Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 745
________________ प्रेमी-अभिनवन-पथ ६९० थी। इसका समस्त जीवन दान-पुण्यादि पवित्र कार्यों में व्यतीत हुआ था। अन्त में शक स० १०४२ फाल्गुण वदी ११ गुरुवार को सन्यासविधि से शरीर त्याग किया था। इसी समय मार और माकणब्वे के पुत्र एचि की भार्या पोचिकब्बे बडी धर्मात्मा और जैनधर्म की प्रचारक हुई है। इसने अनेक धार्मिक कार्य किये थे । वेल्गोल मे जैनमन्दिर बनवाने में भी इसका उल्लेख मिलता है। शक स० १०४३ आषाढ सुदी ५ सोमवार को इस धर्मवती महिला का स्वर्गवास हो जाने पर उसके प्रतापी पुत्र महासामन्ताधिपति महाप्रचण्ड दण्डनायक विष्णुवर्द्धन महाराज के मन्दी गगराज ने अपनी माता के चिरस्मरणार्थ एक निवद्या का निर्माण कराया था। ___एक अन्य जैनधर्म की सेविका तैल नृपति की कन्या और विक्रमादित्य सान्तर की बडी वहन सान्तर राजकुमारी का उल्लेख मिलता है । यह अपने धार्मिक कार्यों के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध थी । लेखो मे इस महिला की प्रशसा की गई है। इसने शासन देवते का एक मास में निर्माण कराया था। पम्पादेवी वडी धर्मशीला थी। यह नित्यप्रति शास्त्रोक्त विधि से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करती थी। यह अष्टविधार्चने, महाभिषेकम् और चतुर्भक्ति को सम्पन्न करना ही अपना प्रधान कर्त्तव्य समझती थी। ऊवितिलकम् के उत्तरी पट्टशाला के निर्माण में इस देवी का पूर्ण हाथ था । ____अनेकान्त मत की प्रचारिका जैन महिलामो के इतिहास में जन सेनापति गगराज की पत्नी लक्ष्मीमती का नाम भी नही भुलाया जा सकता है। श्रवण वेलगोल के शिलालेख न० ४८ (१२८) से पता लगता है कि यह देवी दान, क्षमा, शील और व्रत आदि मे पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुकी थी। इस लेख में इसके दान की प्रशसा की गई है। इस महिला ने सन् १११८ में श्रवण वेलगोल में एक जिनालय का निर्माण कराया था। इसके अतिरिक्त इसने अनेक जिनमन्दिरो का निर्माण कराया था। गगराज ने इन जिनालयो की व्यवस्था के लिए भूमि-दान किया था। यह देवी असहाय और दुखियो की अन्न वस्त्र से सहायता करती थी। इसी कारण इसे उदारता की खान कहा गया है। एक लेख में कहा गया है कि "क्या ससार की कोई दूसरी महिला निपुणता, सौन्दर्य और ईश्वर-भक्ति मे गगराज की पत्नी लक्ष्मीपाम्बिके की समानता कर सकती है ? सन् ११२१ में लक्ष्मीमती ने समाधि लेकर शरीर त्याग किया था। सुग्गियब्बरसि, कनकियब्बरसि,बोपव्वे और शान्तियक्क महिलामो की धर्म-सेवा के सम्बन्ध में भी कई उल्लेख मिलते है । इन देवियो ने भी जैनधर्म की पर्याप्त सेवा की थी। श्रवण वेलगोल के शिलालेखो में इच्छादेवी एचव्वे, एचलदेवी, कमलदेवी, कालव्वे केलियदेवी, गुज्जवे, गुणमतियब्वे, गगायी, चन्दले, गौरश्री, चागल देवी, जानकी जोगवे, देवीरम्मणि, धनाश्री, पद्मलदेवी, (डुल्लमार्या) यशस्वती, लोकाविका (डल्ल की माता) शान्तल देवी, (बूचिराज की भार्या) सोमश्री एव सुप्रमा आदि अनेक जैनधर्मसेवी महिलामो का उल्लेख मिलता है। इन देवियो ने स्वपर-कल्याणार्थ अनेक धार्मिक कार्य किये थे। दक्षिण भारत के अतिरिक्त उत्तर भारत में भी दो-चार धर्म-सेविकाएँ ११वी, १२वी और १३वी शताब्दी में हुई है। सुप्रसिद्ध कवि कालिदास' पाशाधर जी की पत्नी पद्मावती ने बुलडाना जिले के मेहकर (मेघकर) नामक ग्राम के बालाजी के मन्दिर में जैन मूत्तियो की प्रतिष्ठादि की थी, यह एक खण्डित मूत्ति के लेख से स्पष्ट सिद्ध होता है। राजपूताने की जैन महिलामो मे पोरवाडवशी तेजपाल की भार्या सुहडादेवी, शीशोदिया वश की रानी जयतल्ल देवी एव जैन राजा माशाशाह की माता का नाम विशेष उल्लेखयोग्य मिलता है। चौहानवश की रानियो ने भी उस वश के राजाओ के समान जैनधर्म की सेवा की थी। इस वश का शासन विक्रम संवत् की १३वी शताब्दी में था। इस वश के राजा कीर्तिपाल की पत्नी महिवलदेवी का नाम विशेष उल्लेखयोग्य मिलता है। इस देवी ने शान्तिनाथ भगवान का उत्सव मनाने के लिए भूमिदान की थी। इसने धर्म-प्रभावना के लिए कई उत्सव भी किये थे।

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