________________
बुन्देलखण्ड की पत्र-पत्रि एँ
श्री देवीदयाल चतुर्वेदी 'मस्त हमारे देश में आज विभिन्न प्रान्तो से अनेकानेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही है। प्रस्तुत लेख में हम केवल वुन्देलखड के पत्रो पर ही सक्षिप्त प्रकाश डालने की चेप्टा करेंगे। समय-समय पर बुन्देलखड से जो पत्र प्रकाशित हुए और समाप्त हो गये, उन सब का क्रमागत उल्लेख कर सकना सम्भव नहीं। कारण, कितने ही पनो का आज न तो कही कोई इतिहास ही प्राप्य है और न उनका विवरण जानने वालो का ही अस्तित्व है, लेकिन आज के युग में हमें अपनी पत्र-पत्रिकाओ का लेखा-जोखा रखना अत्यन्त आवश्यक है, ताकि विस्मृति के गर्भ में वे भी वैसे ही विलीन न हो जाये, जैसे कि पहले हो गए है।
बुन्देलखड मे पत्र-पत्रिकामो के प्रकाशन का सर्वाधिक श्रेय जवलपुर को ही दिया जा सकता है। वहां से समय-समय पर अनेक पत्र निकले और अपने क्षेत्र में उनकी सेवाएँ पर्याप्त उल्लेखनीय रही। लेकिन हम देखते है कि हमारे प्रान्त में अन्य प्रान्तो की पत्र-पत्रिकाएँ तो सहज ही में अपना प्रचार कर लेती है, ग्राहको के रूप में जनता का सहयोग प्राप्त कर लेती है और उत्तरोत्तर उन्नत होने का मार्ग बना लेती है, लेकिन अपने ही प्रान्त के पत्रो को अपनाना और उन्हें उन्नत करना मानो यहां के निवासियो ने सीखा ही नहीं। छिन्दवाडा से इन पक्तियो के लेखक के सम्पादकत्व में 'स्काउट-मित्र' नामक जिस मासिक पत्र का प्रकाशन श्री रामेश्वर दयाल जी वर्मा ने प्रारम्भ किया था, उसके सिलसिले में हमने अनुभव किया कि हमारे प्रान्तवासी केवल उन पत्रो को ही अपनाने के अभ्यस्त है जो प्रारम्भ से ही भारी-भरकम और ऊंचे दर्जे के हो। वे कदाचित् यह नहीं जानते कि दूसरे प्रान्तो के जिन पयो के वे
आज ग्राहक है, प्रारम्भ में वे भी क्षीणकाय और साधनहीन थे और अत्यन्त साधारण कलेवर लेकर प्रकाशित हुए थे। यदि हमारे प्रान्त-वामी अपने प्रान्त के पत्रो को अपनाने की उदारता दिखावे तो कोई कारण नहीं कि यहा पत्रपत्रिकामो को अकाल ही काल-कवलित हो जाना पडे । खेद की बात है कि इमी त्रुटि के कारण हमारे प्रान्त के अनेको ऐसे पत्र कुछ दिन ही चल कर खत्म हो गये, जो कुछ ही समय में भारत के सर्वश्रेष्ठ पत्रो की श्रेणी मे गिने जा सकते थे। जवलपुर से अभी तक निम्नलिखित ग्यारह पत्रो का प्रकाशन समय-समय पर किया गया, लेकिन उनमें से आज दो-एक के अतिरिक्त किसी का भी अस्तित्व नही रहा।
.१-'शारदा-विनोद'-सेठ श्री गोविन्ददास जी की प्रेरणा से जून १९१५ मे इसका प्रकाशन प्रारम्भ किया गया था। इसके सम्पादक थे मध्यप्रान्त के सुप्रसिद्ध राष्ट्रकर्मी प० नर्मदाप्रसाद जी मिश्र । छोटी-छोटी कहानियो का यह सुन्दर मासिक पत्र था। वार्षिक मूल्य था डेढ रुपया। कुल सत्रह अक इसके निकले। गारदा-भवन-पुस्तकालय, जबलपुर द्वारा इसका प्रकाशन हुआ था।
२-छात्र-सहोदर'-मध्यप्रान्त के सुप्रसिद्ध विद्वान् और इतिहासकार स्वर्गीय प० रघुवरप्रसाद जी द्विवेदी और राष्ट्रकवि श्रीयुत नरसिंहदास जी अग्रवाल 'दास' के सम्पादकत्व में यह पाक्षिक पत्र प्रकाशित होता था। छात्रो के लिए उपादेय सामग्री से पूर्ण रहता था। लेकिन कुछ समय बाद वह भी वन्द हो गया।
३--'श्री शारदा-हिन्दी-ससार के श्रेष्ठ मासिक पत्रो में 'श्री शारदा' का नाम चिरस्मरणीय रहेगा। हिन्दी के धुरन्धर लेखको का सहयोग इसे प्राप्त था। इसकी सी गहन और गम्भीर सामग्री आज के कितने ही श्रेष्ठ मासिक पत्रो में खोजने पर भी न मिलेगी। मध्यप्रान्त के साहित्य में इस पत्रिका की सेवाएँ अपना सानी नही रखती। इसके सम्पादक थे प० नर्मदाप्रसाद जी मिश्र । सेठ गोविन्ददास जी के तत्वावधान में यह पत्रिका राष्ट्रीय हिन्दी मन्दिर, जवलपुर द्वारा प्रकाशित होती थी। इसका वार्षिक मूल्य पांच रुपया था।