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प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ हुए यहां पर भूप भारतीचन्द बुंदेला, शेरशाह को समर सुलाया कर रण-खेला, मधुकरशाह महीप जिन्होने तिलक न छोडा, अकवरशाह समक्ष हुक्म शाही को तोडा,
यह वीरो की रही अनोखी मान भूमि है।
वीर-प्रसू बुंदेलखण्ड वर वान भूमि है। दानवीर वृसिंह देव ने तुला दान में, इक्यासी मन स्वर्ण दे दिया एक पान में, जिसकी वह मधुपुरी साक्ष्य अब भी देती है, नहीं अन्य नृप नाम तुल्यता में लेती है,
ऐसे दानी जने यही वह दान-भूमि है।
सत्त्वमयी वुदेलखण्ड सन्मान-भूमि है। कवि ने कहा "नरेन्द्र, गौड़वाने की गायें, हल में जुत कर विकल बिलपती है अवलायें।" पार्थिव प्रवल पहाड़सिंह सज सुन्दर वारण, चढ़ दौडे ले चमू फिया गी-कष्ट निवारण,
गौ-द्विज-पालक रही सदा जो भूमि है।
सत्यमूर्ति वुदेलखण्ड सत्कर्मभूमि है ॥ हुए यहीं हिंदुवान पूज्य हरदौल बुंदेला, पिया हलाहल न की भ्रात-इच्छा-अवहेला, पुजते है वे देवरूप प्रत्येक ग्राम में, है लोगो की भक्ति भाव हरदौल नाम में,
यही हमारी हरी भरी हर देव भूमि है।
वदनीय बुंदेलखण्ड नर देव भूमि है। थे चम्पत विख्यात हुए सुत छत्रसाल से, शत्रु जनों के लिये सिद्ध जो हुए काल-से, जिन्हें देखकर वीर उपासक कविवर भूषण, भूल गये थे शिवाबावनी के आभूषण, ___ यह स्वतत्रता-सिद्ध हेतु कटिबद्ध भूमि है।
सङ्गरार्थ बुदेलखण्ड सन्नद्ध भूमि है ॥ यहाँ वीर महाराज देव से जन जोडना, काल सर्प की पूंछ पकड़ कर था मरोडना, मानी प्रान अमान बान पर बिगड पडे थे, बना राछरा शर सभट जिस भाति लडे थे,
रजपूती में रंगी सदा जो सुभट भूमि है। वीर्यमयो बुदेलखण्ड यह विकट भूमि है।