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विश्व-मानव गांधी
७३१ हुए थी, वे बहुत कुछ ढह गई है और रही-सही जल्दी ही बह जाने को है । इस सब के कारण देश एक प्रचड शक्ति मे भर उठा है और चूकि वह शक्ति शान्त अहिंसा की स्निग्व शीतल शक्ति है, सारा ससार उमकी ओर बडे कुतुहल के साथ पाश्चर्य-विमुग्ध भाव से देख रहा है। ससार की साम्राज्यवादिनी शक्तियाँ इस नई शक्ति के विकास को भय
और विस्मय के साथ देख रही है और अपने भविष्य के विषय में चिन्तित हो उठी है। यह सब इन पच्चीस वर्षों में हुमा है और इसका अधिकाश श्रेय' गाधी जी के दूरदर्शितापूर्ण नेतृत्व को और उनकी एकान्त ध्येयनिष्ठा को है। इससे पहले देश की सारी शक्तियाँ विखरी हुई थी और उनको एक सूत्र में पिरो कर अप्रतिहत शक्ति से अभिपिक्त करने वाला कोई नेतृत्व देश के सामने नहीं था। साम्राज्यवाद के चगुल से छूटने की छुटपुट कोशिशें देश में जहां-तहां अवश्य होती थी, लेकिन उनके पीछे सारे देश की शक्ति का सगठित वल न होने से वे या तो असफल हो जाती थी या गासको द्वारा निर्दयतापूर्वक विफल कर दी जाती थी। देश सामूहिक रूप से आगे नहीं बढ पाता था। वहिष्कार, स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा की त्रिसूत्री ने देश में नवचेतन का सचार अवश्य किया, किन्तु उमसे स्वातन्त्र्य युद्ध के लिये देश की शक्तियो का समुचित सगठन नही हो पाया गावी जी ने देश की इस कमी को तीव्रता के साथ अनुभव किया और देश में छाई हुई निराशा, जडता और भीरुता का नाश करने के लिए उन्होने देश के एक ओर अहिंसक सत्याग्रह का सन्देश सुनाया और दूसरी ओर जनता को स्वावलम्बी बनाने के लिए, उसमें फैली हुई व्यापक जडता, पालस्य और परमुखापेक्षिता का नाश करने के लिए, उन्होने रचनात्मक कार्य का विगुल वजाया। देश की मूलभूत दुर्वलताओ को उन्होने समग्र रूप से देखा और उनका प्रतिकार करने के लिए साम्प्रदायिक एलता, अस्पृश्यता-निवारण, मद्यनिषेच, खादी, ग्रामोद्योग, ग्राम-आरोग्य, गोसेवा, नई या बुनियादी तालीम, प्रौढ-शिक्षण, स्त्रियो की उन्नति, प्रारोग्य और स्वच्छता की शिक्षा, राष्ट्रभाषा प्रचार, स्वभाषा-प्रेम, आर्थिक समानता, आदिवासियो की सेवा, किसानो, मजदूरो और विद्यार्थियो का सगठन आदि के रूप में देश के सामने एक ऐसा व्यापक कार्य-क्रम रक्खा कि देश की उवुद्ध शक्तियाँ उसका सहारा पाकर राष्ट्रनिर्माण के इस भौतिक काम मे तन-मन-धन के साथ एकाग्र भाव से जुट गई और देखते-देखते देश का नकशा वदलने मे सफल हुई। अनेक अखिलभारतीय सस्थाओ का सगठन हुआ-चर्खा-सघ, ग्रामोद्योग-सघ, तालीमी-सघ, हरिजन-सेवक संघ, गोमेवा-सघ, कम्तरवा स्मारक निधि आदि के रूप में देशव्यापी पैमाने पर राष्ट्रनिर्माण का काम शुरू हया और कार्यकत्तायो की एक मॅजी हुई सेना इनके पोषण-मवर्धन में जुट गई। जहां-तहां यह रचनात्मक काम जम कर हुआ, वहाँ-वहाँ सर्वसाधारण जनता में एक नया प्राण प्रस्फुटित हो उठा और जनता नये आदर्श की सिद्धि में प्राणपण मे जुट गई। निराशा, जडता और भीरुता का स्थान अदम्य आशावाद ने ले लिया। लोग मजग हो गये। उनका स्वाभिमान प्रवल हो उठा। वे साम्राज्यवाद के आतक-चिह्नो से भयभीत रहना भूल गये और फांसी, जेल, वन्दुक, तोप, मशीनगन, जमीन-जायदाद की जन्ती, जुर्माना, जुल्म, ज्यादती, सब का अटल भाव से निर्भयता-पूर्वक सामना करने लगे। जो लोग खाकी पोशाक और कोट-पैट-टोप से भडकते थे, उन्हें देख कर सहम उठने थे, वे ही खादी की पोशाक में मज्ज होकर आज खाकी वालो के लिए खतरे की चीज़ बन गये है और दूर से दूर देहात में भी अव खाकी वालो का आम-जनता पर वह पुराना आतक नहीं रह गया। लोग अब डट कर इनकी ज्यादतियो का मामना करते है और इनकी चुनौतियो का मुंहतोड़ जवाब देते है । सदियो से सोये हुए देश की जनता का पाव मदी में, पच्चीस बरस के अन्दर, यो उठ खडा होना और अपने शासको का शान्त भाव से धीरता-वीरतापूर्वक सामना करना, इम युग का एक चमत्कार ही है और इस चमत्कार के कर्ता है गाधी जी।
गाधी जी का जीवन आदि से अब तक चमत्कारो का जीवन रहा है। चमत्कारो की एक लडी-सी, एक परम्परा-सी, उनके जीवन में उतर पाई है। और ये सब चमत्कार काल्पनिक या हवाई नहीं, बल्कि इस जग के प्रत्यक्ष और प्रमाणित चमत्कार है । कोई इनकी सचाई से इनकार नही कर सकता, इनकी वास्तविकता के विषय मे मदिग्ध नही रह सकता। दक्षिण अफ्रीका से इन चमत्कारो का श्रीगणेश हुआ और भारत में ये अपनी पराकाष्ठा को पहुंचे।