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सस्कृत माहित्य में महिलाओ का दान
६७७ (१) घोपा, विश्ववाला, अपाला आदि वैदिक ऋपियो की म्पियो और प्राकृत और पालि भाषाओ की कवियित्रियो के बारे में यहां हम कुछ नहीं कहेगे। उनका उल्लेख इसी ग्रथ मे अन्यत्र हुआ है। इनके अतिरिक्त भी बहुत-मी ऐमी कवियित्रियो के नाम हमें प्राप्त हुए है, जिन्होने सस्कृत मे कविताएँ लिखी है। राजशेखर, धनददेव आदि जैसे प्रसिद्व माहित्यि महारथियो ने भी उनका काफी गुणगान किया है। ऐसी महिलाओं में से अाज कितनी के निफ नाम ही मिलने है। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि उनके सुमज्जित काव्योद्यान को जग-मी भौ झाकी हमें प्राज नहीं मिलती। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार है--कामलीला, कनकवल्ली, जनितागी, घुरागी, सुनन्दा, विमलागी, प्रभुदेवी, लाटी, विजयाका इत्यादि। जिनकी छोटी-मोटी कविताएँ पाई गई उनमें से पिननो के नाम है~-भावदेवी, गौरी, इन्दुलेखा, केरली, कुटला, लक्ष्मी, मदालसा, मधुग्वर्णी, मदिरेक्षणा, मारुला, मोरिका, नागम्मा, पद्मावती, फल्गुहस्तिनी, चन्द्रकान्ता भिक्षुणी, प्रियम्बदा, मरस्वती, मरम्वतीकुटुम्बदुहिता, गीलाभट्टारिका, सीता, सुभद्रा, त्रिभुवनसरस्वती, चण्डालविद्या, विद्यावती, पिज्जा, विकटनितम्बा आदि। इनमें मे हमे किमी-किमी की तीस-नीम कविताएँ मिली है और किसी-किसी ती मिफ दो-चार । ये कविताएँ विविध विषयो पर लिपी गई है-जैसे, देवस्तुति, दर्शन, धर्म, प्रेम इत्यादि का वर्णन, अग-प्रत्यग-वर्णन, पशु-पक्षी-वर्णन आदि । इनके भाव और भाषा मधुर है एव छन्द और अलकारो को छटा की कमी नहीं है। उनकी और भी कितनी ही कविताएँ थी, इसमें कोई सन्देह नही, परन्तु आज ये सब दो-चार इधर-उधर निस हुए फूलों की त ह नाना दिपायो को सुवामित कर रही है । उनमें से बहुतो ने ईस्वी सन् नवी और दसवी नताब्दियों में पूर्व भाग्न को अलकृत किया था। (२) हम भारतीय महिलाओं के कितने ही सम्पूर्ण काव्य भी प्राप्त हुए है।
(क) मग्रामसिंह की माता अमरसिंह की पटरानी देव-कुमारिका ने 'वैद्यनाथ-प्रसाद-प्रशस्ति' लिखी है। वैद्यनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा के ममय यह प्रगस्ति लिखी गई थी और यह मन्दिर में खुदी हुई है। यह ऐतिहासिक प्रगति राजामाता-गृत है या नहीं, इस विषय में मदेह की काफी गुजाइश है। ईस्वी सन् की अठारहवी शताब्दी मे राजपनाने में उनका जन्म हुया था।
(ग) रानी गगादेवी-गृत 'मथुरा-विजय' या 'वीर-कम्पराय-चरित' है। वे विजयनगर के सम्राट् वीर उम्पन की गनी थी। ईम्बी मन् की चौदहनी शताब्दी के मध्य में अपने पति के मदुरा (मधुरा) विजय के उपलक्ष में उन्होंने उक्त ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्य चौदहवी शताब्दी के दक्षिण-भारत के ऐतिहानिक तथ्यो से परिपूर्ण है।
(ग) ताजोर के राजा रघुनाथ नायक की मभा-कवियित्री मधुरानी-कृत 'रामायण-काव्य' है । वे ईस्वी मन् की सग्रहवी शताब्दी मे हुई थी। यह अन्य रघुनाथ-कृत तेलगू रामायण के आधार पर सस्कृत मे लिखा गया है।
(घ) उपर्युक्त्त रघुनाथ नायक की एक दूसरी मभा-कवियित्री रामभद्राम्वा-कृत 'रघुनाथाभ्युदय-महाकाव्य' है। इस महाकाव्य में ग्घुनाथ राजा के रूप, गुण और विजय की कहानियो का वर्णन किया गया है। इससे हम लोग नाजोर के तत्कालीन कितने ही ऐतिहासिक तथ्यो को जान सकते है ।
(ड) विजयनगर के मम्राट अच्युतदेवराय की सभा कवियित्री तिरुमलम्बा-कृत 'वरदाम्बिका-परिणयचम्प' है। उन्होने ईम्बो मन् की मोलहवी शताब्दी के मध्य में इस ग्रन्थ की रचना की। इसके प्रथम भाग मे अच्युत देवगय को वशावली, उनके पिता की विजय-कहानी और उनके वाल-काल का इतिहास आदि का वर्णन है तथा उत्तगर्द्ध में अच्युतदेवराय का वरदाम्विका के माय परिणय और उनके पुत्र चिनवेंकटगय के जन्म आदि का वर्णन है । इमम इतिहास की अपेक्षा कवित्व की ही मात्रा अधिक है।