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________________ तेना सेक्रेटरीए घणी खुशीनी साथे मंजुरी आपवाथी, अमोए अमारा तरफथी आ व्याकरणने फरी छपाववानो निश्चय करीने आ कार्य सारी रीते संपादन करवा माटे श्रीयुत पंडित लालचंद भगवान्दास गांधीने सोप्युं. तेमणे घणा उत्साहथी पूर्वार्द्ध सुधीनुं संपादन कयु. परंतु तेमने माथे साहित्यसेवाना कामनो बोजो घणो होवाथी आ कार्यमा घणो विलंब थतो जणायाथी, अने भणनारा विद्यार्थीओनी उपरा उपरी मांगणी आवती होवाथी जलदी पुरु कराववाना इरादाधी शिवपुरीमा बिराजता मुनिराजोने ते माटे विनति करी, तेथी तेमणे सहर्ष आ काम उपाडी लीधुं. ___व्याख्यातृचूडामणि शासनदीपकजी श्रीमान् विद्याविजयजी महाराजे उत्तरार्द्धनी बन्ने वृत्तिभोनुं घणा परिश्रमपूर्वक संशोधन कर्यु. शान्तमूर्ति मुनिराज श्रीजयन्तविजयजीए उत्तरार्द्धनी बन्ने वृत्तिओ उपर विद्यार्थीओने उपयोगी थाय तेवु सरल टिप्पण लखी आप्यु, तेमज मुनिराज श्रीहिमांशुविजयजी अनेकान्तीए एक सुंदर प्रस्तावना ( आमुख) लखी आपी. उपर्युक्त सौना सहकारी परिश्रमथी तेमज आ ग्रन्यना प्रकाशन कार्य माटे आर्थिक सहायता आपनारा उदार गृहस्थो (जेनी यादी प्रारंभमां आपवामां आवी छे.)नी मददथी आ ग्रन्थने प्रसिद्धिमा मुकवा अमो भाग्यशाली थया छीए. - आ प्रन्यनु. संशोधन नीचे लखेली हस्तलिखित बे प्रतिओने आधारे करवामां आव्युं छे. तेथी ते बन्ने प्रतिओना मालिको
SR No.004480
Book TitleSiddhantratnikakhyam Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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