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________________ (233) 6 प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-वादीन्द्र श्रीवादिदेवसूरिने इस महामन्य को सूत्रात्मक आठ परिच्छेदों में बनाया है। इसकी गंभीरता इतनी है कि इसके ऊपर उन्ही वादिदेवमूरिजीने स्वयं 84000 श्लोकात्मक स्याद्वादरत्नाकर नामकी बडी टीका लिख कर जगत् को चमत्कृत कर दिया है। आचार्यधुर्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वर महाराज के प्रयत्न से कलकत्ता की अंग्रेज़ी की M. A. परीक्षा में और श्वे. न्यायकी संस्कृत प्रथमा परीक्षा में यह मूल ग्रन्थ दाखल हुआ है / प्रथम आवृत्ति खतम होने से संस्कृत टिप्पण सहित हमारे यहां पुनः छपता है / व्याकरण 7 क्रियारत्नसमुच्चय-षड्दर्शनसमुच्चय की बृहद् वृत्ति के लेखक न्यायव्याकरणविशारद श्रीगुणरत्नसूरिने इस ग्रन्थ को बनाया है / यह ग्रन्थ वस्तुतः व्याकरणा• भ्यासी छात्र और विद्वानों के लिये बहुत ही उपयोगी है। सभी गण और सभी णिगन्त-सान्तादि-प्रक्रिया व कृदन्त के प्रयोगों में कौन 2 धातु के कैसे 2 रूप होते हैं वे इसमें हैमसूत्रों के निर्देशपूर्वक सिद्ध किये हैं। नामधातु और सौत्रधातु भी इसमें दिये गये हैं। धातुओं की अनुक्रमणिका और सुन्दर प्रस्तावनादि से
SR No.004480
Book TitleSiddhantratnikakhyam Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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