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बुन्देलखण्ड के दर्शनीय स्थल
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(अ) मातगेश्वर - शिव का मंदिर है । इसमें वडा भारी शिवलिंग चबूतरे पर स्थित है, जिसके चारो ओर कलामय स्तभ हैं । उन पर ऊपर की शिखर की छत उलटे कमल की तरह बनी है।
(a) इसके निकट लक्ष्मणजी का मंदिर है । लक्ष्मण जी के हाथ कटे हुए है । मूर्ति श्वेत पाषाण की अति सुन्दर है और विजयनगर के राजाओ का सा मुकुट पहिने हैं । इस मंदिर की ऊँची जगती के चारो कोनो पर छोटे-छोटे मंदिर है । उनमे एक में सरस्वती की-सी मूर्ति मालूम पडती है, जो बडी सुन्दर, सोम्य और भावपूर्ण है ।
(स) इसी के उपरान्त कुछ दूरी पर एक मंदिर है, जो भरतजी का मंदिर कहलाता है । भगवतदयाल जी ने इसे सूर्य का मंदिर माना है । उन्होने एक ग्यारह शिरवाली विष्णु की मूर्ति का भी उल्लेख किया है ।
(द) एक दूसरा शिव का मंदिर है। यह भी सुन्दर है । इसमें शिलालेख है । सवत् १०५६ वि० का यह माना जाता है । इसमें नानुक से धग पर्यन्त नरेशो की वशावलि है । घग के द्वारा मंदिर निर्माण करने का वर्णन है । धग ने नीलम के शिवलिंग की मूर्ति की स्थापना की थी। दूसरा शिलालेख इस मंदिर का नही, वैद्यनाथ मंदिर का है, जो ध्वस हो चुका है । सवत् १०५८ विक्रम का। इसमे किसी कोक्कल द्वारा ग्राम- निर्माण का उल्लेख है ।
इस मंदिर के सामने नदी की मूर्ति छोटे से मंदिर में है। इसको भूल से स्व० भगवतदयालजी ने मसाले की वनी माना है | वास्तव में एक जगह उसका पैर का मसाला उखड गया है । नीचे पत्थर निकल आया है। उससे प्रकट है कि वह पालिश अधिक गहरी नही । भीतर पत्थर है । मौर्यकालीन पालिश की तरह की पालिश है ।
(इ) देवी का मंदिर, जो काली का कहलाता है । मूर्ति की अब भी पूजा होती है ।
(क) खजरिया महादेव- -यह सबसे बडा शिव जी का मंदिर है । मदिरो के पीछे की ओर है। मूर्तियो की हर जगह भरमार है ।
(ख) बाराह की मूर्ति --- जिसमें सहस्रो देवता वने है । पालिश सुन्दर है ।
(ग) हनुमान की एक विशाल मूर्ति सबसे पहले सडक के पास ही स्थित है । इसमें एक लेख होना कहा जाता है, जो ε२२ ई० का माना जाता है । यह खजुराहो में मिले लेखो में सबसे प्राचीन है ।
(घ) एक जगह मूर्तियो को एक घेरे में रख दिया गया है। इसमे एक नागकन्या की मूर्ति विलक्षण है । यह मंदिर चदेल-काल के है, जव कि यशोवर्मन और धग का यहाँ पर राज्य था । यशोवर्मन का राज्य काश्मीर से नर्मदा तक फैला था और धग का भी वडा विस्तृत राज्य था । घग की सेना भटिंडा के राजा जयपाल के साथ थी, जब वह सुबुक्तगीन से लड़ा था और फिर महमूद गजनी ने इस जिझौति प्रान्त पर १००८ या ६ में हमला किया । उस समय अनन्दपाल (जयपाल का पुत्र) राज्य करता था । युद्ध हुआ । हिंदुओ की सेना जीत ही चुकी थी कि अनन्दपाल का हाथी विगड गया, सेना में गडवड मच गई । वह हाथी फिर ठीक नही हुआ । इस समय कालिंजर का राजा गन्ड था । चन्देल देश की धार्मिक राजधानी खजुराहो, सामरिक कालिंजर और शासनिक महोबा थी । कन्नौज के राजा ने १०१९ ई० में वारहवें आक्रमण पर महमूद का शासन स्वीकार किया । गन्ड ने अपने पुत्र विद्याधर को देशद्रोही के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा । महमूद फिर बदला लेने आया । हमीरपुर गजेटियर में लिखा है कि धग लाखो सेना के होते रात को उठकर भाग गया । सन् १०२२ ई० मे महमूद फिर आया । कालिंजर पर, कहते हैं, घग ने कायरता दिखाई और सब कुछ देकर पद्रह किलो पर शासन रहने को महमूद से अभिषेक लिया ।
३. कालिंजर, अजयगढ, मनियागढ, मरफा, वारीगढ, मौदहा, गढ और मैहर या काल्पी इन आठ गढो
के चन्देल जनश्रुति के आधार पर स्वामी थे । इनमें कालिंजर व अजयगढ प्रसिद्ध है ।
(अ) कालिजर - चन्द्र ब्रह्मा ने करीब १०० वर्ष हुए, चन्देल राज्य स्थापित करके कालिंजर व महोवा बसाया । बाँदा से नरैनी २२ मील, पक्की सडक फिर कच्ची पडती है । नरैनी तक लारी चल तो है । पहाड के ऊपर कालिंजर का किला स्थित है । वहाँ पहुँचने को कई दरवाजे पडते हैं, जिनका मुस्लिम काल में नाम परिवर्तन