________________
भारतीय नारी की बौद्धिक देन
श्री सत्यवती मल्लिक सीता और सावित्री-सी सती-साध्वियोतथा भारतीय नारी के वीरतापूर्ण चरित्र की विमल गाथा, जहां इतिहास के पन्नो में स्वर्णाक्षरो से अकित हुई है, वहाँ साहित्य, कला एव विज्ञान आदि के क्षेत्र में उनकी गणना प्रच्छन्नाकाश में प्राय लुप्त, तारिकामो-सी ही रही है।
__ फलयुक्त वृक्ष की भाति, जिसकी विनत डालियां, पत्ते, फल आदि सव मूल को आच्छादित किये रहते है, मातृत्व एव पत्नीत्व के आँचल तले निज व्यक्तित्व को ढके रखने में ही नारी ने अपना गौरव माना है।
चारित्रिक विकास के साथ-ही-साथ नारी के वौद्धिक विकास-सवधी उदाहरणो को भी भावी सतति के लाभ तथा समाज-निर्माण के निमित्त प्रकाश में लाने की कितनी आवश्यकता है, चिरकाल तक जाने क्यो हमारे विद्वानो और इतिहासकारो ने इसकी उपेक्षा की।
___ यद्यपिन केवल स्वाभाविक प्रवृति के अनुसार रसमे लीन और झूम पड़ने की क्षमता रखने, अपितुज्योतिष, गणित, दर्शन, कला, विज्ञान, चिकित्सा आदि जहाँ भी वौद्धिक चेतना अथवा व्यक्तिगत विकास का सवध है, युगान्तर से बाह्य प्राचीरो द्वारा घिर कर भी इस वदिनि की मुक्त प्रातरिक निरिणी को वाँध रखने की सामर्थ्य किसमे हुई है ?
लीलावती, गार्गी, वाचकन्वी और पूर्व मीमासा जैसे कठिन विषय में भाग लेने वाली कास्कृतस्नी की लेखिका कास्कृतस्ना, चिकित्सा में रुसा और चित्रकला में माणकू-सी पारगत प्राचीन विदुषियो के नाम वर्तमान युग के लिये कितने महत्वपूर्ण है।
__ इधर साहित्य मे हिन्दी, वगला, मराठी, गुजराती, तामिल तथा अन्य प्रान्तीय भाषामो के अतिरिक्त केवल सस्कृत ही मे शान्तिमय वैदिक काल से मध्यकालीन भक्तियुग तथा आधुनिक डावाडोल युग तक स्त्रियो द्वारा विरचित व्यापक सृष्टि पर स्वतत्र रूप से हिन्दी में मौलिक ग्रन्थ लिखे जाने की मांग है। वस्तुत सस्कृत साहित्य ही ऐसा पूर्ण भडार है, जिसके यत्र-तत्र छिन्न-भिन्न बिखरे पृष्ठो मे हमारे किसी भी सास्कृतिक पक्ष को मूर्तरूप से खडा कर देने की चमत्कारिक क्षमता है।
उपरोक्त गुरुतर कार्य के अनुसन्धान का श्रेय कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राचार्य डा. जितेन्द्र विमल चौधरी को है, जिन्होने कुछ ही वर्ष पूर्व पांच-छ भाग मे 'सस्कृत-साहित्य में महिलामो का दान' (The contribution of women to sanskrit literature) नामक सीरीज प्रकाशित की थी। भारतीय नारी-समाज उनका चिरऋणी रहेगा । सस्कृत लेखिकाओ और कवियित्रो के सबंध में डा० चौधरी का परिचयात्मक लेख इसी विभाग मे अन्यत्र दिया जा रहा है । वैदिक, प्राकृत और पाली भाषा की प्रमुख कवियित्रियो का सक्षिप्त उल्लेख, जो चौधरी महोदय के लेख में नहीं है, प्रस्तुत लेख में अभिप्रेत है ।
साहित्य यदि युग का प्रतिविम्व और जीवन की प्रत्यालोचन है तो पलभर तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था एव स्थिति की ओर झाकना अनिवार्य होगा।
राग उत्तरोत्तर भले ही वेसुरा होता चलागया हो, किन्तु पालाप हमारे पूर्वजो ने सभी स्वर साधकर ही लिया था। विशेषतया समाज के वाम अग को प्रत्येक पहल से उन्नत एव विकासोन्मुख करने में ही जीवन-कला का मुख्य रहस्य है । इसके वे कैसे ज्ञाता थे, यह विभिन्न समय की निम्न भावनाप्रो द्वारा प्रकट है।
(१) समारोह-विशेष पर दम्पति कामना करते है हमारे यहाँ पण्डिता और चिरायु कन्या उत्पन्न हो।