनोः कगौ बिति गोः 52 74 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्राणि. ( 204 ) पृष्ठे. सूत्राणि. चटकादैरण जनि-वध्योर्न वृद्धिः .. 86 चतुरां शौच | जरायाः स्वरादौ० चत्वारिंशदादौ वाऽऽत्वम् 49 जनी चपा अबे जबाः जासोः शिः . चपाच्छः शः | जस्शसोलुक् चादिभिश्च जहातेर्यादा० चादिनिपातः जह्येधि-शाधि चार्थे द्वन्द्वः ___ 56 जागर्तेर्वीण्० चिनोतेः स-णादौ किर्वा 103 जातेश्योपधात् चुरादेः स्वार्थे निः११५ जि-भुवोनेंड० 180 चोः कुः ज्ञपेः 'स्वरस्य० च्वौ सलोपः 157 ज्ञा-जनोर्जा 101 ज्ञा-श्रु-स्मृ० ज्वलादेर्णः छ: "म" छशवराजादेः षः झपानां नवचपाः झबे जबाः जक्षादेरन्तोऽदन उस् 8 झसात् जन-सन-खनामात्व० 82 झसाद्धिहेः . 140 153 3 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्राणि. . नम-जपां नुक् अमान्तस्य विति० अमान्तस्योपधाया. अमे जमा वा . माविष्ठवत् कार्यम् मित्स्वरितेत उभे भिडित् करणे जीतां क्तो० (205) पृष्ठे. सूत्राणि. टोरन्त्यात् गोरे 165 / द्वितोऽथुः 135 9 डः णः डतेः . 133. 33 डिति टेः डितस्बिमक्० 172 77. " अरङ् द्विश्व ज्यन्तात् स्वार्थिकाद् ञिः 121 / ढि ढो लोपो० ज्यन्तेभ्यो 171 | . " ." " टनात्सस्य 10 / णबादौ पूर्वस्य टाडकाः णबुत्तमो वा णित् राऽऽदावुक्त० णादिः कित् टादौ स्वरे वा णितो वा टा नाऽस्त्रियाम् णिनिरतीते ..14 ण्याय नणेयण० 55 44. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 206) सूत्राणि. पृष्ठे. सूत्राणि. पृष्टे. तस्मात् सि औ जस्० - 14 तडिदादिभ्यश्च तादर्थे चतुर्थी 52 तत्रादयो निपात्या० तिरश्चादयो निपात्याः 33 तयोधः तिष्ठतेरुपधाया इ: स्यादङि 118 तदधीर-कास्ययोर्वा सात् 4 1 . तिसृ-चतस्रो मि दी? न 23 / तदव्ययम् तीयान्तस्य उित्सु वा 17 तनादेरुः | तुदादेरः तनादेरुप तुन्दि-बलि-वटिभ्यो मः 50 तनादेरुपधाया गुणो वोपि 108 तुभ्यं मह्यं ङया 38 तनादेस्तथासोर्वा सेर्छक 108 तुमोऽप्रयोगे कर्मणि० 52 तनेरनिटि से वा दीर्घः .. 123 तुम् तदर्थायां भविष्यति तनोतर्वाऽऽकारो यकि 146 तुरुस्तुभ्योऽद्विरुक्तेभ्यो० // तपो नेण् कर्मकर्तरि० 1 तुर्य-तुरीयौ निपात्यौ तयडयटौ सङ्ख्या तुल्यायोगेऽपि * तरतमेवस्विष्ठाः प्रकर्षे 48 तुह्योस्तातकाशषि वा 63 तव मम सा 39 तव्यादयोऽहे थे विधौ० 177 त-फल-मन-त्रपाम् तत्यादीनां कृत्यसंज्ञा 178 तोलि लः तव्यानीयौ 176 / त्य-तनौ / तस्थे 91 त्यदादेष्टेरः स्यादौ 19 ܗ ܦ ܕ 48 तृ-वुणौ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 ( 207) ___ सूत्राणि... पृष्ठे / सूत्राणि.. पृष्ठे. त्यादौ मविष्यति स्यप् 5 दादेर्घः त्रि-चतुरो स्त्रियां तिसृ० 23 दानपात्रे चतुर्थी प्रेरयङ दान्तादयो वा निपात्यन्ते 169 स्वन्मदेकत्ये 38 दिपि सस्य तः स्वमहं सिना दिवादावट स्वामाऽमा दिव औ “थ . दिवादेर्यः . यो नुट् दिशाम् (कुः) दिस्योर्हसात् दीडो गुणवृद्धिः दम्मि-ज्ञपिभ्यां दीडो युट् दम्भेरिदीच दीपमनबुधपूरि० दरिद्रातेरनपि० दीर्घादपि दरिद्रातेरिदा० 88 दी| गुरुः दस्तस्य नो दश्च 167 दुषेनौं दीर्घः दस्य मः दां हो दुह-दिह-लिह. दादेः ... दूरादाहावाने प्लुतः टेः० दादेः पेः दृशादेः पश्यादिः दृशादेः शः 153 * 73 / दृशेष्टक्-सको. - - - . . 92 15 127 दादेरिः दादरे: 161 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. सूत्राणि. देवताया द्वन्द्वे० देवतेदमर्थे दो दत्ति दोषां रि: धुतादिभ्यो लुङि. धुतेः पूर्वस्य द्रुहादीनां वा घत्वम् द्वन्द्व-तत्पुरुषयोः० द्वन्द्वेऽल्पस्-वर० द्वि-त्रि-चतुर्थ्यः सुः द्वित्वे सत्येक० द्विरुक्तस्य हुयते० (208 ) पृष्ठ. सूत्राणि. "ध, 45 | धर्मादन् धानो हिः किति ते 34 धातोः धातोः 80 धातोः प्रेरणे धातोरियुवन्तादामो० धानोर्नामिनः . धावम्. . 59 धिरिः 49 धेटो लुकि डो वा द्वित्वं च . | धेरर् धे सलोपः द्विश्च दे धौ हस्वः ध्यायतेः विपिं० ध्वे सिलोपः द्वेः स्वरेऽपि० द्वेस्तो द्वष्टनोरात्वं० . नः सक् छते न कम्यमिचमः 120 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ननि 6.::.. नमः (209) सूत्राणि. .. पृष्ठे सूत्राणि. पृष्ठे. नङकी 172 / नादौ 56 नानिटि से 121 नञ्-सु-दुर्म्यः प्रजामेधयो० नामधातु-वष्क-ष्ठिवां सत्वं न 71 नदादेः नामधातोर्वृद्धिर्वा सौ 134 नपुंसकस्य (हस्व): 25 नामधातौ वा नपुंसकात् स्यमोटुक् नामि न प्रशानः | नामिनः स्वरे | नामिनोऽचतुर्णा धो ढः 79 नमआदियोगे चतुर्थी 51 नामिनो र 13 नमसोऽस्य न रितः नाम्न आचारे क्विब्वा 134 नवगण्यामुक्तेभ्यो हिंसा० 117 नाम्नश्च कृता समाप्तः नव पम् नाम्नि च . न शतात् खपाः नाम्नि, च युष्मदि०६१ न शात नाम्नो नो लोपशधौ नश्चापदान्ते झसे नाम्नो य ई चास्य नषि नाम्युपधात्कः न सन्धि य्वोर्युट च 47. निजां गुणः नहो धः 35 - निमित्तकर्मणः० .. . . .113 | नियः 107 नामी . 152 नातः __14 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 210) पृष्ठे. सूत्राणि. 