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मराठी का कोश - साहित्य
श्री प्रा० वा० ना० मुडी
वैदिक वाड्मय के अध्ययनार्थ जैसे निघटु, वैसे ही होमर आदि के अध्ययन के लिए 'ग्लासरीज' की रचनाएँ ईसा पूर्व ७००-८०० के आसपास हुई । कोग निर्माण की यह वृत्ति इतनी पुरानी हैं । केवल संस्कृत के ही कोग लें तो आफ्रंट की सूची के अनुसार तीन मौ से अधिक प्राचीन संस्कृत-कोश उपलब्ध हैं । कोश निर्माण अत्यंत कष्टमय और शुष्क कार्य है, तयापि साहित्य के रसास्वादन के लिए वह अत्यत उपादेय वस्तु है । साहित्य का वह एक प्र अग है । साहित्य को लोकगगा के प्रवल प्रवाह में अक्षररूप में टिकाये रखने का श्रेय सर्वांगत इन कोशो को है । यह
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भी लें कि पहिले मनुष्य फिर नियमन, पहिले नदी, फिर घाट, उसी प्रकार से पहिले भाषा फिर कोग का निर्माण होता है तो भी उनका मूल्य कम नही किया जा सकता ।
अमरकोशादि संस्कृत कोशो का आदर्श सामने रखकर मराठी के प्रारंभिक कोग बने । 'महानुभाव' पथ के साहित्य का क्षेत्र अभी हाल मे ही खुला है और उसमे अभी मशोवन चल रहे हैं । महानुभावियो ने पद्य के समान गद्य मे भी वैद्यक-ज्योतिप-व्याकरण-स्मरणिका आदि ग्रंथ लिखे थे। कुछ महानुभावो ने सकेतलिपि का बोव कराने वाले एक ग्रथ को रचना की । यही मराठो का प्राचीनतम कोश है । श्री राजवाडे ने ज्ञानेश्वर आदि सत कवियो को सहज - सुगम बनाने के लिए यादवकाल के कुछ कोग देखे । उन कोशो में और भी प्राचीन कोशो का उल्लेख है, ऐसा कहा जाता है । परतु ये सब कोश अभी तक अनुपलब्ध ही है । इस प्रारंभिक कोगोल्लेख के पश्चात् शिवा जो के समय के 'राज्यव्यवहारकोश' तक कोई कोश नही मिलता । यह मध्यम-काल धार्मिकता और श्रद्धा का होने के कारण संभव है कि वैज्ञानिक विवेचन को सहायता देनेवाले कोग जैसे साहित्य की इस काल में आवश्यकता विशेष न रही हो । शिवाजी की राजव्यवहार कुशलवुद्धि को ऐमे एक कोश को आवश्यकता जान पडी होगी, परतु उनकी प्रेरणा से बने इस कोग के पश्चात् एक सदी तक कोई कोग नहीं वना । पेशवाई के प्रतिम दिनो में अग्रेजी कोगो की प्रेरणा से कोशरचना आरंभ हो गई । अग्रेजो ने पराजित राष्ट्र की सभी अच्छाइयो को आत्मसात् करने के हेतु भारतीय भाषा और सस्कृति का अध्ययन आरंभ किया। मिशनरी इस कार्य मे सर्वप्रथम अग्रसर हुआ । कलकत्ता के पास मीरामपुर मिशन के 'शिलाप्रेम' पर मराठी का व्याकरण छोपा गया । १५१० में मोडी लिपि मे मराठी अग्रेजी कोश बनाया गया । प० विद्यानाथ श्रथवा वैजनाथ शर्मा नामक नागपुर के भोसले के कलकत्ता निवासी वकील ने इमे तैयार किया । आधुनिक मराठी साहित्य में अग्रेजी के ससर्ग से निर्मित यह प्रथम कोण है । डॉ० विलियम केरी ने अपना धर्महित और देशहित चाहे साध्य किया हो, परतु मराठी भाषा उनकी ऋणी रहेगी । उनको ही प्रेरणा से मुद्रित ग्रंथो की सख्या मराठो मे वढने लगी । उपरोल्लिखित प्रथम कोग के १४ वर्ष बाद १८२४ ईस्वी में कर्नल केनेडो ने एक कोश बनाया। अभी भी कोश निर्माण मे दृष्टि केवल सुविधा को ही थी । भारतीय महाराष्ट्रीय और आग्लमिशनरियो के बीच मे परम्पर व्यवहार कैसे अधिक सुगमता से हो सकेंगे, यही प्रवान उद्देश्य इन कोगो का था । सभव है कि शिवा जी काल और अग्रेजो के अभ्युदय काल के बीच में भी कुछ कोश वर्ने हो, जो मराठी - फारसी, फारसी-मराठी, मराठी पोर्चुगीज, पोर्चुगीज- मराठी इत्यादि रूप में हो और जो राजदरवारो में दुभाषिये के काम आते रहे हो और उनकी ही सहायता से ये मुद्रित कोश बनते रहे हो । परतु इन कोशो को श्रमतोषजनक मान कर ई० १८२६ मे पूर्णत भारतीय विद्वानों की समिति द्वारा निर्मित एक कोश रचा गया । इम समिति मे प० छगवे, फडके, जोशी, शुक्ल और परशराम पत गोडबोले प्रमुख थे । यह कोग पहले