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बुन्देलखण्ड का एक महान् संगीतज्ञ
[ उस्ताद आदिलखां] श्री वृन्दावनलाल वर्मा एडवोकेट
"है तो ज़रा पगला, पर उसके गले में सरस्वती विराजमान है ।" ५० गोपालराव घाणेकर ने एक दिन मुझमे कहा।
प० गोपालराव वयोवृद्ध थे। मैं उन्हें 'काका' कहा करता था। सितार बहुत अच्छा बजाते थे। गाते भी वहुत अच्छा थे। दमे के रोगी होने पर भी ख्याल मे वही सुरीली गमक लगाते थे। मै उनका मितार मुनने प्राय जाया करता था। एक दिन उन्होने उस्ताद आदिलखां के गायन की प्रशमा करते हुए उक्त शब्द कहे थे।
उमी दिन मे आदिलखाँ का गाना सुनने के लिए मेरा मन लालायित हो उठा। उन्ही दिनो अगस्त की उजली दुपहरी मे एक दिन मै डॉक्टर सरयूप्रसाद के यहाँ गपगप के लिए जा बैठा। छुट्टी थी। वह वैठकंवाज़ थे और गानेवजाने के वडे शौकीन । उमी ममय उनके यहां एक नवागन्तुक वडी तेजी से आया। मूंछ मुडे चेहरे पर श्रमकण सवेरे की हरियाली पर ओस की बूदो की तरह मोतियो जैसे झिलमिला रहे थे। शरीर का वारीक सफेद कुर्ता पमीने से भीग गया था। नजाकत के साथ सारग की तान छेडता हुआ वह व्यक्ति आया और वैठते ही वातचीत प्रारम्भ कर दी। "डॉक्टर साहब ।" वह बोला, "कलकत्ते गया था। एक वगाली वावू ने कई दिन रोक रक्खा। कई बैठकें हुईं।" चेहरे से लडकपन, अल्हडपन और सरलता टपक रही थी और आँखो से प्रतिभा। मुझे सन्देह । हुआ कि शायद यह आदिलखा हो, परन्तु ऐसा लटका-सा और अल्हड कही इतना महान् सगीतन हो सकता है। यह तो कोई चलतू गवैया होगा। मैने डॉक्टर साहब से सकेत में प्रश्न किया।
उन्होने आश्चर्य के साथ उत्तर दिया, "इनको नहीं जानते ? आदिलखा है। प्रसिद्ध गवैये।"
मैने क्षमा याचना की वृत्ति बना कर कहा, "कभी पहले देखा नहीं। इसलिए पहचान नहीं पाया। तारीफ आपकी ५० गोपालराव जी से अवश्य मुनी है।"
आदिलखां ने पूछा, "आप कौन है ?" डॉक्टर माहब ने मेरा परिचय दे दिया। आदिलखां वोले, "प० गोपालराव जी वहुत जानकार है। वडे सुरीले हैं।"
फिर उन्होने सारग की तानो से उस कमरे को भर-मा दिया। कोई वाजा साथ के लिए न था, परन्तु जान पडता था मानो आदिलखां के स्वर और गले को वाजो की अपेक्षा ही नहीं। इमसे और अधिक परिचय उस दिन मेरा और उनका नहीं हुआ।
कुछ ही समय उपरान्त गोपाल की बगिया मे, जहाँ अखिल भारतवर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन पन्द्रह वर्ष पूर्व हुआ था, गायनवादन की बैठक हुई। एक प्रसिद्ध पखावजी और आदिलखां का मुकावला था। बीच-बीच मे मुझे ऐमा भान होता था कि पखावजी का अनुचित पक्ष किया जा रहा है। जब वैठक समाप्त हुई तो लोग अपने पक्षपात को प्रकट करने लगे। मैने प्रतिवाद किया और आदिलखां की जो कारीगरी ताल के सम्बन्ध में मेरी समझ में आई, अपने प्रतिवाद के प्रतिपादन मे लोगो के सामने पेश की। वहाँ मे हम लोग चले तो आदिलखां साय थे। मार्ग में वातचीत होने लगी। आदिलखां ने पूछा, "आपने सगीत किमसे सीखा ?"
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