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बुन्देली लोकगीत
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उठी पिया प्रव भोर भये, चकई बोली ताल; मुख विरियां फीकी परी, सियरी मोतिन माल, पिया उठ जागी कमल विगसन लागेः
X गो हते सो उड गये, भुस ले गई अधदार; त्याई में टलवा गये, वाज गये खग वार,
हमारे बाकी में लिखा देउ पैजना, वाज गये खगवार, हमारे बाकी में लिखा देउ पैजना।
दतिया में हतिया पजे, और पन्ना में हीरा जवार, टीकमगढ़ सूरा पजे, रे जिनको बेडी बह तलवार,
दुश्मन पास कभऊँ नई आवै हो, बेटी वह तलवार, दुश्मन पास कभके नई पावै हो।
फाग छदयाऊ भागीरथ ने तप कियो, ब्रह्मा ने बर दीन गङ्गा ल्याये स्वर्ग सें, लये पाप सब छीन ।
जग के अघ काटन को आई, जय श्री गङ्गामाई। गऊ मुख से धार, है निकरी अपार, तिन लई निहार, नर सुखकारी; भाई हरद्वार, सब फोरत पहार,
भनौ जै जैकार, अघ फर छारी ॥ भज लो गङ्गामाई ॥ यो तो बुन्देलखड में कितनी ही प्रकार की फागें और गीत गाये जाते हैं, किन्तु ईसुरी की फागो की सर्वप्रियता सर्वत्र ही है। स्थानाभाव के कारण उनका पूर्ण परिचय दे मकना यहाँ सम्भव नहीं। उदाहरणार्थ दो-तीन फागें दी जा रही हैं
मन होत तुमें देखत रइये,
छिन छोड अलग ना कउँ जइये । मौन स्वभाव, सांवली मूरत,
इन अँखियन बिच घर लइये, जब मिल जात नैन नैनन सो,
वेह घरे को फल पइये। 'ईसुर' कात दरस के लानें, खिरकिन में ढूंकत रइये ।
x प्रीति-पन्थ के पथिको की दशा का सजीव चित्रण निम्न गीतो में रसास्वादन कीजिए
जब से भयी प्रीत की पीरा, खुसी नई जो जीरा,
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