152 135 .. सूत्राणि. निरुपपदात् निर्धारणे किम्-. निर्धारणे षष्ठी निविशादेः निसमुपविभ्यो हुयतेः नुगशाम् नुडामः नु-धातोः नुमयमः नुवा नामि दीर्घः 123 * 15 48 पचि-नन्दि-ग्रहा० पचो वः पश्चादेमंट . 138 पत-तन-दरिद्रा० पतेर्डे पुम् पत्न्यादयो निपात्याः पथां टेः पदान्ते दीर्घाद् वा पदान्ते समानानां० 103 / पदे रिण तनि परतोऽन्यत् 69 पराण्यात् परिव्यवेभ्यः क्रियः परेमषश्च .. 68 परोक्षे पादेयुक नौ पिति त्स्मि वेट पिबतेरुपधायाः० पुंयोगेच ܐ ܘܐ नृत-तृद् नेकस्वरादनुदात्तात् / wer नोपधात् 141 नोपधायाः नो लोपः नो वा व्रण ईए सम्महतोऽधौ० 119 128 119 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 ( 211) सूत्राणि. .. पृष्ठे. सूत्राणि. पृष्ठे. पुंवद्धा पूर्वस्य 57 / प्रत्याभ्यां श्रुवो न 140 पुंसोऽसुङ् प्रत्युपाभ्यां किरते:० पुण्य-सुदिनाभ्यां प्रथमचरमतया० पु-शकात् 176 प्रमाणे दहनट-० पुष्य-सिध्यौ संज्ञायाम् 177 प्रशंसायां रूपः पूजार्थाचतेर्न प्राग् धातोः पूर्वकाले क्त्वा 169 प्राचुर्य-विकार-प्राधान्या० पूर्वपदार्थबाहुल्ये. . 'प्राणि-तूर्य-सेना० पूर्वस्य डिति झसे धः 94 प्रादिका उपसर्गाः पूर्वस्य हसादिः शेषः प्रादे रेफादनितेः० पूर्वादीनां नवानां० प्रादहश्च पूर्वाद्धन्तेर्हस्य घः . . 85 प्री-क-ज्ञाभ्यश्च 152 पूर्वेऽव्ययेऽव्ययीभावः | प्रोपाभ्यां प्रारम्भेऽथे पे सिर्णित् पोरुर् 94 प्वादेहस्वः पौनःपौन्ये णम् द्विश्च 171 प्रच्छ-विच्छोः शो० 172 फण-राजु-भ्रानु० . प्रज्ञादिभ्योऽण् 50 | फुल्लादयश्च प्रत्ययनमे जबस्य० 9 "ब" प्रत्ययान्ताच्च बहुव्रीहिरन्या 3. Fertisexixer 3 141 138 114 9 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. सूत्राणि. बहुसंख्यानां० बुध युध-नश० भ्यः ओऽनपि वच् ब्रुव आहश्च० ( 212) पृष्टे. सूत्राणि. 57 भूतपूर्व चरट् 141 / भूते सिः भृञां लुकि भ्यस् भ्यम् . भ्र-जोरसो०. | भ्राप्त-भ्लाश . " " गजां विण भञ्जरिणि नलोपो वा 147 "म" भविष्यति स्यपः० मध्वादयो निपात्याः 179 भावेऽणपि मनुष्यादीनां संभूयो० भावे त त्व-यणः मस्जि-नशोझसे नुम् भिदगम् मादू. पिस् भिस् मान्तस्य सेटो भी-हाकोरिद० | मान्ताव्ययाभ्यां यो न भी-ही-भृ० | मान्तोपधात मुनोऽपालने 139 मितां न्यन्तानामिणि. 147 मुवः सिलोपेऽयछकि० 66 मिता हूस्वः नौ मुवः सिलोपे स्वरे वुक् 66 / मिदेर्गुणो ये भुवो वुक् 64 | मुगानेऽतः . Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G.0 - moc या 6 युट् भावे / 6 सूत्राणि. .. पृष्ठे. सूत्राणि. पृष्ठे. मुचादेर्मुम् अप्रत्यये 110 यलसंयोगादे० मुषादिभ्यः क्त्वा कित् 170 य-व-राणामिदुतः मृजेर्वृद्धिः य-व-ल-म-नपरे० मृनो वा 177 यस्य लोपः मोऽनुस्वारः मो नो धातोः यादादौ ऋतो रिङ् पे म्रियतेलुङ यामियम् "य" यः से 76 युवावौ द्विवचने यक् चतुर्ष युवोरनाको 192 यङ ऊकः युष्मदस्मदोः षष्ठी चतुर्थी• 39 यडि युस इट यङि वा सलोपः 134 / यूयं वयं जसा यजां य-व-राणां 77 यटोऽच्च | य्योः 71 | य्वृणां नपुंसके धौ. यत्-तदेतदामा वतौ 47 य्वृणामसवणे यद्योगे उक्तं न वे द्वित्वे यमा यपेऽस्य बोर्धातोरियुवौ स्वरे यमि-रमि-नमातां० . . . .72 | वोर्लोपश् वा पदान्ते 125 यतः . . over v gor Pusa Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 214 ) पृष्ठे. सूत्राणि. सूत्राणि. य्वोर्वि हसे यवौ वा | रोऽरात्रिषु लुक् | लघुपूर्वाद् ___72 लघोषः 167 / लभेरिण णमोर्नुम्वा रः संख्यायाः 29 | लिङ्गार्थे प्रथमा रहाद् यपो द्विः लित्पुषादे: रातो औ पुक् 116 | लिपि-सिचि० रात्राहाहान्ताः पुंस्येव रादिको वा 182 | लुग् बहुत्वे. रारो झसे दृशाम् - 72 लुपादीनां रिलोपो दीर्घश्च . 13 | लोकाच्छेषस्य सिद्धिः रीगृदुपधस्य 127 लोपः पचां० रुद-विद-मुष-ग्रहि. 122 लोपस्त्वनु० रुदादेर्दिस्योरीडटौ लोपो हस्वान्झसे रुदादेश्चतुर्णी लोमादिभ्यः शः रुधादेर्नम् लोहितादिभ्यः रुहेऔं पो वा 119 लान्तस्य सौ० रेफाच्छ्वोर्लोगः 160 ल्वाद्योदितश्च . * 72 168 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्राणि. 4. 127 28 182 112 (215) पृष्ठे. सूत्राणि. "व" वा पदान्तस्य वचि-प्रच्छि० 160 | वाऽम्-शसि वचेरुम् वा लिप्सायाम् वञ्च्वादीनां० वाऽवसाने वत् तुल्ये वाऽऽसु वदि-बन्योः० 19 | वाहो वो शसादौ स्वरे वयो यस्य. विंशतेस्तिलोपो डिति वर्णात् कारः विंशत्यादेर्वा तमट् वर्तमानसमीपे० 142 विजेरिडादि० वर्तमाने विद-दरिद्रा० वशेर्यडि न संप्रसारणम् 127 विदेर्वा वसुः वसां रसे विदो नवानां० . वसेस्तव्यः० .176 विधि-संभावनयोः बसो उः विना-सह-नम० बस्यानिटि से उः . 124 : वि-पराभ्यां जे: वाचंयमादयो निपात्याः 116 विभक्त्यन्तं पदम् वाचस्पत्यादयो निपात्याः 12 / विश्लेषाव. वा टा-ड्योः . 55 / | विसर्गानुस्वार० वाऽऽदीपोः शतुः .. 37 विसर्जनीयस्य सः वाऽन्यत्र . .. 128 / वीप्सायां पदं द्विः 163 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. 49 162 139 वेड्योः सूत्राणि. पृष्ठे. | सूत्राणि. वुः से . 