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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : नमस्कृत हैं। अपितु अपाय अपगम आदि चार अथवा प्रकारान्तरे चोतीश अतिशयों से युक्त हैं। ऐसे शान्तिनाथस्वामी को प्रणाम करके उपदेशप्रासाद नामक ग्रन्थ को आरम्भ किया गया है।
इस प्रथम श्लोक में शान्तिनाथ के लिये " अतिशयों से युक्त" ऐसे विशेषण का प्रयोग किया गया है तथा ऐसे चोतीस अतिशय बतलाये गये हैं। उन अतिशयों को पूर्वाचार्य की गाथाद्वारा इस प्रकार बतलाया गया है:चउरो जम्मप्पभिई, इकारस कम्मसंखए जाए। नवदस य देवजणिए, चउत्तीसं अइसए वन्दे ॥१॥
भावार्थ:-तीर्थंकरों में जन्म से लगा कर चार अतिशय, कर्मक्षय से उत्पन्न हुए अग्यारह अतिशय और देवताओं द्वारा किये हुए उन्नीस अतिशय होते हैं । उन चोतीस अतिशय युक्त भगवान को मैं वन्दना करता हूँ। वे अतिशय निम्नस्थ हैं:
(१) तीर्थंकर का देह सर्व लोगों से श्रेष्ठ ( लोकोत्तर ) और अद्भुत स्वरूपवान होता है । तथा व्याधि रहित और स्वेद एवं मेल रहित है।
१. ज्ञानातिशय, वचनातिशय, पूजातिशय और अपायापगमातिशय ॥