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प्रेमी - श्रभिनदन ग्रथ
१० प्रश्नमाला - यह गद्यग्रन्थ है । लिपि स्वच्छ और प्रति सुन्दर दशा में है । पृष्ठ ३४ है । ग्रन्थ के मादि और अन्त में निम्नलिखित पद्य विद्यमान है
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प्रादि-आदि अन्त चौवीस लो, वन्दौ मन वच काय । भव्यन को उपदेश दे, करो मगलाचार ॥ १ ॥ पूरन भई, आदेश्वर
गुनराय । सम्यक्त सहित वाचत रहो, जान सुरति मन माह ॥
अन्त-प्रश्नमाला
इन पद्य के अतिरिक्त प्रस्तुत ग्रन्थ मे १२२ विविध धार्मिक प्रश्नो का उत्तर सरल एवं सरस भाषा मे समझाया गया है । ये प्रश्न देवागनाओ से पूछे गये जिनमाता तथा श्रेणिक गौतम सवधी है । लेखक का परिचय गन्य से नहीं मिलता है ।
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११ दशलक्षणधर्म - यह भी गद्यग्रन्थ है । पृष्ठ ४२ है । लिपि सुन्दर और सुवाच्य है । ग्रन्थकार प० सदासुख जी हैं । यह ग्रन्थ मुमतिभद्राचार्य विरचित संस्कृत प्राकृत दशलक्षण धर्म का सरस भावानुवाद है । ग्रन्थ के प्रारंभ में १२ पद्य है । फिर गद्य में १० धर्मों का सुन्दर, सरस एव मधुर विवेचन हैं, जो पर्युषण पर्व के समय पठनीय है । १२ इष्टोपदेश -- यह गद्यग्रन्थ है । केवल ४ पृष्ठ ही है । यह पूज्यपाद कृत इष्टोपदेश का मधुर भावात्मक मनोरजक अनुवाद है । लेखक का नाम धर्मदास द्युल्लक है । यह मोक्षपद के पथिको का पाथेय है। भाषा और लिपि साधारण है ।
१३ वुद्धिप्रकाश — कविवर ने इस गन्य में धर्म, वैराग्य और नीति के विषयो का सुन्दर रूप से प्रतिपादन किया है । कर्म सिद्धान्त जैसे कठिन विषयो की कविता करने मे ग्रन्थकार ने अच्छी सफलता प्राप्त की है। दाता और सूम का कितना सरस और सरल सवाद इस ग्रन्थ में कराया है
सूम - कहे सूम सव सङ्ग भले, धर्मी सङ्ग न लाय ।
ता सङ्ग तें घर धन सकल दान विषै ही जाय ॥
माल लेहें चोर के घर्यो घने जावतें तं श्रगनि किमि लागि भूमि गाडी रज डारी है । राजा किमि नेह रह्यो राकि की समानि होय, तन तो उधारो, खाय रोटी रज भारी है ॥ इत्यादिक में तो धनी चौकस राख्यो, खाय उधारी लाई लाज सब हारी है ॥ रूप को रुपया बड़े घने कष्ट तें, कमायो यार दान कैसो दियो जाय काढौ बहुगारी है ॥
दाता --दाता कहे सुन रे सठा, चौकस लाख कराय । के धन तज के तू वसै के देखत धन जाय ॥
राखो न माल रहे किस ही पर लाख सयाने कोय करो जो । खोद खडा धन माहि घरचो भल ऊपर लें बहु भार भयो जी ॥ जाये तबै बहु सोच करौ भल रोष करो निज पाय हरी जी 1 लाख उपाय करौ नर हे तातें भव्य यह द्रव्य दान करो जो ॥
इस पद्य में कितने सुन्दर ढंग से कृपण के स्वभाव का वर्णन किया गया है । ग्रन्थ का प्रारभ इन्दौर मे हुआ और इसकी समाप्ति भाडलनगर (भेलसा) में हुई है । कवि का नाम हरिकृष्ण प्रतीत होता है । ग्रन्थ समाप्ति का काल ग्रन्थकार ने स्वय इस भाति लिखा है ।