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चित्र-परिचय १०-१६-बुन्देलखण्ड-चित्रावली
अ-ओरछा का किला ओरछा का यह किला भारत के प्रसिद्ध किलो में से एक है। इसके अधिकाश भागो का निर्माण ओरछा के प्रतापी नरेश वीरसिंहदेव प्रथम ने करवाया था। किले के भीतर कई इमारतें भारतीय वास्तु-कला की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उनमे प्रमुख राजमहल और जहाँगीर-महल है । राजमहल तीन मजिल का है । इसमे कही भी काष्ठ का प्रयोग नहीं हुआ है। महाराज वीरसिंह प्रथम की यह कला-कृति वास्तव में वडी सुन्दर है । जहाँगौर महल में पत्थर की कारीगरी दर्शनीय है । यह किला वेत्रवती के तट पर बना हुआ है । भीतरी भाग की तरह इसका बाहरी भाग भी कितना चित्ताकर्षक है।
आ-ओरछा में वेत्रवती ___ओरछा का महत्व उसके भव्य प्रासादो के कारण तो है ही, साथ ही वहां का वेत्रवती का प्राकृतिक सौदर्य भी बडा ही मोहक है । वेत्रवती को 'कलो गगा' (कलियुग की गगा) कहा गया है । बुन्देलखण्ड की प्रमुख नदियो में से यह एक है।
ओरछा में इसके तट पर अनेक प्रतापीओरछा नरेशो की समाधियाँ (छतरियाँ)बनी हुई है। चित्र में वाई ओर वीरसिंह देव प्रथम की समाधि है, जो यहाँ के बडे यशस्वी राजा हुए है । इमारतें बनवाने का इन्हें बडा शौक था और बहुत से किलो का इन्होने निर्माण कराया था। दतिया के महल, ओरछा, बल्देवगढ, जतारा, दिगौडा आदि के किले इन्ही के वनवाये हुए है।
इ-बुन्देलखण्ड का एक ग्रामीण मेला प्रस्तुत चित्र कुण्डेश्वर के मेले का है। यह स्थान टीकमगढ से चार मील के फासले पर ललितपुर जाने वाली सडक पर स्थित है। यहाँ पर जमडार नामक नदी के किनारे प्रतिवर्ष शिवरात्रि के अवसर पर पद्रह दिन तक मेला लगा करता है। दूर-दूर के दुकानदार पाते है । सहस्रो नर-नारी एकत्र होते हैं। बुन्देलखण्ड की एक झलक इस मेले में मिल जाती है। इस मेले को इस प्रात का प्रतिनिधि-मेला कहा जा सकता है ।
ई-उषा-विहार कुण्डेश्वर से लगभग दो मील पर जमडार और जामनेर नदियो का सगम है। कुण्डेश्वर पर जमडार की दो शाखाएं हो जाती है और ये दोनो करीब मील डेढ मील के अन्तर से जामनेर में जाकर मिलती है। इन शाखाओ तथा जामनेर के सहयोग से एक द्वीप का निर्माण होता है, जिसपर घना जगल है। इसका नाम 'मधुवन' रक्खा गया है। इसी 'मधुवन' में जामनेर के कई सुन्दर दृश्य है। प्रस्तुत चित्र में जामनेर मथर गति से बहती दिखाई देती है। उनके दोनो किनारो पर घने वृक्ष है, जिनका प्रतिविम्ब पानी में बडा भला लगता है। श्री देवेन्द्र सत्यार्थी का कथन था कि इसे देख कर काश्मीर का स्मरण हो पाता है। वाणासुर की पुत्री उषा के, जिसका मदिर थोडी ही दूर पर इसी नदी के किनारे बना हुआ है, नाम पर इस स्थान का नामकरण हुआ है।
उ-बरी-घाट इस चित्र में जामनेर का जल-प्रपात दिखाई देता है। जामनेर की पूरी धारा को एक चट्टान ने रोककर भव्य प्रपातो का निर्माण किया है। लगभग दो महीने के लिए ये प्रपात बद हो जाते है । वाणासुर जिस ग्राम में निवास करता था, उस वानपुर ग्राम को यही होकर रास्ता है । यहाँ की प्राकृतिक छटा दर्शनीय है।