Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 805
________________ प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ ५ - विष्णु मंदिर का प्रवेश द्वार विष्णुमदिर की शोभा की खान उसका पश्चिमाभिमुखी यह प्रवेश द्वार हैं । उसका चौखटा ११ -२" ऊँचा और १०'-९" चौडा है | इस चौखटे में जो प्रवेश मार्ग है, वह ६-११" ऊँचा और ३-४१ " चौडा है । चारों श्रोर का शेष भाग अत्यन्त सुन्दर अभिप्राय ( Motif) और मूर्तियो से सजा हुआ है । उपासको के लिए देवमंदिर में जो सुन्दरता की परमनिधि देव प्रतिमा थी, उसकी छवि का पूर्ण सकैत इस द्वार की शोभा में अकित किया गया है । विशुद्ध कला को दृष्टि से द्वार पर उत्कीर्ण पन्नहावली एवं उसके पार्श्व स्तभो पर चित्रित उपासक स्त्री-पुरुषो को मूर्तियाँ अत्यन्त सुन्दर है । गुप्त-कालीन मानव के हृदय में सौंदर्य की जो साधना थी, उसकी यथेष्ट अभिव्यक्ति इस मंदिर के द्वार पर मिलती है । ७४८ ६- शेषशायी विष्णु यह मूर्ति काफी बड़े आकार के लाल पत्थर पर ( विष्णुमंदिर की दक्षिण की दीवार पर) खुदी हुई हैं । अनन्त या शेष पर विष्णु लेटे हुए हैं। लक्ष्मी की गोद में उनका एक पैर है । उनका एक हाथ उनके दाहिने पैर पर रक्खा हुआ है और दूसरा मस्तक को सहारा दिये हुए है । उनके नाभि-कमल पर प्रजापति विराजमान है । ऊपर महादेव, इन्द्र आदि देवता अपने-अपने वाहनो पर बैठे हैं । नीचे पाण्डवो समेत द्रोपदी दिखाई गई है । कुछ व्यक्तियो को राय मे ये पाँच श्रायुध-धारी वीर पुरुष है । सभी मूर्तियो की चेष्टाएं वडी स्वाभाविक है। लक्ष्मी चरण चाप रही हैं । उनकी कोमल उँगलियो के दबाव से चरण की मासपेशी दब रही है । वस्त्रो की एक-एक सिकुडन स्पष्ट है । ७- नर-नारायण-तपश्चर्या विष्णुमदिर की दीवार में पूर्व की ओर लगे इस शिलापट्ट पर वदरिकाश्रम में नर-नारायण की तपस्या का सुन्दर दृश्य अकित है। तापस वेषधारी नरनारायण जटाजूट बांधे और मृगचर्म पहिने हुए हैं । ८- गजेन्द्र-मोक्ष विष्णुमदिर के उत्तर की ओर के इस शिलापट्ट पर गजेन्द्रमोक्ष का दृश्य अकित है । पद्मवन के भीतर एक हाथी को दो नागो ने अपने कुण्डलो में जकड रक्खा है। उसकी सहायता के लिए गरुड पर चढ कर चतुर्भुजी विष्णु वडे सम्भ्रम से पधारे हैं । यहाँ अभी तक ग्रह या मगर की मूर्ति का इस कथा के साथ सवध नही दीख पडता, गज का ग्राह करने वाले नाग और नागी है । क्योकि इतनी ममता ! ममतामयि । खग छोड मुक्त नभ को उडान, पखों का सुख औ' मधुर तान, सब खिच प्राये ९ - प्रकृति- कन्या ( कलाकार - श्री सुधीर खास्तगीर) हो मंत्र-मुग्ध करने को तव मुख-सुधा पान ! लो, कोकिल, शुक, सारिका सभी खिच आए अचरज यह महान् !

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