Book Title: Premi Abhinandan Granth
Author(s): Premi Abhinandan Granth Samiti
Publisher: Premi Abhinandan Granth Samiti

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Page 725
________________ ६७२ प्रेमी-अभिनदन-पथ ऐसे उन्मुक्त एव स्वस्थ वायुमडल की आदि नारी यदि अमर वेदमत्रो की दृष्टा हुई हो तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है, यद्यपि ससार के अन्य किसी भी धार्मिक व प्राचीन ग्रथो को ऐसा श्रेय प्राप्त नही। श्रवणनुक्रमणिका के अनुसार बीस और सायुनायिक के कथन से २६ ऋग्वेद की स्रष्टा ऋषि स्त्रियाँ है। इससे सर्व सहमत नहोतो भी लोपामुद्रा, घोषा, विश्वारा, सिक्ता, नीवावरी म०१, १७६, म०२८,म०६१, म० ८१ ११ २० और ३६ ४० की निर्विवाद सृष्टा है ही। रात्रि, यमी, अपाला, शची, इन्द्राणी, अदिति, दक्षिणा, सूर्या, उर्वशी, श्रद्धा, रोमासा, गोधा, श्रमा, शाश्वती, जिन्होने प्रेम, वीरता, वात्सल्यता, सौंदर्य आदि के विभिन्न क्षेत्रो में उच्च कोटि के भावो की सृष्टि की है, सायण और सायुनायिक सरीखे महापडितो की सम्मति में काल्पनिक नाम होते हुए भी प्रामाणिक है । ___ वेद की इन ऋचामो में, रात्रि, अग्नि आदि प्राकृतिक विषयो की अभिव्यक्ति अति सुन्दर है। विभिन्न प्रकृति नारियो के अनन्यतम कोमल भाव जहां-तहां अनेक रूपो मे वेगपूर्वक भर पडे है । सस्कृत, पाली, प्राकृत कवियित्रियो की अपेक्षा वैदिक कवियित्रियां कही अधिक सुघड कलाकार है। णिो को भी प्राकृत की कवियित्रिया काल तक अनुलक्ष्मी, असुलवी, अवन्तीसुन्दरी, माधवी, प्रात रेवा, रोहा, शशिप्रा , प्राचीत्य, प्रादि प्रकृत भाषा की मुस्य कवियित्रियां है । इनके द्वारा रचित सोलह श्लोको की काव्यघोसी क्षमतारण सस्कृत काल की स्त्रियो की भाति ही जीवनदायिनी, प्रेम सगीत, आनन्द-व्यथा, आशा-निराशा और उमविकास का है। अभिव्यक्ति अनूठे ढग की है और जीवन, प्रेम, सौदर्य के प्रति अनन्त प्यास है। (थेरी गाथा) पाली की कवियित्रिया १अश्त्रतरार्थरी, २ मुक्ता, ३ पुष्णा, ४ तिस्सा, ५ अञ्चतरा तिस्सा, ६ धीरा, ७ अश्वतरा धीरा, ८ मित्ता, ६ भद्रा, १० उपसमा, ११ मुत्ता, १२ धम्म दिना, १३ विसाखा, १४ सुमना, १५ उत्तरा, १६ सुमना (वुड्ढपव्वजिता) १७ धम्मा, १८ सडा, १६ नन्दा, २० जेन्ती, २१ अनतराथेरी, २२ अड्ढकासी, २३ यित्ता, २४ मेत्तिका, २५ मित्ता, २६ अभयमाता, २७ प्रभत्थरी, २८ सामा, २६ अत्रतरा सामा, ३० उत्तमा, ३१ अश्वतरा उत्तमा, ३२ दन्तिका, ३३ उब्बिरी, ३४ सुक्का, ३५ सेला, ३६ सोमा, ३७ भद्दा कापिलानी, ३८ अश्वतरा भिक्खुणी अपजाता, ३६ विमला पुराण गणिका, ४० सीहा, ४१ नन्दा, ४२ नन्दुत्त राथेरी, ४३ मित्तकाली, ४४ सकुला, ४५ सोणा, ४६ भद्दा पुराणनिगण्ठी, ४७ पटाचारा, ४८ तिसमत्ता थेरी भिक्खुणियो, ४६ चन्दा, ५० पञ्चसता पटाचारा, ५१ वासिट्टि, ५२ खेमा, ५३ सुजाता, ५४ अनोपमा, ५५ महापजापती गोतमी, ५६ गुत्ता, ५७ विजया, ५८ उत्तरा, ५६ चाला, ६० उपचाला, ६१ सीसूपचाला, ६२ वड्ढमाता, ६३ किसागोतमी, ६४ उप्पलवण्णा, ६५ प्रणिका, ६६ अम्वपाली, ६७ रोहिणी, ६८ चापा, ६६ सुन्दरी, ७० सुभा कम्मारधीता, ७१ सुभा गीवकम्बवनिका, ७२ इसिदासी, ७३ सुमेधा ॥ उपरोक्त ७३ विदुषियों पाली भाषा की स्रष्टा है। यह साहित्य ५२२ श्लोको मे "थेरीगाथा" नाम से खुदक निकाय की पन्द्रह पुस्तको मे से एक है। इसका स्वतन्त्र अनुवाद अग्रेजी में 'Psalms of sisters' और बगला में 'थेरीगाथा' के नाम से भिक्षु शीलभद्र द्वारा हो चुका है। जातक ग्रन्यो एव अन्य बौद्ध साहित्य मे, जहाँ अनेक स्थलो पर नारी के प्रति सर्वथा अवाछनीय मनोवृत्ति का उल्लेख है, वहाँ 'थेरीगाथा' का उच्च विशिष्ट साहित्य एक विस्मय एव गौरव की वस्तु है। इससे भी अधिक माश्चर्य यह कि भगवान बुद्ध ही सर्व प्रथम ऐसे महापुरुष है, जिन्होने उस युग की करुणापात्र नारी को घर के सकुचित वृत्त से वाहर ससार की सेवा और शान्ति के निमित्त सन्यास की अनुमति देकर एक नया मार्ग खोला।

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