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भारतीय गृहों का अलकरण
६८३ रेडियो का खर्च अभी इतना अधिक है कि वह आम जनता की पहुंच से बाहर है। उसके स्थान पर कमरे के भीतर खिडकी के पास कुछ मरकडे के टुकडो को या पतली, पोली लकडियो को टांग कर सगीत का मद स्वर सुना जा सकता है। खिडकी मे से जो हवा आवेगी उससे वे हिल-डुल कर एक दूसरे से लगेगी और इस प्रकार एक धीमा मृदु स्वर उत्पन्न होगा।
___ ऊपर अतर्गृह की सजावट का जो वर्णन किया गया है वह सब प्रकार के कमरों में लागू हो सकता है, केवल उममें वैयक्तिक सचि विशेष होगी।
हमने ऊपर यह बताया है कि घर को सुख-शान्तिमय बनाने के लिये स्त्री-पुरुप में एक मनोवैज्ञानिक अनुकूलता का होना आवश्यक है । इसके बाद अपनी नकल करने वाली आदत को कोसते हुए हमने यह वताया कि भारतीय जलवायु तथा लोगो के रुचि के अनुकूल कमरो की कैसी सजावट यहाँ वाछनीय है । अव हम एक दूसरी आवश्यक वात का कथन करेंगे और वह है अपने हाथो अपना काम करना।
घर की देखभाल और उसकी सजावट करना प्रतिदिन अपने व्यक्तित्व का एक नया चित्र उपस्थित करने के ममान है । नौकरो या किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर यह काम छोड देना ठीक नही है। दूसरे के भरोसे बैठ कर न केवल हम अपने को मौलिक रचना के आनद से वचित रखते है, अपितु हम उस वातावरण को भी खो देते है, जिसकी हम भविष्य के लिए प्रतीक्षा किये रहते है । गृहस्वामिनी तथा गृहस्वामी का तथा उसी प्रकार उनके बच्चो का यह एक आवश्यक गुण होना चाहिए कि वे घर पर अपने ही हाथो से कार्य करते रहें। हमारी दास-मनोवृत्ति ने ही हमे ऐसा वना दिया है कि हम अपने हाथो से अपना काम करना घृणित और अप्रतिष्ठित समझते है ।
घर को सजाने के सबध में एक अन्य महत्वपूर्ण वात सफाई का होना जरूरी है। साफ-सुथरी वस्तुएँ, चाहे वे भली प्रकार सजा कर न भी रक्खी गई हो, सुन्दर लगती है।
अतिम वात, जो कम महत्व की नहीं है, वैयक्तिक सजावट की है। चलते-फिरते हुए लोग भी घर के वातावरण का अभिन्न अंग है। 'शृगार' स्वय ही एक अपरिहार्य विषय है। यहाँ केवल इतना कहना पर्याप्त होगा कि घर पर रहने के समय आवश्यक साफ-सुथरी तथा घरेलू कार्यों के लिए उपयुक्त वेश-भूषा ही यथेष्ट है, जो एक सुव्यवस्थित गृह की महत्ता के अनुकूल होगी।
घरो को सुन्दर-सुहावने वनाये रखना सदा से ही भारतीय ललना-समाज का एक अनुपम गुण रहा है। खेद है कि विपरीत समय के आ पडने से बहुतो का अपनी पुरातन सस्कृति से विच्छेद हो गया है । आधुनिक सभ्यता की क्षणिक चमक-दमक वाली वस्तुओं के लोभ में पडकर वहुत सी भारतीय नारियो का अपनेपन से विश्वास उठ गया है। यह सव होते हुए अव भी कितनी ही महिलाएं है, जिन्होने असाधारण कठिनाइयो और प्रलोभनो का सवरण कर भारतीय गृह के मौदर्य को स्थिर रक्खा है और यह उन्ही के महान् त्याग का फल है कि पुरुषो की उदासीनता और अवहेलना के होते हुए भी हमारी मास्कृतिक निधि का रक्षण हो सका है तथा उसका सवर्धन भी हो रहा है । घरो के भीतर ऐसी गृहलक्ष्मियो की उपस्थिति ही उन घरो की शोभा और सजावट के लिए अलम् है । दिल्ली]