121 | व्यासादेः किः . वृक्ष-वृन्-ऋदन्तात् सि-स्यो० 104 वितो नुम् वृङ्-वृञ्-ऋदन्तात् सस्ये० 121 वृङ्-वृञ्-ऋदन्तानां वा 75 वृञस्थप इट् 104 शकन्ध्वादिषु० वृतादिभ्यः शतादेनित्यं तमट् वेः पादविहरणे 138 शत-शानौ तिप्-तेवत् वेः शब्दकर्मणः० शत्रन्तानां० 26 शप उपालम्भे वेनो णादौ० शब्दादिभ्यो यङ् वेनो वा वय् णादौ 83 | शब्दे तु न वेनो हस्वः 166 शमादिभ्यो घिनुण वेत्तेर्लोट्याम् शमां दी? ये शमां दी? ये शस-दद-वादि० . वोऽव् य्-स्वरे शसपरे खसे. वोर्गुणात् शसादौ वा० मोरा शति व्यथेर्णादौ० शाकयार्थिवादीनां० . व्याङ्-पर्युपे० 141 / शा-च्छा-सा 136 133 138 87 वेयुवः वेर्लोपः 157 43 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठे. (217 ) सूत्राणि. .. पृष्ठे. सूत्राणि. शा-छो 158 श्लिष-शी शासेरिः श्लिषेरालि. शासेरिः 177 श्वयतेरितो. शिति चतुर्वत् कार्यम् श्वयते . शिवादिभ्योऽपि 44 / श्वयतेर्णादौ० शीमादिभ्यः० 166 श्वस्तने शीडो गुणश्चतुषु 90 श्वादेः (व उ:) शीकोऽनो रुट् "ष, शीडोऽय. 127 शीडोऽयङ् 245 षट-कतिपय शुषेः कः 169 ष-ढोः कस्से शृङ्ग-वृन्दाभ्यामारकच् . 50 पाकोकणः शृणोत्यादीनां० षिद्-भिदामङ् शे चग् वा षोड शेषाः कार्ये कर्तृ०. 50. ष्टुमिः ष्टुः शेषा निपात्याः० . ष्ट्रव्रितः प्रत्वन्यादेः __25 / ष्ठिवु-क्लम्वा० श्रन्थि-प्रन्थि० 105 / ष्ठिवेः पूर्वस्य० श्रद्धालु 47 श्रि-नु-द्रुभ्यो० ... 75 | प्-गों णोऽनन्ते 48 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A / 27 / - 6 सूत्राणि. "स" संयोगादेरादन्तस्य० संयोगान्तस्य लोपः सखि-पत्योरीक संख्यायाः० संख्येयविशेषा० स धातुः स नपुंसकम् सन्ध्यक्षराणामा स-परोक्षयोजेगिः सप्तम्यर्थे० समः प्रतिज्ञाने समव-प्रवि० समानात् समास-प्रत्यययोः समासश्चान्वये. समासे क्यप् समाहारे द्विगुः समूहेऽर्थे० समोऽकर्मकेभ्यो (218) पृष्ठे. सूत्राणि. | सम्पर्युपेभ्यः०१०८ सं-प्रतिभ्यां च सम्बन्धे षष्ठी 18 | सर्ति-शास्त्यतिभ्यो० 74 सर्वादेः स्मट 16 18 सवणे दीर्घः सह 6 ससुटः कृनो लिट इट् सस्तोऽनपि. सस्वरादिः० सहादियोगे तृतीया सहादेः सादिः सहि-वहोः० सहेः षः साढि सान्तात्पूर्ववदात् / 122 सान्तात्सो न 124 सान्तेभ्य उः 181 170 सामाकम् सावनडुहः 46 - सिधिसंज्ञः स्यात् 137 सि सः /20 V on 197 0 1 , Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49 or:41 ( 219 ) सूत्राणि. .. पृष्ठे. सूत्राणि. पृष्ठे. सि-स-ता-सी० 65 स्त्रियां यजां भावे 173 सि-सयोः० स्त्रियां वोः सि-स्योः स्त्री-पुंसोनण-स्नणौ सुडामः स्त्री-भ्रुवोः 24. सुवो न गुणः० स्थामि 118 सूचि-सूत्रि० स्थैर्य-गति-भक्षणार्थेभ्योऽ० 169 सृजि-शोस्थपो वेट् . 74 स्पर्द्धायामाङः 138 सभ्यः सेटो हलाद्वा स्मिङ्-पूङ० 124: सेना-सुरा-च्छाया० ..59 स्मृत्यर्थयोगेऽपि सेरा सेरौ स्मे लट् 142 से ऽधेः स्या क्रियाऽतिक्रमे सैषाद्धसे स्याविदः सो नः पुंसः स्रोविसर्गः स्कोरायोश्च स्वपेर्यङि० 32 स्वरति-सृति. स्वरात्पराः . 92 / स्वरादः स्तोः श्चभिः श्चः स्तौति-ज्यन्तयोः०. ... 124 | स्वादेः परः 142. ao aw or an 32 so 56. aw . os स्तः स्तुरार स्तु--धूनां० 9 स्वरादेः ao Vol s Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 . 132 2 ( 220) सूत्राणि. पृष्ठे. सूत्राणि. पृष्ठे. स्वराद्यः 176 हव-क्त्योनेंट . 174 स्वराद्यदन्तस्य च ह-श-षान्तात्सक स्वरान्तादत्वतश्व०. हसात्तद्धित० 132 स्वरान्तानां० 144 हसादान हौ 114 स्वरे यत्वं वा हप्तादेलघोरतो वा वृद्धिः० 68 स्वाङ्गाद्वा हप्ताद्यस्य लोपो० स्वादेर्नुः हसा व्यञ्जनानि स्वापेः संप्रसारणम् हसेप: सर्लोपः स्वाम्यादियोगे. हसेऽहहसः स्वार्थसान्तात्तु स्यादेव हितेऽऽपि स्वार्थेऽपि | हेतौ तृतीया-पञ्चम्यौ "ह" हो झमाः हनः सिः कित् हनिडोः से दीर्घः 122 होधिः हनृतः स्यपः हम्यन्त-क्षण हनो वत् 118 हस्वः हनो ने हस्व-दीर्घ० हनो लुङ० हूस्वस्य पिति कृति तुक् 159 हन्तेहिंसायां घनीभावः 127 हूस्वो लघुः हबे 12 हस्वो वा 42 हयवरल० 2 वादेर्द्धिश्च .. 124 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 160 सारस्वत-चन्द्रिकात उद्धृत्य टिप्पणके संप्रयुक्तानि कानिचित् सूत्राणि. -car. सूत्राणि. पृष्ठे. | सूत्राणि. पृष्ठे-- आतोऽन्तोऽदनतः 81-90 / चर-फलयोः ईपि वनो नस्य रो वाच्यः 159 | चटनार्थादेर्युः 182 उपधाया ऋवर्णस्य० . 116 जुहोतेर्दीर्घः उसि गुणः . द्युति-गमि-जुहोतीनां ऋच्छेर्नाम् नमादेरः ऋच्छेलिटि गुणः 137 नानप्योर्वः ऋधेरनिटि से स्वरस्य 123 | निन्दादेवू कण-रण-भण. 116 / पाटेजिंळुक० कुटादेणिद्वजैः प्रत्ययो० 111 | पुकि गुणः - 117 कृत्यानां कर्तरि वा षष्ठी 178 | पूडः वा कितस्तस्येट 166 तस्य च वर्तमाने . 167 | भञ्ज-मास-मिट्यो घुरः 182 खशन्ते पूर्वपदस्यानव्ययस्य मावे कर्तरि० .. इस्वः . 156 / मदामः गिरते रेफस्य लत्वं यडि 126 यमः सिः किद् वा विवाहे 139 182 172 Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 229) सूत्राणि. पृष्ठे. | सूत्राणि. पृष्ठे. लक्षण-प्रतिपदोक्तयोः 111 / से दीर्घः 121-123-124 वनिपि समस्याऽऽत्वम् 159 स्नुक्रमोराति नेट् . 