Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 803
________________ ७४६ प्रेमी-अभिनवन-प्रय ये दोष मालूम होते है ।" इससे उसे बडा दुख होता था और कभी-कभी तो वह अत्यन्त निराश हो जाता था। एक बार तो उसने अपना लिखा हुआ एक विस्तृत निवध मेरे सामने ही उठा कर सडक पर फेक दिया था और फफकफफक कर रोने लगा था। उस अपराध की या गलती की गुरुता अब मालूम होती है। काश उस समय मैने उसे उत्साहित किया होता और आगे बढ़ने दिया होता। अब तक तो उसके द्वारान जाने कितना साहित्य निर्माण हो गया होता।" जो पछतावा प्रेमी जी को है, वही मुझे भी। इस गुरुतम अपराधो का प्रायश्चित्त भी एक ही है । वह यह कि हम लोग प्रतिभाशाली युवको को निरन्तर प्रोत्साहन देते रहें। प्रेमी जी ने अपने परिश्रम से सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश इत्यादि भाषाओ की जो योग्यता प्राप्त की है और साहित्यिक तथा ऐतिहासिक अन्वेषण-कार्य में उनकी जो गति है, उनके बारे में कुछ भी लिग्वना हमारे लिए अनधिकार चेष्टा होगी। मनुष्यता की दृष्टि से हमें उनके चरित्र मे जो गुण अपने इस अट्ठाईस वर्ष-व्यापी परिचय मे दीख पडे है उन्ही पर एक सरसरी निगाह इस लेख में डाली गई है। डट कर मेहनत करने की जो आदत उन्होने अपने विद्यार्थी-जीवन में ही डाली थी वही उन्हे अव तक सम्हाले हुई है। अपने हिस्से मे आये हुए कार्य को ईमानदारी से पूरा करने का गुण कितने कम बुद्धिजीवियो में पाया जाता है । अशुद्धियो से उन्हें कितनी घृणा है, इसका एक करुणोत्पादक दष्टान्त उस समय हमारसम्मख आया था, जब हम स्वर्गीय हेमचन्द्र विषयक मस्मरणात्मक पस्तक बम्बई में छपवा रहे थे। दूसरे किसी भी भावुक व्यक्ति से वह काम न बन सकता, जो प्रेमी जी ने किया। प्रेमी जी बडी सावधानी से उस पुस्तक के प्रूफ पढते थे। पढते-पढ़ते हृदय द्रवित हो जाता, पुरानी बातें याद हो पाती, कभी न पुरने वाला घाव असह्य टीस देने लगता, थोडी देर के लिए प्रूफ छोड देते और फिर उसी कठोर कर्तव्य का पालन करते। ____ वृद्ध पिता के इकलौते युवक पुत्र के सस्मरण-अथ के प्रूफ देखना | कैसा घोर सतापयुक्त साधनामय जीवन है महाप्राण प्रेमी जी का। ___ बाल्यावस्था की वह दरिद्रता, स्व० पिता जी की वह परिश्रमशीलता, कुडकी कराने वाले माहूकार की वह हृदयहीनता, छ-सात रुपये की वह मुदरिंसी और बबई-प्रवास के वे चालीस वर्ष, जिनमे सुख-दुख, गार्ह स्थिक आनद और देवी दुर्घटनामो के बीच वह अद्भुत प्रात्म-नियरण, बुन्देलखण्ड के एक निर्धन ग्रामीण वालक का अखिल भारत के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी प्रकाशक के रूप में आत्मनिर्माण-निस्सदेह सापक प्रेमी जी के जीवन में प्रभावोत्पादक फिल्म के लिए पर्याप्त सामग्री विद्यमान है। उस साधक को शतश प्रणाम । टीकमगढ]

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