Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 765
________________ प्रेमी - श्रभिनदन- प्रथ एक और प्रकार विशेषतया उल्लेखनीय है यद्यपि हम निश्चय रूप मे इसकी रासायनिक व्याख्या को समझने में असमर्थ है रसस्य मध्ये नीला राजी, पयस्ताम्रा, मद्यतोययो काली, दघ्न श्यामा च मघुन श्वेता ॥ ७१० १।२१।१५ ॥ अर्थात् विषयुक्त भोजन के रस में नीली धारी, दूध में लाल, मद्य और जल में काली, दही में श्याम और मधु मे सफेद धारी विष की पहचान है । इस सम्वन्ध में कौटिल्य का यह सामान्य विवरण महत्त्व का है स्नेह राग गौरव प्रभाव वर्ण स्पर्श वघश्चेति विषयुक्तलिंगानि ॥ २२ ॥ अर्थात् विष मिले पदार्थ में उसकी स्वाभाविक स्निग्धता, रगत, उनका प्रभाव, वर्ण और स्पर्श ये नष्ट हो जाते है और इनके आधार पर विष का परीक्षण हो सकता है । कौटिल्य ने इस सम्बन्ध मे और भी कई बाते लिखी है जैसे भोजन में विष हो तो वे शीघ्र शुष्क हो जायँगे, क्वाथ का सा उनका आकार हो जायगा, विकृत प्रकार का भाग निकलेगा इत्यादि । इन सब का हम विस्तृत वर्णन देने मे यहाँ श्रममर्थ है । सुरा का निर्माण कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में सुराध्यक्ष के कर्त्तव्यो का विशेष उल्लेख किया है श्रीर पानागारो या मदिरालयो की नियन्त्रित व्यवस्था की है । सुरा के ६ भेद बताये गये है- मेदक, प्रसन्ना, श्रासव, अरिष्ट, मैरेय और मधु । (१) एक द्रोण जल, श्रावे आढक चावल और तीन प्रस्थ किण्व मिलाकर मेदक सुरा तैयार की जाती हैं । (२) १२ श्राढक चावल की पिट्ठी, ५ प्रस्थ किण्व या पुत्रक वृक्ष की त्वचा और फल से प्रसन्ना बनती है । (३) कैथे के रम, गुड की राव और मधु से आसव बनता है । (४) चिकित्सक अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने प्रमाण से जो वनावे वह अरिष्ट होगा - मेदकारिष्ट, प्रसन्नारिष्ट आदि । (५) मेढासीगी ( मेष युग) की त्वचा का क्वाथ, गुड, पीपल, मिरच श्रीर त्रिफला के योग से मैरेय सुरा बनती है । (६) द्राक्षो से मधु सुरा तैयार होती है । (२१२५११७-२५) सुरा बनाने में किण्वो का प्रयोग विशेष महत्त्व का है । आजकल तो किण्व रसायन रसायनशास्त्र का एक स्वतन्त्र मुख्य श्रग समझा जाता है । यह हर्ष की बात है कि चाणक्य ने किण्व-वन्ध की विधि भी दी हैमाषकलनीद्रोणमाम सिद्ध वा त्रिभागाधिक तण्डुल मोरटादीना कार्पिक भागयुक्त किण्व बन्व ॥ २।२५।२६ ॥ HTC (उडट) की कलनी या उसका आटा, तडुलो की पिट्ठी, और मोरटादि श्रीपधियो के पयोग होने पर किण्ववन्ध तैयार होता है । प्रसन्ना- सुरा के किण्व बनाने में पाठा, लोध, इलायची, वालुक, मुलहठी, केसर, दारूहल्दी, मिरच, पीपल आदि पदार्थ और मिलाये जाते है । इसी प्रकार अन्य किण्व वन्धो का भी विवरण है । बीजो की रक्षा कोटिल्य की दृष्टि वडी व्यापक थी । उसने अपने अर्थशास्त्र में बहुत सी छोटी-छोटी बातो तक का वर्णन दिया है जैसे घोवियो को कपडो की बुलाई किस प्रकार दी जाय इत्यादि । इसी प्रकार वीजो की रक्षा के भी उमने कुछ उपाय बताये है । कृषिशास्त्र में दूसरी फसल तक बीजो के सुरक्षित रखने के अनेक विधानों का आजकल उल्लेख किया जाता है । अनेक रासायनिक द्रव्यो का भी उपयोग करते है । कृषिकर्म के अध्यक्ष को सीताध्यक्ष कहते है । इसके अधिकार मे राष्ट्र की खेती की देख-भाल रहती है । ने अपने अर्थशास्त्र में इसका उल्लेख कर दिया है कि कैसी ॠतु मे कौन से वीज वोने चाहिए, और कैसे खेत को कितना पानी मिलना चाहिए। खेत को खाद किस प्रकार की मिलनी चाहिए, इसके उल्लेख का प्रभाव कुछ

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