Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 808
________________ रिचय मूर्ति की भाति इसके भी अग- निर्दोष है। इसके आसन प उत्कीर्ण है, जिससे पता चलतानपन के कारण एक शोकम कराया था। ये मूर्तियां बुन्देलखण्ड का का गौरव है। निस्सद ससार इनकी ओर आकृष्ट हुए कि मा अग-प्र निर्दोष है। इसके आसन पर एक वडा मार्मिक लेख । चलतनिवन के कारण एक शोकमग्न श्रेष्ठि ने इसका निर्माण लखण्ड का का गौरव है। निस्सदेह प्रकाश में आने पर कला-प्रेमी जलि सुधीर खास्नगीर) पद्मलोचन मूत्तिवत् प्राह्वान में। कर-पद्म में आज पलको में जडित पद्माञ्जली मृदु स्वप्न कोबांधती हो तापसी, तुम कौन से? शुभ ध्यान पर, जगत् के सामने मत खोलना ध्यान की पलकें, अपर ये मौन के। अर्घ्य देती, शीश नत साधना साक पाराधना ज सिमिट कर नृत्य-मत्ता । सुधीर खास्तगीर) चित्र-से हो खींचती चित्र-से हो खीं यो शून्य में देवता के हेतु आज मतवाला से कल्पना का जा फैलाती मधुर? देह-वल्ली डोलती है प्राज योकिस नवल ऋतुराज की मधु-वात में? २) नृत्य-मत्ते! छा गया भू-लोक लो, तुम्हारा नृत्य माया-जालन शून्य भी सकुल सु-यौवन-भार से। स्वर्ग में है खिल रहा सखि, मौन-सा मृदुल कर-जलजात किस सकोच में? [सुधार खास्तगीर के रचय के लिए हम श्री भगवती प्रसाद चदोला तथा देवगढ़ के पारचय के लिादेवशरण अग्रवाल तथा श्री कृष्णानद गुप्त के आभारी है।

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