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प्रेमी-पभिनदन-प्रय
नजनवित्त वल्लभ और पपनदिपत्रविनत मूल नत्व तया मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित किये हैं। भट्ट भकला विरचित रत्नन्यसार का मग पनुवाद अनरुदेवी धर्मप्पा पासाडे नामक लेखिका ने किया है। १० पात्र जिनदन उपाध्याय ने हादमानुप्रेना अध्यात्म-विपप के उच्चकोटि के गव 'परमात्म-प्रकाश' तया कन्नड भारतवैभव का अनुवाद करके नागे को भूषित किया है।
जनधनको उदारता 'नामक स्वाय की रचना, प्रमात कवि दत्ताय रणदेव के सुपर धो प्रभाकरने को पौर वह कर्मवार वाला नाव धावने नागली नाना पानिक उदारवी ने पकानित की। इन गप ने जैनागम के मान जातिभेदादि कृत्रिम वचन न मान र पहिले कई विवाह हुए, उनके उदाहरण देकर जैन धर्म का दृष्टिकोण कैग विगाल और ममतावादी पा इल्का सुन्दर विवेचन क्यिा गया है। कूपमडूक्वृत्ति के पाठको पर इन अप का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
श्री चदप्पा जिनप्पा हाडोले नानक पगतिशील वृत्ति के लेखक वै० चपतराय जी के जनवर्म को प्राचीनता नानक पाल्भापा के वित्ताप्र तथा ऐतिहानिक जानकारी ने परिपूर्ण व्यका पनुवाद कर मगठी नाहित्य को नज्जिन यिा है।
जैनो ने प्रसिद्ध इतिहान लेखक धो वा० मुल पाटोल है। आपने दक्षिण भारत , जैन पौर जैन धर्म का नक्षिप्त इतिहान (सन् १९८) गदि राय नवीन गतो में लिखे है । यि लेखक के गुरु और भूतपूर्व प्रमोश्री अण्णासाहब
ने अपनी विद्वत्तापूर्ण भूनिका ने राजनीति, साहित्य, दर्शन प्रादि विपनो में जनमर्म ने क्या कार्य किया है, मस्त प्राकृत कन्नड, आदि भापायों में जनधान्यायियों ने तिने बडे पसन्म किये है, यह सब इन गय को पटकर मनने पाता है ऐलग पर्मिमत दिया है। उपर्युक्त पुन्नक नया भावान महावीर का महावीरत्व' नामक पक्ष उनके अध्यपन का नाशी है । सो पाटील का पिलत ज्ञान, नून पवलोक्न बना विचान्गली तथा मननगील वृत्ति पादिगण उनके राय ने सप्तहोते है । पाजनक जनो का इतिहास पर्जन लेखको ने बहुन विकृत रूप में जनता के मानने रक्खा है। उनके लिए उत्तर रूप में पाटीन का इतिहास बहुत उयुक्त है। अापने समतभद्र के श्रावकाचार के माधार पर एक मालोचनात्मक पर प्रकासित किया है, वह भी बहुत लोकप्रिय हुमा है। उम गय में अनेक प्रनलित प्रश्नो नया रूडियो पर पाडित्यपूर्णतया निर्भीक विवेचन मिलता है । इन गय में जैन धर्म की नाहकता, उदा ता, सत्यापृश्यता जाति, दया नमता, बत्व आदि बातो का विचार किया गया है। विचार-पद्धति तुलनात्मक पौर सोपपत्तिक है।
पन्तुत लेखक ने नो निस्तलिन्वित रचनाएं की है (१) जनवाद (मन् १९६०)।
(२) पमितगति पाचार्य कृत सामायिक पा० (मराठी अनुवाद) तथा अन्य दो नामायिक पाठो का सविस्तर पत्वाद।
(s) पूज्यपाद देवनन्दि कृत नमाविशतक (मराठी अनुवाद-प० प्रभाचद की टीका नहित) प्रथम आवृत्ति (१९६१) तथा तीरी मावृत्ति (१९३८) । दूसरी आवृत्ति में डॉ० प० ल० वैद्य को विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना है।
(४) श्री जिनमेनाचार्यकृत पादिपुराण के भागार पर स्वतत्र रोति ने रचित 'महापुराणामृत ।'
(५) भगवान न्निनेन तपा गुणभद्र के चन्त्रि। यहचरितपा नायूरामप्रेमी के 'जैनहितपी' में विद्वद्रलमाता नानक तेजो का अनुवाद है। इन दोनो ही चरित्रों में पात्मज्ञानी कवीद्र की दोनो कृतियो ने उद्धरण देकर उनका विश्वसाहित्यिको स्थान निर्धारित किया गया है।
() "जन वर्म पर अनक्षिप्त विधान तया उनका निरसन (१९३८) । इस ग्य की भूमिका जैन इतिहासकार वा० मुल पाटील ने लिखी है।
(७) “जनदर्शन की तुलनालक विशेषताएँ।