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क्रम
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१५
१६
२०
नाम
सूरुहक (देखिये सरुराहक)
(ज-२१)
वोरुखान
(ज-१५)
कुलाह
(ज-१३)
उकनाह
(ज-१६)
शोण
हरिक
(ज-३)
हालक
पङ्गुल
देखिये पिङ्गल
(स-२० )
इलाह
(ज-११)
( स - १८ )
वर्ण
गर्दभाम
पाटल
मनापीत कृष्ण स्यात् यदि जानु नि
पीतरक्तच्छाय और
प्रेमी अभिनंदन ग्रंथ
कृष्णरक्तच्छाय
कोकनदच्छवि
पीतहरितच्छाय
"
सितकाचाभ
चित्रित
हेमचन्द्र की व्याख्या
सुखेन रोहति सुरूह
वैरिण खनति वोरुखान
कुलम् श्रजिहीते कुलाह
उच्चे नह्यते उकनाह । सण्व उकनाह । कृष्णरक्तच्छाय
सन् क्वचिदुच्यते ।
शोण. शोणवर्ण
हरिदेव हरिक
हलति क्ष्मा हालक पङ्गन् लाति पङ्गुल
चित्रितो कर्पूरवर्णी हलवदाहन्ति हलाह
हेमचन्द्र ने विभिन्न घोडो की उक्त सूची ( भूमिकाण्ड, छन्द ३०३ से ३०९ ) को निम्नलिखित टिप्पणी देकर पूर्ण कर दिया है --
"खोङ्गाहादय शब्दा देशोप्राया । व्युत्पत्तिस्त्वेषा वर्णानुपूर्वी निश्चयार्थम् " ( खोङ्गाह तथा दूसरे नाम प्राय देशी है । निश्चय अर्थ में उनकी व्युत्पत्ति घोडो के विभिन्न वर्णों के आधार पर की गई है ।) हेमचन्द्र के इस कथन से कि विभिन्न वर्णों के अश्वो के ये नाम 'देशीप्राया 'है, पता चलता है कि हेमचन्द्र विश्वस्त नही थे कि ये निश्चित रूप से देशी शब्द ही हैं । फिर भी यह स्पष्ट है कि इन नामो का प्रचलन हेमचन्द्र के समय अर्थात् ग्यारहवी शताब्दी में था । अब हम देखें कि ये नाम या इनमें से कुछ हेमचन्द्र के समय में अथवा उसके निकटवर्ती वर्षों मे रचे गये अन्य संस्कृत ग्रन्थो में मिलते हैं या नही । वस्तुत चालुक्य वशी राजा सोमेश्वर द्वारा सन् ११३० ई० के लगभग ( जबकि हेमचन्द्र करीव ४२ वर्ष के थे) रचित 'मानसोल्लास " ( अथवा 'अभिलषितार्थ चिन्तामणि' ) नामक विश्वकोश के पोलो- अध्याय में, जिसे 'वाजिवाह्याली विनोद' कहा गया है, हमें कुछ नामो का उल्लेख मिलता है । इस अध्याय मे अधिकारी अफसर द्वारा लाये गये अनेक प्रकार के घोड़ों, उनकी नस्लो और वर्णों की परीक्षा करने के लिए राजा को परामर्श दिये गये है । राजा को घोडो की नस्ल का निर्णय जिन देशो से वे आये थे, उनके आधार पर करना था । विभिन्न देशो के नाम, जिनमें घोडो की उत्पत्ति हुई थी, सोमेश्वर ने दिये है । उन्होने घोडो के शरीर के विशिष्ट चिह्नो का भी उल्लेख किया है और वर्गों तथा जाति के आधार पर, जो कि सस्या में चार है, वर्गीकरण किया है। उन्होने
'गायकवाड ओरियटल सीरीज बडोदा में प्रकाशित, भाग २ (१६३६) पू० २११ - - तथा भूमिका, पृ० ३४ ॥