138 वर्तमानाधारार्थ० 169 / स्मृहि-गृहि-पत्यादेरालुः 182 चेत्तेरन्तो वा रुडाति 138 स्वरात्तो वा. 169 श्वयतेः संप्रसारणस्य. 166 | हन्तेस्तः 173 स-घस्यद्भ्यः क्मरः 182 | हसात् परस्य०७५-११४-१२९ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शोधनपत्रम. अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्ठे. पस्तौ. न्लवर्णस्य - लुवर्णस्य सर्वस्य सर्वस्य / झमे समे . मद्भवत्र पित्रर्थः ["पित्रर्थः ], पित्रर्थः वृणाम वृणामकत .. .कर्ते चपात् [पदान्ते वर्तमानात् ] चपात् श्चुत्वं चुत्वं स्तोःष्टुन तोः टुर्न प्रत्यङ्गिदम् / प्रत्यङ्दिम् षट्त् सन्तः षट् त्सन्तः [षट् सन्तः] " . संयता, सँय्यता। संयन्ता, सँय्यन्ता। 11 . लोप. लोपः . . 13 जसि' ... 'जसी' 329 22. 14 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 224 ) शुद्धम्. . अशुद्धम्. पृष्ठे... पो. नन्त . -ऽनन्ते य॑वधानेऽपि -कर-हन्न। 20 भ्रूशब्दस्य / व्यवधानेऽपि -करन इति भ्रशब्दस्य स्तुभवति स्यादौ। टाऽऽदौ धातणि अतिनवा स्तुवति स्यादौ / श्रीपम् , , उक्तपुंस्कं टाऽऽदौ 26 घातृणि , अतिनावा ' 27 20 -संयोगे पदान्तेच। -रयोर्हसपरयोः। 30 वा सु। वाऽऽसु। 32 सुपा / / वृक्षवृश्चशब्दः, 12 / सस्य शस्य दोषसु, दोःसु दोषसु 34 दोःषु, दोष्षु / आशीषु। .. आशीष्षु, आशीःषु। 36 वा' हे कर्म हे कर्मन् / 30 दोष्षु। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .पतो. अयो रुिक् चा व ( 225) अशुद्धम्.. शुद्धम्. पृष्ठे. पादादो पादादौ च अयो सह / सहसा प्रयस् प्रायम् हिरुक प्रादिका उपसर्गाः। 40 -पधात् . . -पधाददन्तात् 43 वोर्गुणात्। वौर्गुणात् चांव अग्निषोमीयम् अग्नीषोमीयम् गार्गीयः / ... " इन्द्रियः . . इन्द्रियम् . -राम् / -राम् द्रव्यप्रकर्षे / 48 दन्न-द्वयस्-मात्राः। दन-द्वयसट मात्रटः। नमादि- नम आदि-क्तवत् -क्तवतु. .. अनत इति किम् ? उपकुम्मात् / उपकुम्भात् / अग्नि-मारुतौ। . अग्ना-मारुतौ। 5 सङलयापूर्व-... सड्यापूर्व . . 15 . Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्धम्. -सङख्या ( 296 ) शुद्धम् . -सङ्ख्या पृष्ठे... पो. ___ 59 आमहैप। ई वहि महि / उच्चारणाथः / -मुक्ताथबमव बमवतुः भयासम् ममन्यतः। अनैषीत। -मजिशाकः / विषि“खोविहसे' भ्रासअयसीत् / आमहैप् / इ वहि महि। उच्चारणार्थः / -मुक्तार्थ- : बभूव बभूवतुः भूयासम् ममन्यतुः। अनेषीत् / -मजिशाकिः। प्रषि-विषि . जगन्थ। भ्राशअयंसीत् / जगमिथ जगन्य / स्यपः आदन्ताद् शा-छा स्यप. आदन्तात Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 197) अशुद्धम्. . . . शुद्धम. सेरपवाद / सेरपवादः। 74 सुत्रविय शुश्रविय चस्कन्य। चस्कन्ता। चस्कन्थ 2 / स्कन्ता।, प्रदीनामिटो दीर्ष, ग्रहादीनामिटो दीर्घः१।, ससक्य / ससब्जिय ससक्य / 76 -चके। -चकार / . , अश्च्योतित् भश्च्योतीत् / 77 एघिषीध्वं ऐधीष्ट ऐधिष्ट युधिर् बुधिर् बमः मानन्ति स्यात / " स्यात् / . न. . 'मार्जन्ति g 2016 तुष्टविथ पृ पूर्वस्यात् अधातं पूर्वस्यात .... अधात् Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अशुद्धम्. 'इरितो वाडा, सूत-सूयति। चात्व / / विहायला अभिनटू-ड। ऋषि पालनार्थ ववृध्वे। भङ् सयोः। उपधाया.' आदीनि अबीमवम / -स्वन-जषअचीचिमत् म्वरस्थ बोमुज्यते / अबोमुखः। नित्यत्वाद परिवम.न्तिं ( 228) . शुद्धम्. पृष्ठे. 'इरितो वा अः 98 सूति-सूयति०' 100 चात्वम् / . 101 विहायसा अशिनट्-ड्। 101 ऋषी 110 'पालनार्थ- .. 112 ववृद्धे / 115 अङ्-सयोः। 118 उपधायाः' इत्यादीनि ,, अबीभवम् / ' , -स्वन- . 119 120 अचीचमत्. * स्वरस्य बोमुज्यते / अबोभूवुः। . 128 .नित्यत्वाद। अवरिषमहान्तं 123. 125 Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतो. (229) पृष्ठे, सपश्रोष्ट समश्रोष्ट उपक्र ीष्ट उपक्रसीष्ट 'नो लोपः। . 'लोपस्त्वनुदात्त०' 139 उपायसि। उपायंसि / त्रिषष्टौः। त्रिषष्टौ। न्यन्तत्वं न्यन्तत्वे-देकवचन, -देकवचनम्, . 143 सि-स-ता सि-ता- 144 'सि-म्योः' 'सि-स्योः' . 147 मुजगः मुजङ्गः। भुनगः भुजङ्गः। 154 परतपः। परंतपः। प्रययो . प्रत्ययो . 165 नामकमिदं नामकं 183 -भूतः क्रियान्तरः। -भूतक्रियान्तरः। 188 अग्नरिद अग्नेरिद 192 MIN Page #259 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // भीयशोविजयजी जैनग्रन्थमालासे उपलब्ध संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थोंकी सूची -**- 'भारते भातु भारती न्याय 1 रत्नाकरावतारिका-( दुष्प्राप्य )बारहवीं शताब्दी के तार्किक पूज्य श्रीवादिदेवसूरि के प्रमाणनयतत्वालोकालकार के ऊपर यह, उन्ही के विद्वान् शिष्य श्रीरत्नप्रभसूरि की बनाई हुई; स्याद्वादरत्नाकर के सारांश रूप सुन्दर और प्रौढ टीका है / इसकी भाषा बहुत छटादार और आलङ्कारिक है, इसीलिये यह न्याय की कादम्बरी या तिलकमलरी कही जाती है / भट्टचट्टघट्टना” जैसे इसके अनेक वाक्य कई विद्वानों के जिहान हैं / कलकत्ता युनिवर्सिटीने इसे जैनन्यायतीर्थ में दाखिल किया है। डेमी अष्ट पेनी साइज़ के 273 पृष्ट और सुन्दर प्रस्तावना सहित मूल्य रु. 