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बुन्देलखण्ड के इतिहास की कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री
५७१ प्रारभ होता है। तत्कालीन ऐतिहासिक फारसी ग्रयो में वगश के युद्धो का पर्याप्त विवरण मिलता है। बंगश द्वारा लिखे गए पत्रो का एक वृहत् सग्रह 'खाजिस्ता-इ-कलाम' शीर्षक प्राप्य है । पिछले मुगलो के सुप्रसिद्ध इतिहासकार विलियम इविन ने उक्त फारसी ग्रयो के आधार पर वगश के घराने का विस्तृत इतिहास लिखा था, जिसमें वुन्देलखड - में घटने वाली तत्कालीन घटनाओ का प्रामाणिक वर्णन दिया है। इविन कृत यह ग्रय 'हिस्ट्री ऑव वगश नवाज कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी के जरनल में सन् १८७८-१८७६ ई० में प्रकाशित हुआ था और उसके अलग रिप्रिंट्स भी तव प्राप्य थे। परन्तु आज यह पुस्तक अलभ्य है। बुन्देलखण्ड के इतिहास के लिए यह अथ बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि कोई परिश्रमी इतिहासकार 'खाजिस्ता-इ-कलाम का पूर्ण अध्ययन कर सके तो उससे बुन्देलखण्ड सववी कई एक छोटी-छोटी, पर महत्वपूर्ण वातो पर वहुत-कुछ जानकारी प्राप्त हो सकेगी। इस फारसी अन्य की केवल एक ही प्रति का अव तक पता लगा है और वह इडिया आफ़िस लाइब्रेरी, लदन में सुरक्षित है। उसकी एक नकल हमने निजी पुस्तकालय के लिए करवाई थी और वह प्राप्य है ।
३-मराठे और बुन्देलखण्ड सन् १८७०-७१ ई० के जाडे में छत्रसाल बुन्देला दक्षिण में जाकर शिवाजी से मिला था, परन्तु उसके बाद कोई पचास-पचपन वर्ष तक मराठो का बुन्देलखण्ड के साथ कोई विशेष सवव नही रहा । सन् १७१५ ई० में तो जव सवाई जयसिंह मालवा पर आक्रमण करने वाले मराठो का सामना करने को वढा तव छत्रसाल जयसिंह के साथ थे और पिलसुद के युद्ध में उन्होने मराठो को बुरी तरह से हराया था। किन्तु सन् १७२८ ई० के अन्तिम महीनो में वाजीराव ने बुन्देलखण्ड पर चढाई की और वगश का सामना करने में छत्रसाल की सहायता की। मराठो की बुन्देलखण्ड पर चढ़ाई एव वहां उनकी कार्यवाही का विस्तृत विवरण हमें मराठी ग्रथो में देखने को मिलता है। तत्कालीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पत्रो के कई सग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनका अध्ययन किए विना बुन्देलखण्ड का इतिहास सपूर्ण नहीं हो सकता। बुन्देलखण्ड के प्रति मराठो की नीति, छत्रसाल के प्रति पेशवा बाजीराव की भावना आदि को लेकर अनेकानेक दन्तकथाएँ और कपोलकल्पित कहानियाँ वुन्देलखण्ड मे प्रचलित है । मराठी ऐतिहासिक पत्रो के पूर्ण अध्ययन के बाद इनमें से कितनी मिथ्या सावित होगी, यह सरलतापूर्वक नही कहा जा सकता, परन्तु मेरा विश्वास है कि मराठी भाषा में प्राप्य इस सामग्री के पूर्ण अध्ययन के अनन्तर मराठो की नीति के सवध में हमें अपने पुराने विश्वास एव विचार बहुत-कुछ बदलने पडेंगे।
मराठो के इतिहास से सम्बद्ध जितनी सामग्री मराठी भाषा-भाषियो ने प्रकाशित की है, उसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाना पडता है । ऐतिहासिक खोज के लिए जिस तत्परता, लगन और निस्वार्थता के साथ महाराष्ट्र के विद्वानो ने प्रयत्न किया और जिन-जिन कठिनाइयो को सहन करते हुए वे निरन्तर अपने कार्य में लगे रहे, वह अन्य प्रान्त-वासियो के लिए अनुकरणीय आदर्श है । पेशवा के दफ्तर में प्राप्य सामग्री की कुछ जिल्द वीसवी शताब्दी के प्रारम में वाड, पारसनिस आदि इतिहास-प्रेमियो ने प्रकाशित की थी। शेष सामग्री की देख-भाल कर सर देसाई जी के सपादन में कोई पैतालीस जिल्दे ववई की प्रान्तीय सरकारने प्रकाशित करवाई है। इन जिल्दो में बुन्देलखण्ड में मराठो की कार्यवाही, उनकी नीति तथा उनकी विभिन्न चढाइयो आदि सवधी सैकडो पत्र प्रकाशित हुए। गोरेलाल तिवारीकृत इतिहास के प्रकाशित होने के बाद ही यह सामग्री प्रकाश मे आई थी। अत वे इससे लाभ नही उठा सके।
राजवाडे द्वारा सपादित 'मराठ्यांच इतिहासाची साधनेन' की कुछ जिल्दो में भी यत्र-तत्र वुन्देलखण्ड के इतिहास से सम्बद्ध पत्र प्रकाशित हुए हैं। पारसनिस-कृत 'श्री ब्रह्मेन्द्र स्वामी चरित्र में भी वाजीराव की बुन्देलखण्ड पर चढाई सबवी कई पत्र छपे है । उसी प्रकार 'इतिहास-सग्रह माला में 'ऐतिहासिक किरकोल प्रकरणे' शीर्षक ग्रथ में पारसनिस ने अलीबहादुर का सन् १७६० ई० तक का पत्र-व्यवहार प्रकाशित किया है । खरे द्वारा सपादित 'ऐतिहासिक पत्र सग्रह की चौदह जिल्दो में भी यत्र-तत्र बुन्देलखण्ड-सवधी उल्लेख ढूढ़ निकालने होगे। महादजी