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प्रेमी-अभिनंदन-ग्रंथ सिन्धिया के पत्र-व्यवहार के भी तीन विभिन्न संग्रह अवतक प्रकाशित हुए है। 'वकील-इ-मुतलक' की हैसियत से उनका समस्त उत्तरी भारत से सवध रहा है। उनके पत्रो मे भी बुन्देलखण्ड के मामलो का उल्लेख मिलता है। हिम्मतवहादुर और अली वहादुर का सिंधिया के साथ-ही-साथ बुन्देलखण्ड के साथ अभिन्न सवध रहा है।
अत मे गुलगुले दफ्तर का उल्लेख किये विना नहीं रह सकते। मराठो के वकीलो का यह घराना सन् १७३८ ई० से कोटा मे वस गया और इस प्रदेश-सबधी सारा कारवार करता रहा। गुलगुले घराने के इस दफ्तर में भी बुन्देलखण्ड-सवयी बहुत-सी उपयोगी सामग्री प्राप्त हो सकती है। ग्वालियर के सरदार प्रानन्दराव भाऊ साहब फालके इस दफ्तर को क्रमश प्रकाशित कर रहे है। इस दफ्तर के सव पत्रो की नकले हमारे निजी सग्रह में भी विद्यमान है।
मराठी भाषा में प्रकाशित एव प्राप्य इस अगाध ऐतिहासिक सामग्री का पूर्ण अध्ययन किए बिना अठारहवी गताब्दी का वुन्देलखण्ड का इतिहास नही लिखा जा मकता । यह आवश्यक है कि बुन्देलखण्ड के इतिहास के विद्यार्थी मराठी भाषा का अध्ययन कर इस सामग्री की भलीभाति छानवीन कर इस प्रदेश के तत्कालीन इतिहास को पूर्णतया क्रमवद्ध रूप मे समुपस्थित करे।
४-फारसी अखबार (१७७९-१८१८ ई०) और उनका महत्व मराठी भाषा में लिखे गए पत्र एव अन्य सामग्री का ऊपर उल्लेख कर चुके हैं, परतु ज्यो-ज्यो मराठो का राज्य विशृखलित होने लगा और जैसे-जैसे मराठा सरदार अधिक शक्तिशाली होकर अर्द्ध स्वतत्र स्वाधीन गासक बनने लगे, पूना भेजे जानेवाले पत्रो की संख्या कम होने लगी। उन सुदूर प्रदेशो की ओर ध्यान भी प्राय कम दिया जाता था। उत्तरी भारत में उस समय प्रत्येक महत्वपूर्ण राजनैतिक केन्द्र में आसपास के स्थानो से प्राप्त खवरो को एकत्रित कर अखबार तैयार कर दूर-दूर प्रदेशो में भेजने की प्रथा चल निकली थी। सन् १७७५ ई० के वाद ऐसे अखवारो का महत्व बढ गया था। यही कारण था कि उन दिनो इन अखवारो के सग्रह तैयार किए जाने लगे थे। ये अखबार सन् १८१८ ई० के अत तक प्रचलित रहे और मालवा, राजपूताना तथा इन प्रदेशो में अंग्रेजो की स्थापना होने के बाद ही इनका अत हुआ। ऐसे अखवारो के छोटे-मोटे कोई पद्रह-बीम सग्रह हमे युरोपीय पुस्तकालयो के हस्तलिखित ग्रयो के सग्रहो मे मिलते है। ये अखबार फारसी मे लिखे जाते थे। अवतक अखवारो के जो सग्रह प्राप्त हुए हैं, वे सन् १७७६ ई० के बाद के है और सन् १८१८ ई० के अत तक मिलते है। कोई चालीस वर्षों के इस लवे काल में यत्रतत्र कई वरस ऐसे भी निकले है, जिनके कोई भी अखवार अब तक प्राप्त नहीं हो सके है, जैसे १७५८-१७६२,१७६८-१८०३, १८०६१८०८ ई० । प्राप्य अखबार कोई दस हजार हस्तलिखित पृष्ठो में जाकर सपूर्ण हुए है । अव तक जितने भी ऐसे अखवार-सग्रहो का पता लगा है, उन सब की नकले की जाकर हमारे निजी सग्रह में सुरक्षित रक्खी गई है।
इसी प्रकार के फारसी अखवारो का एक बहुत बडा सग्रह पूना के एलियनेशन आफिस मे सुरक्षित है । इस सग्रह मे कुल मिलाकर कोई छ-सात हजार फारसी अखबार है। यद्यपि इनमे से कुछ अखवार ईसा की अठारहवी शताब्दी के भी है, तथापि इस सग्रह मे प्रधानतया सव अखवार सन् १८०५ ई० के वाद के ही है । सन् १८१८ ई० से वाद के कोई अखवार नहीं मिलते। इन सव अखबारो के फोटो हमारे सग्रह मे विद्यमान है।।
ये अखबार जो उत्तरी भारत के महत्वपूर्ण केन्द्रो या उत्तरी भारत से सम्बद्ध महत्वपूर्ण व्यक्तियो के केम्पो से लिखे जाते थे, उन सव में उत्तरी भारत के प्राय सब प्रदेशो से प्राप्त सारी महत्वपूर्ण खवरे लिखी जाती थी। वुन्देलखण्ड यो तो पेशवा के अधिकार में समझा जाता था, परन्तु सिन्धिया, होलकर एव भोसले आदि सरदारो को भी बुन्देलखण्ड के मामलो में बहुत दिलचस्पी थी । अतएव इन अखवारो में वुन्देलखण्ड के मामलो का यत्र-तत्र उल्लेख होना स्वाभाविक ही है। अठारहवी शताब्दी के प्रतिम वीस वर्षों का इतिहास लिखने में इन अखवारोसे पर्याप्त सामग्री प्राप्त होगी।