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प्रेमीजी की जन्म-भूमि देवरी
श्री शिवसहाय चतुर्वेदी सागर जिले की रहली तहसील मे सागर से चालीस मील दक्षिण की ओर सागर-करेली रोड पर देवरी स्थित है। इसी स्थान को श्री नाथूराम जी प्रेमी को सवत् १९३८ मे जन्म देने का सौभाग्य मिला। यही के हिन्दी मिडिल स्कूल मे १ जनवरी १८८६ ई० को प्रेमी जी का विद्यारम्भ हुआ। स्कूल के दाखिल-खारिज रजिस्टर में उनका सीरियल नम्बर ६०६ है । सन् १८६८ मे पाठकीय परीक्षा (टोन क्लास) पाम करने के पश्चात् उनका नाम स्कूल से खारिज हो गया।
प्राचीन और वर्तमान रूप 'सुखचैन' नामक नदी वस्ती के बीच मे होकर बहती है। उसके दक्षिणी किनारे पर गोड राजाओ का वनवाया हुया एक किला है, जो अब खडहर मात्र रह गया है। इसी किले के पत्थर निकाल कर सन् १८६६ ई० में नदी का पुल बांधा गया था। देवरी से नर्मदा नदी का 'ब्रह्माण घाट' पक्की सडक पर दक्षिण की ओर सत्ताईस मील और करेली स्टेशन पैतीस मील दूर है । यहाँ का भूभाग समुद्र तट से १४०८ फुट ऊँचा है। पानी वरसने का औसत
देवरी पहले एक बडा नगर था। सन् १८१३ ई० मे इस नगर की जन-सख्या तीम हज़ार थी। इसी साल गढाकोटा के राजा मर्दनसिंह के भाई जालमसिंह ने कुछ फौज इकट्ठी करके देवरी घेर ली। उसी समय अकस्मात् नगर में आग लग गई। कहते है कि प्राग जालमसिंह के सैनिको ने लगाई थी। जो हो, दैव दुर्विपाक से उसी समय जोर की हवा चलने लगी। देखते-देखते नगर जल कर भस्म हो गया। नगर के चारो ओर फौज का घेरा था। लोगो को भागने का अवकाश कम ही मिला। वडी मुश्किल से पांच-छ हजार प्रादमी वच सके। शेष सव जल मरे। कहा जाता है कि आग लगने के दिन जालसिह के सिपाहियो ने एक आदमी को मार डाला था, जो हूँका घराने का गहोई वैश्य था। पादमी की मृत्यु होने पर उसकी साध्वीपत्नी अपने पति के शव के साथ सती होने स्मशान जा रही थी कि कुछ लोगो ने उसके सती होने की दृढता पर सन्देह करके उपहास किया। इस पर वह रुष्ट होकर वोली, "मेरा उपहास क्या करते हो । देखो, चार घटे के भीतर क्या होता है ?" कहते है, उसी दिन चार घटे के भीतर देवरी जल कर भस्म हो गई।
सोलहवी शताब्दी के प्रारम्भ मे देवरी नगर गढा-मडले के गोड राजाओ के अधीन था। गौडो में सग्रामसिंह प्रतापी राजा हुआ। उसने अपने बाहुबल से वावन गढ जीते, जिन मे से दस सागर जिले में थे। धामौनी, गढाकोटा, राहतगढ, गढपहरा, रहली, रानगिर, इटावा, खिमलासा, खुरई, शाहगढ और देवरी। सग्रामसिंह ने पचास वर्ष राज्य किया। इसने अपने नाम के सोने के सिक्के चलाये। सग्रामसिंह १५३० के लगभग मर गया। उसके मरने पर इन गढो पर इनके वशजो का अधिकार बना रहा। १७३२ ई० में सागर का अधिकाश भाग पूना के पेशवायो के अधिकार मे आ गया और सम्भवत सन् १७५३ में देवरी इलाका भी उनके अधीन हो गया।
__ सन् १७६७ ई० मे बालाजी बाजीराव पेशवा ने अपने एक सरदार श्रीमन्त धोडू दत्तात्रय को दक्षिण की विजय से प्रसन्न होकर देवरी पचमहाल जागीर में दी थी। ये श्रीमन्त नाय गाँव-नासिक के निवासी थे। जागीर मिलते ही देवरी पा कर रहने लगे और यहाँ के राजा बन गये। धोड़ के पुत्रो ने अपने को सिन्धिया सरकार का आश्रित बना लिया। १८२५ मे अंगरेज़ सरकार ने श्रीमन्त रामचन्द्र राव से देवरी का इलाका ले लिया और इसके बदले