Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 794
________________ एक कलाकार का निर्माण ७३७ प्रारम केने करें, यह भी प्रश्न था और फिर हुक्के के वगैरवेकाम कैसे करते ? पर हैवल ने युक्ति निकाल ही ली। मारी व्यवस्था अवनी वाचू की इच्छानुसार हो गई और आखिर उन्हें यह पद स्वीकार करने के लिए मना ही लिया गया। पद-स्वीकार के पहले दिन ही हैवल उन्हें गाला मे सम्बन्धित पार्ट-गलरी के निरीक्षण के लिये ले गए। हैवल ने पिटने कुछ वर्षों में इकळे हुए कूड़े-करकट को-पुराने यूरोपियन कलाकारो की तीमरे दर्जे की कृतियो को हा कर उनके स्थान में मुगल शैली के कुछ मौलिक नमूने लगवा कर गैलरी को साफ करवा दिया था। इन नमूनो में एक मारन का छोटा-मा चित्र था, जिसने अवनी बाबू का ध्यान आकृष्ट हुआ। उन्होंने पहले आँखो मे और फिर आतगी भीगे ने उसकी परीक्षा की। उम चित्र के रूप-विवान और अङ्गोपाङ्गी के रचना-विन्यास की उत्कृष्टता मेवे चकित रह गए। अन्य नमूनी की भी उन्होने परीक्षा की और इन मध्यकालीन चित्रो की उदात्तता, रेखाकन और रगो द्वारा प्रकट होने वाली मास्कृतिक स्वमताग्रहता से वे मुग्व हो गये । इन चित्रो द्वारा उन पर पड़ा प्रभाव भी हैवल के लिए अप्रत्यागित नहीं था। अवनी वावू को तो इन चित्रो ने एक सन्देश दिया। "तव में पहले-पहल हृदयगम कर सका कि मध्ययुगीन भारतीय गिल्प में कैनी निवियाँ छिपी हुई है। मुझे मालूम हो गया कि इनके मूलहेतु-मृगार भाव (Emotional element) में क्या कमी थी और उसे ही पूर्ण करने का मैने निश्चय किया। यही मेरा ध्येय है, ऐमा मुझे अनुभव हुना।" काम उन्होने जहा छोडा था, वहीं से उठा लिया। इस काल का प्रथम चित्र मुगल-शैली पर बना था। चित्र का विषय था अन्तिम पुकार के लिए तैयार माहजहाँ अपने कैदखाने की खिड़की की जाली से दूर-ताज को अनिमेप आँखो मे निहार रहे है। उनकी अनुगत प्यारी लडकी जहाँनारा फर्श पर नीरव वैठी है। चित्र को दिल्ली दरखार और कांग्रेस प्रदर्शनी में भी दिखाया गया। उत्कृष्टतम कला-कृति के रूप में इसका समादर हया। समालोचको ने इसमें खूब रस लिया और चित्र-कला से अनभिज लोग भी इमकी उदात्त करुणा से आई हो गए। "इसमें क्या पाश्चर्य है कि मैंने अपनीआत्मा की पुकार इस चित्र में रख दी है।" उनकी आत्मा अव भी अपनी लडकी के लिए क्रन्दन कर रही थी। उन्होंने यह महान् दुःख रूपी मूल्य ही इस महान् कृति के लिए दिया था। इसके बाद ही श्री देवल ने मस्या की अववानता में भारतीय चित्रो की प्रदर्शनी की आयोजना की। इमी प्रदर्शनी के निलमिले में एक दिलचस घटना हुई। प्रदर्शन के नमूनो मे बहुत से अवनी वावू के स्टुडियो से आये थे। इनमें से एक पर चित्रो के प्रसिद्ध मग्राहक लॉर्ड कर्जन की आंख लग गई । हेवल ने अपने महकर्मी को यह चित्र वाइसराय को भेट नहीं देने दिया, बल्कि उमे कीमत लेकर वेचा। मूल्य यद्यपि उचित ही था, फिर भी लार्ड कर्जन को यह वीक न लगा। लॉर्ड कर्जन खूब धनवान थे। फिर भी अपने व्यक्तिगत खर्च पर बहुत कठोर दृष्टि रखते थे। परिणाम यह हुआ कि वाइसराय ने नौदा करने का निश्चय किया, लेकिन हैवल जरा भी विचलित न हुए। वहन मभव है कि हैवल इन चित्रों में से किसीको भी, किमी व्यक्तिगत संग्रह में, भारत से बाहर नहीं जाने देना चाहते हो। आखिर अवनी वावू ने सम्पूर्ण चित्रावली धी हवल को गुरुदक्षिणा के रूप में अर्पण कर दी। हैवल शिष्य की श्रद्धाजली को पाकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने इन चित्रो को पार्टीलरी में स्थिर रूप से प्रदर्शन के लिए रखवा दिया। तबतक नव्य-प्राच्य-स्कूल (Neo-Oriental school) अपने पथ पर भली प्रकार अग्रसर हो चुका था। इम शिल्पम्वामी के चारो ओर शिक्षार्थी जुटने लगे। अवनी वावू स्वय अपने विद्यार्थियो को चुनते थे और उनकी आंखो ने गिल्पियो को चुनने में कभी धोखा नही खाया। सर्वप्रथम श्री सुरेन्द्र गागुली आये, जो एक विरल प्रतिभासम्पन्न युवक थे। अकाल मृत्यु के कारण वे वीच में ही मुरझा गये। उनके बाद श्री नन्दलाल आये, जो इस समय अवनी वावू के शिष्यों में मवसे अधिक प्रिय है और जिन्हें भावी मन्तति के लिए नवज्योति ले जाने का एकान्त श्रेय प्राप्त हुआ है। श्री अमितकुमार हल्दार भी अपनी चतुर्मुखी दक्षता के माय आये। इन लोगो को अपने

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