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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ ५८६ योग देते थे। यह सन् १९०३-४ के पहले की वात है। उसके बाद समय ने, पलटा खाया और हिन्दू-मुसलिम एकता की बात स्वप्न हो गई।
सन् १९०५ ई० मे लार्ड कर्जन द्वारा वग-भग और उसके विरोध में बगाल से स्वदेशी और बॉयकाट का आन्दोलन उठने के पूर्व देवरी मे स्वदेशी वस्तु-प्रचार का आन्दोलन जोर पकड गया था। सभामो तथा जातीय पचायतो द्वारा स्वदेशी वस्तुओ के व्यवहार करने, देवरी के बुने स्वदेशी वस्त्र पहनने और देशी शक्कर खाने की प्रतिज्ञा कराई जाती थी। इस हल-चल का अपूर्व प्रभाव पडा। देवरी के बाजार में वाहर की शक्कर ढूढे न मिलती थी। हलवाई तो स्वदेशी शक्कर की मिठाई बनाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध थे ही। अधिकाश लोग देवरी के बने कपडे पहिनने लगे थे। यहां उत्तम रेशम किनारी के धोती जोडे, साडियां, कुरते और कोटो के बढिया-बढिया कपडे बुने जाने लगे थे। इन सब कामो के मुख्य प्रवर्तक स्थानीय मालगुजार लाला भवानीप्रसाद जी थे। गाँव के सभी लोगो की इनसे पूर्ण सहानुभूति थी। श्री सैयद अमीर अली 'मीर' स्वदेशी आन्दोलन में विशेष क्रियात्मक भाग लेते थे। वे अपनी दूकान द्वारा देवरी की बनी स्वदेशी वस्तुएँ वेचते थे। उन्होने कपडा बुनना भी सीख लिया था। लाला भवानीप्रसाद जी और श्री नाथूराम जी प्रेमी आदि कुछ सज्जनो के प्रयत्न से वम्बई से 'शिवाजी हेण्ड लूम' मँगाई गई और उससे तथा कुछ यहाँ के बने करघो से कपडा बुनने का एक व्यवस्थित कारखाना खोला गया। देवरी के कुछ कोरी मीर साहब के साथ वस्त्र वुनने की कला में विशेष दक्षता प्राप्त करने के लिए बम्बई भेजे गये। हेण्ड-लम प्रा जाने पर यहाँ बडे अर्ज के कपडे सुगमता से बुने जाने लगे। आज भी यहाँ कई किस्म के अच्छे कपडे तैयार होते है। चालीस नम्बर के सूत के नामी जोडे, रेशमी किनारी की साडियां और अनेक प्रकार के चौखाने वुने जाते है। पटी (स्त्रियो के लंहगा बनाने का लाल रंग का धारीदार कपडा, जिसके नीचे चौडी किनार रहती है।) यहाँ खूब तैयार होता है। सन् १९०६-१० में इन कामो की ओट में सरकार को राजविद्रोह की गन्ध आने लगी। फलतः श्री लाला भवानीप्रसाद, प० लक्ष्मण राव, प० श्रीराम दामले आदि छ सात आदमियो पर ताजीरात हिन्द के अन्तर्गत १२४ अ के मामले चलाये गये और उनसे दो-दो हजार रुपयो की जमानतें तलव की गई। दमनचक्र ज़ोर पकड गया। 'मीर' साहव वाहर चले गये । प्रेमीजी पहले ही वम्बई जा चुके थे। अत कार्य शिथिल पड गया।
___ सन् १९२० मे नागपुर-काग्रेस के प्रचार-कार्य तथा चन्दे के लिए श्री माधव राव जी सप्रे, प० विष्णुदत्त जी शुक्ल और वैरिस्टर अभ्यकर देवरी पधारे और उनके भाषण हुए। काग्रेस के पश्चात् महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन ने जोर पकडा। देवरी में भी काग्रेस की प्रवृत्तियाँ चल पडी। सन् १९१८ से १९३३-३४ तक देवरी की प्रत्येक राजनैतिक तथा सार्वजनिक हलचल में इन पक्तियो के लेखक का हाथ रहा है।
सन् १९३३ के दिसम्बर की पहली तारीख देवरी के इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगी। उस दिन महात्मा गाधी देवरी पधारे। शुक्रवार वाजार के मैदान में सभा की आयोजना की गई। हजारो नर-नारी महात्मा जी के दर्शन करने और उनका भाषण सुनने के लिए इकट्ठे हुए। पूर्वाह्न मे दस बजे महात्मा जी का आगमन हुआ और दो बजे सभा हुई। भाषण के पश्चात् महात्मा जी को थैलियां और मानपत्र भेंट किया गया। 'हरिजन-सेवक' में महात्मा जी ने देवरी के सुप्रवन्ध और मानपत्र की प्रशसा की थी।
सन् १९४१-४२ में महात्मा जी के युद्ध-विरोधी आन्दोलन के समय देवरी सत्याग्रहियो की राजनैतिक हलचलो का प्रसिद्ध अखाडा रहा। वहुत से आदमियो ने जेल-यात्रा की।
साहित्यिक सेवा साहित्यिक क्षेत्र में भी देवरी की सेवाएँ कभी भुलाई नही जा सकती। स्व० सैयद अमीर अली 'मीर' तथा मीर-मडल के कवियो ने, जिनमेप० कन्हैयालाल जी 'लालविनीत', मुशी खैराती खाँ 'खान', गोरे लाल जी भजुसुशील,