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प्रेमी - श्रभिनंदन - प्रथ
है । इसी रग को घर के प्रदर भी दिखाना अच्छा नही । लाल और नीले रंगो का साथ-माथ प्रदर्शन हमारे लिये ठीक नही जँचता । इन दोनो रगो का सम्मिलित प्रभाव दर्शक को डरावना लगता है । रगो के मवध मे हमें यह गुर ध्यान में रखना चाहिए कि एक साथ तीन रंगो से अधिक का प्रयोग करना ठीक नही ।
बैठने के लिये कमरे को सजावट तथा रगो की बावत इतना कह कर श्रव हम सौन्दर्य की अन्य छोटा-मोटा बातो पर प्रकाश डालेगे । उदाहरणार्थं पत्थर की मूर्तियां, चित्र, फोटो, गमले, लेप-स्टैंड तथा काँमे के प्याले श्रादि । इन सवध में एक आवश्यक बात ध्यान में रखनी चाहिये कि कमरे मे जो कुछ वस्तुएं रक्खी जाँय वे किसी-न-किसी प्रयोजन को सिद्ध करती हो -- जैसे पुष्प- पात्र, धूप- दान, लैम्प-स्टैंड तथा कागज दवाने के लिये प्रयुक्त वस्तुएँ। ऐसी वस्तुएँ
किसी तत्कालीन प्रयोजन के लिये नही रक्खी जाती, कितु जिनका कुछ निजी उद्देश्य होता है, जैसे अच्छे चित्र, मूर्तियाँ या भावात्मक फोटो आदि, उन्हें वे कभी-कभी और क्रमवार ( एक को निकाल कर दूसरी ) प्रदर्शित करना चाहिये । उनके प्रदर्शन का आधार-पृष्ठ देश कालानुमार उपयुक्त भाव होना चाहिए। तभी उन वस्तुत्रो का वास्तविक लाभ उठाया जा सकता है और वे प्रभावोत्पादक हो सकती है ।
घरको पवित्रता के भाव से भरने के लिये दूसरी श्रावश्यक बात है फर्श को सजावट । प्रत्येक भारतीय घर त्यौहारो या धार्मिक सस्कारो आदि के समय पर फर्श पर अल्पना या रगोली की जाती है। ऐसे प्रांगनो या फर्शा
सजाना, जिन पर जूतो की चरमर हुआ करती है श्रीर जली हुई सिगरटी के टुकडे फेंके जाते है, केवल वर्धरता है । अपनी सास्कृतिक पवित्रता के नियमो का पालन हमे दृढता के साथ करना होगा, नही तो वह केवल दिखाऊ और अस्वाभाविक हो जायगी ।
अब हम फूलो की मजावट को लेते हैं । इस सवध मे हम जो बात जापान या यूरोप में पाते है या जिसकी नकल हमारे भारतीय घरो मे देखी जाती है वह सतोषजनक नही है । फूलो को उनके डठल सहित काट कर कमरो के भीतर गमलो मे लगाना असगत जँचता है, जब कि प्रकृति ने विस्तृत भू-क्षेत्र तथा सूर्य को प्रचुर प्रभा प्रदान की है, जो फूलो को स्वाभाविक रूप से विकसित होने में सहायक हो सकती है । इसका अर्थ यह नहीं कि घर में बगीचा सडा किया जाय। इसका केवल यह अभिप्राय है कि कुछ स्थायी फूलो के पौधे या लताएँ, जो मीठी सुगन्ध तथा सुन्दर रग की हो, खिडकियो के आसपास लगा दी जाय। भारत में चमेली, मालती, शेफाली, मोतिया और अपराजिता आदि के पुष्प काफी पसन्द किये जाते हैं। कमरो के अदर केवल कुछ चुने हुए पूर्ण विकसित फूलो को लाकर उन्हें निर्मल जल से भरी हुई एक वडी तश्तरी में तैराना बहुत सुहावना प्रतीत होगा । जल के ऊपर तैरते हुए पुष्पो का दर्शन देखने वाले की थकान को दूर करने वाला होता है, विशेषत गर्मी की ऋतु मे ।
यदि ठठलो के सहित फूल सजाये ही जाँय तो वे जापानियो के ढंग से हो। वे एक समय केवल एक या दोडठलयुक्त उत्तमोत्तम फूलो को कमरे के एक ही स्थान पर सजाते है । इस प्रकार उन फूलो का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष
जाता है और उसका प्रानद लिया जा सकता है । फूलो का पूरा गुच्छा किसी वर्तन के भीतर रख कर उसका प्रदर्शन करना सजावट का अच्छा तरीका नही कहा जा सकता ।
खजूर-जैसे पौधो को कमरे के अंदर रखना बिलकुल असगत है । यदि ये पेड अच्छे लगते ही हो तो उन्हें घर के बाहर आसपास उनके विशाल रूप में ही क्यो न देखा जाय ?
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आधुनिक विज्ञान के अनेक चमत्कार - विजली की रोशनी, पखे, रेडियो आदि — श्रव भी साधारण भारतीयो की पहुँच से बाहर है। हममे से जिनको ये साधन प्राप्त है उन्हें बिजली के तारो के सबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि वे इस प्रकार से दीवालो में फिट किये जाय कि दृष्टि में कम पडे । विजली की रोशनी को स्क्रीन से ढँक देना चाहिये, जिसमे आँखो मे चकाचौंध न पैदा हो। वास्तव में रोशनी को पर्दे से ढंकना स्वय एक कला है । इसके द्वारा अनेक भाति के प्रभाव उत्पन्न किये जा सकते है ? इतना होते हुए भी पर्दे से ढकी हुई बिजली की रोशनी कृत्रिम ही है और हम उसको तुलना उगते या डूबते हुए सूर्य की प्रभा से या चांदनी रात से कदापि नही कर सकते ?