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व्रत कथा कोष
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की प्रतिपादित तिथियों के होने पर व्रत किये जाते हैं । रात्रि व्रतों में जिनरात्रि, आकाश पंचमी, चंदनषष्ठि, नक्षत्रमाला आदि में अस्तकालीन तिथि ली गई है अर्थात् जिस दिन तीन मुहूर्त अर्थात् छह घटी तिथि सूर्य के प्रस्त समय में रहे उस दिन वह तिथि नैशिक (रात्रि ) व्रतों में ग्रहरण की गई है । अभिप्राय यह कि दैवासिक व्रतों में उदयकाल में छह घटी तिथि का और नैशिक व्रतों में प्रस्तकाल में छह घटी तिथि का रहना श्रावश्यक है ।
विवेचन - श्रावक के व्रत मूलतः दो प्रकार के होते हैं - नित्यव्रत और नैमित्तिक व्रत । पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत प्रौर चार शिक्षाव्रत इन बारह व्रतों
नित्य पालन किया जाता है । अतः ये नित्य व्रत कहे जाते हैं । नैमितिक व्रतों का पालन किसी विशेष अवसर पर ही किया जाता है, इनके लिए तिथि और समय निश्चित है तथा नैमित्तिक व्रतों में श्रावक अपने मुलगुण, उत्तर गुणों को शुद्ध करता है । उतरोत्तर अपनी प्रात्मा का विकास करता जाता है ।
नैमित्तिक व्रतों की संख्या १०८ है । इन १०८ व्रतों में कुछ पुनरुक्त होने के कारण व्यवहार में ८० व्रत लिए जाते हैं । वर्तमान में १०-१५ ही प्रमुख व्रतों का प्रचार देखा जाता है ।
नैमित्तिक व्रतों के प्रधान दो भेद हैं- दैवासिक की समस्त क्रियाएं दिन में की जाती हैं, वे दैवासिक व्रत एवं में की जाती हैं, वे नैशिक व्रत कहलाते हैं । पवास, ब्रह्मचर्य एवं धर्मध्यान करना आवश्यक है । व्रत को उपयोगिता और व्यावहारिकता के श्रावश्यक है ।
और नैशिक । जिन व्रतों
जिन की क्रियाएं रात दोनों ही प्रकार के व्रतों में प्रोषधोफिर भी कुछ कारण ऐसे हैं, जिनका अनुसार रात या दिन में करना
रत्नावली व्रत में ७२ उपवास किये जाते हैं । यह व्रत श्रावरण कृष्ण द्वितीया से आरंभ किया जाता है । इसमें प्रत्येक मास में छह उपवास करने का विधान है । व्रत करने वाला प्रथम श्रावरण कृष्ण प्रतिपदा के दिन एकाशन करता है और श्रावण कृष्ण द्वितीया का उपवास करता है । उपवास के दिन पूजा, स्वाध्याय औौर जाप करता ब्रह्मचर्य से रहता है | श्रावण कृष्ण तृतीया के दिन दोनों समय शुद्ध भोजन करता है । पुनः चतुर्थी के दिन एकाशन करता है तथा पंचमी को प्रोषधोपवास करता है,