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प्रेमी-प्रभिनदन-प्रय ५८२
बांदकपुर–दमोह से ६ मील पूर्व में जी० आई० पी० का एक स्टेशन है। यहां पर जागेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर है। प्रति वर्ष वसन्त पचमी को बडा मेला भरता है। सामने पार्वती जी का मन्दिर है। महादेव और पार्वती के मन्दिरो में झडे लगे है। कहते है, जिस वर्ष सवा लाख काँवर चढ जाती है उस वर्ष वसन्त पचमी को दोनो झडे झुक कर आपस में मिल जाते है । इस प्रान्त के प्रति वर्ष हजारो श्रद्धालु नर-नारी काँवर मे नर्मदा जी का जल भर कर जागेश्वर महादेव को चढाने ले जाते है । पास ही मे एक वावडी है, जिसे इमरती कहते हैं । मन्दिर का प्रवन्ध वाला जी दीवान के खानदान वालो के सुपुर्द है । मन्दिर की आमदनी का चतुर्थ भाग पुजारी को दिया जाता है। शेष दीवान के वशजो को मिलता है। बहुत दूर-दूर मे यात्री पाते है।
मृगन्नाथ-यह स्थान सागर-करेली रोड पर ५४-५५वें मील पर झिराघाटी से पांच-छ मील पूर्व को है। विन्ध्या के ऊँचे पहाड एक मैदान को तीन ओर से घेरे हुए है । पहाडो के नीचे एक वावडी है, जिसके पास धर्मशाला-सी बनी है। बावडी के आगे पर्वत की चोटी की ओर लगभग एक मील ऊपर चढने पर एक बडी गुफा सामने आती है। इसे मृगन्नाथ की गुफा कहते है । किसी समय इस गुहा में मृगन्नाथ नाम के सिद्ध पुरुष रहते थे। बहुतेरे मनुष्य मृगन्नाथ की गुफा के पास अपना मृगी रोग दूर करने के लिए मानता मनाने आते है।
मदन-महल-गोडराजा मदनसिंह की विभूति मदन-महल जबलपुर के इसी नाम के स्टेशन से लगभग दो मील दूर दक्षिण मे है । यह महल विन्ध्या की टेकडी पर काले शिला-प्रस्तरो के बीच, सघन वृक्ष-कुजो से भरी भूमि पर एक ही अनगढ चट्टान पर बना हुआ है। सामने घुडगाला आदि है।
____ यहां की चट्टानो की शोभा विशेष उल्लेखनीय है । वडे-बडे आकार-प्रकार की विशाल गिलाएँ एक के ऊपर एक तुलनात्मक रूप से बहुत ही छोटे आधार पर सधी हुई है।
गुप्तेश्वर-मदन-महल (जवलपुर) स्टेशन से डेढ-दो मील दक्षिण-पूर्व तथा मदन-महल से लगभग एक मील पूर्व विन्ध्या की टेकडियो में विशालकाय काले शिलाखडो के बीच गुप्तेश्वर महादेव का एक रमणीय देवालय है। यह टेकडी काट कर ही बनाया गया है। मन्दिर प्रशत छतदार और उत्तराभिमुख है । एक वडी शिला को काट कर उसी का शिवलिंग निर्मित किया गया है । मूर्ति के पीछे बहुत ही छोटा जल-स्रोत भी सदा बहता रहता है।
___ सामने सभामडप है । फर्श और दीवारो पर फ्लोर-टाइल्स लगे हुए है। एक कुआं और एक बावडी है । दोनो का पानी दूधिया रग का है।
भेडाघाट-धुआंधार-जवलपुर से नौ मील की दूरी पर है । नर्मदा का सर्वोत्तम रम्य रूप है । नर्मदा के जल-प्रपातो का शिरमौर है । रेवा की महान जलराशि यहाँ चालीस फुट की ऊंचाई से एक अथाह जलकुड में गिरती है। जलकरणो के वादल के बादल उठते है, जिससे कुड से दूर-दूर तक धुंआ सा छाया दीखता है। साथ ही बादलो के गर्जन-सा जोर-शोर सुनाई देता है। थोडे और नीचे की ओर सगमरमर की गगनचुम्बी चट्टानें है, जिनकी शोभा पूर्णिमा की रात्रि को वडी ही मोहक होती है।
बुन्देलखड का मध्यप्रान्तीय विभाग भी समय बुन्देलखड की भांति ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक स्थलो से परिपूर्ण है । सव का उल्लेख इस लेख में करना असम्भव है। देवरी]