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प्रेमी-प्रभिनदन- प्रथ
हमें छोड को जानो ब्रजवासी । जो तुम हमें छोड हरि जैही,
तज डारौं प्रान, गरे डारों फाँसी, मोर मुकुट हरि के अधिक विराज,
सो फलियन बीच बिहारी जू की झाँकी; नैनन सुरमा हरि के अधिक विराजे,
सो भयन बीच बिहारी जू की झाँकी, कानन कुण्डल हरि के अधिक विराज,
सो मोतिन बीच बिहारी जू की झाँकी, मुख भर बिरियाँ हरि के अधिक बिराजे,
सो श्रोठन बीच बिहारी जू की झाँकी, X X
इन चरनन परकम्मा देऊ, छाया गोबरधन की; चिन्ता कव जै है जा मन की, दुविधा कव जैहै जा मन की । जब नंदरानी गरभ से हू है, आस पुर्ज मोरे मन को, जब मोरो कान्ह कलेऊ मांग, दघ माखन सँ रोटी; जब मोरो कान्ह गुलिया माँगे, रतन जटित की टोपी, मोरो कान्ह खिलोना माँगे, चन्द सूरज को जोटी; X X
फागुन का मस्त महीना तो बुन्देलखड मे गीत-मय ही हो जाया करता है । रात-रात भर चौकडियाऊ साखी की फाग, स्वांग और ईसुरी की फागें गाँव-गाँव में होती है। दिन भर कार्यों में व्यस्त रहने वाला कृषक समुदाय उन दिनो कितनी तन्मयता प्राप्त करता है, इसे भुक्त भोगी ही अनुभव कर सकते है ।
फाग साखी की
हर घोडा ब्रह्मा खुरी और बासुकि जीन पलान;
चन्द्र सुरज पावर भये, चढ भये चतुर सुजान ।
भजन बिन देइया सुफल होने नइयां, हो चढ़ भये चतुरसुजान, भजन बिन देइया सुफल होने नइयां; ( २
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श्राग लगी बन जल गये, जल गये चन्दन रूख, उड जा पछी डार
से, जिन जली हमारे साथ; पछी फेर जनम होने नइयाँ,
जिन जली हमारे साथ, पछी फेर जनम होने नइयाँ, X X आग लगी दरयाव में, धुआँ न परगट होय, कि दिल जाने श्रापनो, जा पर वीती होय, काऊ की लगन कोई का जाने,