Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 758
________________ कौटिल्यकालीन रसायन ७०३ अन्य लिखा था उसके आश्रय पर चरक ने अपने ग्रन्थ का सम्पादन किया और चरक के मूल ग्रन्थ को दृढबल ने जो रूप दिया वह आधुनिक चरक सहिता है। इसी प्रकार सुश्रुत धन्वन्तरि का शिष्य था जिसने वृद्ध सुश्रुत ग्रन्थ का आयोजन किया, पर जो सुश्रुत ही प्राप्त है वह नागार्जुन द्वारा सम्पादित हुआ है। सम्भवत नागार्जुन दृढवल से पूर्व का व्यक्ति है, इसलिए इस समय प्राप्त सुश्रुत दृढवल के सम्पादित चरक से पहले का है, पर फिर भी मूल चरक सहिता वृद्ध सुश्रुत से पूर्व की मानी जाती है। साधारणत यह विश्वास किया जाता है कि सुश्रुत का नागार्जुन वही है जिसे सिद्ध नागार्जुन भी कहते है और जो लोहशास्त्र का रचयिता भी था, और दार्शनिक के रूप में जिसने बौद्धो के माध्यमिक सम्प्रदाय की माध्यमिक सूत्रवृत्ति भी लिखी। ___ कहा जाता है कि धातुविद्या अर्थात् लोहशास्त्र का सबसे प्रमुख प्राचार्य पतजलि है। सम्भवत पतजलि ने ही विड़ का आविष्कार किया (विड शोरे और नमक के अम्लो का मिश्रण है जिसमें सोना भी धुल जाता है)। पतजलि का मूलग्रन्य लोहशास्त्र आजकल अप्राप्य है, पर परावर्ती ग्रन्थो में इसके ग्रन्थ के जो उद्धरण पाये जाते है उनसे इस ग्रन्थ की श्रेष्ठता स्पष्ट व्यक्त होती है। नागार्जुन ने पारे के अनेक यौगिको का आविष्कार किया और धातुशास्त्र में भी नागार्जुन का नाम विशेष उल्लेखनीय है । यह कहना कठिन है कि नागार्जुन पहले हुआ या पतजलि पर आगे के लोहशास्त्रो पर दोनो का ही अमिट प्रभाव रहा है। नागार्जुन के अन्य रसरलाकर में (१) राजावत, गन्धक, रसक, दरद, माक्षिक, विमल, हेम, तार आदि के शोधन, (२) वैक्रान्त, रसक, विमल, दरद आदि सत्त्वो का उल्लेख, (३) माक्षिकसत्त्वपातन, अभ्रकादिद्रुतपातन, चारण-जारण आदि विधियो का विवरण, एव (४) शिलायन्त्र, भूधरयन्त्र, पातनयन्त्र, धोरणयन्त्र, जालिकायन्त्र आदि अनेक यन्त्रो का प्रतिपादन-ये सब विषय ऐसे है जो रसायनशास्त्र के विद्यार्थी को आज भी आकर्षित कर सकते है। भारतीय रसायन के इतिहास के विद्यार्थी को जिस ग्रन्थ ने आजतक विशेष प्रभावित किया है वह वैद्यपति सिंहगुप्त के पुत्र वाग्भटाचार्य का रसरत्नसमुच्चय है। प्राचार्य सर प्रफुल्ल ने अपने भारतीय रसायन के इतिहास के पहले भाग में इसका विशेष उल्लेख किया है। रसायन शास्त्र का क्षेत्र बडा विशद है। सभवत कोई भी शास्त्र ऐसा नहीं है जिसमें रसायन से कुछ न सहायता न मिलती हो। यह प्रसन्नता की बात है कि कौटिल्य ने अपने सर्वांगपूर्ण अर्थशास्त्र में ऐसे विषयो की मीमासा की है जिनका सम्बन्ध रसायन से भी है। यह ठीक है कि यह ग्रन्थ रसायनशास्त्र का ग्रन्थ नही, पर इससे कौटिल्य के समय की रासायनिक प्रवृत्तियो पर अच्छा प्रकाश पडता है। कुछ ऐसे रासायनिक विषयो की भी इसमें चर्चा है जिनके सम्बन्ध के अन्य प्राचीन ग्रन्थ हमे इस समय उपलब्ध नहीं है। कौटिल्य के इस ग्रन्य का रचनाकाल पूर्ण निश्चित है और इसकी प्राचीनता में सन्देह नहीं है । सुश्रुत, चरक और नागार्जुन के मूलग्रन्थो का रचनाकाल उतना निभ्रान्त नहीं है जितना कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र का। इस दृष्टि से इस ग्रन्थ के आधार पर निश्चित की गई रासायनिक प्रवृत्तियाँ हमारे इतिहास में एक विशेष महत्त्व रखती है। यह ग्रन्थ इस देश की रासायनिक परम्परा को इतिहास में इतनी प्राचीनता तक ले जाता है जितना कि यूनान और अरव वालो के ग्रन्थ नही। इस दृष्टि से इसका महत्त्व और भी अधिक है । चाणक्य प्लैटो (४२७-३४७ ई० से पूर्व) और अरस्तू (३८४-३२२ ई० से० पू०) के समकक्ष समय का है। यद्यपि हमारे देश का यूनानियो से सम्पर्क आरम्भ हो गया था, फिर भी मेरी आस्था यह है कि चाणक्य का यह सम्पूर्ण ग्रन्थ अपने देश की पूर्वागत परम्परा पर अधिक निर्भर है, यूनानियो का प्रभाव इस पर कम है। इसमें जिन आचार्यों का उल्लेख है वे भी इसी देश के थे । यूनानियो का अभी इतना दृढ प्रभाव इस देश पर नहीं हो पाया था कि हम यह कह सके कि अर्थशास्त्र में वर्णित रासायनिक प्रवृत्तियो को यूनानी सस्कृति का आश्रय प्राप्त हो गया था। ___यह तो सम्भव नही है कि इस लेख में कौटिल्यकालीन समस्त रासायनिक प्रवृत्तियो की विस्तृत मीमासा की जा सके। सक्षेपत इस ग्रन्थ में निम्न विषय ऐसे है जिनमे आजकल के रसायनज्ञो के लिए कौतूहल की सामग्री विद्यमान है।

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