6-0-0. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 232 ) 2 रत्नाकरावतारिका, टिप्पणपत्रिका सहित (दो परिच्छेद) -उसी रत्नप्रभसूरि की रत्नाकरावतारिका के ऊपर पं० ज्ञानचंद्रनी और श्रीराजशेखरसूरि का टिप्पण और छपाई और कागज़ सुन्दर हैं / मूल्य 1-0-0. 3 सम्मतितर्क-आदिविक्रम की पण्डितसभा के एक रत्न श्रीसिद्धसेनदिवाकरसूरि की प्रौढ तार्किक लेखिनी से यह लिखा हुआ ग्रन्थ जैनन्याय में प्रथम और उच्च स्थान को प्राप्त कर चूका है। इसी के ऊपर तर्कपश्चानन श्रीअभयदेवसरि की तत्त्वावबोधिनी नामकी प्रौढतम टीका है जिसका यह प्रथम भाग है। सुपररॉयल 8 पेनी साइज़ के पृष्ट 200, कागज़ और छपाई सुन्दर / मूल्य मात्र रु. 1-0-0. 4 षड्दर्शनसमुच्चय ( मूल ) मलधारिश्रीराजशेखरसूरिकृत यह श्लोकबद्ध मूल ग्रन्थ भी दार्शनिक विद्वानों को अच्छा उपयोगी है। मूल्य 0-4-0. 5 जैनतर्कवार्तिक-आदिनैनतार्किक श्रीसिद्धसेनदिवाकराचार्यजी के न्यायावतारादि प्रमाणविषयक श्लोकों के ऊपर श्रीमान् शान्त्याचार्यजीने विस्तृत वार्तिक. रूप में इस अन्य को बनाया है।. पृ० 163 मूल्य रू. 2-0-0. Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (233) 6 प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-वादीन्द्र श्रीवादिदेवसूरिने इस महामन्य को सूत्रात्मक आठ परिच्छेदों में बनाया है। इसकी गंभीरता इतनी है कि इसके ऊपर उन्ही वादिदेवमूरिजीने स्वयं 84000 श्लोकात्मक स्याद्वादरत्नाकर नामकी बडी टीका लिख कर जगत् को चमत्कृत कर दिया है। आचार्यधुर्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वर महाराज के प्रयत्न से कलकत्ता की अंग्रेज़ी की M. A. परीक्षा में और श्वे. न्यायकी संस्कृत प्रथमा परीक्षा में यह मूल ग्रन्थ दाखल हुआ है / प्रथम आवृत्ति खतम होने से संस्कृत टिप्पण सहित हमारे यहां पुनः छपता है / व्याकरण 7 क्रियारत्नसमुच्चय-षड्दर्शनसमुच्चय की बृहद् वृत्ति के लेखक न्यायव्याकरणविशारद श्रीगुणरत्नसूरिने इस ग्रन्थ को बनाया है / यह ग्रन्थ वस्तुतः व्याकरणा• भ्यासी छात्र और विद्वानों के लिये बहुत ही उपयोगी है। सभी गण और सभी णिगन्त-सान्तादि-प्रक्रिया व कृदन्त के प्रयोगों में कौन 2 धातु के कैसे 2 रूप होते हैं वे इसमें हैमसूत्रों के निर्देशपूर्वक सिद्ध किये हैं। नामधातु और सौत्रधातु भी इसमें दिये गये हैं। धातुओं की अनुक्रमणिका और सुन्दर प्रस्तावनादि से Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (234) अलंकृत यह ग्रन्थ प्रत्येक वैयाकरण को तो भवश्य रखना ही चाहिये / सुपर रोयल 8 पेनी साइज़ क. मोटे कागज़ के पृष्ठ 313, मूल्य फक्त रु. 2-0-0. 8 कविकल्पद्रुम-यह व्याकरणोपयोगी ग्रन्थ श्रीहर्षकुल प्रणीत है / व्याकरणानुसार इसमें धातुओं को श्लोकबद्ध कर दिये हैं / धातुपाठ कण्ठस्थ करनेवाले विद्याथिओं को तो यह खास उपयुक्त है। और भी व्या करणोपयोगी कई बातें इसमें हैं। मूल्य 0-4-0.. 9 सिद्धान्तरत्निकाव्याकरण-( संटिप्पण ) सारस्वत चन्द्रिका की पद्धति का, यह छोटा और उपयोगी व्याकरण श्रीजिनचंद्रसरि महारानने बनाया है / संक्षेप से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त करनेवालों के लिये तो यह. खास उपयुक्त है / उपलब्ध प्राचीन व्याकरणों में यह प्रायः सब से छोटा व्याकरण है। इसमें वाक्यप्रकाशादि से उद्धृत कर के व्याकरणोपयोगी करीब 60 श्लोकों का संग्रह भी दिया है / कलकत्ता की श्वे० जैनव्याकरण की प्रथमा परीक्षा का यह ग्रंथ है / पृ० 240, मूल्य 0-12-0. 1. सिद्धहेमशब्दानुशासन मूल (व्याकरण)-प्रसिद्ध वैयाकरण पञ्चानुशासनविधाता श्रीहेमचन्द्राचार्य के संस्कृत Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याकरण के मूलसूत्र इसमें अलग छपवाएँ हैं। हैमव्याकरणपाठी विद्यार्थिओं को मूलसूत्र की आवृत्ति करने के लिये तो यह नितान्त उपयुक्त है / अन्य वैयाकरणों को श्रीहेमाचार्य की विशिष्ट विशारदता जानने के लिये काम की चीज है. मूल्य 0-6-0. . 11 स्यादिशब्दसमुच्चय ( सटीक )-बालभारतादि ग्रन्थों के निर्माता महाकवि श्रीअमरचंद्रसूरि का, स्यादिनामों के विषय का यह बहुत ही बढिया ग्रन्थ है। पं० लालचन्द्र भगवानदासने इसको एडिट किया है / मूल्य रु 0-12-0 12 श्रीसिद्धहेमसूत्रपाठ की अकाराद्यनुक्रमणिका-प्रसिद्ध .. वैयाकरण श्रीहेमचन्द्राचार्य के व्याकरण के अकारादिक्रम . से इसमें सूत्र हैं। 0-4-0 13 धर्मदीपिका-आचार्य श्रीहेमचन्द्रमूरिजी के सिद्धहेम सूत्रोंके उपर न्यायविशारद न्यायतीर्थ उ० श्रीमंगल विजय जी महाराजकृत यह सुगम वृत्ति है, परंतु इसमें यह विशेषता है कि अष्टाध्यायी क्रमसे सूत्र नहीं रख कर सिद्धान्त कौमुदी की पद्धति का यह व्याकरण है। सूत्रानुक्रमणिका, धातुपाठ, संग्रहश्लोक और परिभाषा प्रकरणादि से अलंकृत यह ग्रन्थ वैयाकरणों को उपयुक्त है। 