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प्रेमी जी की जन्म-भूमि देवरी ग्वालियर के सिन्धिया से उन्हें इसी जिले का पिठौरिया इलाक़ा दिला दिया। श्रीमन्त के वशज आज भी पिठौरिया में रहते है । सन् १८२५ में देवरी में अंगरेजी अमलदारी प्रारम्भ हुई। इस समय मेजर हार्डी कब्जा करने आये थे। उनको इस तहसील के प्रवन्ध के लिए, जो हाल ही में अंगरेजी राज्य में मिलाई गई थी, एक स्थानीय सुयोग्य और अनुभवी श्रादमी की आवश्यकता थी। उनके विशेष आग्रह पर इन पक्तियो के लेखक के पूर्वज, जो पुराने राजा श्रीमन्त के समय के तहसीलदार थे, प० राव साहब चौवे देवरी तहसील के अंगरेजी अमलदारी के सर्वप्रथम तहसीलदार और त्र्यम्बक राव नामक एक महाराष्ट्र मज्जन नायव तहसीलदार बनाये गये। इस तहसील मे गौरझामर. नाहरमौदेवरी. चांवरपाठा और तेंदखेडा परगने शामिल थे। इसका विस्तार दक्षिण में नर्मदा नदी तक था, परन्नु कुछ ममय पश्चात् नरसिंहपुर के अंगरेजी राज्य में आ जाने के कारण तहसीलो में परिवर्तन हुआ और देवरी रहली तहसील में शामिल कर दी गई। सन् १८५७ मे गदर के समय सिंहपुर के गोंड ज़मींदार दुर्जनसिंह ने देवरी के किले पर अविकार कर लिया था, परन्तु उमे किला छोड कर गीघ्र भागना पडा।'
मन् १९४१ ई० की मनुष्य-गणना के अनुसार देवरी की जन-सख्या आठ हजार के करीव है। जन-सख्या के हिमाव से सागर और दमोह को छोड कर देवरी इस जिले का सबसे वडा कस्वा है।
सन् १८६७ ई० में यहाँ म्युनिसिपलिटी कायम की गई थी। वर्तमान समय में इसकी सालाना आमदनी पचीस-तीस हजार रुपया है। यहाँ म्युनिसिपलिटी के दो मिडिल स्कूल है । एक हिन्दी का, दूसरा अंगरेज़ी का । एक मरकारी कन्याशाला भी है।
इन शिक्षणमस्याओ के अतिरिक्त यहाँ पर पुलिस स्टेशन, सिटी पुलिस चौकी, डाकखाना, अस्पताल, ढोरअस्पताल, वन-विभाग, पडाव, सराय और विश्राम-चंगला (रेस्ट हाउस) भी है। पहले यहां रजिस्ट्री और तार आफिम भी थे, परन्तु अब टूट गये है। एक छोटा बाजार भी प्रतिदिन भरता है। साप्ताहिक बाजार शुक्रवार के दिन लगता है, जिममें गल्ले और मवेशियो की अधिक विक्री होती है। सागर-करेली में रेल्वे लाइन निकलने के पहले यहाँ का व्यापार बहुत वढा-चढा था। अव भी यहां बहुत व्यापार होता है। सरोते यहां के प्रसिद्ध है । देवरी पहले राज-म्यान रहा है। इस कारण यहां वैश्य, महाजन, व्यापारी, लुहार, वढई, तेली, तम्बोली, कोरी, कुस्टा, कुम्हार, मुनार, कमेरे, तमेरे, रगरेज, छीपा, कचेरे (कांच की चूडियां बनाने वाले), लखेरे, कुन्देरे (लकडी के खिलौने बनाने वाले), मोची, चित्रकार, जमोदी, (गाने वाले), कडेरे (वास्द आतिशवाजी बनाने वाले), माली, धोवी, नाई, ढीमर आदि सभी जातियो के लोग रहते है। कपडे के रोज़गार के अभाव के कारण यहां के वहु-सख्यक कोरी अहमदावाद और इन्दौर में जा बसे है।
प्रेमीजी का घर वस्ती के बीच से जो मडक गुजरती है, उसी के पश्चिम की ओर लगभग ढाई फलांग की दूरी पर प्रेमीजी का घर है। यह उनकी पैतृक-भूमि है । प्रेमीजी के छोटे भाई नन्हेलाल जी ने उस घर को फिर से बनवा लिया है और वही उसमें रहते है । प्रेमीजी तो वर्ष दो वर्ष में कभी आते है ।
समारोह और महापुरुपो का आगमन देवरी में समय-समय पर अनेक उत्सव होते रहते है और महापुरुषो का आगमन । सन् १९०१ से लेकर कई वर्षों तक 'मीर'-मडल-कवि-समाज के जल्सो की धूम रहती थी। वाहर के विद्वान् भी उनमे सम्मिलित होते थे।
प्रति वर्ष दशहरे के अवसर पर यहां रामलीला या कृष्णलीला हुआ करती थी। सभी वर्ग के लोग उसमें भाग लेते थे। महत्त्व की बात यह है कि रामलीला मे मुसलमान प्रेमपूर्वक सम्मिलित होते थे और ताजियो में हिन्दू
सागर गजेटियर।