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काश्मीरी कवियित्रियां
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अरनि रग गोम श्रावन हिए कर इये दर्शन दिए कन्द प्रारूद नावद मुतय फन्द अकीय सु गोम कुतय
खन्द करनम वुपरन थिए-कर इए मेरा रग अरनि फूल (पीला फूल) के समान हो गया है। वह (प्रीतम) कब पाकर दर्शन देगा? मै कितने मीठे पदार्थों से उसका स्वागत करने बैठी हूँ। वह मुझे धोखा देकर न जाने कहाँ चला गया और मुझे दूसरो के मामने लज्जित कर गया। वह कब आकर दर्शन देगा?
श्राम ताव कोताह गजस श्याम सुन्दर पामन लजस नाम पंग्राम कुसनिय
कर इये दर्शन दिए मै उसके विरह की अग्नि कहाँ तक सहूँ | हे श्यामसुन्दर | मेरी सखियाँ मुझे ताने देती है। मेरा सन्देश तुम तक कौन ले जायेगा?
मुफ्त पुरसे पॉवर वशन सोख्तगी झम न तम सजमशान
छुक लदग दवा दिए-करइए मै उसकी चादर में मोती से शिल्पकारी काँगी, किन्तु उसकी कठोरता भुलाये नही भूलती । मेरी पीडा की वही दवा कर मकता है और केवल उमके दर्शनो से ही मेरी पीडा दूर हो सकती है। वे मौतो से विशेष चिढती थी, ऐसा प्रतीत होता है। एक स्थान पर कहती है
स्वन छुम गेलान कुनि छुम न मेलान पर जन सत छम खेलानी अश्क नाव सूर गव परवत शेलन अश्क चूर फुर बलवीरनी अश्क नार हनि हनि तनि छम तेलान
पर जन सत छुम खेलानी मेरी सौतें मेरा परिहास करती है और वह निष्ठुर प्रीतम दूसरी स्त्रियो के साथ रगरेलियां मना रहा है। मुझे कही भी नहीं मिलता। प्रेम की अग्नि मे मै भस्म हो चुकी हूँ। मुझे पर्वत भी सूखे दिखाई देते है। यह प्रेम का चोर वडे-बडे वीरो के घर में भी डाका डाल देता है। यह प्रेम को पांच धीरे-धीरे मेरे शरीर को भस्म कर रही है । पर वह निष्ठुर प्रीतम कही मिलता ही नही । अन्य स्त्रियो ही में मस्त है ।
'काश्मीर में पर्वत का सूखा होना अशुभ-सूचक है, क्योकि यहां कोई पर्वत सूखा नहीं है।
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