500 से अधिक पृष्ठ के इस ग्रन्थ का मूल्य 2-0-0 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 236 ) काव्य और चरित्र 14 श्रीनेमिनाथमहाकाव्य (पद्यबद्ध-सटिप्पण)- काव्य के प्राथमिक अभ्यासियों के लिये यह अन्य बहुत ही उपयोगी है। तुलना की दृष्टि से कहें तो रघुवंश की शैली का, बल्की कोई 2 नगह उससे भी अच्छा है। इसमें प्रभात और राजीमती के विरह प्रभृति का वर्णन बहुत ही अच्छा करके श्रीकीर्तिराजोपाध्यायनीने कालिदास की कीर्ति के साथ स्पर्धा की है। भिन्न 2 छन्दः, अलङ्कार और भावों से पूर्ण द्वादश सर्गात्मक यह ग्रन्थ पुस्तकाकार और पत्राकार में छपा है। दोनों में से प्रत्येक का मूल्य 0-12-0 , 25 श्रीज्ञान्तिनाथचरित्र (श्लोकबद्ध महाकाव्य)-काव्य निष्णात श्रीमुनिभद्रसूरि महाराजने इस अत्युत्तम ग्रन्थ को बनाकर कवि समाज को चमत्कृत कर दिया है। इसमें इन्द्रवज्रा, वसन्ततिलका, शिखरिणी प्रभृति बड़े बड़े च्छन्दों में 19 सर्ग हैं। सारे ग्रन्थ में अलंकार की . छटा एवं वर्णन का चमत्कार है। हमारी दृष्टि से माघकाव्य की कोटी का यह काव्य है, इसमें करीब 5000 श्लोक हैं. भाषा वैदर्भि रीति की है. काव्यज्ञों को यह संग्रहणीय है. पृष्ठ 355, मूल्य रु. 3-0-0 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 237 ) 16 श्रीपार्श्वनाथचरित्र (श्लोकबद्ध)-इस ग्रन्थ के निर्माता श्रीभावदेवमूरि हैं, इसमें श्रीपार्श्वनाथजी का चरित्र वि'स्तार से दिया है। अनुष्टुप् छन्दः में श्लोक होने से साधारणों के लिये यह उपयुक्त प्रतीत होता है इसमें करीन 1500 श्लोक हैं। कागज़ और छपाई सुन्दर पृष्ठ 478 सजिल्द पुस्तकाकार और पत्राकार प्रत्येक का मूल्य रु 3-0-0 . 17 श्रीमल्लिनाथ चरित्र (श्लोकबद्ध- श्रीविनयचन्द्रसूरि कृत यह भी अनुष्टुप् छन्दः में है छपाई और कागज़ मनोहर है पृष्ठ 335 पुस्तकाकार और पत्राकार, प्रत्येक का मूल्य रु. 3-0-0 . 18 शीलदूत-महाकवि कालिदास के मेघदूत काव्य के प्रत्येक श्लोक के अन्तिम चरण लेकर इसमें श्रीचारित्रमुन्दर गणिने पादपूर्ति की है, यानी तीन पाद अपने और " स्निग्धच्छायातरुषु वसतिः" प्रभृति एक पाद मेघदूत के श्लोकों का लेकर उसका अर्थ इस काव्य के नायक श्रीस्थूलभद्रनी में घटाया है। सारा काव्य बहुत रसपूर्ण है। इस खण्ड काव्य को कौन न खरीदेगा ? मूल्य मात्र रु. 0-4-. . 19 जगद्गुरुकाव्य-सम्राट अकबर को प्रतिबोध करनेवाले जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि के जीवन के विषय का यह प्रन्थ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (238) शार्दूलविक्रीडितादि बड़े बड़े छंदो में लिखा गया है। श्रीहीरविजयसूरीश्वर के समय का इतिहास जाननेवालों को और काव्यज्ञों के लिये खास उपयोगी अन्य है / मूल्य रु. 0-4-0 20 गुरुगुणरत्नाकरकाव्य-श्रीरत्नशेखरसूरि के पट्टधर श्रीलक्ष्मीसागरसूरि के चरित्र विषय का यह काव्य श्री- . सोमचारित्रगणिने रचा है। काव्य के ढंग का यह ग्रन्थ होते हुए भी इतिहासज्ञों को भी उपयुक्त है / पृष्ठ 75, मूल्य 0-8-0 21 श्रीधर्ममहोदय-नवयुगप्रवर्तक शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वरमहाराज का पवित्रजीवनचरित्रात्मक यह ग्रन्थ उन्हीं के शिष्यरत्न स्वर्गीय श्रीरत्नविजयनीम० का बनाया हुआ है। काव्यपद्धति का अनेक छंदों में निबद्ध सरस और सुन्दर इस ग्रन्थ को कौन न पढ़ेगा ? मूल्य 0-4-0 22 श्रीशालिभद्रचरित्र ( पद्यबद्ध सटिप्पण)--परमात्मा महा वीर के समय के ऐतिहासिक पात्र श्रीशालिभद्रजी का जीवनचरित्र इस काव्य का विषय है / पं० श्रीधर्मकुमारजीने अपनी प्रौढ भाषा और कल्पना से इसको बनाकर अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है। इसलिये कठिन स्थलों में हमने टिप्पण करवाकर पत्राकार में छपवाया है / पृ० 152, मूल्य रु.२-०-० Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 239) 23 श्रीपृथ्वीचंद्रचरित्र-(पत्राकार श्लोकबद्ध '-श्रीसत्यराज गणि विरचित इस छोटे से चरित्र में बैराग्योद्बोधक वर्णन भच्छ। आता है / उपमा आदि अलंकारों से युक्त यह अन्य विद्यार्थिओं को अवलोकनीय है / न्यायविशारद न्यायतीर्थ उ० श्रीमंगल विजयजी महाराजने इसको एडिट किया ह / पत्राकार. मूल्य 2-0-0. 24 पर्वकथा संग्रह-ज्ञानपञ्चमी वगैरः धार्मिक पर्वो के विषय की 5 कथाएँ इसमें हैं। पत्राकार, पृष्ठ 30, मूल्य 0-6-0. . 25 उपदेशतरङ्गिणी-व्याख्यान के योग्य यह बहुत उप योगी है / भिन्न 2 विषय का समथन करने के लिये प्राचीन धार्मिक कथा-दृष्टान्तादि देकर श्रीरत्नमन्दिरगणिने इस ग्रन्थ को अच्छा उपयुक्त बनाया है / पत्राकार, पृष्ठ 280 मूल्य 3-0-0. 26 रत्नचूडकथा ( पत्राकार में )-श्रीज्ञानसागरसूरिजीने इसमें पद्यबद्ध रत्नचूड़ का चरित्र चित्रित किया है। पत्राकार, मूल्य 0-8-0. 27 भरटकद्वात्रिंशिका-जैनसाहित्यसेवी जर्मनी क प्रसिद्ध प्रो० हरटलने इस द्वात्रिंशिका को अंग्रेज़ी में एडिट करके लिपजिग (जरमनी) से अंग्रेजी नोटों सहित प्रकट की है। मूल्य 3-0-'. Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (240) 28 पंचाख्यानवार्तिक-जर्मनी में छपा हुआ है। मूल्यः रु. 3-12-0 29 शृङ्गारवैराग्यतरंगिणी-इसके श्लोकों में स्त्रीके मुख केशादि का वर्णन कर उसको वैराग्य में घटाया है। पं० शिवदत्त कविरत्नने इसके बहुत वाक्य लेकर अलग श्लोक बनाये हैं। भेट कोष 30 सटीक अभिधानचिन्तामणि ( हैमकोष)-व्याकरण न्याय-कोषादि सेंकडों ग्रन्थोंके रचयिता श्रीमान् हेमचन्द्राचाय का बनाया हुआ यह कोष जगभर में विख्यात है। रघुवंशादि पांच काव्यों की, सिद्धान्तकौमुदी, काव्यप्रकाश, कादम्बरी प्रभृति सेंकडों व्याकरणादि ग्रन्थों की टीकाओं में इस कोष के कई प्रमाण ‘इति हैम' नाम से आते हैं। अमरकोष, मेदिनी प्रभृतिकोषों में जो शब्द नहीं मिलते वे इसमें मिल सक्ते हैं। यह कोष की उन्हीं हेमचन्द्राचार्य की बनाई हुई व्याकरण के सूत्रोल्लेख्न पूर्वक स्वोपज्ञ सुंदर और सरल वृत्ति हमने पहिले पहल ही छपवाई है। कवि वैयाकरण और संशोधको के लिए यह कोष बहुत कामका है, जल्दी मंगवाइये / 1620 सनिल्द मूल्य 4-0-0. Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (241) 31 श्रीअभिधानचिन्तामणिकोष (दूसरा भाग )-उपर्युक्त कोष के शब्दों की यह अकारादि क्रम से अनुक्रमणिका है, इसकी प्रस्तावना में श्री हेमचन्द्राचार्य का थोडा परिचय भी दिया है। हैमकोष की किसी भी आवृत्ति के लिये यह अनुक्रमणिका काम आसकती है, पृष्ट 351 सजिल्द मू० 3-0-0 - नाटक। 32 मुद्रित कुमुदचन्द्रप्रकरण-गुजरात के बारहवीं शताब्दी के सम्राट् सिद्धराज़ जयसिंह की राज्यपभा में प्रकाण्ड दिगम्बरवादि श्री कुमुदचंद्राचार्य को स्त्रीमुक्ति के शास्त्रार्थ में श्री वादीन्द्र वादिदेवसूरिजीने हराये थे। उसी विषय और उसी प्रसंग को लेकर कवि यशश्चन्द्रने यह प्रकरण ( नाटक का एक भेद ) बनाया है. इस में ऐतिहासिक पात्र बहुत हैं, भाषा अच्छी है। मूल्य 0-8-0 छन्दः / 33 छन्दोऽनुशासन ( सटीक )--श्री हेमचन्द्राचार्यकृत यह ग्रन्थ सूत्रबद्ध कविता प्रिय पंडितों को बहुत उपयोगी है . इसके आठ अध्याय सूत्रबद्ध हैं / उन्हीं आचार्यवर्यने इसके 16 . Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 242 ) ऊपर स्वोपज्ञ विस्तृत टीका बनाई है, वह बहुत ही उपयोगी है / डॉ० याकोबी का मत है कि पिङ्गलकृत पिङ्गल सूत्र से इस में कुछ छन्दः ज्यादा हैं और लेखनशैली सुन्दर एवं सरल है / पत्राकार इस ग्रन्थ का मूल्य रु. 1-0-0 . इतिहास / 34 गुर्वावली-कालिदासतुल्य, संहस्रावधानी श्रीमुनिमुन्दर सुरि महाराजने भगवान् महावीर के बाद होनेवाले अनेक गणधर आचार्यों की सत्ता-समयादि पूर्वक पट्टावली (परंपरा), अपने समय यानी पन्द्रहवीं शताब्दी तक का वृत्तान्त इतिहास और काव्य दोनों दृष्टि से, लिखी है / प्रथमावृत्ति खतम होने से हमने इसकी दूसरी आवृत्ति छपवाई है। इतिहासज्ञों को तो यह बहुत ही काम की चीज़ है / पृष्ठ 54, मूल्य 0-4-0 स्तोत्र। 35 श्रीजैनस्तोत्रसंग्रह (द्वितीय भाग)-इस भाग में भक्तामर कल्याणमन्दिर स्नातस्याप्रतिमस्य-संसारदावादि की पादपुर्तिवाले, यमकादि विचित्रालंकारवाले, भक्ष्य चीज के Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 243) नामवाले, अनेक विचित्रस्तोत्रों का संग्रह किया है। -संस्कृतज्ञमक्त लोगों के लिये बहुत अच्छी वस्तु है। यह दुसरी आवृत्ति है / पृष्ठ 136, मूल्य 0-12-0 प्राकृत। 36 प्राकृतमार्गोपदेशिका-प्राकृत भाषा का अभ्यास करने वालों के लिये पाठमाला की पद्धति से श्रीहेमचन्द्राचार्य के प्राकृतव्याकरण के नियमानुकूल यह पुस्तक खास तैयार की गई है / इसके अन्दर सभी प्रकृत के नियम गुजराती में समझाये गये हैं, इसके पढने से प्राकृत साहित्य में प्रवेश हो सकता है / इसके पीछे गुजराती अर्थ सहित छोटासा प्राकृत कोष भी दिया गया है। पृष्ट 185, मूल्य 1-4-0 37 विवेकमअरीसटीक (भाग १)-प्राकृत भाषा का यह ग्रन्थ कविसमा,गार श्रावक आसड कवि का बनाया हुआ है / इसके ऊपर वसन्तविलास ग्रन्थकार श्री बालचन्द्रसूरिजीने संस्कृत व्याख्या लिखी है / इसमें टीकाकारने अनेक धार्मिक दृष्टान्त देकर मूलकर्ता के आशय का अच्छीतरह स्पष्टीकरण किया गया है / न्या०तीर्य पं. हरगोविंददास की प्रस्तावना भी इसमें , पढने योग्य है। मूल्य रु० 2-0-0 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 244 ) आगम और तत्वज्ञान / 38 श्रीउत्तराध्ययनसूत्र भाग १-श्रीकमलसंयमोपाध्याय की बनाई हुई सर्वार्थसिद्धि नाम की टीका युक्त तो यह ग्रन्थ सर्व प्रथम ही हमारे यहां से प्रकाशित होता है / इस सूत्र और टीका में कई सुन्दर 2 कथाएँ आती हैं, अच्छे कागजों में छपा है। शान्तमूर्ति मुनि श्रीजयन्तविजयजी महाराजने इसको सपरिश्रम एडिट किया है। पत्राकार में मूल्य रु० 3--0 39 श्रीउत्तराध्ययनसूत्र भाग 2 , , मूल्य 3-8-) 40 , , भाग 3 , , , 3-8-0 41 " " भाग ,4 (छप रहा है) इस भाग में यह पूर्ण होगा. 