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प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ को कारीगर नियुक्त किया, परन्तु यह काम अभी पूरा नही हुआ था कि दूसरे वाजीराव राजा हुए और 'नाना फडनवीस' को पूना छोडना पड़ा। कारीगर विचारा निराश हुआ। मगर भाग्य से उसकी मीरज के गुणग्राही राजा श्रीमन्त गगाधर राव गोविन्द पटवर्धन से मेंट हो गई। उन्होने कारीगर'को आश्रय दिया और गीता छापने का काम सन् १८०५ ईस्वी में पूरा हुआ। गीता की छपी हुई प्रति और जिन ब्लाको से वह छापी गई थी वे ब्लॉक अव भी मीरज रियासत के संग्रहालय में मौजूद है ।' कारीगर अंग्रेज़ी जैसा टाइप नही बना सका था। इसलिए उसने एक तांबे के पत्र में अक्षर खोदे, फिर उस पत्रे को दूसरे तांबे के पत्र में उल्टा जडा । उन्हे लकडी के प्रेस में ठोका और फिर लाख की स्याही से छापा।
* গাজীগ্রাহগলীলা मंत्रोहमहोवाज्यमहानिइंदा । पितामध्यजगतोमातामातापितामहः । वेग्रंपवित्रमोंकाइनरकलामय होल्न र १७ गति तीमा साली निवास बालों
गीता-जिसके मुद्रण का आदेश नाना फडनवीस ने दिया था। (ब्लाक प्रिंटिंग-१८०५)
ई० स० १६७८ में ब्लॉक-प्रिंटिंग से छपा हुआ एक देवनागरी अक्षरो का लेख 'होरटस इडिकस, मलावारीकस' (Hortus Indicus Malabaricus) नामक लेटिन भाषा की पुस्तक के एक खड मे है । यह लेख कोकण की मराठी बोली में, कुछ पडितो द्वारा लिखा हुआ प्रमाणपत्र है। यह ऐसा दिखाई देता है कि जैसे ज़िक का ब्लॉक बनाकर छापा गया हो । ग्रन्य रॉयल एशियाटिक सोसायटी वम्बई के सग्रहालय में है।
उन्नीसवी सदी मे छपे हुए देशी भाषा के अनेक पुराने ग्रन्थ लियो-प्रेस में छपे हुए मिलते है। इससे अनेक लोग यह समझने लगे है कि लिथोग्राफ-प्रिंटिंग टाइप-प्रिंटिंग की प्रथमावस्था है। मगर यह वात ठीक नहीं है । कारण, 'लिथोग्राफी' (Lythography) की शोध तो सन् १७९६ में 'स्टीनफेलडर' (Stenefelder) ने, जब वह फोटोग्राफी के आविष्कार में लगा हुआ था, की थी। टाइप-प्रिंटिंग की छपाई तो पहले से ही प्रारम्भ हो गई थी। प्रारम्भ में टाइप-प्रिंटिंग की अपेक्षा लिथो-प्रिंटिंग अधिक फैला। इसका मुख्य कारण यह है कि इसमें टाइप की कठिनता नहीं थी। गुजरात में लिथो-प्रेसो का प्रचार अधिक हुआ था।
पोर्तुगीज या डेनिश मिशनरियो ने मुद्रणकला-प्रसार का प्रयत्न किया था। इनके सिवा एक दूसरे महानुभाव ने भी इसका प्रयत्ल किया था।
भीमजी पारख नाम के एक गुजराती सज्जन ने सन् १६७० ईस्वी में कोर्ट ऑव डाइरेक्टस से प्रार्थना की कि हमें ब्राह्मण-ग्रन्य छापने है। इसलिए एक मुद्रक, छापाखाना और टाइप भिजवा दीजिए । तदनुसार 'हेनरी हिल'
'अधिक जानकारी के लिए रावबहादुर द० ब० पारसनीस और रा० सुन्दरराव वैद्य के 'नवयुग' (जून १९१५, पु०५६३ व जन १८१६, पृ०६२८) में प्रकाशित लेख देखिये।