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प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ
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लदन में प्राप्य इन सब अखवारात की नकलें सर यदुनाथ सरकार ने करवाई थी और अपना सुप्रसिद्ध प्रय 'हिस्ट्री प्रॉव औरराजेब' (जिन्द १-५) लिखते समय उन्होने इन अखवारात का पूरा प्रयोग किया था। सर यदुनाथ सरकार के संग्रह में प्राप्य इन सव अखबारात को नकलें मैने अपने निजी पुस्तकालय के लिए भी करवाई है।
कर्नल टॉड अखवारात के सव वडल नही ले जा सका। कई एक आज भी जयपुर-राज्य के सग्रह में विद्यमान है। वरसो के प्रयत्न के बाद मुझे इन वाकी रहे अखबारात की भी बहुत-सी नकलें जयपुर-राज्य की कृपा तथा सहयोग से प्राप्त हुई है । इस प्रकार औरगजेब के शासनकाल के प्राय सब प्राप्य अखवारात का संग्रह हमारे पुस्तकालय में हो गया है। हजारो पृष्ठो में सगृहीत ये अखबारात बुन्देलखण्ड के तत्कालीन इतिहास पर बहुत प्रकाश डालते हैं। सव महत्वपूर्ण घटनापो का उल्लेख हमें वहां मिलता है। छत्रसाल के विद्रोह, उसकी भाग-दौड, उसके हमलो, लूट-मार और युद्धो का विस्तृत वर्णन और उल्लेख इन अखबारात मे यत्र-तत्र पाता है।
जयपुर-राज्य में प्राप्य अखबारात का यह सग्रह औरगजेव की मृत्यु के साथ ही समाप्त नही हो जाता है, अपितु उसके उत्तराधिकारियो के समय में फरुखशियर के अतिम दिनो तक के अखवारात भी हमें वहां प्राप्त होते है । औरगजेब के उत्तराधिकारियो के काल के इन अखवारात की नकलें कोई तीन हजार पृष्ठो में हुई है। इन अखवारात का अध्ययन करने से हमे ज्ञात होता है कि इन दस वरसो में छत्रसाल प्राय मुगलो के माथ महयोग ही करते रहे।
इन अखवारात के अतिरिक्त हमें जयपुर-राज्य के सग्रह से कई एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पत्र-हस्व-उलहुक्म'-आदि भी प्राप्त हुए है। उनसे भी इस काल के बुन्देलखण्ड के इतिहास की कई एक महत्वपूर्ण परन्तु अब तक अज्ञात घटनामो का पता चलता है । इस प्रकार के पत्रो आदि की कई नकले पहिले सर यदुनाथ सरकार ने प्राप्त की थी, जो मोटी-मोटी इक्कीस जिल्दो में सगृहीत है। पिछले वरसो मे इस प्रकार की और भी नई सामग्री प्राप्त हुई है, जिनकी नकले उसी प्रकार की दस और जिल्दो मे समाप्त हुई।
राजस्थानी या पुरानी हिंदी में लिखे गए कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पत्र भी जयपुर-राज्य के संग्रह में हमे मिले है। इन पत्रो में जहां हमे शिवाजी की दिल्ली-यात्रा, वहां औरगजेब के दरवार में उनका उपस्थित होना तथा दिल्ली से चुपके से भाग खडे होने का विशद विवरण प्राप्त होता है। छत्रसाल की बुन्देलखण्ड मे धूमधाम का उल्लेख भी हम यत्र-तत्र पाते है। छ मोटी-मोटी जिल्दो में ये राजस्थानी पत्र सग्रहीत है।
अखवारात तथा जयपुर-राज्य से प्राप्त इन पत्र-सग्रहो के अतिरिक्त औरगजेब के शामनकाल के अन्य पत्रसग्रह भी हमे मिलते है, जिनमे से कुछ मेंतोप्रधानतया औरगजेब द्वारा लिखे हुए पत्र ही है। औरगजेव की गणना ससार के सुप्रसिद्ध पत्र-लेखको में की जानी चाहिए। अपने विशाल साम्राज्य के दूरस्थ प्रान्तो और प्रदेशो के शासको तथा सूबेदारो अथवा विभिन्न चढाइयो पर जाने वाले सेनापतियो को छोटी-छोटी बातो पर भी वह विस्तृत प्रादेश देता था। इस कारण औरगजेब के पत्रो मे हमें तत्कालीन घटनाओ का बहुत ही प्रामाणिक वर्णन मिलता है। औरगजेब के पत्रो के कई एक सग्रह हमें मिलते है। दो सग्रह 'अहकाम-इ-आलमगीरी तथा 'एक्कात-इ-आलमगीरी' नाम से छपकर प्रकाशित भी हुए है। परन्तु तीन महत्वपूर्ण सग्रह अभी तक दुष्प्राप्य है एव उनकी हस्तलिखित प्रतियां भी भारत के कुछ पुस्तकालयो मे ही देखने को मिलती है। ये तीन सग्रह है -'प्रादाब-इ-पालमगीरी', इनायतुल्ला खां द्वारा सगृहीत 'अहकाम-इ-आलमगीरी' और 'कालिमात-इ-तैम्यिवात' । इन तीनो सग्रहो की नकले हमारे निजी संग्रह में विद्यमान है। चम्पतराय तथा छत्रसाल की जीवनियो के लेखको को चाहिए कि इन पत्रसग्रहो का सूक्ष्म अध्ययन कर उनसे अत्यावश्यक ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त करें।
२-मुहम्मद बगश और बुन्देलखण्ड छत्रसाल बुन्देला के जीवन के अन्तिम दस-बारह वर्ष मुहम्मद वगश का सामना करते हुए ही वीते। मुहम्मद वगण को सन् १७१६ ई० में पहली वार वुन्देलखड में जागीर मिली थी। तब से वुन्देलखण्ड मे इस विरोध एव युद्ध का