42 विशेषावश्यकभाष्य (सटीक) पत्राकार-श्रीजिनभद्रगणि महाराजने आगम पद्धति से इस महाग्रन्थ को मूल प्राकृत में बनाया है / इस में आगमज्ञों और तार्किकों को बहुत आनन्द देने योग्य अनेक विषयों की चर्चा है / ज्ञान के विषय में इस ग्रन्थ से बहुत विस्तारपूर्वक जानने को मिलता है / इसके ऊपर प्रसिद्ध टीकाकार मलधारि श्रीहेमचन्द्रने बहुत ही विस्तृत और अत्युत्तम संस्कृत टीका बनाई है। पत्राकार पृष्ट 1623, मूल्य 50-0-0 सिर्फ थोडी ही नकले सिलिक में हैं. Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 245) 43 जैनतत्वप्रदीप-न्यायतीर्थ-न्यायवि० उपाध्यायजी श्री मङ्गलविजयनी म० की तत्त्वज्ञान विषयक यह संस्कृत कृति न्यायाभ्याप्ती विद्यार्थियों को अत्युपयोगी है। मूल्य रु. 1) 44 जैनतत्त्वज्ञान-प्रसिद्ध नामधेय श्रीविजयधर्मसूरि महा राजनीने इस लघु ग्रन्थ म जीवादि पदार्थों का सरल संस्कृत में विवेचन किया है / भेट. 45 विद्यगोष्ठी-विद्वद्गोष्ठी (वार्तालाप) कैसे करना ? यह बात इस ग्रन्थ से जानने में आती है। साहित्य सम्बन्धी, व्याकरण सम्बन्धी, और न्याय सम्बन्धी गोष्ठीका विस्तार से उल्लेख है / षट् दर्शन सम्बन्धी बात संक्षेप से जाननेवालों के लिये यह छोटा ग्रन्थ अवश्य मंगवाना चाहिये। मूल्य 8-8-0 46 पर्युषणाऽष्टाह्निकाव्याख्यान-(अट्ठाइ व्याख्यान, श्लोकबद्ध) भेंट. ... 4-8-0 ... 0-3-7 0-210 हिन्दी ग्रन्थों. 47: सूरीश्वर और सम्राट् ... 48 जैनतपदिग्दर्शन 49 जैनशिक्षा दिग्दर्शन 50 पुरुषार्थ दिग्दर्शन... 51 आत्मोन्नति दिग्दर्शन 52 धर्मदेशना ... 53 तेरापंथ-मतसमीक्षा 54 तेरापंथी-हितशिक्षा .. ... 0-4-0 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ....2-0-0 ... 0-12-0 ... 1-0-0 (246) 55 शिक्षाशतक ( कविता ) 56 विधेकविलास ... . ... 57 गौतमपृच्छा ... 58 धर्मशिक्षा .... 59 जैनरामायण ... 60 बाळ नाटको .... 61 मेघमहोदय ( वर्ष प्रबोध )... 62 पिजयप्रशस्तिसार ... 63 जैनधर्मप्रकाश स्तवनावली 64 आदर्श-साधु ... ..., ... 6. ब्रह्मचर्य दिग्दर्शन ... ... ... 66 गंगाधरजी के असत्य आक्षेपों के उत्तर 67 अहिंसादिग्दर्शन... . ... 68 सुजनसंमेलन .. ... ... ... भेट ... 4-0-0 0-6-0 0-2-0 1-4-. ... 0-8-0 ܘ-R-ܘ 0-8-0 ... 0-1-0 गुजराती ग्रन्थ. 69 सुरीश्वर अने सम्राट् ... ... ... 3-8-0 70 जैन शिक्षा दिग्दर्शन ... 71 प्राचीन श्वेताम्बर-अर्वाचीन दिगम्बर 72 विजयधर्म पूरि-जीवन ... ... 73 ऐतिहासिक राससंग्रह भाग 1 ला भाग 2 रा ... 0-10-0 75 , भाग 3 रा ... 2-0-0 , भाग 4 था ... 2-8-0 77 प्राचीन तीर्थमाला संग्रह भाग 1....... ... भेट Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 0 0 0 ... 3-8-0 0 0 ?? 0 (247) 78 आत्मवीरनी कथाओ ... ... ... 0-5-0 .79 विहारवर्णन ... ... 80 शाह के.बादशाह... ... ... 0-4-0 .81 त्रिभुवनदीपकप्रबंध ( रास ) ... 82 जयसेन कथा ( सौभाग्य पंचमी व्रत पर प्राचीन महेश्वर सूरिकृत, एक हजार वर्ष पूर्वकी, उस पर से अनुवादित)... 83 वर्षप्रबोध अने अष्टांगनिमित्त .84 समयने ओळखो ... ... ... ... 1-8-0 85 अष्टांगनिमित्त अने दिव्यज्ञान ... 86 धर्मदेशना . ... ... 87 धर्मप्रदीप... ... . 88 लाइट ऑफ धी सोल अंग्रेजी, गुजराती 89 इंद्रियपराजय दिग्दर्शन ... 9. अहिंसा ... ... ... 91 ब्रह्मचर्यदिग्दर्शन .... ... 92 जैनदर्शन... .... 93 तत्त्वाख्यान (पूर्वार्द्ध ) 94 तयाख्यान ( उत्तरार्द्ध) ... 95 सम्यक्त्व प्रदीप ... 96 सप्तभंगीप्रदीप ... : ... 0-8-0 97 आचार्य श्री विजयधर्मसूरिजीका फोटु-तीन रंगोंमें 0.4-0 98 बंगभाषोपदे शिका (द्वितीय विभाग) ... 1-0-0 99 धर्मजीवनप्रदीप (. पचमें ) 100 द्रव्य प्रदीप .... ... 0-4-0 101 आब .... ..... ... 102 धर्मप्रवचन .. ... .. ... 1-0-0 0 0 .? . 00000 E:::: : 000 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (248) 203 नवो प्रकाश ... 104 प्राचीन लेख संग्रह ... ... ... ... ... भेंट ... 2-0-0 - अंग्रेजी, 205 विजयधर्मसूरिजी का चरित्र, और कृतिएं ( ए. जे. सुनावाला कृत ) . ... ... ... 4-8-0 106 कोम्परेटिव सायन्स ऑफ रिलिजीयन में जैनिज़म और उसके महत्व का स्थान(आ पेर्टोल्ड) 0-4-0 107 पार्श्वनाथ जीवन ( एम. ब्लुमफील्ड कृत) ... 12-0-0 108 गुजरात के श्वेतांबरों का गुजराती साहित्य (कर्ताः- डॉ. जोहन्स हर्टल )... ... ... 2-0-0 109 रेमिनिसेन्सेज आफ श्री विनयधर्मसूरि ... 2-8-0 इसके सिवाय हिन्दी और गुजराती भाषा में भी हमारी तर्फसे बहुत से ग्रन्थ छपे हैं. और कीसी स्थान में भी छपे हुवे जैन धर्म के सभी ग्रन्थ हमारे यहां से मिलसकते हैं. जल्दी से ऑर्डर दीजिये. इठी पुस्तकें खरीदनेवाले को कमीशन भी दिया जाता है। - प्राप्तिस्थानश्रीयशोविजयजैनग्रन्थमाला, हेरीसरोड, भावनगर ( काठिआवाड ). Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्तिस्थानम्श्रीयशोविजयजैनग्रंथमाला हेरीसरोड-भावनगर (काठीआवाड )