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रासयुग के गुजराती-साहित्य की झलक
५४५ • राजशेखर ने चौदहवी सदी के सन्धिकाल में 'नेमिनाथ फागु' नामक फागु-काव्य का निर्माण किया था। इसमें भी, नायक और नायिका नेमिनाथ व राजिमती है। कवि उसमे पूर्ण रूप से चमक उठता है
राइमए सम तिहु भुवणि अवर न अत्यह नारे। मोहणविल्लि नवल्लडीय उप्पनीय ससारे ॥७॥ अह सामल कोमल केशपास किरि मोरकलाउ । प्रद्धचद समु भालु मयणु पोसइ भडवाउ । वकुडियालीय मुंहडियहँ भरि भुवणु भमाडइ । लाडी लोयण लह कुडलइ सुर सग्गह पाडइ ॥८॥ किरि सिसिबिंव कपोल कन्नहिंडोल फुरता । नासावसा गरुडचंचु वाडिमफल वता। प्रहरपवाल तिरेह क राजलसर रूडउ । जाणु वीणु रणरणइ जाणु कोइल टह कडलउ ॥६॥ सरस तरल भुयवल्लरिय सिहण पीणघणतुंग। उदरदेसि लकाउलि य सोहइ तिवल-तुरग ॥१०॥ अह कोमल विमल नियंबबिंब किरि गंगा पुलिणा। करि कर ऊरि हरिण जघ पल्लव कर चरणा ॥ मलपति चालति वेलडीय हसला हरावइ ।
सझारागु अकालि बाल नह किरणि करावइ ॥११॥ तीन लोक में राजिमती जैसी स्त्री नहीं है, मानो ससार में अद्भुत मोहन बेल प्रकट हुई है। उसके श्याम रग के कोमल केश मानो मयूर के पिच्छ कलाप हैं। अर्ध-चन्द्र जैसा उसका ललाट वलवान चरणो वाले कामदेव का पोषण करता है। उसकी तिरछी भौंए ससार को उन्मत्त बनाती है और आँखो के मधुर सकेतो से वह स्वर्ग के देवो को भी आकृष्ट कर लेती है। उसके कपोल कान रूपी झूले पर झूलते हुए चन्द्रमा के विम्ब जैसे है। नाक गरुड की चचु जैसी और दांत अनार के दाने जैसे। उसके ओष्ठ प्रवाल जैसे लाल और कठ सुन्दर है, मानो वीणा वोल रही हो या कोयल गा रही हो। भुजाएँ सोधी व चपल है, स्तन पीन घन और नुग है। उसके उदर प्रदेश में तीन रेखाएं शोभा देती है। गगा के किनारो जैसे कोमल विमल नितम्व है । जधाएँ हाथी की सूड जैसी, घुटनो का प्रदेश मृग जैसा व हाथ-पांव पल्लव जैसे है । मदभरी चाल से चलती हुई लता जैसी वह हसो को पराजित करती है और वह वाला अपने नखो की किरणो से सन्ध्या का रग जमाती है।
मानो मदभरी चलती हुई उस वाला की भांति गुजराती-कविता भी आगे बढ़ती चली जाती है। अहमदाबाद ]